15 Lesser Known Facts of Mala Sinha | माला सिन्हा की पन्द्रह अनसुनी कहानियां
15 Lesser Known Facts of Mala Sinha. माला सिन्हा के चाहने वाले आज भी उनकी फिल्में बड़े ही शौक से देखते हैं। माला सिन्हा को अब सिल्वर स्क्रीन से रिटायरमेंट लिए एक अर्सा हो चुका है।
लेकिन आज भी जब टीवी पर उनकी फिल्म आती है तो लोग उनकी अदायगी और उनकी खूबसूरती को देखते रह जाते हैं। माला सिन्हा के फैंस उनसे जुड़ी बातें बड़े शौक से सुनना और जानना पसंद करते हैं।
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15 Lesser Known Facts of Mala Sinha - Photo: Social Media |
Meerut
Manthan पर आज माला सिन्हा के फैंस उनके जीवन की 15 अनसुनी कहानियां
जानेंगे। और हमें पूरा यकीन है कि माला सिन्हा की ये कहानियां आपको ज़रूर
पसंद आएंगी। 15 Lesser Known Facts of Mala Sinha.
पहली कहानी
एक दफा कलकत्ता में बन रही एक फिल्म में माला सिन्हा चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से काम कर रही थी। उस फिल्म में इनके रोने का एक सीन था।
लेकिन नन्ही माला सिन्हा जो कि उस वक्त बेबी नज़मा के नाम से जानी जाती थी, उनकी आंखों में आंसू ही नहीं आ पा रहे थे।
वो सीन शूट करके वक्त जब काफी टाइम बीत गया तो डायरेक्टर ने इनके गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया। वो थप्पड़ लगने के बाद माला की आंखों से आंसू बह निकले और डायरेक्टर ने रोती हुई माला से वो सभी डायलॉग्स भी बुलवा लिए।
दूसरी कहानी
साल 1978 में जब माला सिन्हा के घर पर इन्कम टैक्स की रेड पड़ी तो इन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। इनके घर के बाथरूम की दीवार से 12 लाख रुपए बरामद हुए थे जो इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट ने जब्त कर लिए थे। साथ ही माला के सभी बैंक खाते भी फ्रीज़ कर दिए गए थे।
इतना ही नहीं, माला सिन्हा के किसी भी प्रॉपर्टी को बेचने पर भी रोक लगा दी गई थी। ये एक ऐसा वक्त था जब फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उनसे दूरी बना ली थी। लेकिन ऐसे मुश्किल वक्त में महमूद साहब और गुरूदत्त साहब माला सिन्हा की मदद के लिए आगे आए थे।
एक
इंटरव्यू में माला सिन्हा ने बताया था कि उस रेड के बाद ये दोनों ही थे जो
उनसे मिलने उनके घर सबसे पहले आए थे। दोनों ने ही भरोसा दिया था कि पैसे
की फिक्र मत करना। जो भी ज़रूरत हो बेझिझक बता देना।
तीसरी कहानी
महमूद साहब उन दिनों से माला सिन्हा को भाभी कहकर पुकारते थे जब माला सिन्हा की शादी भी नहीं हुई थी। और इसके पीछे की वजह भी काफी दिलचस्प है।
साल 1958 की फिल्म परवरिश में माला सिन्हा राज कपूर साहब के अपोज़िट नज़र आई थी। उस फिल्म में महमूद साहब ने राज कपूर के भाई का रोल निभाया था।
उस
सीन की शूटिंग के वक्त कुछ ऐसा हुआ कि राज कपूर और माला सिन्हा की शादी का
सीन सबसे पहले शूट किया गया था। तभी से महमूद साहब माला सिन्हा को भाभी
कहकर पुकारने लगे। और फिर ताउम्र महमूद ने माला सिन्हा को भाभी ही कहा।
चौथी कहानी
माला सिन्हा जन्म से ईसाई हैं और ईसाई धर्म की शिक्षाओं का बहुत सम्मान करती हैं। एक दफा अपने इलाके के चर्च के लिए माला सिन्हा ने एक फंड रेज़ प्रोग्राम किया था। महान गायक मोहम्मद रफी साहब माला सिन्हा के पड़ोसी हुआ करते थे।
