Salim Khan | Indore का वो हैंडसम नौजवान जो कभी Cricketer बनना चाहता था, लेकिन बन गया नामी Film Writer | Biography

Salim Khan. एक ऐसी शख्सियत जिसकी कलम से निकले शब्दों ने जब फिल्म की शक्ल ली तो कई रिकॉर्ड धराशायी हो गए। ऊपर वाले ने सलीम खान को किसी हीरो जैसी पर्सनैलिटी दी। लेकिन उन्होंने फिल्म लेखन में अपनी मंज़िल को तलाशा। 

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Salim Khan Biography - Photo: Social Media

इंदौर से मुंबई आकर अपनी मेहनत के दम पर इतना बड़ा नाम बने सलीम खान आज तीन सुपरस्टार्स के पिता भी हैं। तमाम फिल्मी कहानियां लिख चुके सलीम खान की खुद की कहानी भी किसी फिल्म से कम नहीं है।

Meerut Manthan आज Salim Khan की बड़ी ही दिलचस्प कहानी अपने दर्शकों को बताएगा। हमें पूरा यकीन है कि आप दर्शकों को Salim Khan की कहानी बेहद पसंद आएगी।

24 नवंबर सन 1935 को Salim Khan का जन्म ब्रिटिश भारत के इंदौर में हुआ था। कहा जाता है कि Salim Khan के दादा अनवर खान अफगानिस्तान के पठान थे और सन 1800 के मध्य में वो ब्रिटिश इंडियन आर्मी में नौकरी करने इंदौर आ गए थे। 

सलीम खान के पिता का नाम था अब्दुल राशिद खान और वो इंडियन इम्पीरियल पुलिस सेवा के अधिकारी थे। किसी ज़माने में वो इंदौर शहर के डीआईजी भी रह चुके थे। 

कुल मिलाकर एक भरे-पूरे और आर्थिक रूप से मजबूत परिवार में सलीम खान पैदा हुए थे। इंदौर में इनके पिता का 12 कमरों का मकान था। लेकिन कहते हैं ना, कि पैसे से आप सब कुछ खरीद सकते हैं। लेकिन खुशी नहीं खरीद सकते।

सलीम खान महज़ 5 साल के ही थे जब इनकी मां को टीबी की बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया। उस ज़माने में टीबी एक लाइलाज बीमारी थी। बीमारी का पता चलने के बाद सलीम खान की मां को किसी से भी मिलने नहीं दिया जाता था। 

5 साल की छोटी सी उम्र में ही सलीम खान अपनी मां से दूर हो गए थे। और जब सलीम महज़ 9 साल के थे तो उनकी मां ये दुनिया छोड़कर भी चली गई। 

फिर कुछ साल बाद जब सलीम खान मैट्रिक में आए तो इनके फाइनल एग्ज़ाम्स से पहले इनके पिता अब्दुल राशिद खान भी चल बसे। सलीम खान से बड़े इनके एक भाई थे और तीन बहनें थी। यानि भाई बहनों में सलीम खान सबसे छोटे थे।

बचपन से ही सलीम खान क्रिकेट के बहुत शौकीन थे। वो स्कूल की तरफ से क्रिकेट खेला करते थे। स्कूल के बाद कॉलेज में भी क्रिकेट के चलते सलीम खान का बहुत नाम हुआ था। और केवल क्रिकेट खेलने के लिए ही सलीम खान ने ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन में भी दाखिला लिया था। 

चूंकि सलीम खान बहुत बढ़िया क्रिकेट खेलते थे तो कॉलेज में इनका बढ़िया नाम हो गया था। सलीम खान क्रिकेटर बनने का ख्वाब भी देखने लगे। लेकिन वक्त गुज़रने के साथ ही इनके भीतर क्रिकेट की दीवानगी कम हुई और इन्हें पायलट बनने का शौक लग गया। 

बहुत ही कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि सलीम खान ने पायलट बनने की ट्रेनिंग भी ली थी और इन्हें तकरीबन 100 घंटे उड़ान भरने का एक्पीरियंस भी है। लेकिन कुछ महीनों बाद पायलट बनने का चस्का भी इनके सिर से उतर गया। 

