Ajit Khan | वो Stylish Bollywood Villain जो बहुत प्यार से बातें करता था | Biography
Ajit Khan. बॉलीवुड का एक ऐसा धांसू एक्टर, जिसने खलनायकी की भी एक क्लास सेट कर दी। सारा शहर इन्हें लॉयन के नाम से जानता था। हिंदी सिनेमा का एक ऐसा सफेदपोश खलनायक, जो अक्सर हीरो पर भी भारी पड़ जाता था।
अपने पांच दशक लंबे करियर में अजीत ने एक से बढ़कर एक फिल्मों में काम किया। डायलॉग बोलने का इनका अंदाज़ इतना निराला था कि जब भी ये अपना कोई डायलॉग बोलते थे, दर्शकों को मज़ा आ जाता था।
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Ajit Khan Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज लेकर आया है गुज़रे ज़माने के ज़बरदस्त Villain Hamid Ali Khan यानि Ajit Khan की ज़िंदगी की कहानी। कैसे ये Hamid Ali Khan से Ajit Khan बने। और कैसे इन्होंने फिल्मों में इतना बड़ा मुकाम हासिल किया, अजीत की कहानी में आज काफी कुछ हम इनके बारे में जानेंगे।
Ajit Khan का शुरुआती जीवन
27 जनवरी 1922 को अजीत का जन्म हुआ था हैदराबाद रियासत के गोलकुंडा शहर में। मां-बाप ने इनका नाम रखा था हामिद अली खान। इनके पिता का नाम था बशीर अली खान और वो हैदराबाद के निजाम की सेना में काम करते थे। हामिद अली खान के तीन भाई बहन और थे। छोटा भाई वाजिद अली खान और दो बहनें।
इनकी शुरूआती पढ़ाई वारंगल के एक सरकारी कॉलेज से पूरी हुई थी। इनकी मां का नाम था सुल्तान जहां बेगम। उर्दू माहौल में पले-बढ़े हामिद अली खान को उर्दू के अलावा हिंदी, अरबी और तेलुगू भाषा का भी बढ़िया ज्ञान था।
ये प्रधानमंत्री थे अजीत के स्कूलमेट
शुरूआत से ही अजीत की पर्सनैलिटी बड़ी शानदार रही थी। ये इनके लुक्स और इनके हैंडसम फीचर्स का ही कमाल था कि स्कूल और कॉलेज के इनके साथी इनसे अक्सर कहा करते थे कि हामिद, तुम्हें तो फिल्मों में काम करना चाहिए और हीरो बनना चाहिए। अजीत को भी लगने लगा कि शायद वो फिल्मों में हीरो बन सकते हैं।
इस बात से बेहद कम लोग वाकिफ हैं कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव भी उसी कॉलेज में पढ़ते थे जहां अजीत पढ़ते थे। पीवी नरसिम्हा राव इनसे दो साल सीनियर थे और ये दोनों एक ही हॉस्टल में रहा करते थे।
और मुंबई भाग आए
स्कूल में इनका मन पढ़ाई में कम और खेलकूद व ड्रामा में ज़्यादा लगता था। अंग्रेजी में तो ये एकदम कमज़ोर थे। एक बार इनके अंग्रेजी के प्रोफेसर ने इनसे चिढ़कर कहा कि तुम या तो सेना में भर्ती हो जाओ या फिर फिल्मों में चले जाओ।
पढ़ाई-लिखाई तो तुम्हारे बस की बात है नहीं। प्रोफेसर साहब का इतना कहना ही था कि अगले दिन ही इन्होंने अपनी सारी किताबें बेच दी और कुछ पैसे घर से लेकर।
यानि कुल 113 रुपए अपनी जेब में लेकर ये बिना किसी को कुछ बताए मुंबई भागकर आ गए। उस वक्त इन्हें लग रहा था कि मुंबई में इन्हें थोड़ी-बहुत मेहनत के बाद काम मिल ही जाएगा।
लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। इन्होंने कई प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स के ऑफिसों के चक्कर काटे। पर किसी ने भी इन्हें भाव नहीं दिया। हालात ये हो गए कि सड़क किनारे रखे सीमेंट के बड़े-बड़े पाइपों में रात गुज़ारने को अजीत मजबूर हो गए। कई दफा आस-पास के गुंडों से भी इनकी भिड़ंत हुई।
मेहनत रंग लाई
काफी संघर्ष के बाद इन्हें फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम मिलने लगा। उस वक्त इन्हें तीन रुपए से लेकर छह रुपए एक दिन में मिल जाते थे।
फिर एक दिन इनकी मुलाकात हुई प्रफुल्ल रॉय से। प्रफुल्ल रॉय ने इन्हें कुछ छोटे बजट की फिल्मों में लीड एक्टर के तौर पर काम दिया।
उन दिनों फिल्मों में इनका नाम हामिद अली खान ही चल रहा था। फिर कुछ महीनों बाद इनकी मुलाकात हुई गोविंद रामसेठी से। और इस मुलाकात के बाद तो मानो इनकी किस्मत ही बदल गई।
गोविंद रामसेठी इन्हें अपने साथ 'विष्णू सिनेटोन' नाम के एक प्रोडक्शन हाउस ले गए। उन दिनों 'विष्णू सिनेटोन' धार्मिक फिल्में बनाने के लिए मशहूर था।
मगर अब वो एक एक्शन फिल्म बनाने की प्लानिंग कर रहा था। 'विष्णू सिनेटोन' ने इस फिल्म में बतौर लीड एक्टर हामिद अली खान को सिलेक्ट कर लिया। इस फिल्म का नाम था 'शाह-ए-मिस्र'। और इसके बाद तो इन्होंने 'जन्मपत्री', 'हातिमताई', 'जीवनसाथी' और 'आपबीती' जैसी फिल्मों में हीरो के तौर पर काम किया।
उसी दौर की मशहूर हिरोइन रिहाना के साथ इनकी जोड़ी लोगों को खूब पंसद आती थी। सायरा बानो की मां नसीम बानो के साथ भी ये हीरो के तौर एक फिल्म करने वाले थे। लेकिन किन्हीं कारणों से वो फिल्म शुरू ही नहीं हो पाई। फिर 1950 में आई 'बेकसूर' में ये मधुबाला के हीरो बने।
यूं बने हामिद अली खान से अजीत
हामिद अली खान कैसे अजीत बने इसका किस्सा कुछ यूं है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे शुरूआती दौर के फिल्ममेकर रहे के. अमरनाथ साहब ने एक दफा इनसे कहा कि तुम्हारा नाम इतना लंबा है कि लोगों की ज़ुबान पर चढ़ने में इसे काफी दिक्कत आती है। क्यों ना तुम कोई छोटा और प्रभावशाली नाम रख लो। बस फिर क्या था।
के. अमरनाथ साहब के साथ मिलकर इन्होंने अपना नाम फाइनल किया अजीत। अजीत ने हीरो के तौर पर अपने ज़माने की लगभग हर हीरोइन के साथ काम किया, सिवाय दो को छोड़कर। ये दो थी नूतन जी और नरगिस जी। साल 1952 में रिलीज़ हुई फिल्म मोती महल में ये सुरैया जी के हीरो बने थे।
विलेन बनकर छा गए Ajit Khan
कई फिल्मों में बतौर हीरो काम करने के बाद इनकी उम्र जब बढ़ने लगी तो एक दिन राजेंद्र कुमार साहब इनके पास आए और बोले, "अजीत साहब, आप पिछले कई सालों से फिल्मों में हीरो के तौर पर काम कर रहे हो। मैं टी प्रकाशराव की एक फिल्म कर रहा हूं जिसका नाम है सूरज। आप उस फिल्म में विलेन का रोल कर लीजिए। यकीन मानिए कि अगर आपने ये रोल कर लिया तो मज़ा आ जाएगा।"
