Naik Jadunath Singh | वो महान योद्धा जिसने पाकिस्तान को नाकों चने चबवाए और बन गया Paramveer Chakra विजेता
Naik Jadunath Singh. भला कौन सा ऐसा भारतीय होगा जो इस बात से इन्कार कर पाएगा कि भारत के असली हीरो फिल्म स्टार्स नहीं, बल्कि देश के लिए अपने प्राणों की बलि देने वाले देश के वीर सिपाही हैं। ऐसे ही महान देशभक्त थे नायक जदुनाथ सिंह।
Paramvir Chakra Vijeyta Naik Jadunath Singh Biography - Photo: Social Media |
आज Meerut Manthan आपको भारत के दूसरे Paramveer Chakra विजेता Naik Jadunath Singh की वीरता का किस्सा सुनाएगा। नायक जदुनाथ सिंह ने कैसे अपनी जान की परवाह ना करते हुए भारत भूमि की खातिर अपने प्राणों की आहूति दे दी, आज उनके बलिदान की सारी कहानी हम और आप जानेंगे।
Naik Jadunath Singh का शुरुआती जीवन
21 नवंबर सन 1916 को जदुनाथ सिंह का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। जगह थी उत्तर प्रदेश का शाहजहांपुर ज़िले का खजूरी गांव। इनके पिता बीरबल सिंह राठौर एक छोटे किसान थे और इनकी मां जमुना कंवर एक गृहणी थी।
सात भाई और एक बहन वाला इनका परिवार अच्छा-खासा बड़ा परिवार था। परिवार की तादाद की तुलना में इनके पिता की कमाई कम थी तो जदुनाथ सिंह की पढ़ाई-लिखाई ज़्यादा नहीं हो सकी। ये मात्र चौथी क्लास तक ही पढ़ सके।
बचपन से था पहलवानी का शौक
चूंकि कुदरत ने इन्हें एक लंबा-चौड़ा शरीर दिया था तो बचपन से ही इन्हें पहलवानी का बड़ा शौक था। इनके गांव में चोरी-चकारी कम ही हुआ करती थी। और ऐसा इसलिए होता था क्योंकि गांव में अगर चोर आ जाते थे तो किसी ना किसी तरह जदुनाथ सिंह उन्हें पकड़ ही लिया करते थे। आस-पास के इलाकों में जदुनाथ सिंह की बहादुरी के चर्चे खूब होने लगे थे। इसी बीच जदुनाथ सिंह ने फैसला किया कि वो फौजी बनेंगे और फौज में भर्ती होंगे।
फौजी बने और दूसरे विश्वयुद्ध में लिया हिस्सा
सन 1941 में फौजी बनने का इनका सपना पूरा भी हो गया। ये ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सैनिक बन गए। जदुनाथ सिंह ब्रिटिश आर्मी की राजपूत रेजिमेंट में सिपाही बने। सेना जॉइन किए अभी इन्हें एक साल भी नहीं हुआ था कि इन्हें दूसरे विश्वयुद्ध में हिस्सा लेना पड़ गया और सन 1942 में जापानियों के खिलाफ मोर्चा लेने ये बर्मा चले गए। इस मोर्चे पर इन्होंने ज़बरदस्त हौंसला दिखाया और जापानियों को कड़ी चुनौती दी। यहीं से जदुनाथ सिंह अपने सीनियर्स की गुड लिस्ट में आ गए थे।
देखा बंटवारे का दर्द
दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद जदुनाथ को पदोन्नत कर दिया गया और उन्हें नायक बना दिया गया। मगर इसी दौरान भारत को आज़ादी मिल गई। हालांकि आज़ादी के साथ देश को बंटवारे का दंश भी भुगतना पड़ा।
देश आज़ाद हुए बमुश्किल एक महीना ही हुआ था कि अक्टूबर में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया। कश्मीर के राजा हरि सिंह आखिरकार भारत की शरण में आए और भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारा जवाब देने की तैयारी करनी शुरू कर दी।
टैनधार में पाकिस्तान से भिड़े Naik Jadunath Singh
