Munawar Sultana | एक वक्त की वो खूबसूरत अदाकारा जो आखिरी वक्त में ज़िंदा लाश बनकर रह गई थी | Biography
"अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेकरार का। आंखों में रंग भरके तेरे इंतज़ार का।" साल 1947 को आई फ़िल्म Dard का ये गीत बड़ा विशेष है।
इस गीत को आवाज़ दी थी उमा देवी खत्री ने, जिन्हें आप और हम टुन टुन के नाम से जानते हैं। ये फ़िल्म डायरेक्ट व प्रोड्यूस की थी अब्दुल रशीद कारदार ने। और इस फ़िल्म का संगीत कंपोज़ किया था नौशाद ने।
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Actress Munawar Sultana Biography - Photo: Social Media |
लेकिन इस लेख में हम बात करेंगे उस अदाकारा की, जो उस गीत में नज़र आई थी। जिनका नाम है Munawar Sultana. किस्मत की सितम-ज़रीफी देखिए, जो Munawar Sultana किसी वक्त पर लाखों दिलों की धड़कन हुआ करती थी। उसका आखिरी वक्त इतना खराब गुज़रा था कि लोगों ने उन्हें मरा हुआ समझ लिया। हालांकि वो ज़िंदा थी। लेकिन उनका ज़िंदा होना भी उनके ना होने के बराबर ही था।
आठ नवंबर 1924 को लाहौर में Munawar Sultana का जन्म हुआ था। उनके पिता रेडियो अनाउंसर थे। Munawar Sultana डॉक्टर बनना चाहती थी। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वो मेडिकल की तैयारी कर भी रही थी।
लाहौर में दलसुख पंचोली नाम के एक मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हुआ करते थे जिनका "पंचोली पिक्चर्स" नाम से अपना खुद का एक प्रोडक्शन हाउस था। उन्होंने एक फ़िल्म अनाउंस की जिसका नाम था "खजांची।" इस फ़िल्म में प्राण और मदन पुरी ने भी एक्टिंग की थी।
ये दोनों कलाकार उस वक्त एकदम युवा थे। प्राण तो इस फ़िल्म के हीरो थे। जबकी उनकी हीरोइन थी नूरजहां। इसी फ़िल्म में मुनव्वर सुल्ताना को साक़ी नाम के एक छोटे से रोल को निभाने के लिए लिया गया। फ़िल्म का एक गीत "पीने के दिन आए पिए जा" बहुत हिट हुआ था जिसे शमशाद बेगम ने गाया था।
वो गीत Munawar Sultana पर ही पिक्चराइज़्ड किया गया था। फ़िल्म का संगीत मास्टर ग़ुलाम हैदर ने कंपोज़ किया था। और ये फ़िल्म उस समय की बड़ी हिट थी।
उस दौर में मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री के एक बड़े एक्टर व डायरेक्टर-प्रोड्यूसर हुआ करते थे जिनका नाम था मज़हर खान। वो एक फ़िल्म बना रहे थे जिसका नाम था "पहली नज़र।" उस फ़िल्म के लिए मज़हर खान किसी नई लड़की को तलाश रहे थे।
उन्होंने "खजांची" फ़िल्म में मुनव्वर सुल्ताना को देखा था। उनका काम मज़हर खान को बहुत पसंद भी आया था। उन्होंने मुनव्वर सुल्ताना से बात की और अपनी फ़िल्म "पहली नज़र" की हीरोइन का रोल ऑफर किया। मुनव्वर सुल्ताना ने वो रोल स्वीकार कर लिया और वो मुंबई आ गई।
साल 1945 में "पहली नज़र" रिलीज़ हो गई। ये बात भी जानने लायक है कि "पहली नज़र" ही वो फ़िल्म थी जिसमें महान गायक मुकेश जी ने पहली दफा प्लेबैक सिंगिंग की थी। जो गीत मुकेश जी ने गाया था उसके बोल थे "दिल जलता है तो जलने दे।"
ये गीत एक्टर मोतीलाल पर फ़िल्माया गया था। यानि "पहली नज़र" फ़िल्म में मुनव्वर सुल्ताना के हीरो मोतीलाल थे। ध्यान दीजिएगा, मुकेश जी इससे पहले भी कुछ फ़िल्मी गीत गा चुके थे। लेकिन वो गीत उन्होंने खुद के लिए गाए थे। यानि बतौर एक्टर-सिंगर वो गीत उन्होंने गाए थे। लेकिन पार्श्वगायक के तौर पर मुकेश जी का पहला फ़िल्मी गीत यही था।