माला सिन्हा एक दिन रफी साहब के पास गई और रफी साहब को बताया कि वो अपने चर्च के डोनेशन इकट्ठा करने के लिए एक प्रोग्राम कर रही हैं। माला सिन्हा ने रफी साहब से कहा कि आप उस प्रोग्राम में आकर गाना गाइए। आपकी जो फीस होगी हम चुकाने की कोशिश करेंगे।
प्रोग्राम
के दिन रफी साहब ने पूरे तीन घंटे तक खड़े होकर गीत गाए थे। और प्रोग्राम
खत्म होने के बाद जब माला सिन्हा रफी साहब के पास उनकी फीस पूछने गई तो रफी
साहब ने फीस लेने से इन्कार कर दिया। उस प्रोग्राम में माला सिन्हा ने भी
रफी साहब के साथ खड़े होकर एक गीत गाया था।
पांचवी कहानी
एक दफा माला सिन्हा के घर पर हुई एक पार्टी में महान गायिका आशा भोंसले ने भी शिरकत की। पार्टी में सभी मेहमानों के लिए ज़मीन पर बैठकर खाने का इंतज़ाम किया गया था।
उस ज़माने में चूंकि आशा भोंसले एक बहुत बड़ा नाम थी तो माला सिन्हा को लगा कि शायद आशा भोंसले को ज़मीन पर बैठकर खाना पसंद ना आए। लेकिन आशा भोंसले ने बिना किसी झिझक के ज़मीन पर बैठकर खाना खाया।
फिर जब हाथ धोने के लिए आशा भोंसले बाथरूम गई तो उन्होंने देखा कि वहां साबुन नहीं है। आशा जी माला सिन्हा के किचन में गई और वहां उन्होंने बर्तन धोने के साबुन से ही हाथ धो लिए।
इतनी बड़ी गायिका और भारत की इतनी बड़ी शख्सियत
को अपने घर में बर्तन धोने के साबुन से हाथ धोते देखकर माला सिन्हा काफी
हैरान रह गई थी।
छठी कहानी
माला सिन्हा ने अपने दौर के हर बड़े एक्टर के साथ काम किया था। सिवाय दिलीप कुमार के। ऐसा नहीं है कि माला सिन्हा दिलीप साहब के साथ काम नहीं करना चाहती थी।
या उन्हें दिलीप साहब के साथ काम करने का मौका ही नहीं मिला। माला बचपन से दिलीप साहब की फैन थी। और जब वो अपने करियर की पीक पर थी तो उन्हें दिलीप साहब के साथ एक फिल्म का ऑफर भी मिला।
लेकिन माला चाहकर भी वो मौका लपक ना सकी। दरअसल, जिस वक्त माला सिन्हा को दिलीप साहब के साथ उस फिल्म में काम करने का ऑफर गया था उस वक्त वो किसी और फिल्म में बिज़ी थी।
लेकिन प्रोड्यूसर चाहते थे कि माला सब कुछ छोड़कर दिलीप साहब के साथ काम करें। हालांकि वो रोल बहुत छोटा सा था और उन्हें इसके लिए पैसे भी अच्छे खासे ऑफर किए जा रहे थे।
लेकिन माला सिन्हा ने कहा कि किसी और से वादा करके उसे धोखा देना उनके उसूलों के खिलाफ है। और इस तरह दिलीप साहब के साथ काम करने का वो इकलौता मौका माला सिन्हा के हाथों से निकल गया।
सातवीं कहानी
राजेंद्र कुमार से माला सिन्हा की बहुत अच्छी दोस्ती थी। साल 1958 में आई फिल्म देवर भाभी में राजेंद्र कुमार माला सिन्हा के देवर बने थे।
और इत्तेफाक से राजेंद्र कुमार भी तभी से माला सिन्हा को भाभी कहने लगे थे। यानि महमूद साहब से भी पहले से राजेंद्र कुमार माला सिन्हा को भाभी कहकर पुकारा करते थे।
जिस वक्त माला सिन्हा को परवरिश फिल्म के लिए साइन किया गया था उस वक्त राजेंद्र कुमार उनसे कहा करते थे कि भाभी अब तो आप ए ग्रेड फिल्मों में आने लगी हो। अब भला मेरे साथ कहां काम करोगी आप। दरअसल, उस वक्त राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा उस ज़माने की स्टंट फिल्मों में ज़्यादा काम करते थे।
सालों बाद जब राजेंद्र कुमार को राज कपूर ने अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म
संगम में साइन किया तो माला सिन्हा ने उनसे कहा कि तुम तो सीधे राज कपूर के
होम प्रोडक्शन की फिल्म में पहुंच गए। अब तो मुझे देखना होगा कि तुम मेरे
साथ काम करोगे या नहीं।
आठवीं कहानी
