Rehman | गुज़रे ज़माने का वो Bollywood Actor जिसे आखिरी वक्त में बहुत दर्द झेलना पड़ा | Biography
Rehman. अपने ज़माने का एक ज़बरदस्त अदाकार। अपनी रौबीली आवाज़ और ऐरिस्टोक्रेटिक पर्सनैलिटी से स्क्रीन पर रहमान किसी हीरो से कम ना लगते थे। एयरफोर्स की नौकरी छोड़कर फिल्मों में काम करने आए रहमान ने ज़्यादातर निगेटिव शेड वाले कैरेक्टर निभाए थे। और अपने इन्हीं कैरेक्टर्स के दम पर रहमान 50 और 60 के दशक के टॉप एक्टर्स में शुमार हो गए थे।
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Rehman Bollywood Actor Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज गुज़रे ज़माने के दमदार Bollywood Actor Rehman की कहानी कहेगा। Rehman की ज़िंदगी से जुड़ी कई रोचक और अनसुनी बातें आज हम और आप जानेंगे।
शुरुआती जीवन
रहमान का जन्म हुआ था 23 जून 1921 को लाहौर में। ये एक पठान परिवार से थे। बताया जाता है कि साल 1905 में इनके पुरखे अफगानिस्तान से भारत के पंजाब आए थे और यहां बस गए थे।
रहमान जब छोटे ही थे तो इनका परिवार मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर आ गया था। रहमान की पढ़ाई लिखाई जबलपुर से ही हुई थी। जबलपुर के रॉबर्टसन कॉलेज से इन्होंने अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट किया था।
एयरफोर्स की नौकरी छोड़ बन मुंबई आ गए Rehman
ग्रेजुएशन के बाद साल 1942 में रहमान ने बतौर पायलट रॉयल ब्रिटिश एयर फोर्स जॉइन कर ली और ट्रेनिंग के लिए पूना आ गए। लेकिन एयरफोर्स की नौकरी में इनका दिल नहीं लगा।
सो, अपनी वो नौकरी छोड़कर इन्होंने पूना की प्रभात फिल्म कंपनी जॉइन कर ली। इस इरादे से कि यहां पर ये फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग लेंगे। उस ज़माने के दिग्गज डायरेक्टर विश्राम बेडेकर ने इन्हें अपना थर्ड असिस्टेंट बना लिया।
उन दिनों विश्राम बेडेकर लाखारानी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे और रहमान को इसी फिल्म के लिए उन्होंने अपना असिस्टेंट बनाया था।
प्रभात स्टूडियो में खूब लगता था रहमान का दिल
साल 1963 में एक फिल्म मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में रहमान ने बताया था कि विश्राम बेडेकर का असिस्टेंट बनकर उन्हें प्रैक्टिकली तो कुछ खास फायदा नहीं मिला था।
लेकिन इससे उन्हें प्रभात स्टूडियो से जुड़ने का बढ़िया मौका ज़रूर मिला था। प्रभात स्टूडियो का माहौल उन्हें बहुत पसंद आता था। प्रभात स्टूडियो में वर्कस के लिए ढेर सारी फैसिलिटीज़ हुआ करती थी।
वहां एक स्वीमिंग पूल था जिसमें रहमान अक्सर गर्मियों की दोपहरी में बाकी कर्मचारियों के साथ डुबकी लगाते रहते थे। वहां कई घोड़े भी थे और रहमान को घुड़सवारी सीखने का मौका प्रभात स्टूडियो के उन घोड़ों से ही मिला था।
Rehman की पहली फिल्म
विश्राम बेडेकर की लाखारानी फिल्म की शूटिंग कंप्लीट होने के बाद रहमान डीडी कश्यप के असिस्टेंट बन गए जो उन दिनों फिल्म चांद की शूटिंग कर रहे थे।
इत्तेफाक से डीडी कश्यप की फिल्म चांद(1944) विश्राम बेडेकर की लाखारानी(1945) से भी पहले रिलीज़ हो गई थी। और यही वो फिल्म थी जिसमें पहली दफा रहमान को कैमरे के सामने आने का मौका मिला था।
इत्तेफाक से मशहूर संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम ने भी पहली दफा इसी फिल्म में एक गाना कंपोज़ किया था जिसके बोल थे,"दो दिलों को ये दुनिया मिलने भी नहीं देती।"
इस गीत को गाया था मंजू नाम की एक गायिका ने, जिन्हें उस वक्त कोई जानता भी नहीं था। लेकिन इस गाने के बाद मंजू को बहुत ख्याति मिली थी।
ये कहानी भी दिलचस्प है
