Lesser Known Facts of Late Bollywood Comedian Mukri | मुकरी की अनसुनी कहानियां

Lesser Known Facts of Late Bollywood Comedian Mukri. अपनी मूंछो के लिए मशहूर शराबी फिल्म के नत्थूलाल यानि अभिनेता मुकरी हिंदी सिनेमा के कभी ना भुलाए जा सकने वाले कॉमेडियन हैं। 

आज मुकरी जी भले ही हमारे बीच ना हों। लेकिन उनकी फिल्में हमेशा उन्हें उनके चाहने वालों के बीच ज़िंदा रखेंगी। 

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Lesser Known Facts of Late Bollywood Comedian Mukri

मुकरी साहब ने कई पीढ़ियों के अदाकारों के साथ काम किया। लेकिन ये बात भी सच है कि दिलीप कुमार ना सिर्फ असल ज़िंदगी में उनके सबसे खास दोस्त रहे, बल्कि फिल्मी दुनिया में भी मुकरी ने कभी दिलीप कुमार का साथ नहीं छोड़ा। और दिलीप कुमार की लगभग हर फिल्म में काम किया।

आज हम आपको मुकरी साहब की छह अनसुनी और  रोचक कहानियां बताएंगे। और यकीनन आपको मुकरी साहब की ये कहानियां बेहद पसंद आएंगी। Lesser Known Facts of Late Bollywood Comedian Mukri.

इसलिए दिलीप कुमार को अपना गॉडफादर कहते थे मुकरी

मुकरी साहब ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनका एक्टिंग करियर शुरू होने के बावजूद भी वो एक्टिंग को लेकर बहुत ज़्यादा सीरीयस नहीं थे। 

बॉम्बे टॉकीज़ जॉइन करने के बाद अक्सर मुकरी अपने शॉट्स निपटाकर क्लब में ताश खेलने जाया करते थे। 

कहना चाहिए कि उस वक्त मुकरी को जुआ खेलने की आदत लग गई थी। ये बात किसी तरह दिलीप कुमार को पता चल गई। 

दिलीप कुमार ने मुकरी की ये आदत छुड़ाने के लिए शूटिंग खत्म होने के बाद उन्हें बहानों से रोकना शुरू कर दिया। 

कभी दिलीप साहब मुकरी से कहते कि अपने सीन की रिहर्सल करनी है इसलिए रुक जाओ। तो कभी कहते कि कुछ ज़रूरी बात करनी है इसलिए अभी मत जाओ। 

और इस तरह आखिरकार दिलीप साहब ने मुकरी को भी अभिनय के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित कर दिया। और मुकरी की वो बुरी आदत छूट गई।

जब वैजयंतीमाला ने मुकरी पर लगाया बदतमीज़ी का इल्ज़ाम

साल 1956 में आई फिल्म 'किस्मत का खेल' में मुकरी साहब ने पहली दफा सुनील दत्त और वैजयंतीमाला के साथ काम किया था। उस फिल्म में मुकरी ने एक पॉकेटमार का किरदार निभाया था। 

एक दिन मुकरी अपने एक सीन की प्रैक्टिस कर रहे थे। मुकरी ने अपने कैमरामैन से कहा,"मैं यहां तक भागते हुए आउंगा और फिर कूदी मारूंगा।" 

इत्तेफाक से जब मुकरी कैमरामैन से कूदी मारने की ये बात कह रहे थे तो उस वक्त वहां वैजयंतीमाला भी मौजूद थी। 

अचानक वैजयंतीमाला रोने लगी और उन्होंने कहा कि मुकरी ने उनके साथ बदतमीज़ी की है। मुकरी हैरान थे कि उन्होंने आखिर वैजयंतीमाला को क्या कह दिया। 

उस दिन पूरे चार घंटे तक शूटिंग रुकी रही। काफी देर बाद ये कन्फ्यूज़न दूर हुआ कि मुकरी साहब के कूदी मारने का मतलब कूदने यानि जंप करने से था।

 जबकी वैजयंतीमाला के हिसाब से उसका एक अलग और गलत मतलब था। लेकिन आखिरकार वैजयंतीमाला भी समझ गई की मुकरी असल में क्या कह रहे थे।

मुकरी ना होते तो ना मिलते नरगिस और सुनील दत्त

बहुत कम लोग ही इस बात से वाकिफ हैं कि ये मुकरी साहब ही थे जिनकी वजह से सुनील दत्त साहब को मदर इंडिया फिल्म में बिरजू का रोल मिला था। 