खजांची के बाद मुनव्वर सुल्ताना जी ने कोई 26 फ़िल्मों में काम किया। उनका फ़िल्मी करियर तरकीरबन 14 साल चला। इस दौरान उन्होंने अंधों की दुनिया(1947), दर्द(1947), ऐलान(1947), नैया(1947), मजबूर(1948), मेरी कहानी(1948), पराई आग(1948), सोना(1948), दादा(1948), दिल की दुनिया(1949), कनीज़(1949), निस्बत(1949), रात की रानी(1949), सावन भादो(1949), उद्धार(1949), बाबुल(1950), प्यार की मंज़िल(1950), सबक(1950), सरताज(1950), अपनी इज्ज़त(1952), तरंग(1952), एहसान(1954), तूफान(1954), वतन(1954) और जल्लाद(1956) जैसी फ़िल्मों में बतौर हीरोइन काम किया।
मुनव्वर सुल्ताना उस दौर की बहुत लोकप्रिय अदाकारा थी। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा ऐसे लगाया जा सकता है कि लक्स साबुन के विज्ञापन में मुनव्वर सुल्ताना को भी फीचर किया गया था। उस दौर में लक्स सिर्फ टॉप एक्ट्रेसेज़ को ही अपने विज्ञापन में फीचर करता था।
साल 1950 की फ़िल्म बाबुल में मुनव्वर सुल्ताना दिलीप कुमार की हीरोइन बनी थी। इस फ़िल्म का एक गीत "अफ़साना मेरा बन गया अफ़साना किसी का" तब बहुत हिट हुआ था। ये गीत तलत महमूद व शमशाद बेगम ने गाया था।
मुनव्वर सुल्ताना की ही 1949 की फ़िल्म कनीज़, जिसका संगीत मास्टर ग़ुलाम हैदर व हंसराज बहल ने कंपोज़ किया था, उससे ओ.पी.नैय्यर साहब ने बैकग्राउंड म्यूज़िक कंपोज़ करके अपने करियर की शुरुआत की थी।
साल 1954 में मुनव्वर सुल्ताना ने शरफ़ अली नाम के एक फर्नीचर व्यवसायी से शादी कर ली थी। शरफ़ अली का मुख्य काम था फ़िल्मों के लिए फर्नीचर की सप्लाई करना। उन्होंने "सुपर टीम फ़ेडरल प्रोडक्शंस" के बैनर तले दो फ़िल्मों,"मेरी कहानी" और "प्यार की मंज़िल का निर्माण भी किया था।
शरफ़ अली से शादी करके मुनव्वर सुल्ताना ने फ़िल्मों को अलविदा कह दिया। 1956 की जल्लाद, जो कि मुनव्वर सुल्ताना की आखिरी फ़िल्म थी, वो उनकी शादी के बाद रिलीज़ हुई थी। 1966 में मुनव्वर सुल्ताना के पति की अचानक मौत हो गई।
ऐसे में चार बेटों व तीन बेटियों की ज़िम्मेदारी मुनव्वर सुल्ताना को अकेले ही संभालनी पड़ी। और उन्होंने इस ज़िम्मेदारी को बखूबी संभाला भी।
काम में मुनव्वर सुल्ताना इतनी व्यस्त हुई कि फिल्म इंडस्ट्री से उनका नाता पूरी तरह से खत्म हो गया। कुछ साल गुज़रने के बाद तो फिल्म इंडस्ट्री के बहुत से लोगों ने मान लिया कि शायद मुनव्वर सुल्ताना का देहांत हो गया है।
जीवन के आखिरी दिनों में मुनव्वर सुल्ताना अल्ज़ाईमर नामक बीमारी का शिकार हो गई थी। उनका अधिकतर समय बिस्तर या व्हीलचेयर पर ही गुज़रता था। उन्हें ना दुनिया की ख़बर थी। और ना ही खुद की। हमेशा शून्य में ताकती रहती थी।
उनके बच्चे अपनी तरफ से उनकी पूरी सेवा कर रहे थे। लेकिन सच तो ये था कि वो एक ज़िंदा लाश से अधिक और कुछ ना थी। उसी हालत में 15 सितंबर 2007 को 83 साल की उम्र में मुनव्वर सुल्ताना जी का देहांत हो गया। Meerut Manthan Munawar Sultana जी को ससम्मान याद करते हुए उन्हें नमन करता है।
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