Actor Major Anand | Sholay में Gabbar Singh के हाथों मारा जाने वाला वो डकैत जिसका चेहरा आपको आज भी याद होगा | Biography

Actor Major Anand. हमारी फिल्म इंडस्ट्री में जाने कितने ऐसे कलाकार हैं जिन्हें सिर्फ साइड एक्टर होने का दर्जा ही मिला। कुछ तो बस एक्स्ट्रा बनकर ही रह गए। ना तो इन कलाकारों के बारे में कभी किसी ने बात की है। और ना ही इन्हें मीडिया जगत से कोई तरजीह मिली है। लेकिन हमने हमेशा ऐसे ही कलाकारों को प्रमुखता दी है। अगर किसी छोटे कलाकार की कहानी कहने लायक जानकारियां हमारे पास होती हैं तो हम हमेशा प्रमुखता से ऐसी कहानियां अपने चैनल के माध्यम से दर्शकों को बताते हैं।

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Sholay Actor Major Anand Biography - YouTube Screenshots

आज हम शोले फिल्म में इक्का-दुक्का दृश्यों में नज़र आए Actor Major Anand की कहानी आपको बताएंगे। यूं तो Actor Major Anand को आपने पुराने दौर की कई फिल्मों में देखा होगा। लेकिन अधिकतर लोग इनके नाम से भी वाकिफ नहीं हैं। 70 के दशक के मध्य में अपना एक्टिंग करियर शुरू करने वाले मेजर आनंद ने 90 के दशक की शुरुआत तक फिल्मों में काम किया। और फिर चुपचाप इन्होंने खुद को फिल्मों से दूर भी कर लिया।

काली दास पाण्डेय जी की किताब जो मेजर आनंद की कहानी कहती है

मेजर आनंद की कहानी तलाशते हुए हम एक ऐसी किताब तक पहुंचे जो इनके जीवन की जानकारियों का इकलौता स्रोत है। इसलिए पहले जल्दी से आपको इस किताब के लेखक श्री काली दास पाण्डेय जी के बारे में थोड़ी सी जानकारी दे देते हैं। क्योंकि अगर काली दास पाण्डेय मेजर आनंद की ये जीवनी ना लिखते तो शायद हम और आप कभी भी इनकी कहानी से रूबरू ना हो पाते। 

काली दास पाण्डेय जी झारखंड की राजधानी रांची के रहने वाले हैं और पेशे से एक वकील हैं। वकालत के साथ साथ काली दास पाण्डेय जी फिल्म पत्रकारिता में भी सक्रिय हैं। मेजर आनंद के जीवन की कहानी कहती इस किताब का नाम है "Major Anand - Khwabon Ki Manzil Ka Nayak" और ये किताब एमाजॉन डॉट कॉम पर उपलब्ध भी है। 

मेजर आनंद का शुरुआती जीवन

मेजर आनंद का जन्म 10 अगस्त 1941 को उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़िले के पडरौना कस्बे में हुआ था। माता-पिता ने इनका नाम रखा था अमर जीत सिंह आनंद। किसी ज़माने में इनके पूर्वज सीमांत भारत से गोरखपुर ज़िले के पास मौजूद पडरौना कस्बे में आकर बस गए थे। ये उस ज़माने की बात है जब देवरिया कोई ज़िला नहीं बल्कि एक तहसील हुआ करता था। 

इनके पिता का नाम मोहर सिंह था। और इनकी माता का नाम वीरा कौर था। छह भाई बहनों में अमर जीत सिंह आनंद सबसे छोटे थे। इनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गोरखपुर के डीएवी स्कूल से हुई थी। और आपको ये जानकर हैरत होगी कि इनका दाखिला सीधे कक्षा छह में कराया गया था। और ऐसा इसलिए क्योंकि दाखिले से कुछ साल पहले तक इन्होंने घर पर ही पढ़ाई की थी। 

मिल्खा सिंह कहलाते थे मेजर आनंद

स्कूल में मेजर आनंद उर्फ अमर जीत सिंह आनंद केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियों और खेलकूद में भी एक्टिव रहते थे। योग एंव सूर्य नमस्कार में इन्हें स्कूल में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हाईस्कूल पास करने के बाद महात्मा गांधी इंटर कॉलेज से इन्होंने 11वीं कक्षा पास की। स्कूल के दिनों से ही फुटबॉल से इनका गहरा लगाव था। 

