Bhagwan Dada Biography | वो जिसने बॉलीवुड को नाचना सिखाया, उन्हीं भगवान दादा की है ये कहानी

Bhagwan Dada Biography. किस्मत की हवा कभी नरम, तो कभी गरम। कुछ महीनों पहले ये गीत आपने कहीं ना कहीं या किसी ना किसी के मुंह से सुना ही होगा। 

आज के दौर के लोकप्रिय एक्टर पंकज त्रिपाठी जब लूडो फिल्म में इस गीत को गुनगुनाते हुए नज़र आते हैं तो उनके फैंस के होठों पर एक मुस्कान तैर जाती है। 

लेकिन हकीकत में ये गाना साल 1951 में जिस एक्टर पर फिल्माया गया था उसे देखकर तो आज के दौर के सिने प्रेमियों के चेहरे पर जो चमक आती है, वो देखने लायक होती है।

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Bhagwan Dada Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज आपको भगवान दादा की ज़िंदगी का किस्सा सुनाएगा। कैसे बेतहाशा गरीबी में पैदा हुए भगवान दादा फिल्म इंडस्ट्री में इतना बड़ा नाम बने? और फिर किन वजहों के चलते फिर से भगवान दादा फर्श से अर्श पर आ गिरे? ये सारी कहानी आज हम और आप जानेंगे। Bhagwan Dada Biography.

शुरूआती जीवन

01 अगस्त सन 1913 को भगवान दादा का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। इनका पूरा नाम था भगवान आभाजी पालव। इनके पिता एक टैक्सटाइल मिल में वर्कर थे। 

परिवार संग भगवान दादा के पिता मुंबई के दादर में एक चॉल में रहते थे। कम उम्र से ही भगवान दादा को फिल्मोें से लगाव होने लगा था। और फिल्मों से उनका ये लगाव कब जुनून बन गया, उन्हें पता ही नहीं चला।  

भगवान दादा चौथी क्लास में ही थे जब इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और मजदूरी करना शुरू कर दिया। हालांकि अब तक इन्होंने फिल्मोें में काम करने का ख्वाब देखना शुरू कर दिया था। 

मूक फिल्मों से शुरू किया था करियर

ये वो दौर था जब भारत में मूक फिल्में बनती थी। किसी तरह भगवान दादा को मूक फिल्मों में एज़ एन एक्टर और एज़ एन असिस्टेंट काम करने का मौका मिल गया। 

बस फिर क्या था। अपनी लगन से जल्दी ही भगवान दादा उस ज़माने की फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा नाम बन गए। कम ही लोग इस बात से वाकिफ हैं कि भगवान दादा को पहलवानी का बड़ा शौक था। 

वो खुद भी पहलवानी किया करते थे और पहलवानी के मुकाबलों में बड़ी दिलचस्पी रखते थे। उनके इसी शौक ने उन्हें पहली दफा फिल्म क्रिमिनल में एक्टिंग करने का मौका दिलाया था। 

भारत के पहले एक्शन हीरो थे भगवान दादा

भगवान दादा ही हिंदी फिल्मों के पहले एक्शन हीरो भी थे। फिल्मों में मुक्कों से लड़ाई वाले दृश्यों की शुरूआत उन्होंने ही की थी। भगवान दादा उस ज़माने के हॉलीवुड स्टार डगलस फेयरबैंक्स के बहुत बड़े फैन थे। 

उन्हीं से प्रभावित होकर ही भगवान दादा अपने सभी स्टंट्स खुद परफॉर्म किया करते थे। भगवान दादा के स्टंट्स इतने रियल होते थे कि राज कपूर तो उन्हें देसी डगलस कहकर पुकारा करते थे।एक्टिंग के साथ-साथ भगवान दादा ने फिल्म मेकिंग भी सीखी थी। 

यही वजह है कि वे बहुत कम बजट की स्टंट फिल्में बनाते थे। उन फिल्मों का डायरेक्शन भी वे खुद करते थे और उनमें एक्टिंग भी खुद ही किया करते थे। उस ज़माने में मजदूर तबके के बीच वो फिल्में बहुत पसंद की जाती थी। 

वो घटना जिसने जीवन भर भगवान दादा को परेशान किया

वक्त बदला और बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ। भगवान दादा ने भी अपनी पहली बोलती फिल्म हिम्मत-ए-मर्दा बनाई। दिग्गज वैम्प ललिता पवार इस फिल्म में लीड हिरोइन थी। 

फिल्म के एक सीन में भगवान दादा को ललिता पवार को थप्पड़ मारना था। लेकिन भूलवश उन्होंने ललिता पवार के बाएं गाल पर इतनी ज़ोर से थप्पड़ मार दिया कि वो बुरी तरह चोटिल हो गई। 

