Kulbhushan Kharbanda | बॉलीवुड के शाकाल यानि अभिनेता कुलभूषण खरबंदा की जीवनी | Hindi Biography

Kulbhushan Kharbanda. एक ऐसा दमदार कलाकार जिसने रंगमंच, आर्ट सिनेमा और कॉमर्शियल सिनेमा में अपना सिक्का जमाया। विलेनी हो या फिर गंभीर रोल हों, कुलभूषण खरबंदा ने हर रोल को बखूबी निभाया और मौका मिलने पर कॉमेडी भी खूब की। 

ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के आखिरी दौर में अपना करियर शुरू करने वाले कुलभूषण खरबंदा अब वेबसीरीज़ में भी अपनी धमाकेदार एक्टिंग से अपने चाहने वालों का मनोरंजन कर रहे हैं।

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Kulbhushan Kharbanda Hindi Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज Hindi Cinema के दमदार कलाकार Kulbhushan Kharbanda की ज़िंदगी की कहानी बताएगा।  Delhi University के Student रहे Kulbhushan Kharbanda कैसेअभिनय की दुनिया में आए और कैसे इतना बड़ा नाम बने।

शुरुआती जीवन

कुलभूषण खरबंदा का जन्म हुआ था ब्रिटिश इंडिया के पंजाब प्रांत के हसन अब्दल में 21 अक्टूबर सन 1944 को। लेकिन 1947 में भारत के विभाजन के साथ ही ये इलाका पाकिस्तान में चला गया और कुलुभूषण का परिवार भारत आ गया।

कुलभूषण का ज़्यादातर बचपन जोधपुर में बीता और वहीं से इन्होंने अपनी स्कूलिंग भी की। हालांकि बाद में इन्होंने देहरादून, अलीगढ़ और दिल्ली से भी अपनी कुछ पढ़ाई की थी। 

दिल्ली यूनिवर्सिटी से लगा अभिनय का चस्का

कुलभूषण ने अपना ग्रेजुएशन दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से पूरा किया था। और यही वो जगह भी बनी जिसने कुलभूषण को थिएटर की तरफ आकर्षित कराया। ये अपने कॉलेज के थिएटर ग्रुप से जुड़ गए और नाटकों में भाग लेने लगे।

यूं तो नाटकों में काम करना इन्होंने कॉलेज के दिनों में शुरू किया, लेकिन इस दिशा में इनका रुझान बचपन में ही होने लगा था। बचपन से ही ये कहानियां पढ़ने के शौकीन थे और हाथ में किताब लेकर बड़ी ज़ोर-ज़ोर से कहानियां पढ़ा करते थे।

थिएटर में खूब कमाया नाम

किरोड़ीमल कॉलेज में ये लगातार थिएटर करते रहे और यहां से अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद भी इन्होंने अपने कॉलेज के ही कुछ दोस्तों के साथ मिलकर थिएटर करना जारी रखा। 

दोस्तोँ के साथ मिलकर ही इन्होंने अभियान नाम से अपना एक थिएटर ग्रुप बनाया था।बाद में ये यात्रिक नाम के एक थिएटर ग्रुप का हिस्सा बन गए जो कि दिल्ली में ही मौजूद था। इस थिएटर ग्रुप के डायरेक्टर जॉय माइकल थे। 

ये ग्रुप हिंदी और अंग्रेजी भाषा में नाटक किया करता था। यहां ये बात भी बेहद खास है कि कुलभुषण खरबंदा इस ग्रुप से जुड़ने वाले वो पहले इंसान थे जिन्हें मेहनताना दिया जाता था। इनसे अलग जितने भी कलाकार यात्रिक से जुड़े थे वो सब वॉलंटियर के तौर पर इसमें काम करते थे। 

