M. Sadiq | महान गुरूदत्त की टीम का वो धाकड़ Director जिसे उसकी मौत पाकिस्तान खींच ले गई थी | Biography

M. Sadiq. आज तो शायद किसी को ये याद हों। लेकिन एक वक्त पर एम. सादिक बहुत बड़े और नामी राइटर-डायरेक्टर हुआ करते थे। 10 मार्च 1910 को लाहौर में इनका जन्म हुआ था। 

कुछ लोग कहते हैं कि इनका जन्म 02 मार्च 1911 को हुआ था। लेकिन ये गलत है। एम. सादिक का जन्म 10 मार्च 1910 को ही हुआ था।

biography-of-director-m-sadiq
Biography of Director M Sadiq - Photo: Social Media

M. Sadiq किसी वक्त पर केन्या एंड युगांडा रेलवे एंड हार्बर्स एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के चीफ मैकेनिकल इंजीनियर के ऑफिस में क्लर्क के तौर पर नौकरी करते थे। ये नौकरी M. Sadiq ka 1927 में मैट्रिक पास करने के बाद ही मिल गई थी। और उनकी तैनाती नैरोबी में थी। लेकिन पारिवारिक दिक्कतों के कारण दो साल वहां रहने के बाद ये भारत वापस लौट आए। 

ये भी पढ़ें: Ranjeet | वो Bollywood Villain जो असल जीवन में बेहद शरीफ है | Biography

M. Sadiq ने छोड़ दिया नैरोबी

भारत लौटकर M. Sadiq A.R.Kardar की फिल्म कंपनी United Players Corporation में क्लर्क की हैसियत से काम करना शुरू कर दिया। यहां कारदार साहब से इनकी बढ़िया जान-पहचान हो गई। 

कारदार को अहसास हो गया कि ये लिखते अच्छा हैं। मगर जाने क्यों, 1 साल बाद ही एम.सादिक ने कारदार की नौकरी छोड़ दी और फिर चार सालों तक ये अलग-अलग काम करते रहे। 

कभी टाइपिस्ट तो कभी बैंक में डे बुक राइटर। कभी लिथोग्राफर तो कभी प्रैस कंपोज़िटर। साल 1935 में एक बार फिर ए.आर.कारदार इनसे मिलने आए। उस ज़माने में ये लक्ष्मी पेट्रोलियम कंपनी में क्लर्क की हैसियत से काम कर रहे थे। 

कारदार उन दिनों कलकत्ता में फिल्में बना रहे थे। उन्होंने इन्हें अपना असिस्टेंट बनने का ऑफर दिया। इन्होंने वो ऑफर स्वीकार किया और ये भी कलकत्ता आ गए। और इस तरह पहली दफा इन्होंने ए.आर.कारदार को साल 1936 में आई बाग़ी सिपाही नामक फिल्म में असिस्ट किया। 

हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि बतौर असिस्टेंट एम.सादिक की पहली फिल्म 1932 में आई कारदार की पहली टॉकी फिल्म हीर रांझा थी। सच क्या है, ये भी कन्फर्म नहीं हो सका।

लिखते भी थे एम. सादिक

एम.सादिक ने ए.आर.कारदार को कुछ और फिल्मों में भी असिस्ट किया। और वो केवल डायरेक्शन में नहीं, स्टोरी और डायलॉग्स में भी कारदार साहब की मदद किया करते थे। 

1942 में जब ए.आर.कारदार ने कारदार प्रोडक्शन्स नाम से अपनी कंपनी शुरू की और अपनी इस नई कंपनी के बैनर तले पहली फिल्म शारदा बनानी शुरू की तो इसमें उन्होंने एम.सादिक को फिल्म की एडिटिंग की ज़िम्मेदारी दी। 

