Facts You Don't Know About Choreographer Saroj Khan | सरोज खान की 10 अनसुनी कहानियां
Facts You Don't Know About Choreographer Saroj Khan. सरोज खान भले ही अब इस दुनिया में ना हों। लेकिन उनकी डांसिंग स्टाइल ने ढेरों सुपरहिट फिल्मों के ज़रिए लोगों की स्मृतियों में उन्हें अमर कर दिया है। सरोज खान महज़ एक डांस मास्टर ही नहीं थी। कईयों के लिए वो प्रेरणा का स्रोत थी और कईयों के लिए समर्पण की प्रतिमा थी।
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Saroj Khan - Photo: Social Media |
सरोज खान की बायोग्राफी तो Meerut Manthan पहले ही कह चुका है। उस बायोग्राफी का लिंक आपको इस Article में भी मिल जाएगा। फिलहाल हम आपको सरोज खान की ज़िंदगी से जुड़ी कुछ अनसुनी और रोचक कहानियां बताएंग। Facts You Don't Know About Choreographer Saroj Khan.
1st Fact
सरोज खान का असली नाम निर्मला नागपाल था। सरोज खान जब मास्टर सोहनलाल की असिस्टेंट बनकर साथ डांस मास्टरी करने लगी थी तो उन्होंने अपना नाम निर्मला से बदलकर सरोज रख लिया था। मास्टर सोहनलाल से शादी के बाद भी इनका नाम केवल सरोज ही था।
मास्टर सोहनलाल से अलग होने के कई साल बाद निर्मला उर्फ सरोज ने रोशन खान नाम के एक पठान से शादी की थी। उन्हीं से शादी करने के बाद निर्मला ने अपने नाम सरोज के साथ खान टाइटल लगाना शुरू कर दिया था।
2nd Fact
सरोज खान के दूसरे पति रोशन खान भी पहले से शादीशुदा थे। ये रोशन खान ही थे जिन्होंने सरोज को शादी के लिए प्रपोज़ किया था। सरोज इस शर्त पर रोशन खान से शादी करने के लिए तैयार हुई थी कि शादी के बाद सरोज खान के बच्चे जो कि मास्टर सोहनलाल से उन्हें पैदा हुए थे। रोशन खान को उन्हें अपना नाम देना होगा।
रोशन खान ये बात मान गए और इस तरह सरोज खान के बेटे राजू बन गए राजू खान। राजू खान भी आज एक बहुत बड़े कोरियोग्राफर हैं। रोशन खान की पहली पत्नी की मौत हो चुकी थी और पहली पत्नी से उन्हें दो बेटियां थी। रोशन खान की मौत के बाद भी सरोज खान ने उनकी दोनों बेटियों को हमेशा प्यार दिया और उनकी परवरिश की।
3rd Fact
सरोज खान फिल्म इंडस्ट्री की दिग्गज कोरियोग्राफर थी। लेकिन इस बात से बहुत ही कम लोग वाकिफ हैं कि तीन साल की छोटी सी उम्र में सरोज खान ने एज़ ए चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। सन 1951 में आई नज़राना नाम की फिल्म में इन्होंने अभिनेत्री श्यामा के बचपन का रोल निभाया था।
इसके बाद 1953 की फिल्म आग़ोश में निर्मला ने उस ज़माने की फेमस चाइल्ड आर्टिस्ट बेबी नाज़ के साथ एक गाने पर परफॉर्म किया था। उस गाने में निर्मला ने राधा और बेबी नाज़ ने कृष्ण के बचपन का किरदार निभाया था।
4th Fact
चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से काम शुरू करने वाली सरोज खान जब 10-12 साल की हुई तो इन्हें फिल्मों में काम मिलना बंद हो गया। ऐसे में भविष्य की चिंता इन्हें सताने लगी। पिता का साया तो पहले ही सिर से उठ चुका था।
घर में बेतहाशा ग़रीबी भी थी। पर चूंकि निर्मला को भगवान ने डांस तोहफे में दिया था तो फिल्म इंडस्ट्री के इनके दोस्तों ने इन्हें बतौर बैकग्राउंड डांसर फिल्मों में काम करने की एडवाइज़ दी।
दोस्तों की वो एडवाइज़ मानते हुए निर्मला ने पहली दफा साल 1958 की फिल्म हावड़ा ब्रिज के फेमस सॉन्ग आइए मेहरबां में एज़ ए बैकग्राउंड डांसर काम किया। सन 1963 में आई फिल्म ताज महल की मशहूर कव्वाली चांद का बदन में निर्मला अभिनेत्री मीनू मुमताज़ के बराबर में बैठी नज़र आई थी।
5th Fact
सरोज खान ने ये कभी नहीं सोचा था कि वो फिल्मों में कोरियोग्राफर बनेंगी। ये तो मास्टर सोहनलाल की असिस्टेंट बनकर ही खुश थी।
लेकिन एक दिन जब मास्टर सोहनलाल राज कपूर की फिल्म संगम की यूनिट संग यूरोप चले गए तो फिल्म दिल ही तो है के प्रोड्यूसर्स ने सरोज खान से कहा कि मास्टर सोहनलाल की जगह तुम उनकी फिल्म के लिए सॉन्ग कोरियोग्राफ करो।