सन 1958 में बिहार की राजधानी पटना में हुए इंटर यूनिवर्सिटी फुटबॉल टूर्नामेंट में अमर जीत सिंह आनंद ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व भी किया था। फुटबॉल के अलावा दौड़ में भी ये अव्वल आते थे। 400 और 500 मीटर की दौड़ प्रतियोगिताओं में कई दफा इन्होंने विजय प्राप्त की थी। और इसी वजह से स्कूल और कॉलेज के इनके दोस्त इन्हें मिल्खा सिंह कहकर पुकारा करते थे। 

इंडियन आर्मी में की देश सेवा

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के बाद अमर जीत सिंह आनंद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और सन 1964 में यहां से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। जबकी सन 1963 में अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से कैंपस सिलेक्शन के तहत इन्हें भारतीय सेना में नौकरी मिल गई थी। 

सन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारतीय सेना में बड़ी संख्या में सैनिकों की भर्ती की गई थी। उस वक्त देश के कई इलाकों के युवकों को सेना में भर्ती किया गया था। और इस तरह अमर जीत सिंह आनंद बन गए मेजर आनंद। आर्मी की अपनी नौकरी के दौरान मेजर आनंद ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था। 

जब संजय खान से हुई मुलाकात ने बदल दी किस्मत

भारतीय सेना में नौकरी कर रहे मेजर आनंद फिल्म जगत में कैसे आए, इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। दरअसल, सन 1968 में मेजर आनंद की पोस्टिंग बैंगलौर में हुई थी। यहीं पर एक दिन मेजर आनंद की मुलाकात उस ज़माने के नामी फिल्म कलाकार संजय खान से हुई। 

अपने एक सहयोगी की मदद से पहले मेजर आनंद की मुलाकात संजय खान के मौसेरे भाई गुलाम अली से हुई थी जिन्हें सब मिस्टर पांडू कहा करते थे। मिस्टर पांडू उर्फ गुलाम अली ने ही मेजर आनंद को संजय खान से मिलाया था।

और फिल्मी दुनिया की तरफ बढ़ गया आकर्षण

बैंगलौर में पोस्टिंग के दौरान मेजर आनंद को फिल्मी दुनिया के लोगों और फिल्मों को काफी करीब से जानने-समझने का मौका मिला। फिल्में देखने के शौकीन तो ये पहले से ही थे तो फिल्मों की मायावी दुनिया की तरफ ये आकर्षित होते चले गए। मेजर आनंद को लगने लगा कि इन्हें भी फिल्मों में काम करना चाहिए। 

फिर एक दिन संजय खान से मेजर आनंद ने एक्टिंग करने की अपनी ख्वाहिश बताई। यूं तो संजय खान ने इनकी इस बात को सीरियसली नहीं लिया, पर इनसे इतना ज़रूर कहा कि अगर फिल्मों में काम करना चाहते हो तो सिर पर कफ़न बांध कर इस समंदर में कूद पड़ो। जो भी मदद हम कर पाएंगे, ज़रूर करेंगे। 

मेजर आनंद की साइन की पहली फिल्म

संजय खान की ये बात मेजर आनंद के दिल में घर कर गई। और एक दिन सेना की अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर ये मुंबई पहुंच गए। इसी दौरान संजय खान चांदी सोना नाम की अपनी एक फिल्म की शूटिंग शुरू करने जा रहे थे। मेजर आनंद जब मुंबई में उनसे मिलने पहुंचे और फिल्म में काम मांगा तो उन्होंने मेजर आनंद को चांदी सोना में पोपो नाम का एक कॉमिक कैरेक्टर दिया जो कि मिसेज जोजो का असिस्टेंट था। 

और ये वो ज़माना था जब छोटे कलाकारों को फिल्मों में काम देने की एक शर्त ये भी होती थी कि उन्हें अपने फोटो और अपनी कहानी को फिल्म रिलीज़ होने से पहले खुद न्यूज़पेपर्स और मैगज़ीन्स तक पहुंचाना पड़ा था। सो मेजर आनंद भी अपनी तस्वीरें लेकर कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से मिला करते थे। 