यहां कुछ लोग सोच सकते हैं कि ए.आर. कारदार की तो यूनाइटेड प्लेयर्स कॉर्पोरेशन नाम से एक फिल्म कंपनी थी। तो उन्हें नई कंपनी क्यों बनाई? तो वैल, ये एक अलग कहानी है। किसी दिन मौका मिला तो ये भी कहूंगा।

यूं शुरू हुआ डायरेक्शन का सफर

ए.आर.कारदार ने एम. सादिक को पहली दफा डायरेक्शन का मौका दिया साल 1943 में आई फिल्म 'नमस्ते' में। वैसे, इस फिल्म को दो डायरेक्टर्स ने डायरेक्ट किया था। 

दूसरे डायरेक्टर का नाम था एस.यू.सनी। वो भी कारदार साहब के भरोसेमंद असिस्टेंट थे। इस फिल्म में अलाउद्दीन और प्रोतिमा दासगुप्ता लीड भूमिकाओं में थे। 

एज़ ए डायरेक्टर एम. सादिक के करियर की वन ऑफ दि बेस्ट फिल्म है 1944 में आई रत्तन। जो उस वक्त की बहुत बड़ी हिट फिल्म थी। ये फिल्म कारदार साहब ने ही प्रोड्यूस की थी। और इसमें करन दीवान और स्वर्णलता लीड रोल में थे।

सादिक की कुछ प्रमुख फिल्में

रत्तन फिल्म के बाद एम.सादिक ने ए.आर.कारदार की कंपनी छोड़ दी। वो इंडिपेंटेंड डायरेक्टर के तौर पर काम करने लगे। और उन्होंने कई फिल्में डायरेक्ट की। जैसे शाम सवेरे(1946), जग बीती(1946), डाक बंगला(1947) और काजल(1948)। 

1949 में इन्होंने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी शुरू की जिसका नाम इन्होंने रखा सादिक प्रोडक्शन हाउस। अपने बैनर के अंडर में इन्होंने लगभग 08 फिल्में बनाई। जैसे सबक(1950), सईयां(1951) और शबाब(1954)। इनकी अन्य फिल्में कॉमेडी जोनरा की फिल्में थी। 

जिनमें इनके मुख्य एक्टर जॉनी वॉकर हुआ करते थे। ये फिल्में थी मुसाफिर खाना(1955), छू मंतर(1956), दुनिया रंग रंगीली(1957), माई बाप(1957) और खोटा पैसा(1958)।

गुरूदत्त और एम. सादिक की मुलाकात

एम. सादिक ने दूसरे बैनर्स के लिए भी कई फिल्में इस दौरान डायरेक्ट की थी। जिसनमें सबसे चर्चित थी 1960 गुरूदत्त स्टारर चौदहवी का चांद। 

दरअसल, गुरूदत्त इस फिल्म के लिए किसी ऐसे डायरेक्टर की तलाश थी जो लखनवी मुस्लिम तहज़ीब को ढंग से जानता-समझता हो। गुरूदत्त की तलाश एम.सादिक पर खत्म हुई। 

और हम सभी जानते हैं कि चौदहवीं का चांद कितनी सफल और बड़ी हिट फिल्म थी। इसके बाद एम.सादिक ने 1963 की ताजमहल और 1967 की नूरजहां डायरेक्ट की। ये दोनों फिल्में भी सफल रही। 

इन फिल्मों की सफलता ने उस वक्त इंडस्ट्री में हिस्टोरिकल, खासतौर पर मेडिवियल हिस्ट्री पर बेस्ड फिल्में बनाने का चलन शुरू कर दिया। एम.सादिक की ही 1967 की बेग़म बहू एक मुस्लिम सोशल ड्रामा फिल्म थी। जो बहुत पसंद की गई थी।

पाकिस्तान जाना पड़ गया भारी

1970 में एम. सादिक ने पाकिस्तान शिफ्ट होने का फैसला किया। वहां जाकर उन्होंनें "बहारों फूल बरसाओ" नाम से एक फिल्म शुरू की। अपने बैनर सादिक प्रोडक्शन हाउस के अंडर में। 