चांद फिल्म और रहमान की एक कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल, इस फिल्म के एक गाने की शूटिंग के लिए कुछ एक्स्ट्राज़ बुलाए गए थे। डायरेक्टर डीडी कश्यप को उन एक्सट्राज़ में एक पगड़ी वाला पठान भी चाहिए था।
काफी देर माथापच्ची करने के बाद डीडी कश्यप को पता चला कि रहमान भी पठान हैं और उन्हें पठानी पगड़ी बांधनी भी आती है। उन्होंने रहमान से पगड़ी बांधने को कहा और गाने के शूट के लिए भीड़ में खड़े हो जाने को भी कह दिया। रहमान ने पगड़ी बांधी और एक्सट्रा कलाकारों के साथ खड़े हो गए।
एक लाइन नहीं बोली जा रही थी
जैसे ही गाना खत्म हुआ तो डायरेक्टर डीडी कश्यप ने रहमान से दो लाइनें बोलने को कहा। पहले तो रहमान हिचकिचाए। लेकिन डीडी कश्यप के आदेश देने पर उन्होंने वो लाइनें बोल दी।
वो लाइनें थी,"वाह वाह क्या नाच है। संगीत की लहरों पर चांद का नाच है।" कहने को तो ये महज़ दो छोटी सी लाइनें थी। लेकिन इन दो लाइनों को बोलने में रहमान को इतनी परेशानी हो रही थी कि पूरे तीस टेक उन्होंने इन लाइनों की खातिर बैक टू बैक लिए थे।
इतने ज़्यादा टेक हो जाने के कारण डायरेक्टर डीडी कश्यप झल्ला गए और गुस्से में उन्होंने रहमान को सेट से दूर चले जाने को कहा। निराश रहमान सेट से उतरकर चले गए।
तब शेख फत्तेलाल जो कि प्रभात स्टूडियोज़ में एक पार्टनर थे, उन्होंने डीडी कश्यप से रहमान को फिर से बुलाने को और सीन शूट करने को कहा।
एक एंगल ये भी है
शेख फत्तेलाल के कहने पर रहमान को वापस बुलाया गया और आखिरकार 50 टेक के बाद डीडी कश्यप ने सीन को ओके कर दिया। लेकिन एक बात जो मेरठ मंथन ने अपनी रिसर्च में पाई वो ये कि चूंकि रहमान ने इतने ज़्यादा टेक्स उस डायलॉग को बोलने में ले लिए थे कि डीडी कश्यप उनसे बुरी तरह से खिन्न हो गए थे, तो उन्होंने दो अन्य एक्टर्स के साथ ये दोनों लाइनें,"वाह वाह क्या नाच था। संगीत की लहरों पर चांद का नाच था।" शूट कर ली थी।
और फिल्म की फाइनल एडिटिंग में इन्हीं लाइनों को ही लिया। अगर आप यूट्यूब पर मौजूद चांद फिल्म को देखेंगे तो फिल्म शुरू ही गाने से होती है और इसी गाने के बाद दो कलाकार आपको एक्ट्रेस के सामने ये लाइनें बोलते दिखाई देंगे।
और उन दोनों में से किसी के सिर पर पठानी पगड़ी भी नहीं है। यानि रहमान ने कैमरे के सामने पहली दफा एक्टिंग चांद फिल्म में ज़रूर की थी। लेकिन इस फिल्म में उनके सीन को डायरेक्टर डीडी कश्यप ने काट दिया था। और इसी घटना के बाद रहमान ने फैसला कर लिया कि अब वो एक्टर ही बनेंगे।
देवानंद के साथ हुआ करियर का आगाज़
रहमान को एक्टिंग करने का अगला मौका मिला साल 1946 में आई फिल्म हम एक हैं में। ये फिल्म भी प्रभात फिल्म कंपनी की ही फिल्म थी। और कहा जाता है कि शेख फत्तेलाल ने ही रहमान को इस फिल्म में एक्टिंग करने का मौका दिलाया था।
इत्तेफाक से यही फिल्म सदाबहार देव आनंद की भी पहली फिल्म थी। इस फिल्म में रहमान के किरदार का नाम यूसुफ था जो दुर्गा खोटे का गोद लिया बेटा था और देवानंद का धरम भाई था। इस फिल्म में रहमान ने ज़बरदस्त एक्टिंग की।
रहमान की प्रमुख फिल्में
दो साल की कड़ी मेहनत का फल रहमान को आखिरकार मिल ही गया। और इसके बाद रहमान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रहमान ने कई फिल्मों में बतौर हीरो काम किया था। जैसे शाहजहां(1946), नरगिस(1946), तोहफा(1947), प्यार की जीत(1948), पारस(1949), बड़ी बहन(1949) और परदेस(1950)।
सपोर्टिंग एक्टर बन गए रहमान
बतौर हीरो इनकी फिल्में सफल ना हो सकी। रहमान ने सपोर्टिंग रोल करने शुरू कर दिए। इत्तेफाक से इस वक्त तक गुरूदत्त से रहमान की बढ़िया दोस्ती हो गई थी। और ये गुरूदत्त ही थे जिन्होंने रहमान को फिल्म इंडस्ट्री में वो मुकाम दिलाने में मदद की थी जिसका ख्वाब कोई भी एक्टर देखता है।
प्यासा को कौन भुला सकता है?
