Sulochana Latkar | Hindi Cinema की वो प्यारी मां जिसे आज सब भुला चुके हैं | Biography

Sulochana Latkar. एक ऐसी अदाकारा, जिसने बाल कलाकार की हैसियत से अपना फिल्मी सफर शुरू किया। और फिर लीड एक्ट्रेस और कैरेक्टर रोल्स में खूब नाम कमाया। बीते दौर के हिंदी सिनेमा के तमाम सुपस्टार्स जैसे दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, देवानंद की मां के किरदारों में ये नज़र आ चुकी हैं। 

सात दशकों तक इन्होंने भारतीय सिनेमा को अपनी कला से रोशन किया है। मराठी हो, हिंदी हो, या दक्षिण भारतीय फिल्में हों। सुलोचना लाटकर ने अपने हुनर का डंका हर तरफ बजाया।

Veteran-Actress-Sulochana-Latkar-Biography
Veteran Actress Sulochana Latkar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर आज कही जाएगी बेहद शानदार अभिनेत्री Sulochana Latkar की कहानी। Sulochana Latkar की ज़िंदगी और उनके फिल्मी सफर के बारे में आज बहुत कुछ हम और आप जानेंगे।

Sulochana Latkar का शुरुआती जीवन

सुलोचना लाटकर का जन्म हुआ था 20 जुलाई 1929 को कर्नाटक के बेलगाम ज़िले के खड़कलाट गांव में। इनका गांव खड़कलाट महाराष्ट्र की सीमा के एकदम करीब है। महाराष्ट्र का कोल्हापुर शहर इस गांव से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। 

सुलोचना जी के पिता कोल्हापुर रियासत में दारोगा की हैसियत से नौकरी किया करते थे। इनका एक भाई भी था जो उम्र में इनसे लगभग 10 साल बड़ा था। इनकी एक मौसी भी थी जो उम्र में इनकी मां से काफी छोटी थी और इनके परिवार संग ही रहा करती थी। 

पढ़ाई लिखाई में कभी नहीं लगा मन

चूंकि इनके गांव का नाम खड़कलाट था तो लोग इनके परिवार को लाटकर कहा करते थे। इनकी शुरुआती शिक्षा इनके गांव में ही मौजूद एक प्राइमरी स्कूल में हुई थी। लेकिन पढ़ाई लिखाई में इन्हें कभी कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

ऐसे हुई सिनेमा में दिलचस्पी

सुलोचना जी के गांव में राजेबक्सर की दरगाह और बालेसाब की दरगाह थी। ये दरगाहें उस इलाके में  मशहूर थी। इन दरगाहों पर हर साल उर्स का आयोजन होता था और इस दौरान गांव में एक मेला भी लगता था। उस मेले में तमाशा होता था। नाटक किए जाते थे और फिल्मों के शोज़ भी दिखाए जाते थे। 

नन्ही Sulochana Latkar हमेशा सबसे आगे बैठकर ये सभी प्रोग्राम्स देखा करती थी। छोटी उम्र से ही फिल्मों के प्रति इनके मन में काफी उत्सुकता पैदा होने लगी थी। चलचित्र देखकर ये अक्सर परदे के पीछे जाती थी। ये जानने कि आखिर इस परदे के पीछे है कौन। 

जब सर से उठा माता-पिता का साया

उम्र के महज़ 12वें पड़ाव में ही सुलोचना जी पहुंची थी जब इनके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई। इनके और इनके भाई के पास अब केवल एक मौसी ही थी। इसी दौरान गांव में प्लेग फैल गया और ये अपने भाई व मौसी के साथ अपने पिता के दोस्त के घर शरण लेने पहुंच गई जो पास के ही चिकोड़ी गांव में रहा करते थे और पेशे से एक वकील थे। 

पिता के दोस्त के घर ये आ तो गए। लेकिन कुछ ही दिनों बाद इनके व इनकी मौसी-भाई के मन में ख्याल आने लगा कि आखिर कब तक दूसरों पर बोझ बनकर रहेंगे। ज़िंदगी गुज़ारने के लिए कोई ना कोई काम तो करना ही पड़ेगा। 

Master Vinayak से Sulochana Latkar की वो मुलाकात

एक दिन इनके पिता के दोस्त के घर मास्टर विनायक आए थे। मास्टर विनायक उस ज़माने के जाने माने फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे। कोल्हापुर में मास्टर विनायक की खुद की एक फिल्म कंपनी थी जिसका नाम था प्रफुल्ल पिक्चर्स। मास्टर विनायक को जब सुलोचना की कहानी का पता चला तो उन्होंने सुलोचना को अपनी फिल्म कंपनी में नौकरी करने का ऑफर दिया। 

