Devanand फिल्मों में आने से पहले कैसा जीवन जी रहे थे? 15 Lesser Known Facts

Devanand. एक ऐसा कलाकार, जिसका निभाया हर किरदार लार्जर दैन लाइफ साबित हुआ। एक ऐसा अदाकार जो अपने वक्त का स्टाइल आइकन था। देवानंद, जिनकी रियल लाइफ भी उनकी रील लाइफ के जैसे ही रंगीन और तमाम कहानियों से भरपूर थी। 

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Devanand 15 Lesser Known Facts - Photo: Social Media

एक ऐसा सुपरस्टार जिसने तीन पीढ़ियों की महिलाओं के दिलों पर राज किया। और आज जब देवानंद इस दुनिया में नहीं हैं, तब भी उनके चाहने वालों के दिलों में उन्हें लेकर वही दीवानगी है, जो तब हुआ करती थी जब वो अपने करियर के शिखर पर थे।

Meerut Manthan आज आपको Devanand साहब से जुड़ी 15 बड़ी ही रोचक, अनसुनी और मज़ेदार बातें बताएगा। 

और अगर आप Devanand के फैन हैं तो यकीन कीजिएगा दोस्तों, आपको हमारी ये पेशकश बहुत पसंद आने वाली है। 

क्योंकि ये कहानियां देव साहब के जीवन के उस दौर की कहानियां हैं जब ये मुंबई आए भी नहीं थे।

और Meerut Manthan ये सभी कहानियां देव साहब की ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ के हवाले से आपको बता रहा है।

पहली कहानी

देवानंद जब पैदा हुए थे तो इनका नाम रखा गया था धरम। लेकिन इनकी माता जी इन्हें प्यार से देव कहती थी। उन्हें देखा-देख सब इन्हें देव कहने लगे। 

जबकी इनके पिता इन्हें देवान बुलाया करते थे। स्कूल में जब देव साहब का दाखिला कराया गया तो इनका असली नाम धरम ही लिखाया गया। 

देव साहब जब थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने स्कूल के अपने दोस्तों से खुद को धरमदेव  कहकर पुकारने के लिए कहा। 

लेकिन दोस्तों ने इन्हें धरमदेव ना कहकर डीडी कहना शुरू कर दिया। जो अल्टीमेटली खुद देव साहब को भी पसंद आया। 

देव साहब को बड़ा अच्छा लगता था जब इनके दोस्त इन्हें डीडी कहकर पुकारा करते थे। हालांकि जब देव साहब की पढ़ाई पूरी हो गई तो इन्होंने अपने नाम से धरम हटा दिया। और इस तरह ये धरम देव आनंद से बन गए सिर्फ देवानंद।

दूसरी कहानी

देवानंद साहब के बारे में काफी वक्त तक ये दावा किया जाता रहा कि उनका असली नाम देवदत्त आनंद था। लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत है। 

खुद देव साहब ने भी कई दफा इसे गलत बताया था। अपने कई इंटरव्यूज़ में देव साहब ने कहा था कि जो लोग उनका नाम देवदत्त कहते हैं वो गलत हैं। 

उन्होंने कई दफा कहा भी था कि जिन वेबसाइट्स पर उनका नाम देवदत्त आनंद बताया जाता है उन्हें सुधार कर लेना चाहिए। 

क्योंकि उनका असली नाम धरम देव आनंद था। इस बात का ज़िक्र देवानंद साहब ने अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में भी किया है।

तीसरी कहानी

अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में देवानंद जी ने लिखा है कि उन्हें कभी समझ में नहीं आया कि उनके नाम के साथ लोगों ने कब और क्यों साहब लगा दिया। 

उन्हें पसंद था जब लोग उन्हें देवानंद कहते थे। या फिर सिर्फ देव कहते थे। लेकिन सफलता मिलने के कुछ ही सालों बाद लोगों ने उन्हें देव साहब कहना शुरू कर दिया। 

और फिर सारी ज़िंदगी उनके नाम के साथ साहब जुड़ा रहा। बकौल देव साहब,"हो सकता है लोग मुझे इसलिए साहब कहते हों क्योंकि बहुत कम उम्र में ही मैंने अपनी खुद की फिल्म कंपनी शुरू कर दी थी। और मेरा स्टाफ मुझे साहब कहता था। हालांकि मुझे सिर्फ देव पसंद था।"