लेकिन एक एक्टर से एम.सादिक की इतनी लड़ाई हो गई कि वो फिल्म लटक गई। सादिक उसकी वजह से टेंशन में आ गए। और 03 अक्टूबर 1971 को उनकी मृत्यु हो गई। 

सादिक की आखिरी फिल्म, जो लटकी हुई थी, उसे बाद में हसन तारीक(जो इस फिल्म की हीरोइन रानी के शौहर थे) नामक पाकिस्तानी डायरेक्टर ने कंप्लीट किया। 

1972 में वो फिल्म रिलीज़ भी हुई। नवाबी शान-ओ-शौकत की कहानी कहती वो फिल्म पाकिस्तानी बॉक्स ऑफिस पर बढ़िया प्रदर्शन किया था। यूट्यूब पर मौजूद है ये फिल्म। 

पाकिस्तान से जुड़ी ये कहानी भी प्रचलित है

एम. सादिक के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो पाकिस्तान परमानेंटली नहीं गए थे। उनके बेटे की शादी पाकिस्तान की एक लड़की से हो रही थी। इसलिए वो पाकिस्तान गए थे। 

मगर पाकिस्तान में उन्हें "बहारों फूल बरसाओं" फिल्म को डायरेक्ट करने का ऑफर मिला तो वो उस फिल्म को पूरा करने के लिए कुछ और दिन वहीं रुक गए। 

"बहारों फूल बरसाओं" की कहानी बहुत हद तक एम.सादिक की बनाई गुरूदत्त स्टारर "चौदहवीं का चांद" से मिलती थी। यानि पाकिस्तानी फिल्म भारतीय फिल्म की नकल थी। 

फिल्म पर काम चल ही रहा था कि एक दिन अचानक एम.सादिक को हार्ट अटैक आ गया। ये दो कहानियां एम. सादिक और पाकिस्तान से जुड़ी हैं। इनमें सही कौन सी है, फिलहाल हमें नहीं पता। 

आखिर में M. Sadiq की कुछ और बातें

अब आखिर में एम.सादिक से जुड़ी एक आखिरी बात। एम.सादिक बोलते वक्त काफी हकलाते थे। लोग अक्सर उनका मज़ाक उड़ाते थे। सादिक सुरैया से शादी करना चाहते थे। इकतरफा चाहते थे उन्हें। 

जिस वक्त सुरैया और देवानंद के रिश्ते को तोड़ने के लिए सुरैया की नानी ने दिन-रात एक किया हुआ था, उस वक्त उनकी प्लानिंग थी कि सुरैया की शादी जल्द से जल्द एम.सादिक से करा दी जाए। 

लेकिन सुरैया इस बात के लिए कतई तैयार नहीं थी। उन्होंने एम.सादिक से शादी करने से साफ इन्कार कर दिया था। सुरैया ताउम्र कुंवारी रही। वो देव साहब की मुहब्बत में लिया गया उनका एक फैसला था।

M. Sadiq को Meerut Manthan का सैल्यूट

एम. सादिक को भले ही आज लोग भुला चुके हों। लेकिन सिनेमा के सच्चे कद्रदान आज भी जब उन्हें याद करते हैं तो सच्चे मन से और पूरे सम्मान से याद करते हैं। मेरठ मंथन भी भुलाए जा चुके डायरेक्टर एम. सादिक को ससम्मान याद करता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Anup Jalota | Bhajan Samrat से जुड़े आठ बड़े ही रोचक और Lesser Known Facts

Purab Aur Pachhim 1970 Movie Trivia | पूरब और पश्चिम फिल्म की मेकिंग से जुड़ी 15 अनसुनी व रोचक कहानियां

Shiva Rindani | 90s की Bollywood Movies में गुंडा बनने वाले इस Actor को कितना जानते हैं आप? | Biography