Saroj Khan Biography | बेतहाशा गरीबी से लड़कर बॉलीवुड में अपना मुकाम बनाने वाली सरोज खान की पूरी कहानी
Saroj Khan Biography. फिल्म इंडस्ट्री में जब डांस और कोरियोग्राफी की बात होती है तो ये बात सरोज खान का ज़िक्र हुए बिना एकदम अधूरी मानी जाती है।
अपनी कड़ी मेहनत और लगन के दम पर सरोज खान ने मुबंई में अपना एक बहुत ही शानदार मुकाम बनाया था। मगर फिर एक दिन सरोज खान सब कुछ छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गई।
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Saroj Khan Biography |
Meerut Manthan आज आपको लैजेंड्री कोरियोग्राफर सरोज खान की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। संघर्ष की आग में तपकर खुद को सोना बनाने वाली सरोज खान की कहानी आपको भी ज़रूर प्रेरित करेगी। Saroj Khan Biography.
शुरूआती जीवन (Saroj Khan Biography)
सरोज खान सन 1948 में मुंबई में पैदा हुई थी। इनकी पढ़ाई भी मुंबई से हुई थी। माता-पिता ने इन्हें नाम दिया था निर्मला। इनके पिता का नाम था किशनचंद साधु सिंह और माता का नाम था नोनी सिंह। इनके पिता देश के विभाजन के बाद कराची से मुंबई आए थे।
इनके पिता एक अमीर बिजनेसमैन थे। लेकिन भारत आकर उन्हें अपना जीवन एकदम नए सिरे से शुरू करना था। उन्होंने मुंबई के माहिम एक चॉल में एक कमरे का घर किराए पर लिया जो कि माहिम पुलिस स्टेशन से एकदम सटा हुआ था।
एक डॉक्टर ने बदल दी ज़िंदगी
निर्मला जब तीन साल की थी तो इनकी गर्भवती मां ने इन्हें एक दिन अपनी परछाई को देखकर हाथ हिलाते हुए इन्हें देखा। मां को लगा कि बेटी का दिमागी संतुलन ठीक नहीं है।
वो इन्हें डॉक्टर के पास ले गई। लेकिन मां का यही फैसला इनकी ज़िंदगी बदलने वाला फैसला भी साबित हुआ। वो डॉक्टर जिसके पास निर्मला की मां इन्हें लेकर गई थी।
उसकी बॉलीवुड के लोगों से बढ़िया जान पहचान थी। उस डॉक्टर ने निर्मला की मां से कहा कि घबराईए मत। आपकी बेटी पागल नहीं, बेहद प्रतिभावान है। आपकी बेटी को डांस करने का शौक है।
आपको चाहिए कि आप इसे फिल्मों में काम कराने ले जाएं। आपको बढ़िया कमाई हो सकती है।डॉक्टर की ये बात सुनकर निर्मला के माता-पिता बोले कि उनकी तो फिल्म इंडस्ट्री में किसी से कोई जान-पहचान नहीं है।
भला हम किसके पास निर्मला को लेकर जाएं। ऐसे में उस डॉक्टर ने उनकी मदद की और अपनी जान-पहचान के ज़रिए डॉक्टर ने निर्मला को फिल्मों में बतौर चाइल्ड एक्टर काम दिला दिया।
एक्टिंग से की थी करियर की शुरुआत
पहली दफा निर्मला नज़र आई थी अभिनेत्री श्यामा की फिल्म नज़राना में उनके बचपन का किरदार निभाते हुए। नन्ही निर्मला पर उस मूवी में एक गाना फिल्माया गया था। एज़ ए चाइल्ड आर्टिस्ट निर्मला की दूसरी फिल्म थी 1953 में आई आगोश जिसमें ये उस ज़माने की मशहूर चाइल्ड आर्टिस्ट बेबी नाज़ के साथ एक गीत में नज़र आई थी।
उस गीत में बेबी नाज़ ने भगवान कृष्ण के बचपन का और निर्मला ने राधा के बचपन का किरदार निभाया था और गीत के बोल थे बांसुरिया काहे बजाई। यहां एक रोचक बात ये है कि नन्ही निर्मला को राधा वाली अपनी कॉस्ट्यूम पसंद नहीं आ रही थी और इसलिए वो रो भी रही थी। माता-पिता ने जैसे-तैसे निर्मला को चुप कराकर गाने की शूटिंग पूरी कराई थी।
