Ashraful Haque | नशेड़ियों भंगेडियों के किरदार निभाने वाला एक Actor जो बहुत जल्दी दुनिया छोड़ गया | Biography

Ashraful Haque. अभिनय कला की एक ऐसी विधा है जहां अपना हुनर दिखाकर कोई कलाकार दूसरों के दिलों में जगह बना सकता है। अपने लिए बेइंतिहा मुहब्बत और इज्ज़त दूसरों के दिलो-दिमाग में पैदा कर सकता है। 

और कई दफा तो लोगों को खुद से नफ़रत करने को भी मजबूर कर सकता है। हमारी फिल्म इंडस्ट्री में जाने कितने ही ऐसे कलाकार हुए हैं जिन्हें लोग मर-मिटने की हद तक चाहते हैं। और कुछ ऐसे भी रहे हैं जिन्हें लोग ज़रा भी पसंद नहीं करते। 

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Actor Ashraful Haque Biography - Photo: Social Media

लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बड़ी तादाद ऐसे कलाकारों की भी है जो काम तो बहुत दमदार करते हैं। मगर उन्हें कोई पहचान नहीं मिल पाती। और आज एक ऐसे ही कलाकार की आधी-अधूरी कहानी ही हम और आप जानेंगे। 

आधी अधूरी इसलिए क्योंकि इस कलाकार के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारियां हमें नहीं मिल पाई हैं। लेकिन जितनी भी जानकारियां हमें मिल पाई हैं, वो सब हमने इकट्ठा की हैं और उन्हें एक कहानी की शक्ल देकर आप दर्शकों के सामने पेश कर रहे हैं।

इनका नाम है Ashraful Haque और अब ये इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन इस दुनिया से जाने से पहले Ashraful Haque चंद फिल्मों में कुछ छोटे लेकिन दमदार किरदार अदा करके गए हैं। हमें उम्मीद है कि आपको अशरफुल हक की ये कहानी ज़रूर पसंद आएगी।

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Ashraful Haque का शुरुआती जीवन

अशरफुल हक असम के गोलपाड़ा ज़िले के रहने वाले थे। 3 नवंबर 1969 को अशरफुल का जन्म गोलपाड़ा के किस्मतपुर इलाके में हुआ था। गोलपाड़ा के बलदमारी स्कूल से अशरफुल हक की शुरुआती पढ़ाई हुई थी। 

फिर गोलपाड़ा कॉलेज से अशरफुल ने ग्रेजुएशन किया था। छोटी उम्र से ही अशरफुल को फिल्में बहुत प्रभावित करती थी। और वो भी सपना देखते थे कि एक दिन वो भी सिनेमा के इस चमकीले संसार में अपने लिए थोड़ी-बहुत जगह बना लेंगे। 

स्कूल के दिनों से ही अशरफुल एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में हिस्सा लेते रहते थे। स्कूल में होने वाले ड्रामों में ये हमेशा आगे रहते थे। और फिर कॉलेज में भी ये ड्रामा टीम का अहम मेंबर बन गए थे। 

गोलपाड़ा के स्थानीय नाटककारों के साथ मिलकर भी ये नाट्य जगत में एक्टिव रहा करते थे। और आखिरकार अभिनय की विधिवत शिक्षा लेने के लिए साल 1995 में अशरफुल ने रुख किया देश की राजधानी दिल्ली में मौजूद एनएसडी यानि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा का। 

ऐसे शुरु हुआ फिल्मी सफर

साल 1997 में एनएसडी से एक्टिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अशरफुल हक पूरी तरह से थिएटर की दुनिया में रम गए। अशरफुल ने कई नामी नाटककारों के लिखे नाटकों में काम किया था। अपने करियर में इन्होंने पूरे 30 नाटकों में काम किया था। जो कि अपने आप में एक बड़ी बात है। 

और लगभग इतनी ही फिल्मों में भी अशरफुल हक ने अपने एक्टिंग स्किल्स भी दिखाए थे। हालांकि अशरफुल को ज़्यादातर नशेड़ी या फिर चोर-डकैत वाले किरदार ही मिले। और वो भी ऐसे किरदारों को बिना किसी परेशानी के खूबसूरती से निभाते चले गए। 

फिल्मों के अलावा अशरफुल कुछ टीवी शोज़ में भी दिखे थे। और ये भी इत्तेफाक ही है कि अशरुफ ने पहली दफा सब गोलमाल है नाम के एक टीवी शो में ही एक्टिंग की थी। इसके बाद अजय देवगन की फिल्म दिल क्या करे से इनका फिल्मी करियर भी शुरु हो गया। साल 1999 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में अशरफुल चंद्रचूड सिंह के असिस्टेंट बने थे। 

अशरफुल के करियर की दूसरी फिल्म थी साल 2000 की मेला जिसमें ये गुज्जर डाकू के गिरोह में एक लंगड़े डकैत के छोटे से रोल में दिखे थे। और इस तरह छोटे-मोटे ही सही, लेकिन करियर के शुरू में ही अशरफुल को बड़े स्टार्स और बड़े बजट्स की फिल्मों में काम करने का मौका मिल गया। 