लेकिन कुछ सालों बाद यात्रिक थिएटर पैसे की कमी के चलते बंद हो गया। यात्रिक के बंद होने के बाद कुलभूषण खरबंदा ने रुख किया कोलकाता का और इन्होंने पदातिक नाम का एक थिएटर ग्रुप जॉइन कर लिया।

लोगों ने उड़ाया था मज़ाक

लोग अक्सर इनका मज़ाक उड़ाते थे। नाते-रिश्तेदार ताना मारते थे। इनसे कहते थे कि ये लड़का सिर्फ अपना समय खराब कर रहा है और एक दिन ये बेहद पछताएगा। अगर इसे एक्टिंग करने का इतना ही शौक है तो ये फिल्मों में क्यों काम नहीं कर रहा।

थिएटर में क्यों खुद को बर्बाद कर रहा है। लेकिन कुलभूषण का मन थिएटर में इतने गहरे तौर पर रम चुका था कि इन्हें लोगों की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। बहुत ज़्यादा पैसे ना मिलने के बावजूद भी ये रंगमंच में काम करते ही रहे।

किस्मत बदल देने वाला वो बुलावा

इसी बीच किसी ने श्याम बेनेगल को कुलभूषण खरबंदा के बारे में बता दिया था। ये वो वक्त था जब श्याम बेनेगल अपनी फिल्म अंकुर के चलते काफी मशहूर हो चुके थे। 

श्याम बेनेगल ने कुलभूषण खरबंदा के पास संदेश भिजवाया और कहा कि वो उनसे मिलना चाहते हैं इसलिए कुलभूषण को मुंबई आना होगा।

लेकिन कुलभूषण ने ये कहते हुए इन्कार कर दिया कि एक तो इतनी दूर जाने में खर्चा बहुत होगा और दूसरा कलकत्ते वाले को वो रोल देंगे नहीं। 

इसके बाद श्याम बेनेगल ने कुलभूषण को फ्लाइट की टिकट भेजकर मुंबई बुलवाया और इनका स्क्रीन टेस्ट लिया। ये बात भी गौर करने वाली है कि श्याम बेनेगल ने इससे पहले कभी किसी एक्टर का स्क्रीन टेस्ट नहीं लिया था।

लेकिन कुलभूषण की एक्टिंग से श्याम बेनेगल इतने ज़्यादा प्रभावित हुए कि स्क्रीन टेस्ट के दौरान ही उन्होंने फैसला कर लिया था कि अब से ये एक्टर उनकी फिल्मों का हिस्सा बनेगा। श्याम बेनेगल ने कुलभूषण के स्क्रीनटेस्ट को डेवलप कराके भी नहीं देखा।

लेकिन ये थी कुलभूषण खरबंदा की पहली फिल्म

कमाल की बात ये भी है कि श्याम बेनेगल ने इन्हें अपनी फिल्म निशांत में काम तो दिया था। लेकिन ये इनके करियर की पहली रिलीज़्ड फिल्म नहीं थी। दरअसल, कुलभूषण को संई परांजपे ने भी इसी साल अपनी फिल्म जादू का शंख में एक रोल दिया था।

और यही फिल्म इनकी पहली रिलीज्ड फिल्म बनी। इसके बाद रिलीज़ हुई थी श्याम बेनेगल की निशांत। फिल्म में इन्होंने ज़बरदस्त काम किया। इसके बाद तो ये श्याम बेनेगल की मंथन, भूमिका, जुनून, कलयुग जैसी फिल्मों में नज़र आए। 

शाकाल ने कर दिया मशहूर

1980 में ये नज़र आए रमेश सिप्पी की फिल्म शान में। इस फिल्म में इन्होंने मेन विलेन शाकाल का किरदार निभाया था। इनका ये किरदार बेहद मशहूर हुआ और इस फिल्म ने इन्हें रातोंरात पूरे भारत में मशहूर कर दिया था।

