Zaheeda Hussain | वो अभागी Bollywood Actress जिसका करियर देवानंद के चक्कर में तबाह हो गया | Biography

Zaheeda Hussian. 70 के दशक का एक मशहूर चेहरा। एक बहुत नामी फिल्मी खानदान की लड़की, जिसने कुछ बड़ी ही शानदार फिल्मों में काम किया। ज़ाहिदा, वो अदाकारा जिसने बड़ी-बड़ी फिल्में बिना किसी झिझक के ठुकरा दी। फिल्म इंडस्ट्री का भुलाया जा चुका वो नाम, जिसकी बुआ किसी ज़माने में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की सबसे टॉप एक्ट्रेस थी। और जिसका भाई आज के ज़माने का बहुत बड़ा स्टार है।

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Actress Zaheeda Hussain Biography - Photo: Social Media                     

Meerut Manthan पर आज पेश है Actress Zaheeda Hussain की कहानी। Zaheeda Hussian के जीवन से जुड़ी कुछ प्रोफेशनल और पर्सनल बातें आज हम और आप जानेंगे। और यकीन कीजिएगा दोस्तों। आपको Meerut Manthan की ये पेशकश बहुत पसंद आने वाली है।

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Zaheeda Hussain का परिवार

ज़ाहिदा का जन्म हुआ था 9 अक्टूबर 1944 को मुंबई में। ज़ाहिदा की दादी भी अपने दौर में फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा नाम थी। और वो पहली महिला थी जिन्होंने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बतौर म्यूज़िक डायरेक्टर करियर शुरू किया था। 

हालांकि वो खुद भी बहुत अच्छी गायिका थी। और फिल्में भी प्रोड्यूस करती थी। कहते हैं कि कुछ-एक फिल्मों में तो ज़ाहिदा की दादी ने एक्टिंग भी की थी। और कई दफा वो फिल्मों की कहानियां भी लिखा करती थी। उनका नाम था जद्दनबाई। 

जी हां, खूबसूरत और ज़बरदस्त अदाकारा रही नरगिस दत्त की मां जद्दनबाई। यानि नरगिस दत्त ज़ाहिदा की बुआ थी। हालांकि नरगिस दत्त ज़ाहिदा की सगी बुआ नहीं थी। ज़ाहिदा के पिता अख्तर हुसैन नरगिस के सौतेले भाई थे। 

जद्दनबाई के पहले पति नरोत्तमदास खत्री उर्फ बच्चू भाई थे। अख्तर हुसैन उन्हीं की संतान थे। यानि ज़ाहिदा नरोत्तमदास खत्री की पोती हैं। जद्दनबाई से शादी करने के लिए नरोत्तमदास खत्री उर्फ बच्चू भाई ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। हालांकि जद्दनबाई और बच्चूभाई की शादी सफल ना रही और दोनों का तलाक हो गया। 

जद्दनबाई ने दूसरी शादी की थी सितार नवाज़ उस्ताद इरशाद मीर खान से। उनसे जद्दनबाई को एक बेटा हुआ जिनका नाम था अनवर हुसैन। अनवर हुसैन साठ और सत्तर के दशक में फिल्म इंडस्ट्री के नामी कैरेक्टर आर्टिस्ट थे। 

यानि अनवर हुसैन जिन्हें लोग ज़ाहिदा के चाचा कहते हैं, वो भी इनके कोई सगे नहीं, सौतेले चाचा थे। जद्दनबाई की तीसरी शादी हुई थी मोहनचंद उत्तमचंद त्यागी उर्फ मोहन बाबू से। 

मोहन बाबू ने भी जद्दनबाई से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म स्वीकार किया था और अपना नाम अब्दुल राशिद रख लिया था। इन्हीं मोहन बाबू की बेटी थी नरगिस। यानि नरगिस ज़ाहिदा की बुआ तो थी। लेकिन सगी नहीं, सौतेली बुआ थी।

बचपन से ही मिला फिल्मी माहौल

तो ये तो संक्षेप में हमने आपको ज़ाहिदा का फैमिली बैकग्राउंड बता दिया। अब वापस ज़ाहिदा की कहानी शुरू करते हैं। ज़ाहिदा के पिता अख्तर हुसैन भी अपने वक्त के नामी फिल्म प्रोड्यूसर हुआ करते थे। 