इन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ये अपनी ज़िंदगी में आखिर करेंगे क्या। इसी दौरान इंदौर में फिल्म इंडस्ट्री की एक नामी शख्सियत के बेटे की शादी हुई। वो शख्स थे तारा चंद बड़जात्या। वही ताराचंद बड़जात्या जो राजश्री फिल्म्स के फाउंडर थे। 

हालांकि उस वक्त तक राजश्री फिल्म्स की स्थापना उन्होंने की नहीं थी। चूंकि सलीम खान के पिता डीआईजी अब्दुल राशिद खान अपने ज़माने में बहुत रसूखदार इंसान थे तो उनके घर भी ताराचंद बड़जात्या ने बेटे की शादी का न्यौता भेजा था। उस दिन सलीम खान उसी शादी में शरीक हुए थे। 

चूंकि ताराचंद बड़जात्या फिल्म इंडस्ट्री की नामी हस्ती थे तो बॉम्बे से फिल्म जगत के कई नामी लोग उस शादी में आए थे। तभी उस ज़माने के दिग्गज फिल्म प्रोड्यूसर के.अमरनाथ की नज़र सलीम खान पर पड़ी और उसी वक्त से सलीम खान की किस्मत बदलनी शुरू हो गई।

ताराचंद बड़जात्या के बेटे की शादी में के.अमरनाथ ने सलीम खान को मुंबई आने की सलाह दी। चूंकि सलीम खान की पर्सनैलिटी ज़बरदस्त थी तो उन्हें पहले भी फिल्मों के ऑफर्स मिल चुके थे। लेकिन के.अमरनाथ के ऑफर में अलग ही बात थी। 

और वो बात ये थी कि के.अमरनाथ मुंबई आने के लिए सलीम खान को पैसे भी दे रहे थे। सलीम खान ने उनसे कहा,"मैंने कभी भी स्टेज पर या किसी थिएटर में काम नहीं किया है। मैं भला फिल्मोें में एक्टिंग कैसे कर पाऊंगा।" 

तब के.अमरनाथ ने उनसे कहा कि दिलीप कुमार ने भी कभी कोई थिएटर या स्टेज ड्रामा नहीं किया था। लेकिन आज वो बहुत बड़े सुपरस्टार हैं। के.अमरनाथ की ये बात सलीम खान को बहुत सही लगी। उन्होंने मन बना लिया कि अब वो एक्टिंग में किस्मत आज़माने मुंबई ज़रूर जाएंगे।

सलीम ने ये बात जब अपने घर बताई तो उनके बड़े भाई इससे बहुत नाखुश हुए। उन्होंने सबके सामने कहा कि देखना, या तो ये कुछ दिनों बाद वापस लौट आएंगे। या फिर वहां से खत भेजेंगे और कहेंगे कि इन्हें पैसे चाहिए। 

सलीम खान ने बड़े भाई से कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए। ना तो मैं आपसे पैसे मांगूंगा। और ना ही बिना कुछ बने घर वापस आऊंगा। और इसके बाद सलीम खान आ गए सपनों के शहर मुंबई। जहां इंदौर में सलीम खान की ज़िंदगी बहुत आराम से कट रही थी। 

तो वहीं मुंबई में सलीम खान को कड़े संघर्ष से गुज़रना पड़ा। इस दौरान कई दफा इनके मन में ख्याल आया कि इंदौर वापस चले जाएं। लेकिन भाई से कही वो बातें इन्हें वापस अपने शहर नहीं लौटने दे रही थी।

सलीम खान को ईश्वर से बढ़िया पर्सनैलिटी तोहफे में मिली थी। इसलिए जल्दी ही इन्हें के.अमरनाथ ने अपनी फिल्म बारात में एक सपोर्टिंग रोल दे दिया। ये फिल्म सन 1960 में रिलीज़ हुई थी। और इस फिल्म में लीड रोल में थे अजीत खान व शकीला। 