Lata Mangeshkar से हुई तगड़ी दोस्ती

उन दिनों सुमति गुप्ते और मीनाक्षी शिरोडकर नाम की अभिनेत्रियां प्रफुल्ल पिक्चर्स में ही नौकरी भी किया करती थी। सुलोचना जी ने मास्टर विनायक का वो ऑफर तुरंत स्वीकार कर लिया। ये पूरा वाक्या साल 1943 के दौरान का है। मास्टर विनायक की फिल्म कंपनी प्रफुल्ल पिक्चर्स से ही महान गायिका लता मंगेशकर भी जुड़ी हुई थी। 

चूंकि सुलोचना जी ने केवल प्राइमरी तक ही पढ़ाई की थी तो उन्हें हिंदी बोलनी नहीं आती थी।यही वजह है कि जब उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की तो वो काफी घबरा रही थी। मगर उस वक्त लता मंगेशकर ने इन्हें काफी हौंसला बंधाया था। उस वक्त लता जी से सुलोचना जी की तगड़ी दोस्ती हो गई थी।

जब Sulochana Latkar को छोड़नी पड़ी Prafull PIctures की नौकरी

जिस वक्त सुलोचना जी ने प्रफुल्ल पिक्चर्स में नौकरी शुरू की थी उसके तीन महीने बाद ही मास्टर विनायक अपनी कंपनी को बॉम्बे यानि मुंबई ले गए। बॉम्बे का नाम सुनते ही सुलोचना घबरा गई और उन्होंने बॉम्बे जाने से साफ इन्कार कर दिया और प्रफुल्ल पिक्चर्स की अपनी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद सुलोचना जी ने जॉइन किया जयाप्रभा स्टूडियो जहां उन्हें तीस रुपए महीना पगार मिलने लगी। 

Bhalji Pendharkar की शिष्या बन गई Sulochana Latkar

इस स्टूडियो के मालिक थे भालजी पेंढारकर और उस ज़माने में जयाप्रभा स्टूडियो अपनी धार्मिक व ऐतिहासिक फिल्मों के लिए मशहूर था। भालजी पेंढारकर को सब लोग बाबा कहा करते थे। जयाप्रभा स्टूडियो ही वो जगह भी बना जहां सुलोचना जी ने फिल्मों में काम करना सीखा। भालजी पेंढारकर खुद सुलोचना को घुड़सवारी और लाठी-तलवार  चलाना सिखाया करते थे। 

इस तरह शुरू हुआ सुलोचना लाटकर का फिल्मी सफर

साल 1943 में मास्टर विनायक की मराठी फिल्म चिमुकला संसार में सुलोचना एक छोटी सी भूमिका कर चुकी थी। लेकिन सुलोचना जी कहती हैं कि सही मायनों में मेरे करियर की शुरुआत साल 1944 में आई जयाप्रभा स्टूडियो की महारथी कर्ण और 1946 में आई वाल्मीकि से हुई थी। साल 1947 में रिलीज़ हुई मराठी फिल्म ससुरावास में ये पहली दफा मुख्य हिरोइन के तौर पर नज़र आई और इनके हीरो थे मास्टर विट्ठल। ये फिल्म जयाप्रभा स्टूडियो ने ही बनाई थी।

जल्दी हो गई थी शादी

एक इंटरव्यू में सुलोचना जी ने बताया था कि उनका असली नाम नगाबाई था। और लोग प्यार से उन्हें रंगू कहा करते थे। ये भालजी पेंढारकर ही थे जिन्होंने इनका नाम नगाबाई से सुलोचना किया था।  सुलोचना जब जयाप्रभा स्टूडियो में ही नौकरी करती थी तो उनकी शादी कोल्हापुर के एक ज़मींदार परिवार के बेटे आबासाहेब चव्हाण से हो गई थी। शादी के वक्त इनकी उम्र महज़ 15 साल थी। 

बंद हो गया जयाप्रभा स्टूडियो

इसी बीच साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या हो गई और इसमें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का हाथ होने की बात कही गई। इसके बाद तो पूरे महाराष्ट्र में दंगे भड़क उठे। संघ के कार्यकर्ताओं को मारा जाने लगा। उनके घर और दुकानों को जला दिया गया। 

चूंकि सुलोचना के गुरू भालजी पेंढारकर भी संघ से जुड़े थे तो उनका जयाप्रभा स्टूडियो भी जला दिया गया। साथ ही भालजी पेंढारकर को गिरफ्तार भी कर लिया गया। जयाप्रभा स्टूडियो बंद हो गया। भालजी पेंढारकर ने अपने सभी कर्मचारियों को दो महीने का वेतन देकर कार्यमुक्त कर दिया। 

