Ankush 1986 | 10 Unknown Facts | Hindi Trivia | अंकुश फिल्म की 10 अनसुनी कहानियां
Ankush 1986 21 जुलाई साल 1986 को रिलीज़ हुई अंकुश एक ऐसे विषय को दिखाती है जो आज के दौर में भी समाज में अपनी जड़ें जमाए है। फिल्म की कहानी कुछ ऐसे युवाओं पर केंद्रित है जो कहने को तो पढ़े-लिखे हैं।
लेकिन बेरोजगारी ने उन्हें समाज के नियमों के खिलाफ जाने पर मजबूर कर दिया है। फिर एक वक्त ऐसा भी आता है जब ये युवा मुख्यधारा में वापस लौटते हैं। लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है कि नियम और कानून से उनका भरोसा पूरी तरह से उठ जाता है। और वो कानून अपने हाथ में ले लेते हैं।
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Ankush 1986 10 Unknown Facts Hindi Trivia - Photo: Social Media |
फिल्म के डायरेक्टर थे एन चंद्रा और इस फिल्म की कहानी का आइडिया भी उन्हीं का था। फिल्म में कुल 3 गीत हैं और इन गीतों का संगीत तैयार किया है कुलदीप सिंह ने। महज़ 12 लाख रुपए के बजट में बनी अंकुश की कुल कमाई 95 लाख रुपए थी। यानि कहा जा सकता है कि अंकुश बॉक्स ऑफिस पर काफी सफल रही थी।
Meerut Manthan पर आज आप जानेंगे साल 1986 की एक मास्टरपीस फिल्म अंकुश की मेकिंग से कुछ जुड़ी रोचक और रोमांचक कहानियां। अंकुश फिल्म बनाने के लिए एन चंद्रा ने कितनी डेडिकेशन के साथ इस पर काम किया था?
नाना पाटेकर की किस्मत ने कैसे उन्हें ये फिल्म दिलाई थी? क्यों इस फिल्म के लिए एन चंद्रा को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ गया था? ये सारी और ऐसी ही कई कहानियां आज हम और आप जानेंगे। Ankush 1986.
पहली कहानी
अंकुश उस दौर की फिल्म है जब बॉम्बे यानि मुंबई में मौजूद कॉटन मिलें धड़ाधड़ बंद हो रही थी और बड़ी तादाद में युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा था। और ऐसी सिचुएशन में जब अंकुश फिल्म आई तो लोगों को ये बहुत पसंद आई। क्योंकि अंकुश की कहानी भी काफी हद तक बेरोजगारी से कनेक्टेड थी।
वहीं अंकुश फिल्म की कहानी गुलज़ार साहब की फिल्म मेरे अपने से भी प्रेरित है जो कि साल 1971 में रिलीज़ हुई थी। वैसे भी अंकुश फिल्म के डायरेक्टर एन चंद्रा किसी ज़माने में गुलज़ार के असिस्टेंट रह चुके थे और उनका फिल्मी करियर भी गुलज़ार के साथ ही शुरू हुआ था।
एन चंद्रा गुलज़ार साहब के साथ एडिटर की हैसियत से काम करते थे। अंकुश के रविंद्र केलकर का कैरेक्टर गुलज़ार की मेरे अपने के श्याम से ही प्रेरित था।
दूसरी कहानी
अंकुश फिल्म में कुल तीन गीत थे जिनका संगीत तैयार किया था कुलदीप सिंह ने और फिल्म के गीत लिखे थे गीतकार अभिलाष ने। अंकुश फिल्म का ही गीत इतनी शक्ति हमें देना दाता एक ऐसा मास्टरपीस बनकर सामने आया कि आज तक ये गीत लोग सुनते या गुनगुनाते दिखाई दे जाते हैं।