अशरफुल हक की प्रमुख फिल्में

अपने फिल्मी करियर में अशरफुल हक ने शूल, जंगल, लव के लिए कुछ भी करेगा, क्रांति, कंपनी, कलकत्ता मेल, युवा, ब्लैक फ्राइडे, रिस्क, रावण, आक्रोश, नॉक-आउट, मुंबई कटिंग, रेड अलर्ट, मुंबई मस्त कलंदर, डेल्ही-बेल्ली, मुंबई मस्त कलंदर, सतरंगी पैराशूट, ट्रैफिक सिग्नल, चिट्टागोंग, पान सिंह तोमर, तलाश आंसर लाइज़ विद इन, मांझी द माउंटेन मैन और गेम पैसा लड़की जैसी फिल्मों में काम किया था। 

इनके करियर की कुछ बड़ी भूमिकाओं की बात करें तो साल 2004 में आई दीवार, लैट्स ब्रिंग आर हीरोज़ बैक फिल्म में ये नारू नाम के एक ऐसे भारतीय सिपाही के रोल में दिखे थे जो कई सालों से पाकिस्तान की एक जेल में गैर कानूनी तरीके से अपने कई दूसरे साथियों के साथ बंद है। इस फिल्म में अशरफुल को सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला था। 

वहीं साल 2013 में आई फिल्म फुकरे में अशरफुल का निभाया स्मैकिए का किरदार भी लोगों के ज़ेहन में आज तक ताज़ा है। इसी साल यानि साल 2013 में द लॉस्ट बहरूपिया नाम की शॉर्ट फिल्म में तो अशरफुल ने इतना शानदार काम किया था कि इन्हें इस फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।  अशरफुल कुछ विज्ञापनों में भी नज़र आए थे। और इनके सबसे यादगार विज्ञापनों में से एक था माज़ा वाला विज्ञापन जिसमें इनका भैंसा कहीं खो जाता है।

यूं आया बुरा वक्त

अशरफुल का करियर ठीक ठाक चल रहा था। लेकिन तभी साल 2013 में पता चला कि इन्हें माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम नाम की एक दुर्लभ बीमारी है जो इनकी हड्डियों में मौजूद बोन मैरो को खत्म कर रही है। 

काम के साथ-साथ अशरफुल इस बीमारी का इलाज भी करा रहे थे। लेकिन वक्त के साथ इनकी ये बीमारी बढ़ती ही चली गई। फिर साल 2015 की फरवरी में एक दिन इनकी तबियत अचानक बहुत ज़्यादा बिगड़ गई। 

आनन-फानन में इन्हें मुंबई के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। तीन दिनों तक ये वेंटिलेटर पर रहे। लेकिन फिर 17 फरवरी 2015 को महज़ 46 साल की उम्र में अशरफुल हक ज़िंदगी की जंग हार गए। 

अशरफुल की मौत की खबर जैसे ही फैली, बॉलीवुड में शोक की लहर उमड़ पड़ी। इनके साथ काम कर चुके लोगों ने इनकी मौत पर गहरा दुख जताया। 

अनुराग कश्यप, जो कि संघर्ष के दिनों से ही अशरफुल को जानते थे और इनके साथ कई फिल्मों में काम कर चुके थे, उन्होंने इनके इकलौते बेटे इब्राहिम की पढ़ाई-लिखाई की ज़िम्मेदारी उठाने का ऐलान कर दिया। 

जिस वक्त अशरफुल की मौत हुई थी, उस वक्त इनकी मां अमीजान निशा खुद भी बहुत बीमार थी। बेटे की मौत की खबर ने उन्हें बुरी तरह तोड़कर रख दिया। जबकी अशरफुल की पत्नी सफीना यास्मीन पर भी दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। 

अशरफुल के शरीर को मुंबई से उनके होम टाउन गोलपाड़ा ले जाया गया। जहां इनकी अंतिम यात्रा में हज़ारों लोग शामिल हुए और इन्हें आखिरी विदाई दी। असम के उस वक्त के मुख्यमंत्री तरुन गोगोई ने भी अशरफुल की मौत पर शोक ज़ाहिर किया था। 

गोलबाड़ा कॉलेज के पास ही मौजूद पीर बाबा मज़ार कब्रिस्तान में अशरफुल को सुपुर्द-ए-ख़ाक भी कर दिया गया। और इस तरह कुछ ही सालों में एक छोटा कलाकार कुछ छोटे-छोटे किरदार निभाकर छोटे से वक्त में ही इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए रुख़सत हो गया। 

Ashraful Haque को Meerut Manthan का सैल्यूट

अशरफुल हक को इस दुनिया से गए अब काफ़ी वक्त हो चुका है। अब तो लोग भी उन्हें भुला चुके हैं। लेकिन Meerut Manthan अशरफुल हक और उनके जैसे कई कलाकारों को हमेशा याद करता है और उनकी कहानी सिनेप्रेमियों को बताता रहता है।

 कईयों की कहानी Meerut Manthan पहले ही कह चुका है। और कईयों की भविष्य में भी कहेगा। क्योंकि मेरठ मंथन का ये मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री के छोटे और गुमनाम कलाकारों को भी उनके हिस्से की पहचान मिलनी ही चाहिए। और मेरठ मंथन का यही मिशन भी है। 

अशरफुल हक ने छोटे से करियर में फिल्म इंडस्ट्री में जो कुछ दमदार किरदार निभाए हैं। उनके लिए हम उन्हें सैल्यूट करते हैं। और साथ ही ये प्रार्थना भी करते हैं कि अशरफुल हक को ईश्वर जन्नत-उल-फिरदौस में भी जगह दे। जय हिंद। जय भारत। 

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