इस तरह बारात एज़ एन एक्टर सलीम खान की पहली फिल्म थी। इसके बाद सलीम खान ने लगभग 25 फिल्मों में बतौर अभिनेता काम किया था। हालांकि इन 25 में से कई फिल्में कभी रिलीज़ नहीं हो सकी। 

एज़ एन एक्टर इनकी कुछ प्रमुख फिल्में रहीं 1962 की प्रोफेसर, 1963 की काबली खान, 1963 की ही बचपन, 1964 की आंधी और तूफान, 1965 की राका, 1966 की सरहदी लुटेरा, 1966 की ही तीसरी मंज़िल, 1967 की दीवाना, 1967 की ही छैला बाबू और 1977 की वफादार। इन सभी फिल्मों में सलीम खान ने बहैसियत सपोर्टिंग एक्टर काम किया था।

एक दिन आखिरकार सलीम खान का मन एक्टिंग से भी ऊब गया और इन्होंने फैसला कर लिया कि ये फिल्मों में एक्टिंग नहीं करेंगे। बल्कि फिल्मों की कहानी लिखा करेंगे। 

और इस तरह सलीम खान ने उस ज़माने के मशहूर फिल्म लेखक अबरार अल्वी के यहां 500 रुपए महीना तनख्वाह में असिस्टेंट राइटर की हैसियत से काम करना शुरू कर दिया। 

जिस ज़माने में सलीम खान ने फिल्म राइटिंग शुरू की थी उस ज़माने में लेखकों को ना तो बहुत ज़्यादा सम्मान मिलता था। और ना ही बहुत ज़्यादा पैसा मिलता था। उस वक्त सलीम खान ने अबरार अल्वी से कहा था कि एक दिन ऐसा आएगा जब राइटर को एक्टर के बराबर ही पैसा मिला करेगा। 

तब अबरार अल्वी ने सलीम खान ने कहा था कि मेरे सामने तो तुमने ऐसा बोल दिया है। लेकिन किसी और के सामने कभी ऐसा मत बोलना। वरना लोग तुम्हारा मज़ाक उड़ाएंगे।

वक्त के साथ साथ फिल्म राइटिंग में सलीम खान हर दिन आगे बढ़ते गए। साल 1969 में रिलीज़ हुई फिल्म दो भाई बतौर फिल्म राइटर सलीम खान का पहला इंडिपेंडेंट प्रोजेक्ट था। 

इसके कुछ ही वक्त बाद सलीम खान और जावेद अख्तर ने मिलकर सलीम जावेद नाम की अपनी जोड़ी बना ली थी जो फिल्म इंडस्ट्री में फिल्म लेखकों की अब तक की सबसे टॉप और शानदार जोड़ी रही है। 

सलीम जावेद की ये जोड़ी बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। सलीम खान और जावेद अख्तर की पहली मुलाकात साल 1966 में आई फिल्म सरहदी लुटेरा की मेकिंग के दौरान हुई थी। उस फिल्म में जहां सलीम खान एक्टिंग कर रहे थे तो जावेद अख्तर डायरेक्टर के असिस्टेंट थे। 

उस फिल्म के दौरान ही सलीम खान और जावेद अख्तर की बढ़िया दोस्ती हो गई थी। ये दोस्ती इतनी बढ़ी कि दोनों एक दूसरे के घर आने जाने लगे थे। जावेद जब फिल्म इंडस्ट्री में नए नए आए थे तो वो डायरेक्टर बनना चाहते थे। 

लेकिन सलीम खान ने जब नोटिस किया कि जावेद बढ़िया शेर-ओ-शायरी करते हैं तो इन्हें अहसास हुआ कि जावेद एक बढ़िया फिल्म राइटर बन सकते हैं। एक दिन सलीम खान ने जावेद को ऑफर दिया कि क्यों ना हम दोनों साथ मिलकर फिल्मों की कहानी लिखें। 