चौथी कहानी

देवानंद ने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से बैचलर इन आर्ट्स की डिग्री ली थी। लाहौर का गवर्नमेंट कॉलेज उस ज़माने में देश के सबसे टॉप कॉलेजेस में से एक था। 

वहां से डिग्री लेने वाले अधिकतर देश के अमीर घरानों के नौजवान हुआ करते थे जो फिर विदेश में, खासतौर पर इंग्लैंड से आगे की पढ़ाई करते थे।

देवानंद भी चाहते थे कि वो इंग्लैंड पढ़ने जाएं। लेकिन उस वक्त इनके पिता की आर्थिक स्थिति काफी बिगड़ी हुई थी। 

यूं तो इनके बड़े भाई चेतन आनंद इंग्लैंड में पढ़ाई करने जा चुके थे। लेकिन देव साहब को इंग्लैंड भेजने का सामर्थ्य इनके पिता में नहीं बचा था।

पांचवी कहानी

देवानंद के पिता ने इन्हें सलाह दी थी कि ये बैंक में नौकरी कर लें। और पिता ने देव साहब को ये सलाह तब दी थी जब देव साहब रॉयल ब्रिटिश इंडियन नेवी में नौकरी पाने की एक नाकाम कोशिश कर चुके थे। जी हां ये सच है। 

देवानंद जी को जब इस बात का अहसास हो गया था कि पिता के पास उन्हें इंग्लैंड पढ़ने भेजने के लिए पैसे नहीं हैं तो उन्होंने नेवी में नौकरी हासिल करने की कोशिश की थी। 

लेकिन उनकी ये कोशिश कामयाब नहीं हो सकी थी। और जब देवानंद जी के पिता ने उन्हें बैंक में नौकरी करने को कहा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। वो कभी भी बैंक में नौकरी नहीं करना चाहते थे।

छठी कहानी

देवानंद एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें महिलाओं की तरफ से बहुत प्यार मिला। लेकिन जब ये छोटे थे तो लड़कियों से बहुत ज़्यादा शरमाते थे। 

अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में ज़िक्र करते हुए देवानंद ने लिखा है कि इत्तेफाक से इनके पिता ने इनके होम टाउन गुरदासपुर में इनका दाखिला लड़कियों के एक स्कूल में करा दिया था। 

वहां लड़कियां इन्हें खूब छेड़ती थी। लेकिन उनमें एक लड़की तो ऐसी थी जो इन पर हद से ज़्यादा मरती थी। वो लड़की क्रिश्चियन थी। उसका नाम फ्लोरेंस था। 

फ्लोरेंस स्कूल में तो देव साहब के पीछे पड़ी ही रहती थी। लेकिन स्कूल के बाद भी वो जब देवानंद को कहीं देख लेती थी तो उनके पीछे लग जाती थी। 

और वो इसलिए क्योंकि वो लड़की इनकी पड़ोसी भी थी। हालांकि उस वक्त देव साहब फ्लोरेंस से बहुत घबराते थे। वो उससे बचते फिरते थे। 

लेकिन फ्लोरेंस किसी ना किसी तरह इन तक पहुंच जाती थी और ज़बरदस्ती इनके गाल पर किस भी कर देती थी। हालांकि देव साहब को फ्लोरेंस पसंद नहीं थी।

सातवीं कहानी

देवानंद का सबसे पहला क्रश थी उषा नाम की एक लड़की जो गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में उनके साथ पढ़ती थी। 

उस लड़की की मां ब्रिटिश और पिता भारतीय थे, जो गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में ही इतिहास के प्रोफेसर थे। उषा क्लास में इकलौती लड़की थी। 

वो हमेशा देवानंद के सामने वाली बेंच पर ही बैठती थी। देव साहब को उषा बहुत पसंद थी। साड़ी में उषा देव साहब को बहुत खूबसूरत लगती थी। 

लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से देव साहब कभी भी उषा से अपने दिल की बात नहीं कह पाए।

आठवीं कहानी

ऐसा नहीं है कि देवानंद के दिल में उषा के लिए इकतरफा मुहब्बत थी। उषा भी देवानंद को बहुत पसंद करती थी। 

अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में देवानंद ने लिखा है कि एक दिन जब वो लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज के प्रिंसिपल रूम से अपना कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेकर बाहर निकले तो उन्हें कॉरीडोर में उषा मिल गई। 

उषा के हाथों में हमेशा की तरह बुक्स और नोटबुक्स थी। उस दिन उषा खुद देव साहब के पास चलकर आई और उसने इनसे पूछा कि क्या ये मास्टर्स भी इसी कॉलेज से करेंगे। 

उषा ने देव साहब को ये भी बताया कि वो तो मास्टर्स इसी कॉलेज से करने वाली है। उसी दिन उषा ने देव साहब से ये भी कहा कि वो इन्हें पसंद करती है। 

और वो ये भी जानती है कि देव भी उसे पसंद करते हैं। इसिलिए वो चाहती है कि देव भी अपनी मास्टर्स इसी कॉलेज से करें। 

देव साहब को उस दिन उषा की वो बातें सुनकर बहुत अच्छा तो लग रहा था। लेकिन साथ ही साथ ये दुखी भी थे। क्योंकि ये फैसला कर चुके थे कि अब ये इस कॉलेज में दोबारा नहीं आएंगे।

नौंवी कहानी

जब ये तय हो गया था कि देवानंद पढ़ाई करने इंग्लैंड नहीं जा पाएंगे। और ना ही उन्हें नेवी में नौकरी मिल पाएगी तो वो बहुत परेशान हो गए। 

उनके पिता चाहते थे कि वो बैंक में या किसी और सरकारी विभाग में क्लर्क की नौकरी पकड़ लें। लेकिन देव जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते थे। 

हालांकि उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो करेंगे क्या। फिर जब उस दिन कॉलेज में इनकी मुलाकात उषा से हुई। और इन्हें पता चला कि उषा भी इन्हें पसंद करती हैं। तो देव साहब को लगा कि इनके चेहरे में कुछ तो बात है। 

वरना फ्लोरेंस इन्हें इतना किस क्यों करती। और उषा भी तो इन्हें मन ही मन चाहती है। देव साहब ने अपने घर के बाथरूम में लगे शीशे में खुद को निहारते हुए फैसला किया था कि ये फिल्मों में हीरो बनेंगे। एक ऐसा हीरो जिसे लोग बहुत प्यार करेंगे।

दसवीं कहानी

देवानंद के पिता पिशोरी लाल आनंद गुरदासपुर के नामी वकील थे। साथ ही साथ वो बहुत अच्छे वक्ता भी थे। उन्हें फारसी और अरबी भाषा बहुत अच्छी तरह से आती थी। 

पिशोरी लाल आनंद की ईश्वर में बहुत गहरी आस्था थी। उन्होंने खुद अपने सभी बच्चों को गायत्री मंत्र सिखाया था। 

और चूंकि पिशोरी लाल आनंद आर्य समाजी थे तो वो दूसरे धर्मों का भी बहुत सम्मान करते थे। उन्हें कुरान और बाइबिल की बहुत गहरी समझ थी। साथ ही Jewish Torah की भी काफी जानकारी थी। 

पिशोरी लाल आनंद जी का अरबी डिक्शन तो इतना शानदार था कि जब वो अपने मुंह से बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम बोलते थे तो लगता था जैसे अरब का कोई मौलाना ये बोल रहा हो। 

इस बात का ज़िक्र खुद देवानंद जी ने ही अपनी ऑटोबायोग्राफी, रोमांसिंग विद लाइफ में किया है।

11वीं कहानी

चूंकि एक वक्त पर देवानंद के पिता पिशोरी लाल आनंद की लॉ प्रैक्टिस बहुत शानदार थी तो उनकी गितनी गुरदासपुर के अमीरों में हुआ करती थी। 

वो अक्सर गर्मियों की छुट्टियों में अपने पूरे परिवार को साथ लेकर हिमाचल के डलहौजी चले जाया करते थे। 

और छुट्टियों के उन दिनों में वो देवानंद को डलहौजी के सैकरेड हार्ट इंग्लिश कॉन्वेंट स्कूल में दाखिल करा देते थे। 

यही वजह थी कि देवानंद की इंग्लिश हमेशा से शानदार रही। और इनका एक्सेंट तो हूबहू ऐसा था मानो कोई अंग्रेज खुद अंग्रेजी बोल रहा हो।