सेना की राजपूत रेजिमेंट को पाकिस्तान के हमले का जवाब देने का आदेश मिला। झांगर पोस्ट पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था। ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी फौजियों को झांगर पोस्ट से खदेड़ दिया था।
पाकिस्तानी खेमे में इस हार के बाद से ही बौखलाहट चरम पर थी। 6 फरवरी 1948 को पाकिस्तानी सेना ने टैनधार पोस्ट पर ज़बरदस्त हमला कर दिया। इत्तेफाक से इस पोस्ट पर नायक जदुनाथ सिंह अपने मात्र 9 साथियों के साथ तैनात थे।
पाकिस्तान को पीछे धकेलते रहे नायक जदुनाथ सिंह
पाकिस्तान हर हाल में इस पोस्ट पर अपना कब्ज़ा चाहता था। उन्होंने टैनधार के आस-पास के इलाके में आग लगा दी। ये सोचकर कि धुएं की मदद से वो भारतीय फौजियों को चकमा दे देंगे। लेकिन नायक जदुनाथ सिंह दुश्मन की इस चाल में नहीं फंसे। 10 लोगों की अपनी टीम के साथ वो धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे।
पाकिस्तानी सैनिकों को इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था कि उन्हें भारत के केवल 10 सैनिक पीछे धकेल रहे हैं। पीछे हटने के बाद पाकिस्तानियों ने गोलीबारी कुछ घंटों के लिए बंद कर दी। मगर फिर दोबारा पाकिस्तानी सैनिकों ने ज़बरदस्त गोलीबारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में जदुनाथ सिंह के चार साथी बुरी तरह घायल हो गए।
पाकिस्तान ने Naik Jadunath Singh को निशाना बनाना शुरू किया
घायल साथियों को एक तरफ करके नायक जदुनाथ अपने बाकी बचे साथियों की हौंसलाअफज़ाई करते रहे। हालांकि हालात पल-पल बेकाबू होते जा रहे थे। लेकिन नायक जदुनाथ और उनके साथी किसी भी हाल में हार मानने के लिए तैयार नहीं थे। वो जानते थे कि दुश्मन को यहां रोके रखना कितना ज़रूरी है।
आखिरकार दुश्मन के हौंसले एक बार फिर पस्त हुए और दुश्मन को फिर से पीछे हटना पड़ा। दुश्मन को अंदाज़ा हो चुका था कि जब तक नायक जदुनाथ सिंह इस पोस्ट पर है। इस पोस्ट को जीत पाना नामुमकिन है। अबकी दफा जब दुश्मन फौज वापस लौटी तो उसने आते ही नायक जदुनाथ को निशाना बनाना शुरू कर दिया।
जब आकर लगी दो गोलियां
इस वक्त तक नायक जदुनाथ सिंह भी ब्रिगेडियर उस्मान को इस सारे वाकये की ख़बर कर चुके थे और ब्रिगेडियर उस्मान ने उनकी मदद के लिए एक टुकड़ी भेज दी थी। मगर मदद मिलने से पहले तक जदुनाथ और उनके साथी काफी थक चुके थे और उन्हें दुश्मन को रोककर भी रखना था।
सो नायक जदुनाथ सिंह और उनके साथी दुश्मनों पर गोलीबारी करते रहे। इसी बीच एक गोली नायक जुदनाथ सिंह के सिर पर आकर लगी। जदुनाथ संभल पाते इससे पहले ही एक दूसरी गोली उनकी छाती के पार निकल गई।
Naik Jadunath Singh को शत-शत नमन
दुश्मन को लगने लगा कि वो नायक जदुनाथ सिंह को हराने में कामयाब हो गए हैं। लेकिन जदुनाथ सिंह ने अपनी बंदूक नहीं छोड़ी। दुश्मन पोस्ट पर कब्ज़ा कर पाता उससे पहले ही ब्रिगेडियर उस्मान की टुकड़ी वहां पहुंच गई और उस टुकड़ी को देखकर दुश्मन वहां से भाग खड़ा हुआ।
उस दिन, यानि छह फरवरी 1948 को जंग के मैदान में ही अदम्य साहस का परिचय देते हुए नायक जदुनाथ सिंह शहीद हो गए। मरणोपरांत नायक जदुनाथ सिंह को सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। नायक जदुनाथ सिंह को मेरठ मंथन और हर भारतीय दिल से नमन करते हैं। जय हिंद।
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