आज भी कई मंदिरों में और कई स्कूलों में ये गीत प्रार्थना गीत के तौर पर बजाया व जाता है। इस गीत को गाया था पूर्णिमा श्रेष्ठा और पुष्पा पगधरे ने। गायिका पूर्णिमा श्रेष्ठा को भारत की पहली चाइल्ड सिंगर कहा जाता है। क्योंकि इन्होंने साल 1971 में आई फिल्म अंदाज़ में पहली दफा एक गीत रिकॉर्ड किया था जिसके बोल थे है ना बोलो बोलो।
इससे पहले महिला सिंगर ही बच्चों के लिए गाने रिकॉर्ड किया करती थी। बात अगर पुष्पा पगधरे की करें तो एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि इस गीत को गाने के लिए उन्हें मात्र 250 रुपए ही मिले थे। जबकी आज ये गीत इतना ज़्यादा पॉप्युलर है। लेकिन उन्हें कभी भी इस गीत की कोई रॉयल्टी नहीं मिली और वे आर्थिक मोर्चे पर काफी परेशानियों का सामना कर रही हैं।
तीसरी कहानी
अंकुश फिल्म को बनाते वक्त डायरेक्टर एन चंद्रा को बहुत ज़्यादा आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था। पहले तो उन्हें इस फिल्म के लिए कोई प्रोड्यूसर ही नहीं मिल रहा था। फिर आखिरकार सुभाष दुर्गाकर ने इस फिल्म को प्रोड्यूस करने का फैसला किया। लेकिन फिल्म पूरी हो पाती इससे पहले ही सुभाष दुर्गाकर की माली हालत खराब हो गई।
सुभाष दुर्गाकर ने अपना घर भी ये फिल्म पूरी करने के लिए बेच दिया। लेकिन फिल्म तब भी पूरी नहीं हो पाई। ऐसे में एन चंद्रा ने फिल्म को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी और अपनी बहन के गहने बेच दिए। इतना ही नहीं, उन्होंने अपना घर तक ये फिल्म पूरी करने के लिए बेच दिया था। लेकिन फिल्म तब भी पूरी नहीं हो पाई थी।
आखिरकार नाना पाटेकर ये फिल्म पूरी करने के लिए आगे आए। नाना ने 2 लाख रुपए में अपना घर गिरवी रख दिया और वो पैसा एन चंद्रा को दे दिया। फाइनली जब अंकुश रिलीज़ हुई और बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई तो एन चंद्रा ने नाना पाटेकर के सारे पैसे लौटा दिए। एन चंद्रा ने नाना को एक स्कूटर भी गिफ्ट किया था।
चौथी कहानी
अंकुश फिल्म नाना पाटेकर के करियर की पहली फिल्म थी जिससे उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में नाम और पहचान मिली थी। लेकिन नाना पाटेकर इस फिल्म के लिए एन चंद्रा की पहली पसंद थे ही नहीं। अंकुश के रविंद्र केलकर का किरदार उस दौर के नामी मराठी एक्टर रविंद्र महाजनी को ध्यान में रखकर लिखा गया था जिन्हें उस लोग मराठी फिल्मों का विनोद खन्ना कहा करते थे।
लेकिन रविंद्र महाजनी ने एन चंद्रा से 25 हज़ार रुपए की डिमांड कर दी। और चूंकि एन चंद्रा के लिए ये रकम देना मुश्किल था तो उन्होंने 10 हज़ार रुपए में नए एक्टर नाना पाटेकर को रविंद्र केलकर के रोल के लिए साइन कर लिया। तीन हज़ार रुपए नाना को तुरंत चुका दिए गए और बाकी सात हज़ार फिल्म के बिकने के बाद चुकाने का वादा किया गया।
कहा जाता है कि रविंद्र महाजनी उन दिनों अपना कंस्ट्रक्शन का काम शुरू करने जा रहे थे इसलिए उन्होंने एन चंद्रा के सामने ऐसी डिमांड रखी कि वो उसे पूरी ना कर सकें और ये फिल्म उन्हें ना करनी पड़े। हालांकि बाद में उन्हें अपने इस फैसले पर बहुत अफसोस भी हुआ था।