ललिता पवार को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। उनका चेहरा पैरालाइज़ हो गया। बांयी आंख की एक नस फट गई और तीन साल तक इलाज कराने के बाद भी उनकी वो आंख कभी ठीक ना हो सकी। 

भगवान दादा को उम्रभर इस घटना पर अफसोस रहा। हालांकि ललिता पवार ज़रूर मज़ाक-मज़ाक में ये कहती थी कि भगवान दादा की वजह से वो इतनी मशहूर वैम्प बनी। 

राज कपूर की सलाह ने बदल दी किस्मत

बताया जाता है कि ये भगवान दादा ही थे जिन्होंने भारत की पहली हॉरर फिल्म बनाई थी जिसका नाम था भेदी बंगला। इसी फिल्म के बाद राज कपूर से भगवान दादा की दोस्ती हो गई थी और फिर राज कपूर ने ही उन्हें सलाह दी थी कि अब तुम्हें कोई सोशल फिल्म बनानी चाहिए। 

इसके बाद भगवान दादा ने बनाई अलबेला, जिसमें इनकी हीरोइन थी गीता बाली। ये एक बहुत बड़ी हिट फिल्म थी। इस फिल्म के गाने आज तक लोग शौक से सुनते हैं और गुनगुनाते हैं। 

पूरी तरह बदल गई थी ज़िंदगी

भगवान दादा ने ये फिल्म अपने दोस्तों से पैसा उधार लेकर बनाई थी। और फिर जब इस फिल्म को कामयाबी मिली तो भगवान दादा पर दौलत की बरसात हो गई। 

दादर की चॉल से निकलकर उन्होंने अपने और अपने परिवार के लिए मुंबई के चेंबूर में एक बगंला खरीद लिया। हर दिन इस्तेमाल करने के लिए सात अलग अलग कारें खरीद ली। 

भगवान दादा का रहन-सहन एकदम से शाही हो गया। लोग उन्हें देखकर हैरान हो जाते थे। भगवान दादा को शेवरले कारों से इतना ज़्यादा प्यार था कि ना सिर्फ कारों के उनके बेडे में दो शेवरले कारें थी, बल्कि शेवरले नाम की एक फिल्म में तो उन्होंने काम भी किया था। 

चेंबूर में ही इन्होंने आशा स्टूडियोज़ के नाम से अपना खुद का एक फिल्म स्टूडियो भी शुरू किया था। लेकिन वक्त का फेर देखिए। एक दौर ऐसा भी आया जब 25 कमरों वाला इनका बंगला भी बिक गया। कारों का इनका पूरा बेड़ा भी बिक गया और इनका आशा स्टूडियो भी बिक गया। 

तमिल फिल्म भी डायरेक्ट की थी

साल 1941 में भगवान दादा ने एक तमिल फिल्म भी डायरेक्ट की थी। और आपको जानकर हैरानी होगी कि ये पहली भारतीय फिल्म थी जिसमें लीड रोल में कोई इंसान नहीं बल्कि चंदू नाम का एक हाथी था। 

इस फिल्म का नाम था वन मोहिनी। इस फिल्म की हिरोइन थी श्रीलंकाई अभिनेत्री के. थवमनी देवी। ये एक सफल फिल्म थी और इस फिल्म के बाद थवमनी देवी का फिल्मी करियर बहुत ऊंचाईयों पर पहुंचा था। 

हीरो थे भगवान दादा

भगवान दादा एक मराठी परिवार में पैदा हुए ज़रूर थे। लेकिन इन्होंने कभी भी किसी मराठी फिल्म में काम नहीं किया। कुछ लोग कहते हैं कि इसकी वजह ये हो सकती है कि ये मूलरूप से मराठी नहीं थे। 

इनका परिवार एक सिंधी परिवार था और किसी ज़माने में इनके पुरखे सिंध से महाराष्ट्र काम की तलाश में आ गए थे। जिस दौर में भगवान दादा ने फिल्मों में नाम कमाना शुरू किया था वो दौर बंगाली कलाकारों के पतन और पंजाबी कलाकारों के उदय का दौर था। 

ऐसे में एक मुंबईकर का फिल्मों में इतना बड़ा नाम बनाना कई लोगों को हैरान करता था। वजह थी भगवान दादा का फिल्मों में हीरो के तौर पर आना। वो दिखने में हीरो जैसे बिल्कुल भी नहीं थे। फिर भी अपनी फिल्मों में इनके किरदार ऐसे होते थे कि वो फिल्म के हीरो ही बन जाते थे। 

