Satish Kaushik Hindi Biography | हरियाणा का लाल जिसने बॉलीवुड में मचाया धमाल | संघर्ष से सफलता तक सतीश कौशिक की कहानी
Satish Kaushik. इस नाम और इस चेहरे से भारत का हर सिने प्रेमी अच्छी तरह से वाकिफ होगा। एक्टिंग हो, डायरेक्शन हो, या फिर राइटिंग हो, सतीश कौशिक ने सिनेमा के कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
इनके निभाए कई किरदार आज भी सिने प्रेमियों को याद हैं और इनकी डायरेक्ट की हुई कई फिल्में अब भी लोगों की पसंदीदा फिल्मों की लिस्ट में शुमार हैं।
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Satish Kaushik Hindi Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज आपको Satish Kaushik की कहानी बताएगा। हम जानेंगे कि कैसे हरियाणा के रहने वाले Satish Kaushik मुंबई पहुंचकर फिल्म इंडस्ट्री में इतना बड़ा नाम बने।
Satish Kaushik का शुरुआती जीवन
सतीश कौशिक का जन्म हुआ था 13 अप्रैल 1956 को हरियाणा के महेंद्रगढ़ के धनौंदा गांव में। परिवार में इनके माता-पिता के अलावा इनके दो भाई और 3 बहनें थी।
जब ये काफी छोटे थे तब इनके पिता बनवारीलाल कौशिक नौकरी के चलते अपने परिवार को लेकर दिल्ली के करोलबाग इलाके में आ गए। वे हरिसन ताला कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में नौकरी करते थे।
Satish Kaushik की परविश और एजुकेशन दिल्ली में ही हुई। सतीश कौशिक ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन किया था। सतीश को बचपन से ही फिल्में देखने का बेहद शौक था।
महान कॉमेडियन महमूद की फिल्में ये बड़े ही शौक से देखा करते थे। महमूद साहब की अदाकारी इन्हें इतनी पसंद थी कि उनके सीन्स को ये अपने घर पर अकेले में खुद करने की कोशिश किया करते थे।
जब सतीश कौशिक पर चढ़ा एक्टिंग का भूत
फिल्मों का जुनून सतीश पर कुछ ऐसा चढ़ा कि इन्होंने ठान लिया बड़े होकर ये एक्टर बनेंगे। शुरूआत में इनके घरवालों ने इनका काफी विरोध किया।
कई दफा इनके बड़े भाई ने इन्हें पीट भी दिया। लेकिन एक्टिंग का जुनून सतीश के सिर से उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था।
आखिरकार घरवाले इनकी ज़िद के सामने झुके और इन्होंने एनएसडी में दाखिला ले लिया। हालांकि नाटकों में काम करना इन्होंने एनएसडी में दाखिला लेने से काफी पहले ही शुरू कर दिया था।
NSD से पढ़ाई पूरी करने के बाद सतीश कौशिक ने कुछ दिन और दिल्ली में नाटकों में काम किया। और फिर ये चले आए मुंबई।
मुंबई आने के बाद सतीश कौशिक को भी दूसरे लोगों की तरह ही संघर्ष के दौर से गुज़रना पड़ा। सतीश के भाई ने मुंबई में इनकी नौकरी एक मिल में लगवा दी।
सतीश कौशिक ने भी खर्च चलाने के लिए कैशियर की ये नौकरी कर ली। इस नौकरी से समय निकालकर सतीश कौशिक नाटकों में भी काम करते रहते थे।
ऐसे हुई बॉलीवुड में शुरुआत
सतीश कौशिक को पहली दफा एक्टिंग करने का मौका मिला साल 1983 में रिलीज़ हुई फिल्म मासूम में। इस फिल्म में ये नैनीताल में रहने वाले तिवारी जी के किरदार में नज़र आए थे।
इसके बाद इसी साल ये नज़र आए श्याम बेनेगल की बहुचर्चित फिल्म मंडी में। करियर की शुरूआत से लेकर साल 1987 तक सतीश कौशिक लगभग 10 फिल्मों में काम कर चुके थे।
लेकिन इन्हें असली पहचान मिली 1987 में आई फिल्म मिस्टर इंडिया से। इस फिल्म में इनके कैलेंडर के किरदार को भला कौन भूल सकता है।
इस किरदार ने सतीश कौशिक को रातों-रात मशहूर कर दिया। सतीश कौशिक की कॉमेडी को लोगों ने बेहद पसंद किया।
इस रोल के बाद सतीश कौशिक बॉलीवुड में एक कॉमेडियन के तौर पर स्थापित हो गए। मिस्टर इंडिया के बाद सतीश कौशिक को एक से बढ़कर एक कॉमेडी रोल्स मिलने लगे।
इनका दूसरा सबसे पसंदीदा कॉमिक करिदार रहा 1989 में रिलीज़ हुई फिल्म राम-लखन में कांशीराम का किरदार, जो कि अनुपम खेर का असिस्टेंट होता है।
कॉमेडी करके मचा दी धूम
सतीश कौशिक जब एक्टर के तौर पर मशहूर हो गए तो इन्हें एक से बढ़कर एक रोल्स मिलने लगे।
इनके यादगार किरदारों की बात करें तो साजन चले ससुराल में मुथ्थू स्वामी के किरदार में इन्हें बेहद पसंद किया गया था।
