Singer Bhupinder Singh Biography | संगीत को नापसंद करने वाले भूपिंदर सिंह इतने शानदार गायक कैसे बने?

Singer Bhupinder Singh Biography. नाम गुम जाएगा। चेहरा ये बदल जाएगा। मेरी आवाज़ ही पहचान है। ग़र याद रहे। आज ये गीत उस वक्त सार्थक साबित हो गया जब भूपिंदर सिंह इस दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कहकर चले गए। अपनी गज़लों और अपने गीतों से लाखों दिलों में अपनी स्थाई जगह बनाने वाले भूपिंदर सिंह की कमी कभी पूरी नहीं हो सकेगी। और ना ही कभी कोई उनकी जगह ले पाएगा। 

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Singer Bhupinder Singh Biography

Meerut Manthan आज महान गायक भुपिंदर सिंह जी की कहानी कहेगा। भुपिंदर सिंह जी के बारे में आज बहुत कुछ हम और आप जानेंगे। Singer Bhupinder Singh Biography.

शुरुआती जीवन

6 फरवरी सन 1940 को भूपिंदर सिंह जी का जन्म पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम था नत्था सिंह जी और वो अमृतसर के खालसा कॉलेज में संगीत के प्रोफेसर थे। भूपिंदर सिंह जी का शुरुआती जीवन अमृतसर में ही गुज़रा। ये काफी छोटे ही थे जब इनके पिता अपने पूरे परिवार संग दिल्ली आ गए। 

चूंकि पिता संगीत के टीचर थे तो वो इन्हें भी बचपन से ही संगीत की शिक्षा दिया करते थे। बचपन में भूपिंदर सिंह का मन संगीत शिक्षा में बहुत ज़्यादा नहीं लगता था। ये अपने मुहल्ले के बच्चों संग खेलना-कूदना चाहते थे। लेकिन इनके पिता ज़बरन इन्हें संगीत की तालीम दिया करते थे। 

संगीत से करते थे नफरत

चूंकि पिता बहुत सख्त मिजाज़ थे तो कई दफा इनकी पिटाई भी हो जाती थी। पिता की सख़्ती का आलम ये था कि उस ज़माने में भूपिंदर सिंह को संगीत से नफरत भी होती थी। हालांकि गुज़रते वक्त के साथ संगीत के प्रति ये नफरत अपने आप ही मुहब्बत में भी बदलती चली गई। संगीत के साथ साथ भूपिंदर सिंह जी अपनी पढ़ाई भी कर रहे थे। 

1962 में बदली तकदीर

चूंकि इस वक्त तक गाना गाने का इन्हें बहुत शौक हो चुका था तो स्कूल-कॉलेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अक्सर गाया करते थे। इनकी आवाज़ और गायकी का इनका अंदाज़ लोगों को खूब पसंद भी आता था। 

इन्हें मकबूलियत मिलनी शुरु हो गई। नाम हुआ तो ऑल इंडिया रेडियो में भी इन्हें गाने के मौके मिलने लगे। इसी बीच साल 1962 में कुछ ऐसा हुआ कि फिल्म इंडस्ट्री के दरवाज़े इनके लिए अपने आप ही खुलते चले गए। 

मदन मोहन को पसंद आई आवाज़

दरअसल, आकाशवाणी दिल्ली के एक अधिकारी के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। उस कार्यक्रम में भुपिंदर सिंह ने कई शानदार गीत गाए थे। इत्तेफाक से उस कार्यक्रम में उस ज़माने में संगीत जगत का बहुत बड़ा नाम मदन मोहन भी मौजूद थे। 

मदन मोहन जी को भूपिंदर सिंह जी की आवाज़ बहुत पसंद आई। उन्होंने भूपिंदर सिंह से कहा कि तुम मुंबई आओ। मैं तुम्हें फिल्मों में गाने का मौका दूंगा। मदन मोहन जैसी बड़ी हस्ती से इतना खूबसूरत आश्वासन मिलने पर भूपिंदर सिंह बहुत खुश हुए और कुछ दिनों बाद पहुंच गए मुंबई।