साल 1951 में आई फिल्म बड़ी बहू में भी निर्मला ने एज़ एन चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया था और उस फिल्म में ये अभिनेत्री निम्मी की बेटी के रोल में नज़र आई थी। इसके अलावा इक्का दुक्का अन्य फिल्मों में भी निर्मला ने काम किया था।
जब बैकग्राउंड डांसर बनी सरोज खान
हर चाइल्ड आर्टिस्ट के करियर में 10 से 15 साल की उम्र का एक दौर आता है जब उसे फिल्मों में काम मिलना मुश्किल हो जाता है। निर्मला की ज़िंदगी में भी ऐसा वक्त आया था।
पर चूंकि निर्मला डांस बहुत बढ़िया किया करती थी तो इन्हें लोगों ने सलाह दी कि क्यों ना तुम ग्रुप डांसर बन जाओ।गरीबी से निर्मला परेशान ही थी। इसलिए उन्होंने लोगों की ये सलाह मान भी ली।
फिर साल 1958 में आई फिल्म हावड़ा ब्रिज में इन्होंने पहली बार बतौर ग्रुप डांसर काम किया था। उस गाने में इन्होंने लड़कों की वेशभुषा धारण की हुई थी।
बड़ी मुश्किल में आई ज़िंदगी
सन 1963 में आई ताज महल फिल्म की मशहूर कव्वाली चांद का बदन में ये मीनू मुमताज़ के बराबर में बैठी नज़र आई थी। अपने करियर में निर्मला हर दिन एक कदम आगे बढ़ती जा रही थी।
मगर इसी दौरान निर्मला के पिता की मौत हो गई और परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। निर्मला से छोटी उनकी 4 बहनें और एक भाई था। हालात ये थे कि घर में एक वक्त का खाना जुटाना भारी होने लगा था।
इनकी मां इन्हें और इनके भाई बहनों को ये कहकर बहका दिया करती थी कि स्टोव पर भिगोना चढ़ा दिया है। जैसे ही खाना बनेगा मैं बुला लूंगी। इतने तुम लोग सो जाओ।
बची-खुची भजिया खाकर किया गुज़ारा
इनके घर के पास ही एक मलयाली भजिया वाला अपनी दुकान लगाता था। वो भजियावाला इनके परिवार की माली हालात से अच्छी तरह वाकिफ था। शाम को वो अपनी बची हुई भजिया निर्मला की मां को देकर चला जाता था।
इस तरह वो बची हुई भजिया खाकर इनके परिवार ने कई दिनों तक गुज़ारा किया था। उधर निर्मला लोगों से उधार मांगकर मां की मदद के लिए पैसे लाया करती थी। एक दफा तो निर्मला ने शशि कपूर साहब से भी दो सौ रुपए उधार लिए थे।
मास्टर सोहन लाल से वो पहली मुलाकात
अब तक निर्मला ये तय कर चुकी थी कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का ही हिस्सा बनना है। वहीं अपने डांस कौशल से वो फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान भी बना चुकी थी। इत्तेफाक से इसी दौर में साउथ के मशहूर डांस गुरू सोहन लाल और हीरा लाल बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में भी काम करने आ गए थे।
भाईयों की इस जोड़ी ने साउथ फिल्म इंडस्ट्री में पहले ही अपना डंका बजा दिया था। वहीं बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में भी आते ही इन दोनों का बढ़िया नाम हो गया। भाईयों की ये जोड़ी फ्लैट नंबर 9 नाम की एक फिल्म में भी डांस मास्टर की हैसियत से काम कर रही थी।
फिल्म के एक गाने में निर्मला भी हेलेन के साथ डांस परफॉर्म कर रही थी। मास्टर सोहन लाल हेलन संग निर्मला को भी डांस स्टैप सिखा रहे थे। इस बीच निर्मला की लर्निंग कैपेसिटी देखकर मास्टर सोहन लाल उनसे बड़ा इंप्रैस हुए। उन्होंने निर्मला को अपनी असिस्टेंट बना लिया।