पांचवी कहानी
अंकुश फिल्म को साइन करने से पहले नाना पाटेकर ने मराठी फिल्मों में अपना करियर शुरू ही किया था। उन दिनों नाना पाटेकर मुंबई नहीं, पुणे में रहा करते थे। लेकिन अंकुश फिल्म साइन करने के बाद साल 1984 में नाना पुणे से मुंबई आ गए।
अंकुश नाना पाटेकर के करियर की पहली नोटेबल हिंदी फिल्म थी। इस फिल्म की सफलता ने रातों रात नाना पाटेकर को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में टॉप पर ला दिया। नाना के पास फिल्मों के ऑफर्स की झड़ी लग गई। लेकिन नाना ने लगभग 28 ऑफर ठुकरा दिए थे और केवल चार को ही अक्सेप्ट किया।
एक इंटरव्यू में नाना ने बताया था कि अंकुश की सफलता के बाद उन्हें कई बड़े बैनर्स की तरफ से बड़े और ज़्यादा पैसों वाले ऑफर्स आए। लेकिन उन सब में उन्हें बहुत ही घटिया किरदार ऑफर किए जा रहे थे। इसलिए उन्होंने उन सब को ठुकरा दिया।
छठी कहानी
अंकुश के डायरेक्टर एन चंद्रा ने अपना फिल्मी करियर गुलज़ार साहब की फिल्म परिचय से शुरू किया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि गुलज़ार साहब की परिचय से एन चंद्रा एक क्लैपर बॉय के तौर पर जुड़े थे।
गुलज़ार साहब के साथ काम सीखते-सीखते एन चंद्रा फिल्म एडिटर भी बन गए और गुलज़ार साहब की ही फिल्म मेरे अपने से प्रेरित होकर उन्होंने अंकुश फिल्म की कहानी लिखी थी। एन चंद्रा ने अंकुश की कहानी खुद ही लिखी थी। दरअसल, एन चंद्रा मुंबई के वरली इलाके में पले-बढ़े थे।
उनके चारों तरफ गरीब लोग ही रहा करते थे जो कोई काम-धाम नहीं करते थे और सिर्फ सड़कों पर यहां-वहां घूमते फिरते थे। वहीं पर एन चंद्रा अक्सर कुछ लड़कों को देखते थे जो पढ़े-लिखे होने के बावजूद बेरोजगार थे और अक्सर फ्र्सट्रेट रहा करते थे।
सातवीं कहानी
अंकुश फिल्म में अनिता के किरदार में दिखी अभिनेत्री निशा के फिल्मी करियर की ये इकलौती नोटेबल फिल्म है। इसके बाद या इससे पहले निशा सिंह ने जो भी फिल्में की उनमें उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिल पाई। अभिनेता दिनेश कौशिक के करियर का आगाज़ भी अंकुश फिल्म से हुआ था। इस फिल्म में वो दवे के किरदार में दिखे थे।
आगे चलकर दिनेश कौशिक एक नामी कैरेक्टर आर्टिस्ट बने। अंकुश फिल्म में ही साउथ के नामी एक्टर चरण राज ने पहली दफा किसी हिंदी फिल्म में काम किया था। चरण राज इस फिल्म में एक गुंडे के किरदार में दिखे थे। अंकुश में ही अभिनेता महावीर शाह, राज ज़ुत्सी, राजा बुंदेला और मदन जैन ने भी काम किया था। और इस फिल्म से पहले भी ये सभी एक्टर कुछ फिल्मों में काम कर चुके थे।
लेकिन इन्हें किसी ने नोटिस नहीं किया था। मगर अंकुश फिल्म की सफलता से इन सभी कलाकारों को भी बहुत फायदा मिला और इन्हें बढ़िया रोल्स मिलने लगे। खासतौर पर महावीर शाह के लिए तो अंकुश फिल्म बहुत ही शुभ साबित हुई। इस फिल्म के बाद महावीर शाह विलेनियस रोल निभाने वाले एक्टर के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