राजेंद्र कुमार की बात अजीत ने मान ली और सूरज में इन्होंने विलेन का रोल ऐसा निभाया कि दर्शकों को मज़ा आ गया।इनका ढलता हुआ करियर एक बार फिर से उठने लगा। हालांकि इस दफा ये हीरो नहीं, विलेन के तौर पर मशहूर हो रहे थे।
बतौर विलेन इन्होंने पतंगा, आदमी और इंसान, पराया धन, लाल पत्थर, ज़ंजीर, यादों की बारात, जुगनू, कहानी किस्मत की, खोटे सिक्के, कालीचरण, वारंट, पाप और पुण्य, देस परदेस, चोरों की बारात, राज तिलक, गैंगस्टर और आतिश जैसी फिल्मों में अपनी सॉफिस्टिकेटेड विलेनी से लोगों को खूब एंटरटेन किया। अपने फिल्मी करियर में इन्होंने दो सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया था।
निजी जीवन
बात अगर अजीत साहब की निजी ज़िंदगी के बारे में करें तो इन्होंने तीन शादियां की थी। इनकी पहली शादी हुई थी साल 1951 में एक एंग्लो इंडियन क्रिश्चियन लड़की से, जिसका नाम था क्वेंट दिमोंत।
लेकिन कल्चरल डिफरेंसेज़ की वजह से इनकी ये शादी बहुत ज़्यादा चल नहीं पाई और जल्द ही इनका तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने दूसरी शादी की शाहिदा अली खान से जिसे इनके माता-पिता ने ही इनके लिए पसंद किया था।
उस शादी से इनके तीन बच्चे हुए। लेकिन कुछ सालों बाद ही बीमारी के चलते इनकी पत्नी की मौत हो गई। इसके बाद अजीत खान ने तीसरी शादी की एक और लड़की से और ये शादी लव मैरिज थी। इस शादी में इनके दौर के शानदार अभिनेता रहे जयंत ने इनकी बेहद मदद की थी। तीसरी वाइफ से भी इनको दो बच्चे हुए थे।
तीसरी इनिंग की कहानी
अजीत जब 59 साल की उम्र में पहुंचे तो इन्होंने काफी ज़्यादा काम करना शुरू कर दिया। ये तीन शिफ्टों में काम किया करते थे। साथ ही ये बहुत ज़्यादा सिगरेट भी पीने लगे थे।
हर दिन ये लगभग साठ से सत्तर सिगरेट फूंक देते थे। सिगरेट ने इनके दिल को बेहद कमज़ोर कर दिया। इनकी तबियत खराब रहने लगी। इन्होंने फैसला कर लिया कि अब ये कम काम करेंगे।
फिर 10 सालों तक ये फिल्म इंडस्ट्री से दूर हो गए। 10 सालों बाद जब ये फिल्मों में अपनी तीसरी इनिंग खेलने आए तो इन्होंने कुछ सकारात्मक किरदार भी निभाए थे।
जिगर फिल्म में बाबा ठाकुर नाम के कराटे टीचर के इनके रोल को बेहद पसंद किया गया था। अजीत के बेटे शहज़ाद अली खान ने भी फिल्मों और टीवी की दुनिया में अपना करियर बनाया। शहज़ाद अली खान अपने पिता की मिमिक्री करते हैं। लोग शहज़ाद की मिमिक्र को काफी पसंद भी करते हैं।
और दुनिया छोड़ गए अजीत खान
22 अक्टूबर सन 1998। अजीत साहब को अचानक दिल का एक बेहद तेज़ दौरा आया और 76 साल की उम्र में अजीत खान साहब इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गए।
इसी के साथ चला गया वो बॉलीवुड विलेन जो बिना चीखे-चिल्लाए केवल अपने अंदाज़ से ही लोगों के दिलों में खौफ पैदा कर देता था। Meerut Manthan Great Actor Ajit Khan साहब को नमन करता है। जय हिंद।
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