वैजयंतीमाला को सिखाया डांस
मास्टर सोहन लाल की असिस्टेंट के तौर पर निर्मला को सबसे पहले वैजयंतीमाला को डांस सिखाने का मौका मिला। वो फिल्म थी कॉलेज गर्ल और वैजयंती के अपोज़िट उस फिल्म में शम्मी कपूर थे। शुरू में तो वैजयंतीमाला को यकीन ही नहीं हुआ कि उन्हें 12 साल की उम्र की एक लड़की से डांस सीखना होगा।
वो थोड़ा नाराज़ भी हुई। मगर जब मास्टर सोहन लाल ने वैजयंती को भरोसा दिलाया कि ये लड़की बहुत टैलेंटेड है तो वो निर्मला से डांस सीखने को राज़ी हुई। और यहीं से निर्मला फिल्म इंडस्ट्री के लोगों के बीच मशहूर हो गई थी।
सरोज खान का पहला गाना
मास्टर सोहन लाल के साथ आने के बाद निर्मला का फिल्म इंडस्ट्री में बढ़िया नाम होने लगा था। फिल्म इंडस्ट्री के बड़े लोग इन्हें जानने-पहचानने लगे थे। मास्टर सोहन लाल के साथ इन्होंने कई बड़ी फिल्मों में असिस्टेंट डांस मास्टर की तरह काम करना किया था।
एक बार मास्टर सोहन लाल को राज कपूर की फिल्म संगम के एक गीत की कोरियोग्राफी करने के लिए फिल्म की यूनिट संग यूरोप जाना पड़ा।जबकी इसी दौरान मास्टर सोहन लाल दिल ही तो है नाम की एक और फिल्म के लिए भी कोरियोग्राफी कर रहे थे।
मास्टर सोहन लाल के जाने के बाद दिल ही तो है के प्रोड्यूसर ने निर्मला से कहा कि उन्हें अर्जेंटली अपनी फिल्म के एक गाने को तैयार करना है। इसलिए तुम इसकी कोरियोग्राफी करो।
सुपरहिट रहा वो गाना
शुरू में तो निर्मला काफी घबरा गई। क्योंकि इससे पहले ना तो उन्होंने कभी ये सोचा था कि वो खुद किसी दिन अपने दम पर कोई गाना कोरियोग्राफ करेंगी। और ना ही ऐसा करने का मौका इन्हें कभी मिला था।
मगर जब इनसे कहा गया कि घबराओ मत, तुम्हारी मदद के लिए डायरेक्टर पीएल संतोषी वहां मौजूद रहेंगे तो इनकी जान में जान आई।
और बाद में उनकी मदद से निर्मला ने बड़ी ही कुशलता से वो गाना कोरियोग्राफ भी कर दिया। उस गीत के बोल थे निगाहें मिलाने को जी चाहता है। और ये गीत आज भी पसंद किया जाता है।
मास्टर सोहन लाल से इश्क और फिर शादी
मास्टर सोहन लाल के सम्पर्क में आने के बाद निर्मला ने अपना नाम बदलकर सरोज रख लिया था। हालांकि सरोज खान वो बाद में बनी थी। उस वक्त तक वो निर्मला से केवल सरोज ही बनी थी।
मास्टर सोहन लाल के साथ अधिक वक्त गुज़ारने के चलते निर्मला उर्फ सरोज उनकी शख्सियत से प्रभावित होने लगी थी।ये जानते हुए भी कि मास्टर सोहन लाल पहले से शादीशुदा हैं, सरोज उन्हें अपना दिल दे बैठी।
एक दिन सरोज और सोहन लाल ने शादी भी कर ली। शादी के बाद सरोज एक बेटे की मां बनी। बेटे का नाम उन्होंने राजू रखा। उनको एक बेटी भी हुई। लेकिन छोटी उम्र में ही उनकी वो बेटी दुनिया छोड़ गई। सोहन लाल से ही सरोज को तीसरी बेटी भी हुई जिसका नाम उन्होंने कुक्कू रखा।
मास्टर सोहन लाल से टूट गया रिश्ता
सोहन लाल से सरोज का रिश्ता उस वक्त टूट गया जब उन्होंने सरोज के बच्चों को अपना नाम देने में असमर्थता जताई। सोहन लाल पहले से शादीशुदा थे और पहली पत्नी से उनके चार बच्चे भी थे।
ऐसे में उनके लिए सरोज के बच्चों को नाम देना मुसीबत मोल लेना जैसा ही था। एक दिन आपसी सहमति से सरोज और सोहन लाल ने अपनी राहें जुदा कर ली। हालांकि प्रोफेशनली वो एक-दूजे के साथ काम करते रहे।