आठवीं कहानी
अंकुश भले ही साल 1986 की सुपरहिट फिल्म थी। लेकिन फिर भी कमाई के मामले में ये फिल्म 1986 की टॉप 20 फिल्मों की लिस्ट में शुमार नहीं हो सकी थी। 12 लाख रुपए में बनी अंकुश ने 95 लाख रुपए की कमाई की थी। 1986 में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म कर्मा थी जिसने कुल 7 करोड़ रुपए की कमाई की थी। 1
986 की दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी नगीना जिसने कुल चार करोड़ 75 लाख रुपए कमाए थे। 1986 की तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी अमिताभ बच्चन की आखिरी रास्ता जो कि 4 करोड़ 25 लाख रुपए कमाने में सफल रही थी।
एक और बात जो आपको जाननी चाहिए वो ये कि अंकुश नाम की एक और फिल्म थी जो माया इंटरनेशनल के बैनर तले बन रही थी और जिसमें शबाना आज़मी, अमोल पालेकर, देवेन वर्मा और फरीदा जलाल जैसे कलाकार थे। ये फिल्म 1978 में ही रिलीज़ होनी थी। लेकिन किन्हीं वजहों से ये फिल्म शेल्व हो गई और फिर दोबारा कभी शुरू नहीं हो पाई। ये फिल्म मुकुल दत्त डायरेक्ट कर रहे थे।
नौंवी कहानी
अंकुश फिल्म की कामयाबी ने ना केवल इसमें काम करने वाले कलाकारों के लिए सफलताओं के दरवाज़े खोले थे। बल्कि डायरेक्टर एन चंद्रा को भी इंडस्ट्री के चोटी के डायरेक्टर्स की लिस्ट में शुमार करा दिया था।
कहां तो एक वक्त वो था जब अंकुश को प्रोड्यूस करने के लिए एन चंद्रा को कोई प्रोड्यूसर नहीं मिल रहा था। मगर जब अंकुश ने तगड़ी सफलता हासिल कर ली तो प्रोड्यूसर्स के बीच एन चंद्रा को साइन करने की होड़ लग गई। और इस होड़ के सबसे बड़े नाम थे मनमोहन देसाई और पुरणचंद राव।
एक इंटरव्यू में एन चंद्रा ने बताया था कि उन्होंने मनमोहन देसाई की एक फिल्म साइन भी कर ली थी। हालांकि वो फिल्म कभी नहीं बन पाई।
दसवीं कहानी
अंकुश फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत था इतनी शक्ति हमें देना दाता। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस तरह से लगाया जा सकता है कि जब ये गीत आया था तो पंजाब नेशनल बैंक ने इस गीत को अपना थीम सॉन्ग बना लिया था।
कहा जाता है कि और भी कुछ बैंक्स थे जिन्होंने इस गीत को ही अपना थीम सॉन्ग बनाया था। अब तक आठ भाषाओं में इस गीत का अनुवाद किया जा चुका है। कई लोग तो आज भी ये मानते हैं कि ये कोई पौराणिक भजन है।
ऐसे लोगों को अब भी नहीं पता कि ये गीत अंकुश फिल्म का एक गीत है। अंकुश के डायरेक्टर ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा था वो देहरादून में एक नेता से मिलने जा रहे थे जिसने उन्हें मिलने के लिए बुलाया था।
उन्होंने उस नेता को फोन किया तो उसका कॉलर ट्यून अंकुश फिल्म का गीत इतनी शक्ति हमें देना दाता था। एन चंद्रा ने उस नेता से पूछा,"आप जानते हैं ये किस फिल्म का गीत है?" उस नेता ने जवाब दिया,"नहीं।" एन चंद्रा को पता था कि नेता का जवाब यही होगा।
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