गुरूदत्त के साथ रहमान की पहली फिल्म थी "प्यासा" जो कि साल 1957 में रिलीज़ हुई थी। पूरे सात साल बाद इस फिल्म से रहमान सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर रहे थे। लेकिन इस दफा वो हीरो नहीं, बल्कि फिल्म में एक निगेटिव शेड वाला किरदार निभा रहे थे।
उनके किरदार का नाम था मिस्टर घोष जो कि एक नामी पब्लिशर था और जो फिल्म के हीरो से नफरत करता था। रहमान ने मिस्टर घोष का ये रोल बहुत जानदार तरीके से निभाया।
रहमान के यादगार किरदार
इस फिल्म के बाद तो रहमान गुरूदत्त की फिल्मों का पर्मानेंट फेस बन गए। "चौदहवीं का चांद" हो या फिर "साहिब बीबी और गुलाम" हो। इन दोनों ही फिल्मों में रहमान की अदाकारी को भला कौन भूल सकता है।
साल 1963 में आई फिल्म "ताज महल" में रहमान ने मुगल बादशाह जहांगीर का रोल बड़े ही प्रभावशाली ढंग से निभाया था। 1966 की "दिल ने फिर याद किया" में रहमान नवाब मिर्ज़ा के रोल में दिखे थे। जबकी उससे पहले 1961 में आई "धर्मपुत्र" में शशि कपूर के दोस्त जावेद की भूमिका में भी रहमान को काफी पसंद किया गया था।
"वक्त" फिल्म के चिनॉय सेठ का किरदार आज भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा है। वहीं "मेरे हमदम मेरे दोस्त" के अजीत नारंग और "बहारें फिर भी आएंगी" के मिस्टर वर्मा के रंगीन मिजाज़ किरदारों को भी रहमान ने बखूबी जिया था।
निजी ज़िंदगी
रहमान की निजी ज़िंदगी के बारे में बहुत ही कम जानकारियां मिलती हैं। अपने जीवन काल में वो इंटरव्यू वगैरह से ज़्यादातर दूर ही रहते थे। रहमान का मानना था कि उनका काम उनकी पहचान बनाने के लिए काफी है। लेकिन जो भी थोड़ी बहुत जानकारियां उनके बारे में उपलब्ध हैं, वो हम अपने दर्शकों को ज़रूर देंगे।
साल 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ था तो रहमान के परिवार के कई लोग पाकिस्तान चले गए थे। हालांकि रहमान ने भारत में ही रुकने का फैसला किया। पाकिस्तान जाने वालों में रहमान के एक भाई भी थे।
रहमान के उसी भाई के बेटे यानि रहमान के भतीजे फैसल रहमान और फसीह उर रहमान आज पाकिस्तान में नामी चेहरा हैं। फैसल रहमान एक एक्टर हैं और फसीह उर रहमान एक क्लासिकल डांसर हैं।
सुरैया को चाहते थे Rehman
जिस ज़माने में Rehman फिल्मों में बतौर हीरो काम कर रहे थे, उस ज़माने में उन्होंने सुरैया के साथ भी कुछ फिल्में की थी। रहमान सुरैया से प्यार करने लगे थे और उनसे शादी करना चाहते थे। लेकिन उस ज़माने में सुरैया देव आनंद को चाहती थी।
फिर जब देव आनंद संग उनका रिश्ता खत्म हुआ तो उन्होंने कभी शादी ना करने का फैसला कर लिया। और कभी शादी ना करने के सुरैया के इस फैसले से रहमान का दिल बुरी तरह टूट गया था।
कहा जाता है कि रहमान अपनी एक गर्लफ्रेंड के साथ मुंबई में रहते थे और बाद में उन्होंने उसी के साथ शादी भी कर ली थी। रहमान की पर्सनल लाइफ के बारे में इससे ज़्यादा जानकारियां नहीं मिलती हैं।
बुरा गुज़रा था आखिरी वक्त
चूंकि रहमान बहुत ज़्यादा शराब पीते थे और एक चेन स्मोकर थे तो उनके दिल की हालत खराब रहने लगी। साल 1977 में रहमान को तीन बार हार्ट अटैक आया था। इस वजह से उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया।
फिर इसी साल उन्हें गले का कैंसर भी हो गया। किसी ज़माने में अपनी मैजेस्टिक वॉइस की वजह से फिल्म इंडस्ट्री में इतनी कामयाबी हासिल करने वाले रहमान आखिरी वक्त में अपनी आवाज़ भी खो चुके थे। और कैंसर से लड़ते हुए ही रहमान इस दुनिया से भी चले गए।
रहमान की मौत के समय को लेकर तमाम मतभेद फिल्म हिस्टोरियन्स के बीच देखने को मिलते हैं। कुछ लोग दावा करते हैं कि रहमान की मौत साल 1979 में हुई थी। जबकी कुछ लोग कहते हैं कि साल 1984 में रहमान इस दुनिया को छोड़कर गए थे।
Meerut Manthan का Rehman को
अब सच चाहे जो भी हो। लेकिन एक ज़माने का बेहद धुरंधर अभिनेता ज़िंदगी के आखिरी सालों में एकदम गुमनामी की ज़िंदगी बिता रहा था। मगर Meerut Manthan रहमान को याद करते हुए उन्हें नमन करता है। और फिल्म इंडस्ट्री में उनके किए योगदान के लिए उन्हें सैल्यूट भी करता है। जय हिंद।
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