रोशन खान से शादी कर बनी सरोज खान
कुछ महीनों बाद सरोज की मुलाकात रोशन खान नाम के एक बिजनेसमैन से हुई। रोशन खान भी पहले से शादीशुदा थे और 2 बेटियों के पिता थे। रोशन खान ने ही एक दिन सरोज को शादी के लिए प्रपोज़ किया था। सरोज ने रोशन खान से इस शर्त पर शादी कर ली कि उनके दोनों बच्चों को वो अपना नाम देंगे।
इस तरह सरोज बन गई सरोज खान। और उनके बेटे राजू बन गए राजू खान। राजू खान आज के दौर के एक बड़े कोरियोग्राफर हैं। रोशन खान से भी सरोज खान को एक बेटी हुई थी।
सरोज खान का करियर फ्रंट
सरोज खान के करियर फ्रंट की बात करें तो इनके करियर में अपने दौर की खूबसूरत अदाकारा साधना ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ये उन दिनों की बात है जब मास्टर सोहन लाल से ये अलग ही हुई थी और इन्होंने दूसरी शादी भी नहीं की थी। सरोज साधना को कई फिल्मों में डांस सिखा चुकी थी।
साधना ने जब फिल्म डायरेक्शन में कदम रखा और अपनी पहली फिल्म गीता मेरा नाम डायरेक्ट की तो फिल्म के गाने में डांस के लिए उन्होंने सरोज खान से ही बात की। मगर सरोज खान ने ये कहकर असमर्थता जताई कि उनके पास कोरियोग्राफर असोसिएशन का कार्ड नहीं है।
ऐसे में वो इंडीपेंडेंटली किसी फिल्म के लिए कोरियोग्राफी नहीं कर सकेंगी। उस वक्त साधना ने सरोज खान के लिए अपने पैसों से कोरियोग्राफर्स असोसिएशन का कार्ड बनवाया। इस तरह गीता मेरा नाम एज़ ए कोरियोग्राफर सरोज खान की पहली फिल्म थी।
और मशहूर होती चली गई
गीता मेरा नाम के बाद तो सरोज खान ने कई फिल्मों में एज़ ए कोरियोग्राफर काम किया। मगर जब सुभाष घई ने साल 1983 की अपनी फिल्म हीरो में इन्हें कोरियोग्राफी करने का मौका दिया तो वहां से इन्हें शोहरत मिलनी शुरू हुई। इस फिल्म के बाद तो सरोज खान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
फिल्म इंडस्ट्री में सरोज खान के नाम का डंका उस वक्त बजा जब इन्होंने तेजाब फिल्म का फेमस ट्रैक एक दो तीन माधुरी दीक्षित पर कोरियोग्राफ किया। उसके बाद तो हर कोई सरोज खान से ही अपने फिल्म के गाने कोरियोग्राफ कराना चाहता था।
सरोज खान के अवॉर्ड्स
बात अगर फिल्मफेयर अवॉर्ड्स की करें तो तेज़ाब(1989) के एक दो तीन, चालबाज़(1990) के ना जाने कहां से आई है, सैलाब(1991) के हमको आजकल है इंतज़ार, बेटा(1993) के धक धक करने लगा, खलनायक(1994) के चोली के पीछे क्या है, हम दिल दे चुके सनम(2000) के निंबुड़ा निंबुड़ा, देवदास(2003) के डोला रे डोला और गुरू(2008) के बरसो रे मेघा गीतों के लिए सरोज खान को बेस्ट कोरियोग्राफी का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। इस तरह रिकॉर्ड आठ दफा सरोज खान फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम करने में सफल रही।
ये भी एक रिकॉर्ड है
ये जानकर आपको हैरानी होगी कि सरोज खान का गीत एक दो तीन देखकर ही फिल्मफेयर ने बेस्ट कोरियोग्राफी का अवॉर्ड देना शुरू किया था। उससे पहले फिल्मफेयर कोरियोग्राफी में कोई अवॉर्ड नहीं देता था। इस तरह फिल्मफेयर का पहला बेस्ट कोरियोग्राफर अवॉर्ड जीतने वाली सरोज खान बनी।