उस ज़माने में रंग महल नामक स्टूडियो के मालिक अख्तर हुसैन ही थे। जबकी इनकी मां इकबाल बेग़म हाउस वाइफ थी। ज़ाहिदा के चार भाई और तीन बहनें थी। हालांकि उनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिल सकी। 

चूंकि ज़ाहिदा एक फिल्मी परिवार में पैदा हुई थी तो बचपन से ही उन्होंने फिल्मी माहौल को काफी करीब से देखा व महसूस किया था। छोटी उम्र से ही उन्होंने फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश अपने दिल में पाल ली थी। 

और जब ज़ाहिदा बड़ी हुई तो उन्होंने महसूस किया कि क्योंकि वो एक इमोशनल और काफी सेंसिटिव लड़की हैं, इसलिए उनके लिए फिल्म इंडस्ट्री से बेस्ट और कुछ हो ही नहीं सकता। 

हालांकि शुरुआत में नरगिस नहीं चाहती थी कि ज़ाहिदा फिल्मों में आएं। नरगिस को लगता था कि ज़ाहिदा कुछ ज़्यादा ही इमोशनल हैं। और ऐसे लोगों के लिए फिल्म इंडस्ट्री में जाना एक गलत फैसला साबित होता है।

हालांकि नरगिस के इस विचार से ज़ाहिदा सहमत नहीं थी। इसलिए उन्होंने साफ कर दिया कि वो फिल्मों में काम करने का अपना ख्वाब हर हाल में पूरा करेंगी। भतीजी का मजबूत इरादा भांपकर नरगिस ने भी उन्हें फिल्मों से दूर रहने की सलाह देना बंद कर दिया। 

ऐसे तैयार हुआ फिल्मों में आने का रोडमैप

चूंकि ज़ाहिदा का परिवार फिल्मी था तो घर आने वाले ज़्यादातर मेहमान भी फिल्मी दुनिया के लोग ही होते थे। यही वजह है कि जब ज़ाहिदा बड़ी होने लगी तो उनके घर आने वाले डायरेक्टर-प्रोड्यूसर्स ने उनके पिता से कहना शुरू कर दिया कि अब ज़ाहिदा को फिल्मो में काम करने की छूट मिल जानी चाहिए। 

एक इंटरव्यू में खुद ज़ाहिदा ने बताया था कि उनके पिता से मिलने घर आने वाला लगभग हर डायरेक्टर-प्रोड्यूसर यही कहता था कि ज़ाहिदा को अब फिल्मी लाइन में उतारो। 

वैसे भी उस ज़माने में फिल्म इंडस्ट्री के लोगों का मानना था कि फिल्मी घरानों के बच्चे अगर फिल्म इंडस्ट्री में आते हैं तो उनके साथ काम करने में आसानी होती है। वो जानते हैं कि फिल्म निर्माण कैसे होता है। और उन पर बहुत ज़्यादा मेहतन नहीं करनी पड़ती। 

Gurudutt ने भी किया था अप्रोच

ऐसे ही लोगों में से एक थे गुरू दत्त साहब। गुरू दत्त ज़ाहिदा को अपनी फिल्म कनीज़ से लॉन्च करना चाहते थे। गुरू दत्त तो ज़ाहिदा का स्क्रीनटेस्ट लेने की पूरी तैयारी भी कर चुके थे। 

लेकिन चूंकि उन्हीं दिनों गुरू दत्त की छवि कुछ ऐसी भी बनी हुई थी कि वो नई लड़कियों को फिल्म इंडस्ट्री में लॉन्च करने की बड़ी-बड़ी घोषणाएं करके फिर खामोश बैठ जाते थे, तो ज़ाहिदा ने गुरू दत्त साहब के ऑफर को कभी गंभीरता से नहीं लिया। 

और ना ही गुरू दत्त की फिल्म कनीज़ कभी बन पाई। हालांकि ज़ाहिदा के इन्कार करने के बाद गुरू दत्त साहब ने सिमी ग्रेवाल को कनीज़ फिल्म के लिए कास्ट किया था। कहा जाता है कि सिमी ने कनीज़ के लिए इक्का-दुक्का सीन्स भी शूट किए थे। 

लेकिन जब गुरू दत्त ने फिल्म को बंद करने का ऐलान किया तो सिमी ग्रेवाल से उनका काफी विवाद हुआ था। और सिमी ग्रेवाल को अपनी फीस निकलवाने के लिए सिने आर्टिस्ट असोसिएशन में गुरू दत्त की शिकायत भी करनी पड़ी थी।

