Yesteryears Actor Suresh | Suhani Raat Dhal Chuki Song में नज़र आए इस अभिनेता की कहानी जानिए
पत्नी की बेवफाई का मारा एक वक्त का स्टार एक्टर, जो खामोशी से दुनिया छोड़ गया। Suresh. गुज़रे ज़माने का वो बड़ा स्टार, जो आज पूरी तरह से भुलाया जा चुका है। 1930 के दौर के बॉलीवुड में Suresh Child Artist हुआ करते थे।
1940 के दशक में हीरो बन गए। और देखते ही देखते स्टार भी बन गए। और फिर वो वक्त भी आया जब सुरेश का स्टारडम खत्म हो गया। वो कैरेक्टर रोल्स निभाने लगे। ये एन.ए.सुरेश के नाम से भी जाने जाते थे।
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Yesteryears actor Suresh |
Meerut Manthan पर आज आपके लिए पेश है फिल्म इंडस्ट्री द्वारा पूरी तरह से भुला दिए जा चुके अभिनेता N.A.Suresh की कहानी, जिन्हें लोग Suresh नाम से अधिक जानते हैं।
इंटरनेट की दुनिया में Suresh के नाम को लेकर बड़ी गलतफहमी है। बहुत से लोग कहते हैं कि उनका रियल नेम नसीम अहमद था। लेकिन ये बात गलत है। उनका नाम नाज़िम अहमद था। 13 नवंबर 1928 को गुरदासपुर में नाज़िम अहमद का जन्म हुआ था।
एक और गलत बात जो नाज़िम अहमद उर्फ सुरेश के बारे में फैली है वो ये कि, इन्होंने मात्र 1 साल की उम्र में वी. शांताराम की फिल्म "गोपाल कृष्ण" में भगवान कृष्ण की भूमिका निभाई थी।
अगर आप इंटरनेट पर इस फिल्म का पोस्टर देखेंगे तो आपको पता लगेगा कि इसमें जो बच्चा भगवान कृष्ण के किरदार में दिखा था वो 1 साल का बिल्कुल भी नहीं था।
वो 5-6 साल का दिखता है। ये कन्फ्यूज़न शायद इसलिए फैला होगा क्योंकि इत्तेफ़ाक से उस बच्चे का नाम भी सुरेश ही था। लेकिन वो बच्चा मराठी था।
Suresh के बारे में इंटरनेट पर फैली एक और गलत जानकारी कुछ यूं है कि 1937 की निशान-ए-जंग व दादा साहेब फाल्के की आखिरी फिल्म गंगावतरण(1937) में भी Suresh ने काम किया था। लेकिन निशान-ए-जंग में सुरेश नहीं थे। गंगावतरण में जो सुरेश हैं उनका नाम सुरेश परदेसी है। और वो ये सुरेश नहीं हैं।
इन सुरेश का नाम जिस फिल्म में सबसे पहले मिलता है वो है 1939 की रंजीत मूवीटोन की ठोकर। "ठोकर" ए.आर.कारदार ने डायरेक्ट की थी।
कारदार ही वो डायरेक्टर थे जिन्होंने आगे भी सुरेश को कई फिल्मों में बतौर हीरो लिया था। सुरेश को स्टार बनाने में कारदार का बहुत बड़ा योगदान था।
रंजीत मूवीटोन की ही फिल्म दिवाली(1940) में भी सुरेश ने काम किया था। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट सुरेश ने बॉम्बे टॉकीज़ की बंधन(1940), अनजान(1941), नया संसार(1941) और बसंत(1942) में भी काम किया था। बसंत फिल्म का एक गीत बड़ा हिट हुआ था।
उस गीत के बोल थे "तुमको मुबारक हो ऊंचे महल ये। हमको तो प्यारी हमारी गलियां।" ये गाना सुरेश, जो तब मास्टर सुरेश के नाम से जाने जाते थे, व मुमताज़ शांति पर फिल्माया गया था। इस फिल्म में सुरेश ने मुमताज़ शांति के भाई का किरदार निभाया था।