बहुत ज़्यादा शराब पीने लगे थे

इनकी फिल्म अलबेला जब सफल हुई और इनके पास दौलत की बरसात होने लगी तो दूसरे लोगों की तरह ये भी पूरी तरह से उस सफलता को पचा नहीं सके। इन्हें शराब पीने का शौक लग गया। 

बुरे वक्त में इनका साथ छोड़ देने वाले इनके कुछ दोस्त तो कहा भी करते थे कि अगर कोई भगवान दादा की शराब की बोतलें बेच दे तो भी वो लखपति हो सकता है। 

भगवान दादा जुए और शराब में बहुत पैसा उड़ाने लगे थे। कहा तो ये भी जाता है कि अपनी एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हीरोइन पर पैसों की बारिश वाले सीन के लिए इन्होंने असली नोटों की बारिश की थी। 

फेमस है भगवान दादा का डांसिंग स्टाइल

भगवान दादा के डांसिंग स्टाइल के आज भी लाखों दीवाने आपको मिल जाएंगे। फिल्म इंडस्ट्री में तो कोरियोग्राफर उनके डांस मूव्ज़ को भगवान दादा मूव्ज़ कहते हैं। अमिताभ बच्चन, गोविंदा और मिथुन जैसे स्टार्स ने भी डांस के लिए भगवान दादा से प्रेरणा ली। 

ऋषि कपूर को खुद भगवान दादा ने अपने स्टेप्स सिखाए थे। एक फिल्म की शूटिंग के दौरान जब इन्हें एक्सट्रा डांसर्स नहीं मिले तो इन्होंने फिल्म में फाइट सीन्स करने आए फाइटर्स को ही नचा दिया। 

भगवान दादा की चॉल और गणपति का वो जुलूस

भगवान दादा का डांस लोगों को कितना पसंद था इसका अंदाज़ा आप ऐसे लगाइए कि जब वो वापस दादर में अपनी चॉल में आकर रहने को मजबूर हुए तो गणपति सेलिब्रेशन के दौरान इनके घर की तरफ से गुज़रने वाले सभी जुलूस इनकी चॉल लालूभाई मेंशन के सामने ज़रूर रुकते थे। 

इनका सुपरहिट सॉन्ग भोली सूरत दिल के खोटे बजाया जाता था और लोग इनसे बाहर आकर अपना डांस दिखाने की फरमाइश करते थे। भगवान दादा ने भी लोगों को कभी निराश नहीं किया और वो बाहर आकर अपने सिग्नेचर स्टाइल में डांस ज़रूर करते थे। 

इस तरह डूबते चले गए भगवान दादा

अब आप शायद सोच रहे हों कि इतना खुश मिजाज़ और कामयाब अभिनेता एकदम से पतन के गर्त में क्यों चला गया। दरअसल, अलबेला फिल्म को मिली कामयाबी के बाद भगवान दादा का आत्मविश्वास काफी ज़्यादा बढ़ चुका था। 

उन्होंने झमेला और लाबेला नाम से दो और फिल्में भी बनाई। लेकिन ये फिल्में फ्लॉप हो गई। उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। मगर जिस फिल्म ने भगवान दादा को अर्श से वापस फर्श पर लाकर टपक दिया था उसका नाम था हंसते रहना। 

भगवान दादा ने दादामुनि यानि अशोक कुमार को इस फिल्म में लीड रोल में कास्ट किया था। इस फिल्म को बनाने के लिए भगवान दादा ने अपनी सारी पूंजी लगा दी। अपनी पत्नी के गहने तक इस फिल्म को बनाने के लिए उन्होंने बेच दिए। लेकिन ये फिल्म कभी पूरी नहीं हो सकी। 

कहा जाता है कि अशोक कुमार ने इस फिल्म की शूटिंग के दौरान इतने नखरे दिखाए कि भगवान दादा को ये फिल्म बंद ही करनी पड़ी और उन्हें बेतहाशा घाटा भी उठाना पड़ा। 

दूसरी तरफ जुए और शराब की बुरी लत के चलते भी भगवान दादा की आर्थिक स्थिति बहुत ज़्यादा खराब हो चुकी थी। इन्हीं सब वजहों के चलते उन्होंने अपना सबकुछ बेच दिया और वापस दादर वाली अपनी चॉल में आकर रहने लगे। 

कईयों की बदली थी ज़िंदगी

फिल्म इंडस्ट्री के कई नामी कलाकार तो ऐसे भी थे जिन्हें भगवान दादा ने ब्रेक दिया था। इनमें सबसे बड़ा नाम था संगीतकार सी रामचंद्र, जो कि भगवान दादा के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। 