कई नेशनल अवॉर्ड भी जीते
फिल्मफेयर के अलावा भी और कई ढेरों अवॉर्ड सरोज खान को मिले थे। तमिल फिल्म श्रंगारम(2006) के लिए इन्हें कोरियोग्राफी का नेशनल अवॉर्ड दिया गया था।
इससे पहले देवदास के डोरा रे सॉन्ग के लिए भी इन्हें नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका था। 2008 में जब वी मेट फिल्म के सॉन्ग ये इश्क हाय के लिए भी सरोज खान को नेशनल अवॉर्ड प्रदान किया गया था।
सरोज खान ने टीवी पर कई डांस शोज़ होस्ट भी किए थे। इसके अलावा देशभर के कई शहरों में सरोज खान की डांस एकेडेमी भी चलती थी। देश के बाहर हॉलैंड में भी सरोज खान का एक डांस स्कूल था।
कभी नर्स भी थी सरोज खान
सरोज खान की निज़ी ज़िंदगी के बारे में तो हम आपको लगभग हर बात बता ही चुके हैं। लेकिन उनसे जुड़ी इक्का दुक्का बातें और भी हैं जो हमें लगता है आपको बतानी ज़रूरी हैं।
सरोज खान की ज़िंदगी में एक दौर वो भी आया था जब उन्हें ये लगता था कि फिल्मों में उनका भविष्य अच्छा नहीं होगा।ऐसे में घर की ज़िम्मेदारियां उठाने के लिए उन्होंने छह महीने तक बाकायदा नर्सिंग की ट्रेनिंग ली थी।
फिर मुंबई के ही एक अस्पताल में एज़ ए नर्स नौकरी भी की थी।सरोज खान ने टाइप राइटिंग और शॉर्ट हैंड का कोर्स करके मुंबई की एक कंपनी में टेलिफोन रिसेप्शनिस्ट की हैसियत से भी नौकरी की थी। कुछ वक्त तक सरोज खान ने मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर भी काम किया था।
कहानी भी लिखती थी सरोज खान
सरोज खान को फिल्म की कहानियां लिखने का भी बड़ा शौक था। यही वजह है कि उनकी लिखी कई कहानियों ने फिल्मों की शक्ल ली थी। उनकी लिखी पहली फिल्म थी साल 1990 में आई वीरू दादा और इस फिल्म में धर्मेंद्र ने काम किया था।
सरोज खान की लिखी दूसरी फिल्म थी खिलाड़ी जिसमें अक्षय कुमार, दीपक तिजोरी और आयशा जुल्का जैसी बड़ी स्टारकास्ट थी।
ये फिल्म एक बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी। इसके अलावा सरोज खान ने हम हैं बेमिसाल, नज़र के सामने, छोटे सरकार, दिल तेरा दीवाना, दावा, जज मुजरिम, भाई भाई और होते होते प्यार होगा नाम की फिल्में भी लिखी थी।
सबको रुला कर चली गई सरोज खान
कई साल लंबे चले अपने करियर में सरोज खान ने हर उस मुकाम को हासिल किया था जिसका ख्वाब कोई भी कोरियोग्राफर देखता है। सरोज खान से डांल की तालीम लेने वाले खुद को बेहद खुशनसीब मानते थे।
सरोज खान के डांस स्टैप्स ने करोड़ों लोगों के कदम थिरकने पर मजबूर कर दिए।मगर 3 जुलाई 2020 को 71 साल की उम्र में जब सरोज खान की मौत हुई तो उनका हर एक फैन सदमे में आ गया।
सरोज खान इस दुनिया से विदा हो गई। लेकिन अपने हुनर की जो अमानत वो यहां छोड़ गई हैं, वो उन्हें हमेशा उनके चाहने वालों के दिलों में ज़िंदा रखेंगी।
सरोज खान को Meerut Manthan का सैल्यूट
Meerut Manthan Saroj Khan जी को याद करते हुए उन्हें नमन करता है। सरोज खान इस वक्त जिस भी दुनिया में होंगी, यकीनन लोगों को कदम थिरकाना ही सिखा रही होंगी। Meerut Manthan फिल्म इंडस्ट्री को किए गए उनके योगदान के लिए उन्हें सैल्यूट भी करता है। जय हिंद।
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