Actor Ramesh Deo Biography | कई सालों तक बॉलीवुड में काम करने वाले रमेश देव जी की पूरी कहानी जानिए
Actor Ramesh Deo Biography. ये कहानी है गुज़रे दौर के एक ऐसे शानदार कलाकार की जिसने मराठी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी दमदार एक्टिंग से बहुत ज़बरदस्त पहचान बनाई। नाम है इनका रमेश देव। हर बड़े स्टार के साथ इन्होंने काम किया। लेकिन हिंदी सिनेमा में इन्हें कभी भी वो मुकाम हासिल ना हो सका जिसका ख्वाब हर एक कलाकार देखता है।
Ramesh Deo - Photo: Social Media |
Meerut Manthan पर आज पेश है ज़बरदस्त एक्टर रहे Ramesh Deo की कहानी। रमेश देव साहब अब हमारे बीच में नहीं है। लेकिन उनको समर्पित हमारा ये पेशकश आप दर्शकों को पसंद आएगा। Actor Ramesh Deo Biography.
रमेश देव जी का शुरूआती जीवन
रमेश देव जी का जन्म 30 जनवरी सन 1929 को हुआ था। जगह थी महाराष्ट्र का कोल्हापुर शहर। रमेश देव मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले थे। दअरसल, सालों पहले इनके पूर्वज छत्रपति साहू महाराज के बुलावे पर राजस्थान के जोधपुर से महाराष्ट्र के कोल्हापुर आकर बस गए थे।
पेशे से इनके पुरखे अपने दौर के दिग्गज इंजीनियर थे। कहा जाता है कि जोधपुर पैलेस के चीफ आर्किटेक्ट रमेश देव जी के पड़दादा ही थे। कोल्हापुर आने के बाद रमेश देव जी के पड़दादा छ्त्रपति साहू महाराज के चीफ इंजीनियर बन गए।
किस्मत फिल्मों में ले ही आई
रमेश देव जब छोटे थे तो इनके माता-पिता चाहते थे कि ये बड़े होकर आर्मी जॉइन करें। लेकिन इनकी किस्मत इन्हें ले गई एक्टिंग की तरफ। और एक्टिंग में ये किस तरह आए, ये किस्सा भी कम दिलचस्प नहीं है। दरअसल, इनके पिता पृथ्वीराज कपूर साहब के बहुत बड़े फैन थे।
एक दफ़ा अपने पिता के साथ ये भी पृथ्वीराज कपूर की एक फिल्म की शूटिंग देखने पहुंच गए। किस्मत कैसे अपना खेल खेलती है उसकी एक मिसाल देखिए। जिस फिल्म की शूटिंग होनी थी उसमें काम करने वाला एक चाइल्ड आर्टिस्ट उस दिन सेट पर पहुंचा ही नहीं था।
पृथ्वीराज कपूर के साथ पहली फिल्म
फिल्म के डायरेक्टर की नज़र नन्हे रमेश देव पर पड़ी और उसने रमेश देव से पूछा। क्यों बच्चे, तू फिल्म में काम करेगा। रमेश ने अपने पिता की तरफ देखा। पिता ने हामी भरी तो रमेश देव ने डायरेक्टर से कहा कि ज़रूर करूंगा। उस फिल्म में रमेश का एक ही सीन था और एक ही डायलॉग था।
जिसमें वो पृथ्वीराज कपूर से टकरा जाते हैं और पृथ्वीराज इनसे कहते हैं कि बेटा, सामने देखकर चला करो। तब ये पृथ्वीराज कपूर से बोलते हैं कि मैं तो देखकर ही चल रहा था। लेकिन आप जैसी हस्ती सामने आ गई तो टकरा गया।
कॉलेज ग्रुप के साथ वो शानदार दिन
पहली फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर काम करने के कई सालों बाद तक ये फिल्मों में पूरी तरह से नहीं आए थे। ये कोल्हापुर में एक कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। कॉलेज की एक लड़की पर इंप्रेशन बनाने के लिए ये उसे फिल्म की शूटिंग दिखाने ले जाना चाहते थे।