तुम्हारी मदद के लिए डायरेक्टर पीएल संतोषी मौजूद रहेंगे। इसलिए तुम्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है। तब सरोज खान ने फिल्म दिल ही तो है का गीत निगाहें मिलाने को जी चाहता है कोरियोग्राफ किया।
ये गीत ज़बरदस्त हिट रहा। इसी गीत की सफलता के बाद सरोज खान को फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मिलनी शुरू हो गई थी।
6th Fact
बतौर इंडीपेंडेंट कोरियोग्राफर सरोज खान की पहली फिल्म थी गीता मेरा नाम। इस फिल्म में अभिनेत्री साधना ने उन्हें कोरियोग्राफी करने के लिए इनवाइट किया था। शुरू में सरोज खान ने साधना को ये कहते हुए इन्कार कर दिया था कि उनके पास कोरियोग्राफर असोसिएशन का कार्ड नहीं है।
ऐसे में साधना ने अपने पैसों से सरोज खान के लिए कोरियोग्राफर्स असोसिएशन का कार्ड बनवाया। गीता मेरा नाम सफल रही और इसके गीतों की कोरियोग्राफी भी काफी पसंद की गई।
7th Fact
ये बात भी गौर करने लायक है कि पहले फिल्मफेयर की तरफ से कोरियोग्राफी में किसी तरह का अवॉर्ड नहीं दिया जाता था। लेकिन जब सरोज खान के कोरियोग्राफ किए तेजाब फिल्म के सॉन्ग एक दो तीन ने हर तरफ धूम मचा दी तो साल 1989 में फिल्मफेयर ने बेस्ट कोरियोग्राफी का अवॉर्ड देना भी शुरू कर दिया।
और फिल्मफेयर बेस्ट कोरियोग्राफी का पहला अवॉर्ड सरोज खान के खाते में गया। इसके बाद साल 1990 में चालबाज़ के किसी के हाथ ना आएगी ये लड़की और सैलाब के हमको आज कल है इंतज़ार गाने के लिए 1991 में सरोज खान को ही बेस्ट कोरियोग्राफी का अवॉर्ड दिया गया।
8th Fact
अपने करियर में सरोज खान ने ढेरों अवॉर्ड्स जीते थे। 1989 से लेकर 1991 तक इन्होंने लगातार तीन दफा फिल्मफेयर अवॉर्ड्स अपने नाम किए थे। और फिर 1992 को छोड़कर 1993 और 1994 में भी इन्होंने ही फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते। फिर साल 2000 और 2003 व 2008 में सरोज खान ने फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किए।
इस तरह अपने करियर में सरोज खान ने कुल आठ दफा फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किए। फिल्मफेयर के अलावा सरोज खान ने साल 2003 में देवदास के डोला रे, 2006 में तमिल फिल्म श्रंगारम के सभी गीतों के लिए और 2008 में जब वी मेट के ये इश्क हाय सॉन्ग के लिए नेशनल अवॉर्ड भी जीता था।
9th Fact
सरोज खान के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया था जब इन्हें लगने लगा था कि फिल्मों में इनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। ये उन दिनों की बात है जब ये महज़ 10 या 12 साल की ही थी।
उस वक्त सरोज खान ने छह महीने का एक नर्सिंग कोर्स किया था और फिर उसके बाद कुछ दिनों के लिए एक अस्पताल में नर्स की हैसियत से नौकरी भी की थी।
इतना ही नहीं, सरोज खान ने टाइप राइटिंग और शॉर्ट हैंड का कोर्स भी किया था। इस कोर्स के बाद इन्होंने मुंबई की एक कंपनी में बतौर टेलिफोन रिसेप्शनिस्ट नौकरी भी की थी।
पर चूंकि किस्मत ने इन्हें फिल्म इंडस्ट्री के लिए ही पैदा किया था तो लौटकर ये वापस फिल्म इंडस्ट्री ही गई और वहां बेहद सफल भी हुई।
10th Fact
ये जानकर भी आपको हैरानी होगी कि सरोज खान कहानियां लिखने की भी बहुत शौकीन रही हैं। और ये फिल्मों के लिए कहानियां भी लिख चुकी हैं। अक्षय कुमार की सुपरहिट फिल्म खिलाड़ी की कहानी सरोज खान ने ही लिखी थी।
हालांकि फिल्मों में कहानी के लिए इनका नाम सरोज खान ना लिखकर एस खान लिखा जाता था। खिलाड़ी के अलावा सरोज खान ने हम हैं बेमिसाल, छोटे सरकार, दिल तेरा दीवाना, दावा, भाई भाई और होते होते प्यार हो गया की कहानी भी लिखी थी।
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