Baba Sehgal Biography | First Indian Rapper बाबा सहगल की ज़िंदगी की पूरी कहानी जानिए
Baba Sehgal. आज के दौर में आप इन्हें शायद ना ही सुनते हों, लेकिन नब्बे के दौर के शुरुआती सालों में आपने इन्हें ज़रूर सुना होगा। कहा जाता है कि ये बाबा सहगल ही हैं जिन्हें भारत का पहला रैपर होने का खिताब हासिल है।
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First Indian Rapper Baba Sehgal - Photo: Social Media |
जिस दौर में संगीत पर पूरी तरह से बॉलीवुड का कब्ज़ा था। उस दौर में ये अकेले अपने दम पर भारत के लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए थे। ये बाबा सहगल ही थे जिन्होेंने रैप म्यूज़िक को भारत में इंट्रोड्यूज़ किया था।
Meeruth Manthan आज आपको First Indian Rapper Baba Sehgal की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। कैसे इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग करने और फिर एक बढ़िया सरकारी नौकरी पाने के बावजूद Baba Sehgal सब कुछ छोड़ छाड़कर म्यूज़िक में करियर बनाने मुंबई आ गए, ये सारी कहानी आज हम और आप जानेंगे।
बाबा सहगल का जन्म सन 1964 में लखनऊ शहर में हुआ था। माता-पिता ने इन्हें नाम दिया था हरजीत सिंह सहगल। छोटी उम्र से ही बाबा को किशोर कुमार के गीत बेहद पसंद आने लगे थे। किशोर कुमार को लेकर बाबा की दीवानगी का आलम ये था कि वो बड़े होकर किशोर कुमार की तरह एक गायक बनना चाहते थे।
उन दिनों किशोर कुमार का गाया गीत "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" इनका पसंदीदा गीत हुआ करता था। अक्सर इनके घर पर जब कोई मेहमान आता था तो इनकी मां इनसे मेहमान को गाना सुनाने के लिए कहती थी और बाबा बड़े शौक से किशोर दा का वही गीत मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू सुनाया करते थे।
नन्हे हरजीत का गाना सुनकर जब मेहमान तालियां बजाते थे और इनकी तारीफें किया करते थे तो इनका ये भरोसा काफी ज़्यादा बढ़ जाता था कि एक दिन ये मुंबई जाकर किशोर कुमार की तरह मनोरंजन जगत का एक बहुत बड़ा नाम बनेंगे।
बाबा थोड़े बड़े हुए तो इनका दाखिला एक स्कूल में करा दिया गया। इत्तेफाक से ये जितने पढ़ाई में अच्छे थे उतने ही बढ़िया ये स्कूल में होने वाली एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में भी थे।
अपने स्कूल के हर फंक्शन में ये हिस्सा लिया करते थे और उन फंक्शन्स में केवल सिंगिंग ही नहीं, ये एक्टिंग भी किया करते थे। उन्हीं दिनों इन्होंने ये तय कर लिया था कि मुंबई जाकर ये अपना नाम ज़रूर बदलेंगे।
इनके घर के लोग इन्हें प्यार से बब्बू कहकर पुकारा करते थे। तो शुरू में इन्होंने सोचा कि क्यों ना अपना नाम बब्बू सहगल कर लिया जाए।
हालांकि काफी विचार करने के बाद इन्होंने तय किया कि ये अपना नाम बब्बू सहगल नहीं रखेंगे बल्कि बाबा सहगल रखेंगे क्योंकि इनके सभी दोस्त इन्हें बाबा कहकर पुकारा करते थे। और इस तरह हरजीत सिंह सहगल बन गए बाबा सहगल।
बाबा जल्द से जल्द अपने सपने पूरा करने मुंबई आना चाहते थे। लेकिन माता-पिता के दबाव के चलते वो ऐसा कर नहीं पाए। चूंकि पढ़ाई लिखाई में तो ये अच्छे थे ही तो इन्हें नैनीताल की जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलॉजी में बीटैक में दाखिला मिल गया।