अंधेरा हुई थी सबसे पहले रिलीज़

मेजर आनंद ने चांदी सोना सबसे पहले साइन ज़रूर की थी। लेकिन इनकी पहली फिल्म थी सन 1975 में रिलीज़ हुई रामसे ब्रदर्स की अंधेरा। इस फिल्म में इनका रोल विलेनियस था और फिल्म के 7 विलेन्स में से एक थे मेजर आनंद। अंधेरा में इनके किरदार का नाम माइकल था। इनकी दूसरी रिलीज़्‍ड फिल्म थी मेरा वचन गीता की कसम। 

संजय खान और सायरा बानो स्टारर इस फिल्म में इन्होंने एक बलात्कारी मारवाड़ी का रोल निभाया था, जिसे हीरो संजय खान आखिरकार जान से मार डालता है। यूं तो ये एक छोटा सा किरदार था। लेकिन इस छोटे से किरदार ने मेजर आनंद के लिए आगे की राहें कुछ आसान कर दी। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने इन्हें नोटिस करना शुरू कर दिया।

शोले ने दिला दी असली पहचान

त्रिमूर्ति, धर्मात्मा सहित कुछ और फिल्मों में काम करने के बाद साल 1975 में आई फिल्म शोले ने मेजर आनंद का चेहरा देश के हर सिने प्रेमी के ज़ेहन में फिट कर दिया। एक सीन में जब गब्बर कालिया सहित अपने तीन आदमियों को गोली मारता है, उनमें से एक मेजर आनंद ही थे। मेजर आनंद की साइन की पहली फिल्म चांदी सोना इनके करियर की आठवीं रिलीज़्ड फिल्म बनी। 

मेजर आनंद की प्रमुख फिल्में

अपने फिल्मी करियर में मेजर आनंद ने कलाबाज़, देवता, भयानक, अब्दुल्लाह, ज़ख्मी इंसान, डायल 100, हमसे है ज़माना, आवाज़, कानून मेरी मुट्ठी में, पहरेदार, दयावान, वतन, इतनी जल्दी क्या है, आखिरी बाज़ी, दुश्मन, जान लड़ा देंगे जैसी फिल्मों में काम किया था। 

आखिरी दफा मेजर आनंद दूरदर्शन की टेलीफिल्म "और ढोल बजता रहा" में नज़र आए थे, जो कि सन 1990 में टेलिकास्ट हुई थी। मेजर आनंद ने फूलन देवी और प्रहरी जैसी इक्का-दुक्का बांगला फिल्मों में भी काम किया था। 

अधूरी रह गई ये ख्वाहिश

अपने फिल्मी करियर में मेजर आनंद ने फिरोज़ खान, प्रेम नाथ, डैनी, अमज़द खान, संजीव कुमार और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे सितारों संग स्क्रीन शेयर की थी। मेजर आनंद राजेश खन्ना के बहुत बड़े फैन थे। वो उनके साथ किसी फिल्म में काम करना चाहते थे। 

शक्ति सामंत की फिल्म आवाज़ में उनकी ये ख्वाहिश पूरी तो हुई। लेकिन पूरी होकर भी राजेश खन्ना संग काम करने की मेजर आनंद की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई। दरअसल, आवाज़ में मेजर आनंद नज़र ज़रूर आए थे। लेकिन राजेश खन्ना संग उनका एक भी सीन नहीं था।

आर्थिक मोर्चे पर कड़े संघर्षों से सामना

मेजर आनंद ने ढेरों फिल्मों में काम किया था। लेकिन फिर भी आर्थिक मोर्चे पर वो कड़े संघर्षों से गुज़रते रहे। यूं तो संजय खान के परिवार संग इनकी बढ़िया बातचीत हो चुकी थी और अक्सर पैसों की तंगी होने पर ये बेझिझक संजय खान की पत्नी ज़रीन खान से पैसे मांग लिया करते थे। लेकिन अपनी फाइनेंसियल सिचुएशन में इन्हें कोई बदलाव होता नज़र नहीं आ रहा था। 