पुणे में फिर से शुरू किया जीवन

इस सारे घटनाक्रम के बाद सुलोचना जी पुणे आ गई। इत्तेफाक से यहां मंगल पिक्चर्स फिल्म कंपनी की फिल्म जीवाचा सखा में सुलोचना जी को मुख्य हिरोइन के तौर पर काम मिल गया। ये फिल्म साल 1948 में ही रिलीज़ हुई थी और एक कामयाब फिल्म थी। इस फिल्म की कामयाबी के बाद सुलोचना मराठी फिल्म इंडस्ट्री में जम गई। उनके पास काम की कोई कमी ना रह गई। 

पहली हिंदी फिल्म से ही कर दिया कमाल

साल 1952 में इनकी एक और मराठी फिल्म आई जिसका नाम था स्त्री जन्म तुझी कहाणी। ये फिल्म ज़बरदस्त हिट साबित हुई। ये फिल्म रंजीत मूवीटोन के मालिक सरदार चंदू शाह को काफी पसंद आई थी। उन्होंने इस फिल्म का हिंदी रीमेक बनाने का फैसला कर लिया। हिंदी में इस फिल्म को नाम दिया गया औरत तेरी यही कहानी। 

चंदू शाह ने सुलोचना जी को ही इस फिल्म में साइन कर लिया। इस फिल्म को साइन करने के कारण साल 1953 में सुलोचना जी पुणे छोड़कर मुंबई आ गई। ये फिल्म साल 1954 में रिलीज़ हुई और इस फिल्म में सुलोचना जी के हीरो थे भारत भूषण। 

बरकार ना रह सकी सुलोचना लाटकर की सफलता

अपनी पहली ही हिंदी फिल्म से सुलोचना जी हिंदी बेल्ट में काफी मशहूर हो गई। लेकिन इसके बाद की इनकी कई हिंदी फिल्में नहीं चल पाई। 1954 में आई महात्मा कबीर, 1956 में आई सजनी और 1960 में आई मुक्ति नाम की इनकी फिल्में फ्लॉप हो गई। हालांकि साल 1956 में ही सती अनुसूया नाम की इनकी एक फिल्म बहुत बड़ी हिट रही थी। और इस फिल्म की कामयाबी ने सुलोचना जी को हिंदी धार्मिक फिल्मों का स्टार बना दिया। 

लेकिन इस स्टारडम का एक नुकसान उन्हें ये उठाना पड़ा कि धार्मिक फिल्मों के अलावा और दूसरी फिल्मों में इन्हें काम मिलना बंद हो गया। हालांकि 1957 की फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं ज़रूर एक अपवाद है। अब दिल्ली दूर नहीं हिट रही थी और इस फिल्म का गीत ये चमन हमारा है सुलोचना जी पर ही फिल्माया गया था। इस गीत में इनके साथ मास्टर रोमी भी थे। लेकिन इसके बाद फिर कभी किसी सामाजिक हिंदी फिल्म में मुख्य नायिका के तौर पर सुलोचना जी को कामयाबी नहीं मिल सकी।

Bimal Roy की Sujata ने बदल दी Sulochana Latkar की इमेज

साल 1959 की बात है। मशहूर फिल्ममेकर बिमल रॉय ने अपनी फिल्म सुजाता में सुलोचना लाटकर को मां का रोल ऑफर किया। सुलोचना जी ने उन्हें मना तो नहीं किया। लेकिन वो इस दुविधा में ज़रूर फंस गई कि महज़ 30 साल की उम्र में मां के किरदार निभाने कहां तक सही रहेंगे। 

लेकिन उसी दौर की मशहूर अभिनेत्रियों दुर्गा खोटे और ललिता पवार, जो कि इनकी बढ़िया दोस्त भी थी, उन्होंने इन्हें सलाह दी कि फिल्म इंडस्ट्री में लंबी पारी खेलनी है तो ये रोल स्वीकार कर लो। और उनके कहने पर सुलोचना जी ने बिमल रॉय का वो ऑफर स्वीकार कर लिया। सुजाता(1959) बहुत बड़ी हिट साबित हुई। और देखते ही देखते सुलोचना लाटकर हिंदी सिनेमा के कैरेक्टर आर्टिस्टों का एक बहुत बड़ा और बिज़ी नाम बन गई। 