इन्होंने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटैक किया था। साल 1987 में ये जीबी पंत यूनिवर्सिटी से पास आउट हुए थे।इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद बाबा को लगा कि अब उन्हें मुंबई जाने और अपना सपना पूरा करने का मौका मिलेगा। लेकिन इनके पिता ये कभी नहीं चाहते थे कि ये मुंबई जाकर संघर्ष करें। पिता की फिक्र भी जायज़ थी।
वो सोचते थे कि अगर बेटे को मुंबई में कामयाबी नहीं मिली तो इसका जीवन बर्बाद हो जाएगा। इसलिए पिता ने इन पर दबाव बनाया कि ये कोई बढ़िया सी नौकरी करें और मुंबई जाने की ज़िद छोड़ दें। पिता की ख्वाहिश के सामने बाबा को झुकना ही पड़ा और इन्होंने इलाहबाद में एक नौकरी करनी शुरू कर दी।
इलाहबाद के बाद कुछ समय तक ये नैनी में भी एक नौकरी में रहे। उसके बाद इन्हें डेसू यानि दिल्ली इलैक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग में इंस्पैक्टर टैक्निकल की नौकरी मिल गई जो कि एक बहुत बढ़िया नौकरी थी। इनका काम था बिजली चोरी करने वाले लोगों के ठिकानों पर रेड मारना।
इनके घर वाले ये सोचकर खुश थे कि अब उनका बेटा सेटल हो गया है। लेकिन इनके मन में एक बेचैनी हमेशा रहती थी। ये अपनी नौकरी से बोर होने लगे। और आखिरकार जब इनकी वो बोरियत हद से ज़्यादा बढ़ गई तो इन्होंने वो फैसला लिया जिसने इनके घरवालों को फिक्र में डाल दिया।
कहना तो ये चाहिए कि उस वक्त बाबा ने अपनी ज़िंदगी का वो अहम फैसला लिया जब ये तय हुआ कि डेसू में इंस्पैक्टर टैक्निकल की नौकरी नहीं, ये इंडीपोप का एक बहुत बड़ा नाम बनेंगे।
हुआ कुछ यूं था कि एक दिन बाबा अपनी नौकरी फिनिश करके दिल्ली के अपने फ्लैट पर वापस लौट रहे थे। नौकरी से उनका मन बुरी तरह ऊब चुका था। बाबा ने तय कर लिया था कि अब वो किसी भी हाल में ये नौकरी और ज़्यादा नहीं कर सकते।
घर आकर बाबा ने अपनी मां को फोन किया और उन्हें बताया कि वो नौकरी छोड़कर मुंबई जा रहे हैं। इनकी बात सुनकर मां बुरी तरह घबरा गई। मां ने इन्हें काफी समझाने की कोशिश की।
लेकिन बाबा नहीं माने और ऑफिस में बिना बताए बाबा अपनी मारुति 800 कार लेकर दिल्ली से मुंबई के लिए निकल पड़े। ये वही कार थी जो इनके पापा ने इंजीनियरिंग पास करने के बाद तोहफे में दी थी।
इस कार की कहानी कुछ यूं है कि इनके पिता को लगता था कि ये कभी भी इंजीनियर नहीं बन पाएंगे। एक दिन उन्होंने ऐसे ही इनसे कह दिया कि अगर इन्होंने इंजीनियरिंग पास कर ली तो वो इन्हें एक कार गिफ्ट करेंगे।
1987 में जब बाबा ने इंजीनियरिंग कंप्लीट कर ली तो उसके तीन साल बाद यानि साल 1990 में इनके पिता ने अपने पीएफ के पैसों से इन्हें वो मारूति 800 कार गिफ्ट की थी।
पिता की गिफ्ट की उसी कार से बाबा सहगल अपनी किस्मत बदलने के लिए दिल्ली से मुंबई की तरफ चल पड़े।
अपने उस सफर में इन्होंने रात में इंदौर में पड़ाव डाला और फिर अगले दिन ये बढ़ चले और आखिरकार मुंबई पहुंच गए। मुंबई पहुंचकर ये अपने एक दोस्त के पास पहुंचे जिसका नाम अतुल चूड़ामणि था।
इत्तेफाक से इनका वो दोस्त मैग्नासाउंड नाम की एक कंपनी में मैनेजर की हैसियत से काम करता था जो कि उस दौर की इकलौती और सबसे बड़ी प्राइवेट म्यूज़िक कंपनी थी।