12वीं कहानी

डलहौजी में देवानंद के पिता जिस विला में रुकते थे उसका मालिक एक ब्रिटिशर था। उसे सब मिस्टर रोबिन्सन कहकर पुकारते थे। 

देवानंद के पिता पिशोरी लाल आनंद मिस्टर रोबिन्सन का पूरा विला गर्मियों की छुट्टियों के लिए किराए पर ले लेते थे। उस विला का नाम था क्लियर माउंट। 

एक दिन उस विला के लॉन में सात सांप कहीं से आ गए। तब परिवार की सुरक्षा की खातिर पिशोरी लाल आनंद जी ने उन सातो सांपों को एक लाठी से मारा था।

13वीं कहानी

एक बात जो देवानंद के हर फैन को बतानी ज़रूरी है वो ये कि हिमाचल के डलहौजी में इनके पिता पिशोरी लाल आनंद जिस अंग्रेज, मिस्टर रोबिन्सन के विला में किराए पर आकर ठहरते थे, वो उनका क्लाइंट भी था। 

दरअसल, मिस्टर रोबिन्सन ने किसी भारतीय महिला से शादी की थी। लेकिन उनकी शादी चल नहीं पाई। भारतीय महिला ने उनके खिलाफ मुकदमा कर दिया था। 

और चूंकि पिशोरी लाल आनंद नामी वकील भी थे तो मिस्टर रोबिन्सन ने अपना मुकदमा लड़ने के लिए उन्हें ही हायर कर रखा था। 

इस तरह पिशोरी लाल आनंद अपनी फीस काटने के बाद काफी कम रकम मिस्टर रोबिन्सन को बतौर किराया चुकाते थे।

14वीं कहानी

देवानंद जब छोटे थे तो इन्हें कंचे खेलने का बड़ा शौक था। ये अपने इलाके के मशहूर कंचेबाज़ थे। 

अपनी ऑटोबायोग्राफी रोमांसिंग विद लाइफ में देवानंद कहते हैं कि कंचों में उनके सामने मुहल्ले का कोई लड़का नहीं टिक पाता था। वो एक कंचे से दूसरे पर बिना चूके निशाना लगा लेते थे। 

और अक्सर वो खेल में बहुत सारे कंचे जीत लिया करते थे। देवानंद के पिता जानते थे कि कंचों में इनका निशाना बहुत तेज़ है। 

लेकिन वो इनसे कहते थे कि तुम्हें कंचों का नहीं, जीवन के किसी दूसरे क्षेत्र में चैंपियन बनना है। हालांकि नन्हे देवानंद को उस वक्त पिता की वो बातें पसंद नहीं आती थी। 

बकौल देवानंद, एक दफा तो कंचों के चक्कर में उनकी एक लड़के से लड़ाई भी हो गई थी। और वो लड़का इन्हें ज़ोर से गिराकर भाग गया था।

15वीं कहानी

देवानंद जब अपनी टीनएज में पहुंचे थे तो उनकी मां टीबी का शिकार हो गई थी। उस दौर में टीबी की दवाई गुरदासपुर में नहीं मिलती थी तो देवानंद को अपनी मां की दवाई अमृतसर ले लानी पड़ती थी।

एक दफा जून की कड़कती गर्मी में देव साहब अपने एक दोस्त के साथ मां की दवाई लेने अमृतसर गए। 

चूंकि सूरज आग उगल रहा था तो देवानंद और उनका वो दोस्त स्वर्ण मंदिर के पास स्थित एक शरबत वाले की दुकान पर रुक गए। उन्होंने दुकानदार, जो कि एक सिख था, उससे दो गिलास बादाम शरबत देने को कहा। 

जब उस सिख शरबत वाले ने देवानंद के हाथ में शरबत का गिलास दिया तो कुछ सेकेंड्स के लिए वो देव को देखता ही रह गया। फिर वो देवानंद से पंजाबी में बोला,"तेरे मत्थे दे सूरज हैगा। तू भोत वड्डा बनेगा।" 

उस वक्त देवानंद ने मुस्कुराकर उस शरबत वाले की बात को नज़रअंदाज़ कर दिया था। लेकिन आगे चलकर आखिरकार उसकी बात सच साबित हो ही गई।

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