और इस तरह बनी थी सलीम जावेद की वो महान जोड़ी जिसने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक फिल्में दी। इन दोनों ने मिलकर अंदाज़, अधिकार, हाथी मेरे साथी, सीता और गीता, यादों की बारात, मजबूर, दीवार, शोले, ईमान धरम, त्रिशूल, डॉन, दोस्ताना, शान, क्रांति और शक्ति जैसी सुपरहिट फिल्में लिखी थी।

सलीम खान के करियर में 'दोस्ताना' एक ऐसी फिल्म थी जिसे इन्होंने अपने जोड़ीदार जावेद अख्तर के साथ मिलकर लिखा था और ये फिल्म बहुत बड़ी हिट फिल्म भी रही थी। और यही वो फिल्म भी थी जिससे सलीम खान का एक बेहद पुराना सपना भी साकार हुआ था। 

दरअसल, सलीम-जावेद की जोड़ी को प्रोड्यूसर यश जौहर ने साढ़े बारह लाख रुपए की फीस दी थी। जबकी इसी फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन को 12 लाख रुपए मिले थे। 

अपना मेहनताना मिलने के बाद सलीम खान ने अपने पुराने बॉस अबरार अल्वी को फोन किया और उनसे कहा, "आपको याद है एक दिन मैंने आपसे कहा था कि वो वक्त भी आएगा जब राइटर को हीरो के बराबर पैसे मिलेंगे। उस वक्त मैं गलत था। चूंकि अब राइटर को हीरो से भी ज़्यादा पैसे मिलते हैं। मुझे मिले हैं।" 

सलीम खान की ये बात सुनकर अबरार अल्वी बहुत खुश हुए और उन्होंने सलीम खान की बहुत प्रशंसा भी की।

फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब सलीम जावेद की ये जोड़ी टूट भी गई। सलीम जावेद की ये जोड़ी क्यों टूटी, इसको लेकर कई तरह की कहानियां इंटरनेट पर आपको देखने-पढ़ने को आपको मिल जाएंगी।

लेकिन एक इंटरव्यू में सलीम खान ने खुद कहा था कि चूंकि जावेद अख्तर का रुझान गीत लिखने की तरफ होने लगा था तो एक दिन उन्होंने ही सलीम खान से अलग होने के लिए कह दिया था। साल 1987 में आई मिस्टर इंडिया इस जोड़ी की साथ लिखी आखिरी फिल्म थी। 

वैसे तो ये मिस्टर इंडिया से काफी पहले ही अलग हो चुके थे। लेकिन शेखर कपूर की गुज़ारिश पर ये दोनों एक बार फिर साथ आए थे और मिस्टर इंडिया बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई।

सलीम खान की निजी ज़िंदगी की बात करें तो इन्होंने दो शादियां की थी। इनकी पहली पत्नी का नाम सुशीला चरक है। हालांकि इनसे शादी करने के बाद सुशीला चरक ने अपना नाम सलमा खान कर लिया था। सलीम खान और सलमा खान के चार बच्चे हैं। 

और इनके चारों बच्चों को आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। साल 1981 में सलीम खान ने एक ज़माने की मशहूर बॉलीवुड डांसर हेलन से शादी की थी। 

जिस वक्त सलीम खान ने हेलन से शादी की थी उस वक्त इनके परिवार में काफी हंगामा हुआ था। लेकिन बाद में हेलन के अच्छे बर्ताव को देखते हुए सलीम खान के परिवार ने उन्हें भी अपना हिस्सा मान लिया। सलीम और हेलन ने एक बेटी को गोद लिया था जिसका नाम अर्पिता खान है।

सलीम खान अब 86 साल के हो चुके हैं। उनके बेटे आज हिंदी सिनेमा जगत का बहुत बड़ा नाम हैं। लेकिन सलीम खान आज भी एक डाउन टू अर्थ इंसान हैं। 

मेरठ मंथन ईश्वर से प्रार्थना करता है कि सलीम खान हमेशा सेहतमंद रहें। फिल्म इंडस्ट्री को सलीम खान ने अपना जो योगदान किया है उसके लिए Meerut Manthan Salim Khan को सैल्यूट करता है। जय हिंद।

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