पिता ने खुद भेजा स्टूडियो

चलिए ज़ाहिदा की कहानी पर वापस आते हैं। तो हुआ कुछ यूं कि जब प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स ज़ाहिदा को फिल्मों में काम करने के देने की बात इनके पिता अख्तर हुसैन से कुछ ज़्यादा ही कहने लगे तो एक दिन उन्होंने खुद ही ज़ाहिदा से कहा कि किसी दिन फ्री टाइम में तुम हमारे स्टूडियो जाओ और वहां अपना एक फोटो सेशल कराओ। 

दरअसल, अख्तर हुसैन जानना चाहते थे कि आखिर क्यों फिल्म इंडस्ट्री के लोग ज़ाहिदा को फिल्मों में देखने के लिए इतने उत्सुक हैं। उस वक्त ज़ाहिदा की उम्र 15-16 साल ही थी। 

पिता के कहने के मुताबिक, एक दिन ज़ाहिदा स्टूडियो पहुंच गई। वहां उनकी मुलाकात हुई उस वक्त के नामी सिनेमैटोग्राफर फली मिस्त्री और डायरेक्टर राज खोसला से। 

फली मिस्री ने ज़ाहिदा की कुछ तस्वीरें ली। फली मिस्त्री को ज़ाहिदा की तस्वीरें बहुत पसंद आई। अगले दिन सुबह उन्होंने ज़ाहिदा के पिता से कहा कि एक नई फिल्म बन रही है जिसका नाम है साजन की गलियां। ज़ाहिदा को उसमें हीरोइन का रोल मिल रहा है। 

तुम कहो तो मैं प्रोड्यूसर को हां कह दूं। अख्तर हुसैन ने वो ऑफर स्वीकार कर लिया। लेकिन अफसोस, बजट की कमी की वजह से वो फिल्म कभी बन ही नहीं पाई। उसके बाद कई दिन गुज़र गए। ज़ाहिदा को कोई नया ऑफर नहीं मिला। 

Devanand से पहली मुलाकात

एक दिन ज़ाहिदा 'रात और दिन' नाम की फिल्म की शूटिंग देखने गई। उस फिल्म में ज़ाहिदा की बुआ नरगिस काम कर रही थी। और फिल्म में ज़ाहिदा के पिता अख्तर हुसैन ही पैसा लगा रहे थे। 

जिस स्टूडियो में रात और दिन की शूटिंग चल रही थी, उसमें ही एक दूसरे फ्लोर पर देवानंद अपनी फिल्म तीन देवियां की शूटिंग कर रहे थे। शूटिंग से ब्रेक लेकर देवानंद नरगिस से मिलने आए। उस वक्त ज़ाहिदा भी नरगिस के पास ही थी। 

और उसी वक्त देवानंद ने ज़ाहिदा को पहली दफा देखा था। देवानंद को जब पता चला कि ज़ाहिदा नरगिस की भतीजी हैं तो उन्होंने ज़ाहिदा से पूछा कि क्या तुम फिल्मों में काम करना पसंद करोगी। 

अब चूंकि फिल्मों में काम करना ज़ाहिदा का बचपन का ख्वाब था तो इन्कार करने का तो कोई सवाल ही नहीं था। सो ज़ाहिदा ने देव साहब से कहा, ज़रूर। क्यों नहीं। ज़ाहिदा का जवाब सुनकर देव साहब काफी खुश हुए। और कुछ दिनों बाद देव साहब पहुंच गए ज़ाहिदा के घर। 

उन्होंने ज़ाहिदा को अपनी फिल्म प्रेम पुजारी में सैकेंड लीड एक्ट्रेस का रोल ऑफर किया। प्रेम पुजारी से ही देव साहब बतौर डायरेक्टर अपनी एक नई पारी फिल्म इंडस्ट्री में शुरू करने जा रहे थे। ज़ाहिदा ने जब अपना रोल सुना तो वो उन्हें काफी पसंद आया। 

और उन्होंने प्रेम पुजारी में काम करने के लिए हामी भर दी। फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। और दुनिया के कई देशों में इस फिल्म के लिए ज़ाहिदा को देव साहब व फिल्म यूनिट के साथ ट्रैवल करना पड़ा। 

ज़ाहिदा की पहली फिल्म

लेकिन काफी मेहनत करने के बावजूद भी प्रेम पुजारी की शूटिंग कंप्लीट करने में देवानंद को बहुत वक्त लगा। इसी बीच डायरेक्टर एल.बी.लछमन भी ज़ाहिदा के पास अनोखी रात फिल्म का ऑफर ले आए। 