प्रमुख फिल्में

सुजाता के बाद Sulochana Latkar ने दिल देके देखो(1959), आई मिलन की बेला(1964), आए दिन बहार के(1966), नई रोशनी(1967), संघर्ष(1968), दुनिया(1968), आदमी(1968), साजन (1969), जॉनी मेरा नाम(1970), कटी पतंग(1970), कसौटी(1974), प्रेम नगर(1974), कोरा कागज़(1974), सन्यासी(1975), गंगा की सौगंध(1978), मुकद्दर का सिकंदर(1978), क्रांति(1981) और अंधा कानून(1983) जैसी फिल्मों में काम किया था। और इन सभी फिल्मों में इन्होंने चरित्र भूमिकाएं, और मुख्यतौर पर मां के किरदार निभाए थे। साथ ही मराठी फिल्मों में भी ये लगातार एक्टिव रहीं। 

करियर के आखिरी साल

सात दशक लंबे अपने फिल्मी करियर ने सुलोचना जी में लगभग 500 फिल्मों में काम किया था। इन्होंने 150 से भी ज़्यादा मराठी फिल्मों, 250 से भी ज़्यादा हिंदी फिल्मों व कुछ दक्षिण भारतीय फिल्मों में भी एक्टिंग की थी। वक्त के साथ उम्र बढ़ी और सुलोचना जी ने खुद को फिल्मों से दूर करना शुरू कर दिया। साल 1986 में आई फिल्म खून भरी मांग में ये शत्रुघ्न सिन्हा की मां के रोल में नज़र आई थी। 

उसके बाद सुलोचना जी ने फिल्मों से एक लंबा ब्रेक ले लिया। फिर ये नज़र आई साल 2003 में धर्मेंद्र की फिल्म टाडा में। कहा जाता है कि साल 2007 में आई फिल्म परीक्षा में भी सुलोचना लाटकर जी ने काम किया था और यही इनकी आखिरी फिल्म भी थी। लेकिन इस बात की पुष्टि हम नहीं कर पाए। 

सुलोचना लाटकर की निजी ज़िंदगी

साल 1999 में भारत सरकार ने सुलोचना जी को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके बाद साल 2004 में फिल्मफेयर ने भी इन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया था। साल 2009 में महाराष्ट्र सरकार ने भी सुलोचना को महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया था। 

बात अगर सुलोचना लाटकर जी की निजी ज़िंदगी की करें तो इनकी एक बेटी है जिनका नाम कंचन है जिन्होंने मशहूर मराठी एक्टर डॉक्टर काशीनाथ घानेकर से शादी की थी। हालांकि कंचन से शादी के चार साल बाद ही डॉक्टर काशीनाथ घानेकर की मृत्यु हो गई थी। इनकी एक नातिन भी है जिसका नाम है रश्मि। 

डॉक्टर काशीनाथ घानेकर ट्रस्ट भी चलाती हैं सुलोचना जी

डॉक्टर काशीनाथ घानेकर की याद में सुलोचना व उनकी बेटी कंचन ने उनके नाम से एक ट्रस्ट भी बनाया है जिसके ज़रिए ये हर साल रंगकर्मियों को पुरस्कृत भी करते हैं। फिल्मों से रिटायर होने के बाद सुलोचना लाटेकर ने कई सालों तक इस ट्रस्ट में ही अपना वक्त लगाया है। किसी ज़माने में सुलोचना जी के बारे में ये अफवाह उड़ती थी कि वो एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई थी और उनका असली नाम साहिब जान था। लेकिन सुलोचना लाटकर जी की बेटी कंचन ने इसे झूठ बताया है। 

Sulochana Latkar को Meerut Manthan का Salute

सुलोचना जी की उम्र अब 94 साल हो चुकी है। वो आज भी अपने सभी काम खुद करती हैं। ईश्वर ने अभी तक उन्हें हर तरह की बीमारी से बचाकर रखा है। Meerut Manthan ईश्वर से प्रार्थना करता है कि आगे भी सुलोचना जी हमेशा सेहतमंद रहें। फिल्म इंडस्ट्री में किए गए योगदान के लिए Meerut Manthan सुलोचना लाटकर जी को सैल्यूट करता है। जय हिंद।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Anup Jalota | Bhajan Samrat से जुड़े आठ बड़े ही रोचक और Lesser Known Facts

Purab Aur Pachhim 1970 Movie Trivia | पूरब और पश्चिम फिल्म की मेकिंग से जुड़ी 15 अनसुनी व रोचक कहानियां

Shiva Rindani | 90s की Bollywood Movies में गुंडा बनने वाले इस Actor को कितना जानते हैं आप? | Biography