लेकिन इन्हें पता था कि अगर ये बात किसी को पता चल गई तो फिर बहुत बातें बनेंगी। इन्होंने कॉलेज के अपने और आठ दस दोस्तों को भी उस लड़की के साथ ले लिया और इन सबको फिल्म की शूटिंग दिखाने लेकर चले गए।
दिनकर पाटिल ने कराई शुरूआत
जब ये शूटिंग देखने फिल्म के सेट पर अपने दोस्तों के साथ थे तो इन पर नज़र पड़ी मराठी फिल्मों के बड़े प्रोड्यूसर दिनकर पाटिल की। दिनकर पाटिल ने इनके ग्रुप को देखा तो उन्हें लगा कि उनकी फिल्म में मौजूद जूनियर आर्टिस्ट्स पहलवान टाइप के हैं।
अगर कॉलेज का ये ग्रुप उनकी फिल्म में जूनियर आर्टिस्ट की हैसियत से आ जाए तो फिल्म ज़्यादा बढ़िया लगेगी। दिनेश पाटिल ने रमेश देव से कहा कि क्यों ना इस फिल्म में तुम और तुम्हारे दोस्त थोड़ी एक्टिंग भी कर लें। ये सभी राज़ी हो गए।
ग्रुप की लड़कियों को दिनेश पाटिल ने उस दिन 10 रुपए दिए और लड़कों को आठ रुपए। इत्तेफाक से दिनेश पाटिल ने रमेश देव से एक लंबा चौड़ा डायलॉग भी बुलवाया था। और इस तरह बतौर जूनियर आर्टिस्ट रमेश देव साहब के करियर की शुरूआत हो गई।
हीरो बनने का देखने लगे ख्वाब
जूनियर आर्टिस्ट की हैसियत से रमेश देव ने कुछ और मराठी व हिंदी फिल्मों में काम किया। लेकिन साल 1955 में रिलीज़ हुई राजा परांजपे की फिल्म अंधाला मागतो एक डोला में ये पहली दफा विलेन के रोल में दिखे।
इस फिल्म के बाद मराठी फिल्मों में ये अच्छी तरह से इस्टैब्लिश हो गए। लेकिन हिंदी फिल्मों में नाम कमाना अभी बाकी था। साथ ही साथ, ये फिल्मों में हीरो बनने का ख्वाब भी देखने लगे थे।
इस फिल्म से हीरो बनने का ख्वाब हुआ पूरा
हीरो बनने का रमेश देव का ख्वाब 1959 में रिलीज़ हुई फिल्म सता जनमाची सोबती से पूरा हुआ। दरअसल, इस फिल्म के प्रोड्यूसर की लड़ाई हीरो से हो गई थी और हीरो ने ये फिल्म छोड़ दी थी।
हीरो के जाने के बाद प्रोड्यूसर ने इनसे हीरो का रोल निभाने के लिए कहा। अचानक मिला ये ऑफर इन्हें थोड़ा अजीब लगा और इन्होंने इनकार कर दिया।
लेकिन जब उस फिल्म के सिनेमैटोग्राफर ने इनसे कहा कि फिल्म में हीरो बनने का मौका मिल रहा है। इसे मत गवाओं। तो इन्होंने वो ऑफर स्वीकार कर लिया। और इस तरह से मराठी फिल्मों में बतौर हीरो इनके करियर का आगाज़ भी हो गया।
जब चाय वाले कर दी बेइज्ज़ती
मगर इसी दौरान इन्हें एक बहुत बुरा तजुर्बा भी हुआ। दरअसल, अपने कुछ साथियों के साथ ये एक चाय की दुकान पर चाय पीने पहुंचे। चाय वाले ने गंदे कपों में इन्हें चाय दे दी। इस पर इनके साथ के एक आदमी ने उस चाय वाले से कहा, अरे क्या कर रहे हो। जानते नहीं ये कौन है। ये रमेश देव है। बहुत बड़े हीरो।
इस पर वो चाय वाला बोला,"कार से उतरा है तो ये हीरो हो गया। हीरो तो इन्हें कहते हैं।" और ये कहते हुए उस चाय वाले ने दिलीप कुमार और राज कपूर की तस्वीरों की तरफ इशारा किया जो उसने अपनी दुकान में लगाई थी।
रमेश देव जी की पहली हिंदी फिल्म