शादी के बाद बढ़ गई चुनौतियां

साल 1978 में मेजर आनंद की ये चुनौतियां उस वक्त बहुत ज़्यादा बढ़ गई जब जूली नाम की महिला से इनकी शादी हो गई। पत्नी जूली ने संघर्ष के दिनों में इनका बखूबी साथ निभाया। मेजर आनंद और जूली की दो बेटियां हुई। सीमा और दिशा। 

परिवार संग सन 1984 में मेजर आनंद मुंबई के सात बंगला इलाके के एक अपार्टमेंट में किराए पर रहने आ गए। शुभा रेले नाम की एक महिला उस अपार्टमेंट की मालकिन थी जो अपने दो बेटों के साथ वहां रहती थी। उसी अपार्टमेंट में ही मेजर आनंद और उनका परिवार भी रहने लगा था। 

जब मकान मालकिन मदद को आगे आई

मन ही मन ये बात मेजर आनंद को बहुत कचोटती थी कि कई फिल्मों में काम करने के बावजूद वो अपने परिवार के लिए एक घर नहीं खरीद पाए थे। उन्हें हमेशा इस बात की फिक्र रहती थी कि जब उनकी बेटियां बड़ी हो जाएंगी तो तब वो इस छोटे से अपार्टमेंट में इतने लोगों के साथ कैसे रह पाएंगे। 

वो अक्सर खुद से सवाल पूछते थे कि फिल्मों में काम करने का उनका फैसला कहीं गलत तो नहीं। आखिरकार एक दिन उन्होंने फैसला कर लिया कि फिल्मों में एक्टिंग करने की जो बीमारी उन्हें लगी है, अब वो इसका इलाज ज़रूर करेंगे। और इस काम में शुभा रेले जी ने, जो कि इनकी मकान मालकिन थी, उन्होंने बहुत मदद की। 

रियल एस्टेट ने बदल दी किस्मत

दरअसल, मेजर आनंद रियल एस्टेट एजेंट का काम शुरू करने का विचार कर रहे थे। मगर परेशानी ये थी कि संभावित ग्राहकों से बात कैसे होगी। उनके पास अपना तो कोई फोन था ही नहीं। जब शुभा रेले जी को पता चला कि मेजर आनंद को काम शुरू करने के लिए एक फोन की ज़रूरत है तो उन्होंने अपना फोन इनके हवाले कर दिया। 

आखिरकार मेजर आनंद ने रियल एस्टेट एजेंट का अपना काम शुरू कर दिया। कुछ ही वक्त में इनका काम चल निकला और फिर कुछ ही सालों में इन्होंने इसी इमारत में अपना खुद का एक फ्लैट खरीद लिया। देखते ही देखते मेजर आनंद ने खुद को फिल्मों से पूरी तरह दूर कर लिया और रियल एस्टेट के बिजनेस में ही पूरी तरह से उतर गए। 

अब नहीं रहे मेजर आनंद

बिजनेस में सफलता मिलने के बाद मेजर आनंद ने फिल्मों और फिल्मी दुनिया से किनारा कर लिया। उनकी दोनों बेटियों की शादी हो गई और दोनों अपनी-अपनी लाइफ में सेटल्ड भी हो गई। मेजर आनंद फिल्मों से दूर तो हो गए। 

लेकिन फिल्मी दुनिया पर उनकी नज़रें हमेशा बनी रही। वो फिल्म इंडस्ट्री में होने वाले बदलावों को बड़ी बारीकी से देखते और समझते रहे। और फिर 3 सितंबर 2020 को कोरोना काल में मेजर आनंद खामोशी से ये दुनिया छोड़कर अनंत की यात्रा पर भी निकल गए। 

Major Anand को सैल्यूट

एक आम इंसान के ख्वाब देखने और फिर उन ख्वाबों को पूरा करने की कहानी है मेजर आनंद की ज़िंदगी की कहानी। इस कहानी में हौंसला, संघर्ष, उम्मीद, ज़िम्मेदारी का अहसास और दर्द की कराहना भी है। हम मेजर आनंद को नमन करते हैं और फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए उन्हें सैल्यूट भी करते हैं। जय हिंद।

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