उस फिल्म में संजीव कुमार और परीक्षित साहनी थे। और फिल्म के डायरेक्टर थे असित सेन। जबकी फिल्म की कहानी लिखी थी ऋषिकेश मुखर्जी ने। ज़ाहिदा ने अनोखी रात साइन कर ली। 

एक इंटरव्यू में इस फिल्म के बारे में बात करते हुए ज़ाहिदा ने कहा था कि उस वक्त संजीव कुमार बी-ग्रेड एक्टर हुआ करते थे। वो खुद भी संजीव कुमार के साथ काम नहीं करना चाहती थी। 

लेकिन जब उन्हें पता चला कि फिल्म को ऋषिकेश मुखर्जी ने लिखा है। और डायरेक्टर असित सेन होंगे तो उन्होंने फिल्म में काम करने के लिए हामी भर दी। प्रेम पुजारी की शूटिंग रुकी हुई थी। 

इसलिए ज़ाहिदा ने अनोखी रात की शूटिंग शुरू कर दी। शूटिंग कंप्लीट हुई और साल 1968 में अनोखी रात रिलीज़ भी हो गई। जबकी ज़ाहिदा की साइन की हुई पहली फिल्म, यानि देवानंद की प्रेम पुजारी अनोखी रात के दो साल बाद साल 1970 में रिलीज़ हुई। 

देवानंद के लिए ठुकरा दी कई फिल्में

अनोखी रात तो बॉक्स ऑफिस पर एवरेज ही रही। लेकिन प्रेम पुजारी का खूब चर्चा हुआ। ज़ाहिदा के किरदार और उनके काम को काफी पसंद किया गया। हालांकि प्रेम पुजारी फिल्म के साथ काफी कंट्रोवर्सी भी हुई। लेकिन उस कंट्रोवर्सी की बात फिर किसी दिन करेंगे। 

फिलहाल बात करते हैं उन कुछ फिल्मों की, जो देवानंद साहब के लिए ज़ाहिदा ने ठुकरा दी थी। और ज़ाहिदा ने ये फिल्में ठुकराने का फैसला क्यों लिया था। तो बात कुछ यूं थी कि प्रेम पुजारी के रिलीज़ होने के बाद ज़ाहिदा नवकेतन फिल्म्स की न्यू सेंसेशन बन गई थी। 

नवकेतन फिल्म्स की उस ज़माने में बहुत बढ़िया रेप्यूटेशन थी। ज़ाहिदा को भी नवकेतन फिल्म्स से जुड़ने के बाद बहुत प्यार और दुलार मिल रहा था। इसिलिए जब सुशील मजूमदार ज़ाहिदा के पास लाल पत्थर(1971) का ऑफर लेकर गए तो ज़ाहिदा ने वो ऑफर ठुकरा दिया। 

हालांकि ज़ाहिदा ने ये भी कहा था कि चूंकि उस फिल्म के एक सीन में राज कुमार अपना कुत्ता उनके ऊपर छोड़ने वाले थे, इसलिए उन्होंने उस फिल्म में काम नहीं किया था। 

बकौल ज़ाहिदा, उन्हें कुत्तों से बहुत डर लगता है। उन्होंने डायरेक्टर से सीन बदलने को कहा भी था। लेकिन जब डायरेक्टर नहीं माने तो ज़ाहिदा ने भी फिल्म में काम नहीं किया। 

Hema Malini की बदल गई किस्मत

फाइनली वो रोल हेमा मालिनी के पास चला गया। और उस रोल को निभाने के बाद हेमा मालिनी का करियर ट्रैक पर आ गया था। ज़ाहिदा को जितेंद्र की हमजोली भी ऑफर हुई थी। लेकिन उन्होंने उसे भी ठुकरा दिया। बाद में हमजोली में लीना चंदावरकर ने काम किया। 

एक और फिल्म थी जिसका नाम हमें नहीं पता चल सका। लेकिन वो भी कोई बड़े बजट की फिल्म थी। और वो फिल्म ज़ाहिदा ने इसलिए छोड़ दी क्योंकि उसमें उन्हें एक बिल्ली गोद में लेनी थी। 