दरअसल, 'किस्मत का खेल' फिल्म के दौरान मुकरी साहब और दत्त साहब की बढ़िया दोस्ती हो गई थी। दूसरी तरफ महबूब खान से भी मुकरी साहब की अच्छी जान-पहचान थी। 

महबूब खान ने मदर इंडिया के बिरजू के लिए साबू दस्तगीर को फाइनल कर दिया था। लेकिन शूटिंग शुरू होने से पहले महबूब खान और साबू दस्तगीर की बात खराब होने लगी। 

फाइनली महबूब खान ने साबू दस्तगीर को फिल्म से निकाल दिया। उन्होंने मुकरी साहब से पूछा कि क्या कोई नया लड़का है जिसे वो अपनी फिल्म में ले सकें। 

मुकरी साहब ने तुरंत सुनील दत्त का नाम लिया। महबूब खान ने मुकरी से कहा कि जल्द से जल्द उस लड़के को मुझसे मिलाने लेकर आओ। 

मुकरी साहब ने जब सुनील दत्त साहब को बताया कि महबूब साहब उन्हें अपनी एक फिल्म में लेना चाहते हैं तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दरअसल, सुनील दत्त साहब खुद भी बड़ी बेसब्री से महबूब खान की फिल्म में काम करने के मौके का इंतज़ार कर रहे थे। 

यानि मुकरी साहब से दोस्ती आखिरकार सुनील दत्त साहब के लिए ज़िंदगी बदलने वाली साबित हुई। क्योंकि मदर इंडिया ज़बरदस्त हिट रही थी। और इसी फिल्म में ही सुनील दत्त साहब को अपनी हमसफर नरगिस जी भी मिली थी। 

यहां ये बात बतानी भी बहुत ज़रूरी है कि मदर इंडिया में रामू के किरदार में दिखे राजेंद्र कुमार साहब को भी मुकरी साहब ने ही महबूब खान से मिलाया था। और मुकरी साहब के कहने पर ही महबूब खान ने राजेंद्र कुमार जी को उस रोल के लिए फाइनल किया था।

रोमांस भी कर चुके हैं मुकरी

ये जानकर आपको हैरानी होगी कि ज़िंदगीभर कॉमेडी रोल निभाने वाले मुकरी साहब ने एक फिल्म में हीरो के तौर पर भी काम किया था। 

इस फिल्म का नाम था हंसते रहना। और ये फिल्म सन 1950 में रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म में मुकरी साहब ने डबल रोल निभाया था। 

उस ज़माने में ये फिल्म पचास हज़ार रुपए में बनकर तैयार हुई थी। कॉमेडी जोनरा की इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद मुकरी साहब काफी नर्वस थे। ये सोचकर कि पता नहीं ये फिल्म चल पाएगी भी या नहीं। 

लेकिन मुकरी साहब की किस्मत अच्छी रही और उस ज़माने में मुंबई के कैपिटल सिनेमा में हंसते रहना फिल्म पांच हफ्ते से भी ज़्यादा समय तक टिकी रही। 

उस फिल्म में मुकरी जी ने रोमांस भी किया था। और उनकी हिरोइन थी हीरा सावंत जो उस वक्त की नामी मराठी एक्ट्रेस थी। 

मुकरी को चम्मच चुराते दिलीप कुमार ने पकड़ लिया

साल 1952 में रिलीज़ हुई महबूब खान की फिल्म आन में दिलीप कुमार और मुकरी साहब की जोड़ी एक बार फिर साथ नज़र आई थी। आन फिल्म का लंदन में भी एक ग्रैंड प्रीमियर हुआ था। 

उस ज़माने के दिग्गज ब्रिटिश फिल्म डायरेक्टर-प्रोड्यूसर अलेक्ज़ेंडर कोर्डा ने आन के लंदन में प्रीमियर के राइट्स खरीद लिए थे। 

प्रीमियर के बाद की शाम में आन के सभी कलाकारों के लिए एक शानदार डिनर पार्टी का आयोजन किया गया। 

मुकरी जी भी उस पार्टी में अपने दोस्त दिलीप कुमार के साथ शरीक हुए थे। डिनर के वक्त मुकरी जी का ध्यान खाने पर कम और बर्तनों पर ज़्यादा गया। 