दो दिनों तक बाबा अपने उस दोस्त के घर पर ही ठहरे और उसके बाद वो एक घर में पेयिंग गेस्ट की तरह रहने लगे।
मुंबई में अपना ठिकाना बनाने के बाद बाबा सहगल ने अपना करियर बनाने की जद्दोजहद शुरू कर दी। चूंकि इनका दोस्त मैग्नासाउंड नाम की उस कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा था तो उस दोस्त की मदद से बाबा ने अपने दो एल्बम रिलीज़ किए।
एक का नाम था दिलरुबा और दूसरी एल्बम का नाम था अली बाबा। पर चूंकि साल 1990 में भारत में पोप कल्चर अपने पैर नहीं पसार पाया था और ना ही वो दौर प्राइवेट टीवी चैनल्स का था तो बाबा के शुरुआती दोनों एल्बम्स बुरी तरह से फ्लॉप रहे।
एल्बम फ्लॉप हुए तो मैग्नासाउंड कंपनी के मैनेजमेंट ने बाबा सहगल से कहा कि फिलहाल वो म्यूज़िक एल्बम बनाने में इनकी मदद नहीं कर पाएंगे। ये सुनकर बाबा को बड़ा अफसोस हुआ।
दूसरी तरफ इनके घरवाले भी परेशान थे। ये सोचकर कि आखिर उनका बेटा मुंबई में कर क्या रहा है। इनके पिता इन्हें फोन करके कहते थे कि तुम अगर वापस आकर फिर से अपनी दिल्ली वाली नौकरी जॉइन करना चाहो तो कर सकते हो।
अभी गुंजाइश है। पर चूंकि बाबा की किस्मत ने उन्हें संगीत की दुनिया में ले जाना था तो बाबा ने अपने पिता से साफ कह दिया कि चाहे कुछ भी हो जाए। वो वापस दिल्ली या लखनऊ नहीं लौटने वाले हैं।
बाबा ने पिता ये बात कह तो दी थी। लेकिन उन्हें अभी भी फिक्र इस बात की हो रही थी कि अब वो यहां मुंबई में क्या करेंगे। कैसे वो अपने सपनों को पूरा करेंगे और कैसे अपने घरवालों को ये यकीन दिला पाएंगे कि उनके अंदर वो ताकत है कि वो अपने सपनों को पूरा कर सकें।
बाबा इसी उधेड़बुन में फंसे ही थे कि इत्तेफाक से इनकी ज़िंदगी में एक ऐसी विदेशी चीज़ की एंट्री हुई जिसने इनकी किस्मत एकदम से और पूरी तरह से बदलकर रख दी।
हुआ कुछ यूं था कि बाबा सहगल मुंबई में अपने एक पड़ोसी के घर बैठे थे। उन दिनों भारत में पहली दफा एमटीवी चैनल प्रसारित होना शुरू हुआ था और इत्तेफाक से वो एमटीवी चैनल का भारत में दूसरा दिन था। बाबा के उस पड़ोसी के घर में टीवी था और बाबा और उनका पड़ोसी एमटीवी देख रहे थे।
तभी एमटीवी पर मशहूर इंग्लिश रैपर वनीला आइस का पॉप्युलर ट्रैक आइस आइस बेबी प्ले हो गया। वो गाना बाबा सहगल को बड़ा पसंद आया। उस गाने की धुन ने बाबा को बेहद प्रभावित किया और वो धुन बाबा के ज़ेहन में पूरी तरह से बस गई।
अगले दिन बाबा जुहू के सेंटोर होटेल पहुंचे और वहां उन्होंने एक कमरा किराए पर लिया। फिर होटेल के पूल के पास बैठकर बाबा कुछ लिखने लगे।
फाइनली जब बाबा ने अपना लेखन पूरा किया तो वो मैग्नासाउंड में अपने दोस्त के पास गए और उन्होंने पूरी कंपनी के सामने अपनी लिखी वो लाइनें सुनाई।
कंपनी को बाबा की वो लाइनें बेहद पसंद आई। कंपनी में मौजूद हर शख्स ने बाबा के लिए तालियां बजाई। मैग्नासाउंड कंपनी के डायरेक्टर ने बाबा से कहा कि वो उनकी इस एल्बम को रिकॉर्ड करेंगे। फिर लगभग दो महीने बाद बाबा ने ठंडा ठंडा पानी नाम की अपनी एल्बम रिलीज़ की जिसने धूम मचा दी।
बाबा की लोकप्रियता उस वक्त चरम पर पहुंच गई जब टाइम्स ऑफ इंडिया के फ्रंट पेज पर इनकी तस्वीर के साथ एक आर्टिकल छपा जिसका टाइटल था बाबा सहगल्स ठंडा ठंडा पानी क्रिएट्स वेव्स इन इंडियन म्यूज़िक इंडस्ट्री। इस तरह ठंडा ठंडा पानी बाबा का पहला पॉप्युलर सॉन्ग बना।