1946 में आई "सोना चांदी" वो पहली फिल्म थी जिसमें सुरेश हीरो के रोल में नज़र आए थे। 1948 की रंग महल में भी सुरेश हीरो थे। और उसमें हीरोइन थी सुरैया। एज़ ए हीरो सुरेश की पहली सुपरहिट फिल्म थी 1949 की दुलारी।
ये फिल्म भी ए.आर.कारदार ने ही डायरेक्ट की थी। कारदार ने आगे भी सुरेश को दास्तान(1950), जादू(1951), दिवाना(1952) व यास्मीन(1955) नामक फिल्मों में हीरो के तौर पर कास्ट किया था। ये सभी फिल्में हिट साबित हुई थी।
साल 1950 में Suresh पाकिस्तान चले गए थे। वहां सुरेश ने "दो किनारे" व "ईद" नामक दो फिल्मों में काम किया। लेकिन पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री का भविष्य शायद उन्हें दिख गया था। इसलिए साल 1952 में सुरेश वापस भारत लौट आए।
ए.आर.कारदार की फिल्मों के अलावा सुरेश ने गूंज, चार चांद, रिश्ता, क़ैदी, अजी बस शुक्रिया व सट्टा बाज़ार जैसी बाहर के बैनरों की फिल्मों में भी काम किया।
सुरेश ने नलिनी जयवंत, मधुबाला, सुरैया, श्यामा, उषा किरण, निगार सुल्ताना, वैयजयंतीमाला, गीता बाली, पद्मिनी व विजया चौधरी जैसी हीरोइनों के अपोज़िट काम किया।
उस वक्त की लगभग हर बड़ी हीरोइन के साथ सुरेश ने पेअर-अप हो चुके थे। 1961 में आई तीन उस्ताद नाम की फिल्म में सुरेश की हीरोइन थी अमीता।
ये सुरेश ही थे जिन पर रफी साहब का गाया व नौशाद साहब का कंपोज़ किया, तथा शकील बदायुंनी जी का लिखा बहुत ही खूबसूरत गीत "सुहानी रात ढल चुकी। ना जाने तुम कब आओगे" पिक्चराइज़ किया गया था।
उस दौर के और भी कुछ लोकप्रिय गीत थे जो सुरेश पर ही फिल्माए गए थे। जैसे "मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां।(दुलारी)", "तस्वीर बनाता हूं तेरी ख़ून-ए-जिगर से(दिवाना)", "बेचैन नज़र बेताब जिगर, ये दिल है किसी का दीवाना(यास्मीन)" व "तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे(सट्टा बाज़ार।
1960 के दौर में सुरेश का करियर ढलान पर आने लगा। जब बतौर हीरो सुरेश की फिल्में चलनी बंद हो गई तो वो चरित्र किरदारों व सहायक भूमिकाओं की तरफ शिफ्ट हो गए।
इस नई पारी में सुरेश ने आपकी परछाईयां, अमन, दुनिया, नन्हा फरिश्ता, मेरे हमसफ़र, राजा रानी और रेशम की डोरी जैसी कुछ फिल्मों में काम किया। बतौर एक्टर सुरेश की आखिरी फिल्म थी 1976 में आई अदालत। और इस फिल्म में भी उनका रोल बहुत छोटा सा था।
अपने पूरे करियर में सुरेश ने लगभग 45 फिल्मों में काम किया था। एक्टिंग के बाद सुरेश ने फिल्में प्रोड्यूस करने का फैसला किया। लेकिन ये फैसला उनके लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ।
बतौर प्रोड्यूसर सुरेश ने "गंगा और सूरज" नाम की एक फिल्म शुरू की। ये एक मल्टीस्टारर फिल्म थी। इसमें सुनील दत्त, शशि कपूर, रीना रॉय, सुलक्षणा पंडित व अनवर हुसैन जैसे बड़े कलाकार थे। अनवर हुसैन इस फिल्म के मुख्य विलेन थे।