हकीकत में गाया पहला गाना

मदन मोहन जी ने भूपिंदर सिंह से किया अपना वादा निभाया और साल 1964 में आई फिल्म हकीकत में इन्हें एक गाना गाने का मौका दिया। वो गीत था, होके मजबूर मुझे, उसने भुलाया होगा। उस गीत में मोहम्मद रफी, मन्ना डे और तलत महमूद जैसे धुरंधऱ गायकों की आवाज़ थी। 

और इन्हीं धुरंधरों के बीच भुपिंदर सिंह ने भी उस गीत की कुछ लाइनें बड़ी ही खूबसूरती से गाई थी। उस ज़माने में ये गीत बहुत ज़्यादा मशहूर हुआ था। हालांकि भूपिंदर सिंह जी को कुछ खास पहचान नहीं मिल पाई थी। 

बहुत शानदार गिटार बजाते थे भूपिंदर

भूपिंदर सिंह जी गिटार बहुत अच्छा बजाते थे। वो अक्सर कई नामी संगीतकारों के साथ एज़ ए गिटारिस्ट काम किया करते थे। आर डी बर्मन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, नौशाद और ख्याम जैसे नामी संगीतकारों के साथ भूपिंदर सिंह जी ने फिल्मों का बैकग्राउंड म्यूज़िक तैयार कराया था। 

नौशाद साहब तो कहते भी थे कि गिटार बजाने के मामले में कोई भूपिंदर के आस-पास भी नहीं पहुंच सकता। कई हिंदी फिल्मों के गीतों में गिटार पर धुन को बहुत ही खूबसूरती से भूपिंदर सिंह जी ने ही छेड़ा था। जैसे कि साल 1973 में आई फिल्म हंसते ज़ख्म का गाना तुम जो मिल गए हो, तो ये लगता है। 

और 1973 में ही आई यादों की बारात का चुरा लिया है तुमने जो दिल को। हरे रामा हरे कृष्मा का दम मारो दम गीत अपने गिटार पोर्शन के लिए सारी दुनिया में मशहूर हुआ था। वो धुन भी भूपिंदर सिंह जी ने ही बजाई थी। और शोले फिल्म का महबूबा महबूबा गाने को भी भला कौन भूल सकता है। आपने भी इन सभी गीतों को कई कई बार सुना होगा। लेकिन आपको शायद ही आज से पहले ये पता हो की इन सभी गीतों में गिटार भूपिंदर सिंह जी ने ही बजाया था। 

कभी नहीं मिली तवज्ज़ो

भूपिंदर सिंह जी ने हिंदी फिल्मों में ढेरों ऐसे गीत गाए जो संगीत के शौकीनों ने बहुत पसंद किए। इन्होंने अपने कुछ प्राइवेट एल्बम्स भी रिलीज़ किए थे। लेकिन इतने हुनरमंद कलाकार होने के बावजूद भी फिल्म इंडस्ट्री की तरफ से भूपिंदर सिंह जी को बहुत ज़्यादा तवज्ज़ो कभी नहीं मिली। 

इस बात से तो कोई इन्कार नहीं कर पाएगा कि इनके करियर की शुरुआत उस दौर में हुई थी जब बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक गायक थे। और उन दिग्गज गायकों के बीच अपनी जगह बना पाना बेहद मुश्किल काम था। मगर  इस बात को भी हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा कि भूपिंदर सिंह जी को फिल्म इंडस्ट्री की तरफ से वैसा सपोर्ट कभी नहीं मिल पाया जैसा कि उन्हें मिलना चाहिए। 

