Shailesh Kumar | पुराने ज़माने का वो हैंडसम एक्टर जिसका पूरा करियर एक अफ़वाह खा गई
एक झूठी अफवाह उड़ी और धर्मेंद्र के साथ गाड़ी में बैठे इस कलाकार का करियर पूरी तरह से चौपट हो गया। अगर वो अफवाह ना फैली होती तो शायद आज ये भी फिल्म इंडस्ट्री का जाना-पहचाना नाम होते। धरम जी की ही तरह। इनका नाम है Shailesh Kumar.
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Biography of Bollywood Actor Shailesh Kumar - Photo: Social Media |
Shailesh Kumar जोधपुर के रहने वाले थे। 21 जनवरी 1939 को इनका जन्म हुआ था। किसी ज़माने में Shailesh Kumar, जिनका वास्तविक नाम शंभुनाथ पुरोहित था, वो मुंबई घूमने आए थे। मुंबई आए तो फिल्म की शूटिंग देखने एक स्टूडियो चले गए।
वहां बहरूपिया नामक एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी। उस फिल्म के प्रोड्यूसर थे रती भाई। रती भाई की नज़र शैलेश पर पड़ी तो वो इनकी पर्सनैलिटी से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने शैलेश को फिल्मों में काम करने का ऑफर दे दिया। वो शैलेश से बोले,"फिल्मों कमें काम करोगे?"
उस वक्त तो शैलेश जी ने मना कर दिया। क्योंकि वो कुछ नहीं जानते थे कि फिल्मों में काम कैसे किया जाता है। ये वापस अपने शहर जोधपुर लौट आए। लेकिन रती भाई की वो बात इनके दिमाग पर छप गई। एक्टिंग का बीज उनके मन-मस्तिष्क में रोपित हो गया।
Shailesh Kumar ने तय किया कि वो मुंबई वापस जाएंगे और फिल्मों में हीरो बनेंगे। मुंबई के लिए Shailesh Kumar निकलते, उससे पहले ही घरवालों ने इनकी शादी करा दी। लेकिन एक्टर बनने का इनका फैसला अडिग था।
यूं तो शैलेश एक अच्छे खासे और मजबूत घर से थे। लेकिन अपने पिता से ये पैसे नहीं मांगते थे। इन्हें शादी में एक सोने की चेन ससुराल वालों की तरफ से तोहफे में मिली थी। इन्होंने वो चेन 75 रुपए में बेची और आ गए मुंबई।
मुंबई में इनकी मुलाकात धर्मेंद्र से हुई। उन दिनों धर्मेंद्र भी एक संघर्षरत कलाकार थे। साल 1960 में आई फिल्म नई मां में शैलेश जी को पहली दफा अभिनय करने का मौका मिला। रोल काफी छोटा था। लेकिन शैलेश ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया।
साल 1961 में आई भाभी की चूड़ियां वो फिल्म थी जिसने शैलेश कुमार को पहचान दिलाई। उस वक्त धरम जी ने भी इनसे कहा था कि यार, तू बहुत नसीब वाला है। उस फिल्म में बलराज साहनी और मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे।
शैलेश ने मीना कुमारी के देवर का रोल उस फिल्म में निभाया था। इसके बाद शैलेश जी को काम तो खूब मिला। लेकिन अधिकतर उनके किरदार सपोर्टिंग ही होते थे। मुख्य रोल उन्हें बहुत ज़्यादा नहीं मिले। 1968 में शैलेश जी ने एक्ट्रेस मुमताज़ के साथ गोल्डन आई: सीक्रेट एजेंट 077 नामक एक फिल्म की। इस फिल्म का एक गाना काफी मशहूर हुआ जिसके बोल थे हाय मैं मर जाऊं।
ये फिल्म जेम्स बॉन्ड की भारतीय नकल थी और एक बी-ग्रेड फिल्म थी। वक्त के साथ मुमताज़ तो टॉप की एक्ट्रेस बन गई थी। इनके संघर्ष के दिनों के साथी धर्मेंद्र भी स्टार बन चुके थे। लेकिन शैलेश को कभी वो कामयाबी नहीं मिल सकी जिसका ख्वाब हर एक्टर देखता है।
शैलेश कुमार ने अपनी पत्नी पुष्पा को भी मुंबई ही बुला लिया था। कहा जाता है कि शैलेश जब तीस की उम्र में थे तब इन्हें थायरॉइड की बीमारी ने अपना शिकार बना लिया था। उस ज़मान में रेडिएशन थैरिपी के ज़रिए ही थायरॉइड का इलाज होता था। और रेडिएशन थैरिपी मिलती थी टाटा अस्पताल में। जबकी टाटा अस्पताल मशहूर था कैंसर के मरीज़ों का इलाज करने के लिए।
इसलिए जब किसी ने शैलेश जी को टाटा अस्पताल में देखा तो उसने इंडस्ट्री में अफवाह उड़ा दी कि शैलेश को तो कैंसर हो गया है। उस अफवाह का इनके करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा। थायरॉइड की बीमारी तो ठीक हो गई। लेकिन शैलेश जी को काम मिलना बंद हो गया।
उन्होंने खूब हाथ-पैर मारे। लेकिन किसी ने भी उन्हें काम नहीं दिया। आखिरकार साल 1978 में शैलेश जी अपने परिवार को लेकर अपने होमटाउन जोधपुर वापस लौट आए। और फिर आखिरी वक्त तक जोधपुर में ही रहे। 21 अप्रैल 2017 को शैलेश कुमार जी का निधन हो गया।
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