फिल्म काफी शूट हो चुकी थी। लेकिन एक दिन अनवर हुसैन बीमार पड़ गए। फिल्म रुक गई। अनवर हुसैन जब ठीक नहीं हुए तो उनकी जगह कादर खान को फिल्म में लिया गया। कई सीन्स दोबारा शूट करने पड़े।
सुरेश की जीवनभर की कमाई इस फिल्म में लग गई। लेकिन फिर भी उनके सामने फिल्म पूरी नहीं हो सकी। सुरेश इस वजह से बहुत तनावग्रस्त रहने लगे। और 14 जनवरी 1979 को मात्र 50 साल की उम्र में सुरेश का निधन हो गया।
सुरेश की मौत की एक और वजह बताई जाती है। ब्लॉग "बीते हुए दिन" के शिशिर कृष्ण शर्मा को दिए एक इंटरव्यू में एक्ट्रेस शम्मी, जिन्हें शम्मी आंटी के नाम से जाना जाता था, उन्होंने बताया था कि 1970 में उनकी शादी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर सुल्तान अहमद से हुई थी।
मगर सात साल बाद ही शम्मी आंटी को सुल्तान अहमद से अलग होना पड़ा। क्योंकि सुल्तान अहमद के जीवन में कोई दूसरी महिला आ गई थी। वो दूसरी महिला थी एक्टर सुरेश की पत्नी।
शिशिर कृष्ण जी अपनी रिसर्च के दौरान डायरेक्टर रमेश गुप्ता से भी मिले थे। रमेश गुप्ता जी ने ही शिशिर कृष्ण जी को सुरेश के बारे में और कुछ बातें भी बताई थी। बकौल रमेश गुप्ता, गंगा और सूरज फिल्म को पहले सुल्तान अहमद ही डायरेक्ट करने वाले थे।
इस फिल्म के चलते सुल्तान अहमद अक्सर सुरेश के घर आने-जाने लगे। इस दौरान सुल्तान अहमद और सुरेश की पत्नी के बीच नज़दीकियां बढ़ने लगी। और एक दिन सुरेश की पत्नी ने घर छोड़ दिया।
वो सुल्तान अहमद के साथ रहने लगी। इस वजह से शम्मी आंटी ने भी सुल्तान अहमद को छोड़ दिया था। जबकी सुल्तान अहमद को प्रोड्यूसर बनाने वाली शम्मी आंटी ही थी।
"हीरा" व "गंगा की सौगंध" जैसी फिल्मों में शम्मी आंटी ने ही अपना पैसा लगाया था। जबकी इन फिल्मों से नाम सुल्तान अहमद का हुआ था। सुल्तान अहमद ने इन फिल्मों का डायरेक्शन किया था। प्रोड्यूसर के तौर पर भी उन्हीं का नाम गया था।
लेकिन वास्तव में फिल्मों में पैसा शम्मी आंटी का लगा था। डाकुओं की कहानियों पर बनी "हीरा" व "गंगा की सौगंध", दोनों ही फिल्में सफल रही थी।
शायद यही वजह रही थी कि सुरेश ने भी अपनी फिल्म "गंगा और सूरज" के डायरेक्शन के लिए सुल्तान अहमद को चुना था। क्योंकि "गंगा और सूरज" भी डाकुओं की ही कहानी थी।
एक तरफ जहां सुरेश आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। तो वहीं अपनी पत्नी की बेवफाई से भी उनका दिल बुरी तरह टूट गया था। ये जानकारी किसी के पास नहीं है कि पत्नी के अलावा सुरेश के परिवार में कोई और था कि नहीं।
पत्नी के चलते जब सुल्तान अहमद से सुरेश का रिश्ता बहुत खराब हो गया तो उन्होंने अपनी फिल्म "गंगा और सूरज" के डायरेक्शन का ज़िम्मा "ए.सलाम" को दे दिया।
किसी तरह ये फिल्म ए.सलाम ने पूरी भी की। और साल 1980 में जब "गंगा और सूरज" रिलीज़ हुई तब तक सुरेश उर्फ नाज़िम अहमद को इस दुनिया से गए एक साल हो चुका था।
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