मुकरी साहब ने देखा कि उन्हें परोसे गए खाने का हर बर्तन चांदी का है। यहां तक की चम्मचें भी चांदी की हैं। 

मुकरी साहब ने सोच लिया कि वो एक चम्मच तो अपने साथ यहां की यादगार के तौर पर ज़रूर लेकर जाएंगे। और उन्होंने चुपके से एक चम्मच उठाकर अपनी जेब में रख ली। 

लेकिन मुकरी साहब को ये नहीं पता था कि जिस वक्त वो चम्मच को अपनी जेब में रख रहे थे ठीक उसी वक्त दिलीप साहब उन्हीं को देख रहे थे। 

डिनर जैसे ही खत्म हुआ, दिलीप साहब खड़े होकर सबसे बोले कि वो एक जादू दिखाना चाहते हैं। दिलीप साहब ने चांदी की एक चम्मच अपनी जेब में रखी और कहा कि अब ये चम्मच वो मुकरी साहब की जेब से निकालेंगे। 

ये सुनकर मुकरी साहब दंग रह गए। उनका चेहरा एकदम सफेद पड़ गया। वो समझ गए कि दिलीप कुमार ने उन्हें चम्मच छिपाते हुए देख लिया है। 

फिर जब एक वेटर ने चम्मच को मुकरी साहब की जेब से निकाला तो वहां मौजूद हर इंसान ने दिलीप साहब के लिए ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजाई। 

जबकी इस दौरान मुकरी साहब बड़े शर्मिंदा हो रहे थे। बाद में जब आन की पूरी कास्ट भारत लौट रही थी तो दिलीप कुमार और मुकरी फ्लाइट में एक-दूजे के बराबर में ही बैठे थे। 

उस वक्त दिलीप कुमार ने अपने दोस्त मुकरी से कहा,''अरे कमबख्त। तुझे चम्मच चाहिए थी तो चोरी करने की क्या ज़रूरत थी। मुझे बता देता। देख मैं तेरे लिए एक चम्मच लेकर आया हूं।'' 

और फिर दिलीप कुमार ने अपनी जेब से वही चम्मच निकाला जो उन्होंने उस वक्त मुकरी साहब पर जादू दिखाने की बात कहकर अपनी जेब में डाला था।

जब मुकरी पर चिपट गया एक बंदर

मुकरी साहब और दिलीप साहब ने कई फिल्मों में साथ में काम किया था। इनमें से एक थी महबूब खा की अमर जो कि 1954 में रिलीज़ हुई थी। उस फिल्म में मुकरी साहब को एक बंदर के साथ कुछ शॉट्स देने थे। 

उस सीन की जब रिहर्सल चल रही थी तो उस वक्त दिलीप कुमार भी मौजूद थे। बंदर देखकर दिलीप साहब उसके साथ छेड़खानी करने लगे। दिलीप साहब ने बंदर को इतना परेशान कर दिया कि बंदर काफी गुस्से में आ गया। 

इसके बाद दिलीप साहब चुपचाप हां से खिसक लिए। तभी मुकरी साहब बंदर के साथ वाला अपना सीन शूट करने आ गए। 

लेकिन मुकरी साहब जैसे ही बंदर के करीब आए उस बंदर ने उनके हाथ पर ज़ोर से काट लिया और भाग गया। मुकरी साहब दर्द के मारे चिल्ला रहे थे और दिलीप साहब उन्हें देखकर ठहाके मारने लगे। 

दिलीप साहब मुकरी से बोले कि अब तुम भी बंदर की तरह हरकतें करने लगोगे। दिलीप साहब की ये बात मुकरी साहब के दिमाग पर हावी होने लगी। उन्हें सच में लगने लगा कि उनके अंदर बंदर के काटे का असर आने लगा है। 

डायरेक्टर महबूब खान को जब पता चला कि मुकरी को बंदर ने काट लिया है तो वो उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने बताया कि भईया जानवर ने काटा है तो 12 इंजैक्शन तो लगाने ही पड़ेंगे। 

इंजैक्शन का नाम सुनकर मुकरी साहब और ज़्यादा घबरा गए। लेकिन वो कहते हैं ना, कि मरता क्या ना करता। 

मुकरी साहब को पूरे बारह इंजैक्शन अपने शरीर में लगवाने पड़े। ये पूरा किस्सा खुद मुकरी साहब ने ही एक इंटरव्यू में बताया था।

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