बड़े दिल वाले थे भूपिंदर सिंह

भूपिंदर सिंह अक्सर कहा करते थे कि उन्हें जो भी काम मिला वो खुद उनके पास चलकर आया। वो कभी किसी के पास काम मांगने नहीं गए। इसलिए फिल्म इंडस्ट्री से उन्हें जितना भी मिला वो उससे बहुत खुश हैं। इस बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि भूपिंदर सिंह जी कितने बड़े दिल के इंसान थे। 

80 के दशक में भूपिंदर सिंह जी गज़ल गायकी की तरफ आ गए थे। इन्होंने कई खूबसूरत गज़लें गाई थी और इनकी गज़लें बहुत पसंद भी की गई थी। साल 1978 में इनकी एक गज़ल एल्बम रिलीज़ हुई थी जिसका नाम था वो जो शायर था। इस एल्बम की सभी गज़ल गुलज़ार साहब ने लिखी थी। 

भूपिंदर सिंह जी की ये गज़ल एल्बम बहुत पसंद की गई थी। इस एल्बम की एक और खास बात ये थी कि इसमें भूपिंदर सिंह जी ने गज़ल गायकी में स्पैनिश गिटार का इस्तेमाल किया था। और ऐसा करने वाले भूपिंदर सिंह जी पहले कलाकार थे।

Bhupinder Singh की निजी ज़िंदगी

भूपिंदर सिंह जी की निजी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो 80 के दशक के मध्य में इन्होंने बांग्लादेश की मशहूर गायिका मिताली मुखर्जी से शादी कर ली थी। मिताली से शादी करने के बाद भूपिंदर सिंह जी ने प्लेबैक सिंगिंग से खुद को दूर कर लिया था। इन दोनों का एक बेटा है जिसका नाम निहाल सिंह है और वो भी इनकी ही तरह एक संगीतकार है। 

बड़ी अनोखी है भूपिंदर सिंह की प्रेम कहानी

भूपिंदर सिंह और मिताली मुखर्जी की प्रेम कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल, भूपिंदर सिंह जी ने पहली दफा मिताली को दूरदर्शन के आरोही कार्यक्रम में गाते हुए सुना था। मिताली की आवाज़ इन्हें बहुत पसंद आई। दूसरी तरफ मिताली भी एक ऐसे परिवार से थी जो संगीत की दुनिया से जुड़ा था। 

किसी ज़माने में भूपिंदर जी ने एक बांग्ला गीत गाया था। मिताली जी ने वो गीत सुन रखा था और उन्हें भी भूपिंदर जी की आवाज़ बहुत पसंद आई थी।एक दफा किसी कार्यक्रम में भूपेंद्र सिंह और मिताली मुखर्जी की मुलाकात हुई थी। मिताली ने जब भूपिंदर जी को अपना परिचर दिया तो इन्होंने कहा कि मैं तो आपको जानता हूं। 

मैंने आपको दूरदर्शन पर सुना था। उस पहली मुलाकात के बाद दोनों की जान पहचान हो गई जो कुछ ही दिन में दोस्ती और फिर और कुछ दिनों में मुहब्बत में बदल गई। और आखिरकार एक दिन दोनों ने शादी कर ही ली। शादी के बाद भूपिंदर सिंह और मिताली मुखर्जी मिलकर लाइव शोज़ करने लगे थे। 

Bhupinder Singh को नमन

भूपिंदर सिंह जी अब इस दुनिया से जा चुके हैं। एक सीधा सादा लेकिन बेजोड़ गायक ज़िंदगी का अपना सफर पूरा कर खामोशी से विदा हो चुका है। लेकिन वो नग्‍में, वो गज़लें जिन्हें भूपिंदर सिंह जी ने अपनी आवाज़ दी थी। वो हमेशा उन्हें उनके चाहने वालों के दिलों और यादों में ज़िंदा रखेंगे। Meerut Manthan भूपिंदर सिंह को नमन करते हुए उन्हें सैल्यूट करता है। जय हिंद।

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