माला सिन्हा अपने ज़माने की वो अदाकारा हैं जिन्होंने सबसे ज़्यादा न्यूकमर्स के साथ काम किया है। महान मनोज कुमार उनमें से एक हैं। जिस वक्त माला सिन्हा ने उनके साथ हरियाली और रास्ता फिल्म साइन की थी उस वक्त वो नए ही थे।
माला सिन्हा से पहले जितनी भी हिरोइनों को मनोज कुमार के अपोज़िट साइन करने की कोशिश की गई थी उन सभी ने मनोज कुमार के साथ काम करने से इन्कार कर दिया था।
वैजयंतीमाला को भी हरियाली और रास्ता फिल्म ऑफर की गई थी। लेकिन मनोज कुमार का नाम सुनकर उन्होंने ये फिल्म ठुकरा दी थी। फिर जब वैजयंतीमाला को पता चला कि माला सिन्हा ने ये फिल्म साइन कर ली है तो उन्होंने माला सिन्हा को फोन किया और कहा कि वो तो एक नया आर्टिस्ट है। उसके साथ काम करना तुम्हारे लिए शायद सही नहीं रहेगा।
लेकिन माला सिन्हा ने
वैजयंतीमाला को जवाब दिया कि मैं भी कभी नयी ही थी। अगर अब मैं नए
कलाकारों के साथ काम करने से मना करूंगी तो ये तो बहुत गलत बात होगी।
नौंवी कहानी
माला सिन्हा छोटी बच्ची ही थी जब उन्हें राज कपूर बहुत पसंद आने लगे थे। जब वो फिल्मों में काम करने का इरादा कर चुकी थी तो अक्सर ये ख्वाब देखती थी कि एक दिन राज कपूर की हिरोइन ज़रूर बनेंगी।
और उन्हें पहली दफा ये मौका 1958 की फिल्म परवरिश में मिला था। हालांकि जब राज कपूर के सामने माला सिन्हा पहली दफा एज़ एन एक्ट्रेस आई तो बुरी तरह नर्वस हो गई थी।
उस ज़माने में राज कपूर एक बड़े स्टार हुआ करते थे और माला सिन्हा न्यूकमर थी। राज कपूर के स्टारडम के सामने वो बहुत ज़्यादा घबरा गई। लेकिन जब उन्होंने देखा कि राज कपूर साहब सेट पर एकदम नॉर्मल रहते हैं और हर किसी के साथ घुलमिल जाते हैं तो माला सिन्हा की जान में जान आई।
हालांकि
राज कपूर से बात करने में वो फिर भी हिचकिचा रही थी। राज कपूर को जब
अंदाज़ा हुआ कि माला उनके सामने नर्वस हो रही हैं तो उन्होंने माला से
बंगाली भाषा में बात करना शुरू कर दिया। राज कपूर को बंगाली बोलते देख माला
सिन्हा की जान में जान आई और वो उनके सामने नॉर्मल हुई।
10वीं कहानी
माला सिन्हा ने मनोज कुमार के साथ भी कुछ फिल्मों में काम किया था। एक इंटरव्यू में बात करते हुए माला ने बताया था कि मनोज कुमार शुरुआत में बहुत शर्मीले थे।
वो अक्सर उनसे नज़रें मिलाकर बात नहीं कर पाते थे। माला सिन्हा तो खुद कई दफा मनोज कुमार से कहती थी कि आप हीरो हैं तो आपको तो लोगों से ज़्यादा बातचीत करनी चाहिए।
लेकिन मनोज कुमार अपना शॉट देने के बाद चुपचाप जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाते थे और किताबें पढ़ा करते थे। कभी कभी तो माला सिन्हा को लगता था जैसे मनोज कुमार बेहद घमंडी हैं।
वो इस तरह एक कोने में अकेले बैठे रहते हैं जैसे कितने बड़े डायरेक्टर हों। लेकिन आगे चलकर माला को अहसास हुआ कि मनोज कुमार वाकई में डायरेक्टर बनना चाहते हैं।
वक्त
के साथ माला सिन्हा और मनोज कुमार की अच्छी दोस्ती हो गई और फिर जब मनोज
कुमार एक नामी डायरेक्टर बन गए तो माला सिन्हा ने उनसे कई दफा गुज़ारिश की
कि वो अपनी किसी फिल्म में उन्हें भी मौका दें। हालांकि मनोज कुमार की
डायरेक्ट की किसी फिल्म में माला सिन्हा को एक्टिंग करने का मौका नहीं मिल
पाया।
11वीं कहानी
बहुत ही कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि माला सिन्हा एक शानदार गायिका भी हैं। बचपन से ही माला सिन्हा ने गायकी की विधिवत शिक्षा भी ली है। और पहले वो गायकी में ही अपना नाम बनाना चाहती थी।