भगवान दादा के ज़रिए मिली शुरूआत के बाद सी रामचंद्र ने 100 से भी ज़्यादा फिल्मों में संगीत दिया। ऐ मेरे वतन के लोगों और ये ज़िंदगी उसी की है जैसे आइकॉनिक गानों का म्यूज़िक भी सी रामचंद्र ने ही दिया था। 

हिंदी फिल्मों के बहुत बड़े गीतकार रहे आनंद बख्शी को भी पहला मौका भगवान दादा ने दिया था। वहीं हेमंत कुमार को भी उनके करियर की पहली बड़ी फिल्म नागिन भगवान दादा ने ही दिलाई थी। 

खड़े-खड़े सो जाते थे भगवान दादा

लाखों दिलों पर राज करने वाले भगवान दादा के बारे में एक रोचक तथ्य ये था कि ये खड़े-खड़े ही अपनी नींद पूरी कर लिया करते थे। वो भी खुली आंखों के साथ। जो लोग इन्हें खड़े हुए और खुली आंखों के साथ सोते हुए देखते थे वो हैरान रह जाते थे।  

भगवान दादा ना सिर्फ एक बहुत शानदार कलाकार थे। बल्कि एक बहुत ही प्यारे इंसान भी थे। 1947 में जब भारत के विभाजन के दौरान दंगे हो रहे थे तो उन्होंने मुंबई के भिंडी बाज़ार में रहने वाले मुस्लिम कलाकारों और टेक्निशियन्स की जान बचाने के लिए छिपने की जगह दी थी। 

आखिरी वक्त में देखी बहुत मुश्किलें

भगवान दादा जब अपने बुरे वक्त से गुज़र रहे थे तो इनके वो सभी दोस्त इनका साथ छोड़ गए जो एक दौर में इनके आगे-पीछे मंडराया करते थे। कुछ तो ऐसे भी थे जिन्होंने भगवान दादा से उधार लेकर फिर कभी नहीं लौटाया। 

लेकिन बड़े दिल वाले भगवान दादा ने ऐसे लोगों को भी माफ कर दिया था। ज़िंदगी के आखिरी कुछ सालों में भगवान दादा को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा। बढ़ती उम्र के कारण उनका शरीर उनका साथ छोड़ने लगा था। 

वो कई दफा दादर वाली अपनी चॉल के बाथरूम में फिसलकर गिरे और घायल हुए थे। इस चॉल में उनके साथ एक बेटी व बेटा रहा करते थे। उनकी उस बेटी की शादी नहीं हुई थी और बेटा फिल्म इंडस्ट्री में असिस्टेंट कैमरामैन के तौर पर काम करता था। 

चॉल के एक बड़े कमरे को एक दीवार के ज़रिए दो छोटे कमरों में तब्दील कर लिया गया था। ऐसा इसलिए ताकि बेटे और उसकी पत्नी को थोड़ी प्राइवेसी मिल सके। 

मदद पर ज़िंदा थे भगवान दादा

सोशल मीडिया पर आपने ढेरों जगह ये पढ़ा-सुना होगा कि ज़िंदगी के आखिरी सालों में भगवान दादा को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। लेकिन ये बात पूरी तरह से सच नहीं है। भगवान दादा को आर्थिक मोर्चे पर कुछ समस्याओं से दो चार ज़रूर होना पड़ा था। 

लेकिन सिने आर्टिस्ट असोसिएशन की तरफ से तीन हज़ार रुपए महीना और इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स असोसिएशन की तरफ से 5 हज़ार रुपए महीना की मदद भगवान दादा को मिला करती थी। इसके अलावा कई कलाकार ऐसे भी थे जो निज़ी तौर भगवान दादा की मदद कर दिया करते थे। 

और दुनिया छोड़ गए Bhagwan Dada

जानकार कहते हैं कि भगवान दादा को सबसे ज़्यादा इस बात का दुख था कि उनके परिवार के लोगों ने भी बुरे वक्त में उनके साथ गैरों की तरह बर्ताव किया था। 

अपनों से मिले इसी ग़म के साथ 04 फरवरी 2002 को भगवान दादा ने दादर की अपनी चॉल में 88 साल की उम्र में अपनी आखिरी सांस ली थी। इन्हें हार्ट अटैक आया था।

साल 2016 में भगवान दादा को याद करते हुए इनके जीवन पर एक फिल्म बनाई गई थी जिसका नाम था एक अलबेला। भगवान दादा को इस दुनिया से गए अब कई साल हो चुके हैं। लेकिन आज भी लोग उनके डांसिंग स्टाइल और उनकी अदाकारी के कायल हैं। और शायद, हमेशा ही ही रहेंगे। जय हिंद।

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