गोविंदा के साथ इनकी कॉमिक टाइमिंग ने लोगों को बेहद हंसाया था। वहीं मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी में अक्षय कुमार के मामा जी के रोल को भला कौन भुला सकता है।
और बड़े मियां-छोटे मियां के शराफत अली के किरदार में भी इन्होंने शानदार काम किया।
डायरेक्शन में भी कर दिया कमाल
सतीश कौशिक एक शानदार अभिनेता ही नहीं, एक बेमिसाल डायरेक्टर भी हैं। डायरेक्शन में इन्होंने साल 1993 से हाथ आजमाना शुरू कर दिया था।
दरअसल, एनएसडी के दिनों से ही सतीश कौशिक को डायरेक्शन करने का शौक था। उन दिनों में ये नाटकों का डायरेक्शन किया करते थे।
लेकिन फिल्मी दुनिया में पहली दफा इन्हें डायरेक्शन का मौका दिया बोनी कपूर ने अपनी फिल्म रूप की रानी चोरों का राजा में।
हालांकि इससे पहले ये शेखर कपूर की फिल्म मासूम में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके थे।
जब आने लगे आत्महत्या के ख्याल
रूप की रानी चोरों के राजा के बाद इन्होंने बोनी कपूर की ही प्रेम का डायरेक्शन किया था।
लेकिन इत्तेफाक से ये दोनों ही फिल्में बुरी तरह से फ्लॉप हुई और सतीश कौशिक पर इसका इतना बुरा असर हुआ कि ये आत्महत्या करने के बारे में भी सोचने लगे।
मगर फिर इनकी अंतरआत्मा ने इन्हें आवाज़ दी और इन्होंने समझा कि ज़िंदगी में सफलता और असफलता का सिलसिला चलता रहता है। इंसान को इन चीज़ों से निराश नहीं होना चाहिए।
इन्होंने कुछ और फिल्मों का डायरेक्शन किया। हालांकि वे फिल्में भी कुछ खास नहीं चली। लेकिन फिर साल 2001 में इन्होंने डायरेक्ट की फिल्म मुझे कुछ कहना है।
ये फिल्म तुषार कपूर की डेब्यू फिल्म थी। फिल्म सुपरहिट रही और इस फिल्म में इनके डायरेक्शन को काफी पसंद किया गया।
इसके बाद सलमान खान स्टारर तेरे नाम में भी इनका डायरेक्शन भी काफी चर्चाओं में रहा। कहना चाहिए कि सलमान खान के डूबते करियर को फिर से उठाने वाली फिल्म तेरे नाम ही थी।
टीवी पर भी किया कमाल
सतीश कौशिक ने केवल फिल्मों में ही नहीं, टीवी पर भी काम किया है। इन्होंने द ग्रेट इंडियन फैमिली ड्रामा नाम के एक स्टैंडअप कॉमेडी शो में काम किया था और इस शो में इन्होंने नवाब जंग बहादुर का किरदार निभाया था।
इनके इस किरदार को काफी पसंद भी किया गया था। वहीं स्टार प्लस पर आने वाले कॉमेडी शो सुमित सब संभाल लेगा में ये जसबीर वालिया बने थे।
और इस किरदार में भी ये खूब जमे थे। 2017 में लाइफ ओके चैनल पर आने वाले शो मेय आई कम इन मैडम में बॉबी चाचा बनकर दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में कामयाब रहे थे।
सतीश कौशिक ने क्योंकी, डरना ज़रूरी है और बम बम बोले नाम की फिल्मों को प्रोड्यूस भी किया है।
रियल एस्टेट में आजमाया था हाथ
देश की मशहूर रिएल एस्टेट कंपनी पार्श्वनाथ ग्रुप के साथ सतीश कौशिक ने पार्टनरशिप में चंडीगढ़ फिल्म सिटी प्रोजेक्ट की शुरूआत की थी।
इन्होंने पार्श्वनाथ ग्रुप के साथ मिलकर चंडीगढ़ के पास सारंगपुर गांव में 30 एकड़ ज़मीन अपने इस प्रोजेक्ट के लिए खरीदी थी।
हालांकि इस प्रोजेक्ट की परमिशन में कुछ गड़बड़-घोटाला हुआ था और आखिरकार ये प्रोजेक्ट बंद हो गया।
सतीश कौशिक की पारिवारिक ज़िंदगी
बात अगर सतीश कौशिक की निजी ज़िंदगी के बारे में करें तो इनकी शादी साल 1985 में शशी कौशिक से हो गई थी।
सतीश कौशिक और उनकी पत्नी को एक बेटा हुआ था जिसका नाम शानू था। लेकिन एक बीमारी के चलते इनके बेटे की मौत हो गई थी।
सतीश कौशिक कहते हैं कि जिस वक्त उनके बेटे की मौत हुई थी उस वक्त उनका करियर अपने पीक पर था।
वो इतने ज़्यादा बिज़ी थे कि अपने बेटे की मौत का अफसोस भी ठीक से नहीं कर सके। आज जब वो इस बारे में सोचते हैं तो उन्हें बेहद दुख होता है।
पहले बच्चे की मौत के बाद इनकी पत्नी डिप्रेशन में चली गई थी और इसके चलते वो कई सालों तक मां नहीं बन पाई थी।
लेकिन फिर सालों बाद आईवीएफ टैक्नोलोजी से सतीश कौशिक की पत्नी शशि फिर से गर्भवती और इनके घर एक बच्ची ने जन्म लिया जिसका नाम इन्होंने वंशिका रखा।
सतीश कौशिक ने रूप की रानी चोरों का राजा के बाद संजय कपूर की डेब्यू फिल्म प्रेम का निर्देशन किया था ना कि राजा का। राजा इंद्र कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म है।
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