इसके बाद ये नज़र आए महेश भट्ट की फिल्म अर्थ में जिसमें ये शबाना आज़मी के साथ लीड कैरेक्टर में थे। इस फिल्म में भी इनकी एक्टिंग को बेहद पसंद किया गया था। यही वो वक्त भी था जब ये थिएटर से दूर होते चले गए और कॉमर्शियल सिनेमा से जुड़ते गए।

इन्होंने घायल, गुप्त, बॉर्डर रिफ्यूजी, लोफर, चाइना गेट, पुकार, हेरा फेरी, दामिनी, जो जीता वही सिकंदर, वीराना, खट्टा-मीठा जैसी 150 से भी ज़्यादा कमर्शियल फिल्मों में काम किया।

पैरलल सिनेमा में भी नाम कमाया

कुलभूषण खरबंदा ने पंजाबी सिनेमा में भी काफी नाम कमाया है। इसके अलावा दीपा मेहता की फिल्म अर्थ, फायर और वॉटर में ये नज़र आए। साथ ही छोटे पर्दे पर भी इन्होंने काफी काम किया। 

लेकिन जब भी इन्हें पैरलल सिनेमा में काम करने का मौका मिला वो मौका इन्होंने कभी नहीं गंवाया। क्योंकि पैरलल सिनेमा में ही इनके अंदर के असली अभिनेता से इनके फैंस रूबरू हुए थे।

जब दोबारा जॉइन किया थिएटर

सालों बाद ये फिर से थिएटर से जुड़े और अपने पुराने थिएटर ग्रुप पदातिक थिएटर के बैनर तले इन्होंने आत्मकथा नाटक में काम किया। इनके काम को रंगमंच के शौकीनों ने काफी पसंद किया।

और केवल इसी नाटक में ही नहीं, सखाराम बाइंडर, एक शून्य बाजीराव और हत्या एक आकार की जैसे नाटकों में इनकी अदायगी को पसंद किया गया।

ओटीटी की दुनिया में भी धूम मचा दी

वेब सीरीज़ के चलन में भी इन्होंने अपना नाम दर्ज कराया और लव शॉट्स नाम की एक वेबसीरीज़ में ये नज़र आए। उसके बाद मिर्ज़ापुर में काम करके तो इन्होंने वेबसीरीज़ की दुनिया में अपना नाम अमर करा लिया। 2020 में ये बीबीसी की मिनीसीरीज़ ए सूटेबल बॉय में नज़र आए।

Kulbhushan Kharbanda की Personal Life

बात अगर इनकी निजी ज़िंदगी के बारे में करें तो इन्होंने साल 1965 में महेश्वरी देवी से शादी की थी। महेश्वरी देवी एक शाही परिवार से हैं और राजस्थान के प्रतापगढ़ राजघराने में पैदा हुई हैं। 

कुलभूषण खरबंदा से पहले महेश्वरी देवी की शादी कोटा के महाराज से हुई थी। लेकिन किन्हीं कारणों के चलते वो शादी टूट गई थी। कुलभूषण खरबंदा और महेश्वरी देवी की दो बेटियां हैं। श्रुति खरबंदा व कृति खरबंदा।

कभी नहीं मिला कोई अवॉर्

ये बात भी हैरान करने वाली है कि इतनी सारी फिल्मों में ज़बरदस्त परफॉर्मेंस देने वाले कुलभूषण खरबंदा को फिल्म इंडस्ट्री ने कभी किसी खिताब या अवॉर्ड से नहीं नवाज़ा।

साल 1986 में ये फिल्म गुलामी में अपने रोल के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नॉमिनेट ज़रूर हुए थे। लेकिन वो अवॉर्ड इनका ना हो सका। 

मगर मेरठ मंथन का मानना है कि कूलभूषण खरबंदा जैसे महान कलाकारों को किसी और अवॉर्ड की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि जनता उनके काम को बेहद पसंद करती है और उनके काम को पूरा सम्मान देती है। एक कलाकार के लिए भला इसे बढ़कर कोई और अवॉर्ड और क्या होगा।

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