जबकी ज़ाहिदा को कुत्तोँ के साथ-साथ बिल्लियों से भी एलर्जी है। इतनी सारी फिल्में ठुकराने की वजह से लोग ज़ाहिदा से चिढ़ने भी लगे थे। कुछ लोग तो ज़ाहिदा को सबक तक सिखाना चाहते थे। उनमें से एक थे फिरोज़ खान साहब। ज़ाहिदा और फिरोज़ खान के बीच नाराज़गी का क्या किस्सा था, वो भी बयां किया जाएगा। लेकिन फिर किसी दिन।

देव साहब की भी ये फिल्म ठुकरा दी

ज़ाहिदा के करियर की तीसरी फिल्म थी देवानंद साहब के ही साथ गैम्बलर। वही गैम्बलर जिसका गीत,'चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है' आज भी बहुत लोकप्रिय है। लेकिन ये फिल्म कुछ खास कमाल नहीं कर सकी। 

इस फिल्म के बाद जब देवानंद ने हरे रामा हरे कृष्णा फिल्म पर काम शुरू किया तो उन्होंने ज़ाहिदा को अपनी बहन जैनिस का रोल ऑफर किया। ज़ाहिदा तो ये रोल निभाने के लिए लगभग तैयार ही थी। 

लेकिन उनके बहनोई अमरजीत जो कि खुद भी एक डायरेक्टर थे, उन्होंने ज़ाहिदा से कहा कि लोग तुम्हें देवानंद की हीरोइन के रूप में देख चुके हैं। 

उनकी बहन के रूप में लोग तुम्हें स्वीकार नहीं कर पाएंगे। और तुम्हारा करियर खत्म हो जाएगा। बहनोई की बात मानते हुए ज़ाहिदा ने हरे रामा हरे कृष्णा फिल्म छोड़ दी। और फाइनली ये रोल गया ज़ीनत अमान के पास। 

और फिल्मों से दूर हो गई ज़ाहिदा

हरे रामा हरे कृष्णा के बाद देवानंद अपनी दुनिया में बिज़ी हो गए। ज़ाहिदा को फिल्मों के ऑफर्स मिलने बंद हो गए। बड़ी मुश्किल से उन्हें तीन चोर(1971) और प्रभात(1973) नाम की दो फिल्में मिली थी। लेकिन दोनों ही फ्लॉप हो गई। ज़ाहिदा का हौंसला टूट गया। 

उन्होंने अपने प्रेमी और बिजनेसमैन केसरी नंदन सहाय से शादी कर ली और फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दिया। शादी के बाद ज़ाहिदा शिकवा(1974) और नीलिमा(1975) नाम की फिल्मों में भी दिखी। लेकिन ये उनके करियर का अंत ही साबित हुआ। 

पारिवारिक जीवन

केसरी नंदन सहाय और ज़ाहिदा के दो बेटे हैं। नीलेश सहाय और ब्रिजेश सहाय। इनका बेटा नीलेश सहाय फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव है। हालांकि उनका करियर अभी तक कुछ खास नहीं रहा है। नीलेश सहाय ने 2011 में आई गणेश आचार्य की एंजल में एक्टिंग की थी। 

वो फिल्म के लीड हीरो थे। लेकिन फिल्म फ्लॉप हो गई। 2021 में नीलेश ने फिर वापसी की। लेकिन इस दफा वो डायरेक्शन में आए। उन्होंने स्क्वैड नाम की एक फिल्म लिखी और डायरेक्ट की। 

इस फिल्म में डैनी साहब के बेटे रिनजिंग डैंगजोंगपा ने मुख्य भूमिका निभाई है। ये फिल्म ज़ी5 पर प्रीमियर हुई थी। और ये पहली भारतीय फिल्म थी जिसकी शूटिंग बेलारूस में हुई थी। ज़ाहिदा के दूसरे बेटे ब्रजेश के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिल सकी है।

Zaheeda Hussain को Meerut Manthan का सलाम

ज़ाहिदा अब मुंबई में अपने परिवार के साथ रहती हैं। वो अब दादी बन चुकी हैं। और एक सुखी जीवन बिता रही हैं। साल 2002 में ज़ाहिदा ने दूरदर्शन के ज़रिए एक दफा फिर से एक्टिंग की दुनिया में वापसी की थी। 

दूरदर्शन के शो आम्रपाली में ज़ाहिदा ने सालों बाद एक्टिंग की थी। उसके बाद इन्होंने कभी किसी और टीवी शो में काम नहीं किया। Meerut Manthan ज़ाहिदा जी की अच्छी सेहत के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है। जय हिंद।  

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