लगभग दो महीने बाद बाबा ने अपनी इसी एल्बम के एक गाने दिल धड़के का म्यूज़िक वीडियो शूट किया जिसमें पूजा बेदी नज़र आई थी। ये भारत का पहला प्राइवेट म्यूज़िक वीडियो था।
इस वीडियो के बाद तो बाबा भारत में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए। रेडियो और टीवी पर जितने भी म्यूज़िकल प्रोग्राम्स होते थे उनमें बाबा का ठंडा ठंडा पानी और दिल धड़के सॉन्ग बजने लगे।
अब तक बाबा का करियर चल निकला था। बैक टू बैक इनकी हर एल्बम सुपरहिट साबित हो रही थी। मैं भी मडोना, बाबा बचाओ ना, डॉक्टर ढींगरा। ये सब वो एल्बम्स थी जो बाबा के करियर को उन ऊंचाईयों पर ले गई जिनका अंदाज़ा शायद बाबा ने भी कभी नहीं लगाया होगा।
नाम बना तो बाबा सहगल क ोफिल्मों में भी काम मिलने लगा। 1998 में रिलीज़ हुई फिल्म मिस 420 में बाबा को एक्टिंग करने का मौका भी मिला।
हालांकि एज़ एन एक्टर ये इससे पहले यारों का यार नाम की फिल्म में काम कर चुके थे जो कि 1994 में बनी थी। लेकिन वो फिल्म कभी रिलीज़ ना हो सकी। इस तरह मिस 420 एक अभिनेता के तौर पर बाबा की पहली फिल्म बनी।
इसी फिल्म में बाबा ने एक सॉन्ग गाया था जिसका टाइटल था आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा। इस सॉन्ग में उनके साथ अनु मलिक ने भी जुगलबंदी की थी। ये सॉन्ग भी काफी लोकप्रिय हुआ था। सुपरहिट तमिल फिल्म रोज़ा का पॉप्युलर ट्रैक रुक्मणी रुक्मणी का हिंदी वर्ज़न भी बाबा ने ही गाया था।
लोकप्रियता मिली तो बाबा के पास दौलत भी खूब आई। बाबा ने बॉम्बे में अपना घर खरीद लिया। बैंक बैलेंस भी खूब बनाया और साथ ही साथ लोन पर एक प्रॉपर्टी भी इन्होंने बॉम्बे में खरीद ली। लेकिन तभी भारत में आर्थिक मंदी आनी शुरू हो गई। शेयर बाज़ार क्रैश हो गया।
फिल्म इंडस्ट्री पर अंडरवर्ल्ड की काली नज़रें पड़ने लगी। बाबा भी अंडरवर्ल्ड के निशाने पर आ गए। जिस कंपनी से बाबा के पास रॉयल्टी आती थी वो बंद हो गई। बाबा के बुरे दिन शुरू हो गए। तंग होकर बाबा ने भारत छोड़ने का फैसला कर लिया।
अंडरवर्ल्ड से जान छुड़ाने के लिए बाबा भारत छोड़कर सिंगापुर में बस गए। वहां इन्होंने काफी निवेश किया। लेकिन बाबा का वो सारा निवेश भी डूब गया। पैसे खत्म हुए तो बाबा ने भारत वापस लौटने का फैसला किया। वो भारत लौटे और लखनऊ में मौजूद अपने घर पहुंच गए।
बाबा बुरी तरह टूट चुके थे।लेकिन नाउम्मीदी के उस दौर में उम्मीद की किरण बनकर ज़ीटीवी बाबा की ज़िंदगी में आया। बाबा को ज़ीटीवी से एक शो होस्ट करने का ऑफर मिला जिसमें उनके साथ को-होस्ट जावेद जाफरी थे। बाबा ने वो शो किया और उस शो को दर्शकों ने बेहद पसंद किया।
इसी दौरान बाबा फिल्म इंडस्ट्री में काम मांगने के लिए म्यूज़िक डायरेक्टर्स के पास भी जाते थे। लेकिन लोग उन्हें काम देने की बजाय झूठे दिलासे देते थे। एक दफा बाबा एक शो करने हैदराबाद गए थे। हैदराबाद से लौटते वक्त बाबा एयरपोर्ट पर बैठे थे।
वो ज़िंदगी की उधेड़-बुन से काफी परेशान हो गए थे। इत्तेफाक से तेलुगू फिल्मों के मेगास्टार चिरंजीवी भी एयरपोर्ट पर थे। जैसे ही उनकी नज़र बाबा पर पड़ी तो वो बाबा के पास आए और उन्होंने बाबा से उनके उदास होने की वजह पूछी।