लेकिन चूंकि वो चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से बंगाली फिल्मों में काम करने लगी थी तो गायकी का उनका शौक कहीं पीछे छूट गया। जबकी एक वक्त पर माला सिन्हा ने ऑल इंडिया रेडियो के लिए काफी गीत गाए थे।
माला
जब अभिनय की दुनिया में सफलता हासिल करती चली गई तो उन्होंने गायकी छोड़
दी। माला कहती हैं कि अगर वो एक्ट्रेस ना बनती तो ज़रूर एक गायिका बनती और
लता मंगेशकर जी को अपना गुरू बनाती।
12वीं कहानी
माला सिन्हा को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने ये सम्मान स्वीकार करने से साफ इन्कार कर दिया।
दरअसल, माला के पास दादा साहेब फाल्के पुरस्कार समारोह का जो इन्विटेशन आया था उस पर उनका नाम था ही नहीं। उस साल आशा पारेख और यश चोपड़ा को भी दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
और इन दोनों का ही नाम निमंत्रण पत्र पर था। माला सिन्हा ने
जब देखा कि बाकियों का नाम है लेकिन उनका नाम नहीं है तो उन्हें ये अपनी
तौहीन लगी। माला ने साफ कह दिया कि अपना इन्विटेशन ले जाइए। उन्हें ये
अवॉर्ड चाहिए ही नहीं।
13वीं कहानी
माला सिन्हा ने दादामुनि अशोक कुमार के साथ कई फिल्मों में काम किया है। यूं तो ज़्यादातर फिल्मों में वो उनकी बेटी के किरदारों में नज़र आई हैं। एक फिल्म में वो उनकी बहू भी बनी हैं।
लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक फिल्म ऐसी भी रही है जिसमें माला सिन्हा अशोक कुमार की पत्नी के किरदार में नज़र आई थी। ये फिल्म थी साल 1963 में रिलीज़ हुई गुमराह।
इस फिल्म की कहानी के मुताबिक
अशोक कुमार की पत्नी की अचानक मौत हो जाती है। और चूंकि माला सिन्हा अशोक
कुमार की पत्नी की छोटी बहन होती हैं तो उनकी शादी अशोक कुमार के साथ करा
दी जाती है।
14वीं कहानी
माला सिन्हा जब अपने करियर की पीक पर थी तो देश का हर बड़ा डायरेक्टर प्रोड्यूसर उनके साथ काम करना चाहता था। हर एक्टर माला सिन्हा के साथ स्क्रीन शेयर करना चाहता था।
लेकिन कम लोग ही इस बात से वाकिफ हैं कि साठ के दशक में माला सिन्हा को दो हॉलीवुड फिल्मों में लीड एक्ट्रेस के ऑफर भी आए थे। लेकिन माला सिन्हा के पिता ने उन हॉलीवुड फिल्मों के ऑफर ठुकरा दिए।
माला सिन्हा
के पिता ने कह दिया कि वो अपनी बेटी को उन फिल्मों में कतई नहीं काम करने
देंगे जहां हद से ज़्यादा बोल्डनेस अभिनेत्रियों को दिखानी पड़ती हो। उन
दिनों माला सिन्हा के पिता ही उनकी सभी फिल्मों का ध्यान रखते थे।
15वीं कहानी
माला सिन्हा के सबसे पसंदीदा को-स्टार थे सदाबहार देवानंद साहब। जिस वक्त माला सिन्हा फिल्म इंडस्ट्री में आई थी उस वक्त देवानंद साहब एक बड़े स्टार थे।
माला सिन्हा को देव साहब के साथ पहली दफा काम करने का मौका साल 1959 की फिल्म लव मैरिज में मिला था। उस फिल्म के डायरेक्टर थे सुबोध मुखर्जी।
शूटिंग के पहले दिन जब सुबोध मुखर्जी ने देव साहब से माला सिन्हा को मिलवाया तो देव साहब ने आगे बढ़कर उनसे हाथ मिलाया और उनकी फिल्मों प्यासा व फिर सुबह होगी में उनके काम की जमकर तारीफ की।
देव
साहब जैसे बड़े स्टार के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर माला सिन्हा काफी हैरान
और खुश हुई थी। उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा था कि देवानंद जैसा बड़ा स्टार
भी उनकी फिल्में देख चुका है।
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