उस चाय वाले की ये बातें रमेश देव जी को बहुत बुरी लगी। उन्होंने सोचा कि जब उनके अपने शहर के लोग ही उन्हें नहीं पहचानते तो फिर केवल मराठी फिल्मों में काम करने का क्या फायदा। मैं हिंदी फिल्मों में भी काम करूंगा।
और फिर ये पहुंचे राजश्री प्रॉडक्शन। राजश्री प्रॉडक्शन ने अपनी फिल्म आरती में इन्हें शशिकला के पति का रोल दे दिया। इस तरह हिंदी सिनेमा में भी इनकी एक मजबूत शुरूआत हो गई। धीरे-धीरे लोगों ने इन्हें पहचानना शुरू कर दिया।
थिएटर और टीवी पर भी किया काफी काम
रमेश देव ने अपने करियर में लगभग 350 हिंदी फिल्मों में काम किया और लगभग 250 मराठी फिल्मों में काम किया। इसके अलावा इन्होंने कई दूसरी भारतीय भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया।
इनमें सबसे ज़्यादा गुजराती और राजस्थानी फिल्में हैं। और केवल फिल्मों में ही नहीं, रमेश देव ने टीवी पर भी खूब काम किया। साथ ही साथ थिएटर भी इन्होंने काफी किया।
ऐसे हुई थी पत्नी से पहली मुलाकात
फिल्मों में काम करने के दौरान ही इनकी मुलाकात नलिनी सर्राफ से हुई थी जो कि इनकी ही तरह एक एक्ट्रेस थी। जिस ज़माने में ये नलिनी सर्राफ से मिले थे उस ज़माने में ये फिल्मों में बतौर विलेन ज़्यादा काम कर रहे थे। नलिनी से किसी ने कहा था कि ज़रा इनसे दूर ही रहें।
लेकिन एक दिन ट्रेन में रमेश देव और नलिनी सर्राफ की मुलाकात हुई जो शुरुआती गलतफ़हमियों के बाद आखिरकार दोस्ती में बदल गई। आगे चलकर दोनों के बीच नज़दीकियां बढ़ी और साल 1963 में इन दोनों ने शादी कर ली। रमेश देव से शादी करने के बाद नलिनी सर्राफ ने अपना नाम बदलकर सीमा देव रख लिया।
दोनों बेटे भी जुड़े हैं बॉलीवुड से
कई हिंदी और मराठी फिल्मों में इन दोनों ने साथ काम किया। बाद में दोनों ने अपनी खुद की एक प्रोडक्शन कंपनी भी शुरू की जिसका नाम रखा गया रमेश देव प्रोडक्शन्स। रमेश देव ने कुछ फिल्में भी डायरेक्ट की थी। साथ ही साथ अपनी प्रोडक्शन कंपनी से इन्होंने कुछ मराठी सीरियल्स भी बनाए थे।
रमेश देव और सीमा देव के दो बेटे हैं। एक का नाम है अजिंक्य देव, जो कि अपने माता-पिता की ही तरह एक्टर है। दूसरे का नाम है अभिनय देव जो कि फिल्म डायरेक्टर है। सुपरहिट फिल्म डेल्ही बेल्ली के डायरेक्टर रमेश देव के छोटे बेटे अभिनय देव ही थे।
अमर रहेंगे रमेश देव
रमेश देव हमेशा कहते थे कि खूब जीना चाहते हैं। लेकिन वो एक सेहतमंद लाइफ ही जीना चाहते हैं। वो नहीं चाहते कि ज़िंदगी के आखिरी वक्त पर वो बीमार पड़ जाएं और दूसरों पर बोझ बन जाएं। ईश्वर ने रमेश देव की इस ख्वाहिश को हमेशा सम्मान दिया। 2 फरवरी सन 2022 को रमेश देव 93 साल की उम्र में ये दुनिया छोड़कर चले गए।
अचानक आए एक हार्ट अटैक के चलते उनका निधन हो गया। और इस तरह रमेश देव बिना किसी पर बोझ बने अपना सफर पूरा कर इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए रुखसत हो गए। Meerut Manthan रमेश देव को नमन करता है। जय हिंद।
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