बाबा ने चिरंजीवी को अपने दिल की सारी बात बताई। चिरंजीवी ने बाबा से कहा, "तुम फिक्र मत करो। मैं तुम्हें कल फोन करूंगा।" ये कहकर चिरंजीवी वहां से चले गए।
बाबा को लगा जैसे सब उन्हें झूठा दिलासा देते हैं शायद चिरंजीवी भी वैसे ही उन्हें झूठा दिलासा देकर चले गए हैं। लेकिन अगले दिन बाबा के घर पर सच में चिरंजीवी का फोन आया।
चिरंजीवी ने बाबा से कहा कि तुम मेरी फिल्म रिक्शावोडू में एक गीत गा रहे हो। बाबा का दिल खुशियों से भर गया। अगले दिन बाबा फिर से हैदराबाद पहुंच गए।
वहां बाबा ने रिक्शावोडू में एक गीत गाया जिसक टाइटल था रूप तेरा मस्ताना नी क्यू डेरा वेस्ताना। वो सॉन्ग सुपर डूपर हिट हो गया। आज तक लोग उस सॉन्ग को गुनगुनाते हैं।
इस गाने के बाद तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री ने बाबा के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए। बाबा को तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री से एक से बढ़कर एक ऑफर्स आने लगे। बाबा ने भी कई बढ़िया तेलुगू और तमिल प्रोजेक्ट्स में काम किया।
उन्होंने ना केवल तेलुगू फिल्मों में गाने गाए बल्कि एक्टिंग भी की। और ना केवल तेलुगू, बल्कि तमिल, कन्नड़ और बंगाली फिल्मों में भी बाबा ने काम किया। लेकिन एक दिन फिर अचानक बाबा सहगल सब कुछ छोड़ छाड़कर अमेरिका चले गए।
दरअसल Baba Sehgal संगीत की प्रॉपर ट्रेनिंग लेना चाहते थे। लगभग दो सालों तक Baba Sehgal अमेरिका में रहे। वहां उन्होंने केवल म्यूज़िक ही नहीं सीखा बल्कि ब्रिटनी मैरीज़ कृष्णा नाम के एक अंग्रेजी नाटक में कैमियो भी किया था।
फिर जब दो साल के बाद बाबा एक बार फिर से भारत वापस लौटे तो इनके लिए यहां का माहौल पूरी तरह से बदल गया। साउथ इंडस्ट्री से भी बाबा को कुछ खास ऑफर्स नहीं मिले।
इसी दौरान 2007 में बाबा सहगल को बिग बॉस में वाइल्ड कार्ड एंट्री के लिए ऑफर आया। चूंकि बिग बॉस के मेकर्स ने बाबा को मोटा अमाउंट ऑफर किया था तो इन्होंने बिग बॉस के पहले सीज़न में हिस्सा ले ही लिया।
बिग बॉस से जब बाबा सहगल बाहर आए तो न्यूज़ में इनका काफी ज़िक्र हुआ। बाबा न्यूज़ का हिस्सा बने तो साउथ इंडस्ट्री ने इनके लिए अपने दरवाज़े फिर से खोल दिए।
बाबा ने कई साउथ फिल्मों में विलेन की हैसियत से काम किया। बाबा ने हैदराबाद में ही रहना भी शुरू कर दिया था। सोशल मीडिया के दौर में भी बाबा ने खूब नाम कमाया। ट्विटर हो या इंस्टाग्राम या फिर फेसबुक। बाबा के वन और टू लाइनर्स को लोग बड़ा पसंद करने लगे।
सोशल मीडिया के ज़रिए भी बाबा ने काफी पैसा कमाया। इन दिनों बाबा खुद का एक यूट्यूब चैनल चलाते हैं जिसका नाम है बाबा सहगल ऑफिशियल्स। अपने यूट्यूब चैनल पर बाबा अपने सॉन्ग अपलोड करते हैं।
बाबा की उम्र अब 50 साल से ज़्यादा हो चुकी है। बाबा ने कभी शादी नहीं की। नब्बे के दशक के शुरुआती सालों में बाबा ने जो लोकप्रियता हासिल की थी वैसी लोकप्रियता भले ही वो फिर दोबारा कभी हासिल ना कर पाए हों।
लेकिन उनके फैंस आज भी उन पर उतना ही प्यार लुटाते हैं जितना की पहले लुटाते थे। Meeruth Manthan बाबा सहगल को सैल्यूट करता है और ईश्वर से उनके बेहतर भविष्य के लिए प्रार्थना करता है। जय हिंद।
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