Dr Shriram Lagoo | अभिनय के लिए दे दी मेडिकल लाइसेंस की कुर्बानी | Hindi Biography

Dr Shriram Lagoo. अस्सी और नब्बे के दशक के वो महान कैरेक्टर आर्टिस्ट, जो हर तरह के रोल में एकदम फिट नज़र आते थे। इन्हें नटसम्राट कह लीजिए या फिर कह लीजिए नाक कान और गले का सर्जन। 

डॉक्टर श्रीराम लागू पर ये दोनों ही पदवी एकदम सटीक बैठती हैं। थिएटर से लेकर फिल्मों तक में इन्होंने एक्टिंग की और लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई।

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Dr Shriram Lagoo Hindi Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज आपको Bollywood के महानतम Character Artist Dr Shriram Lagoo की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। Dr Shriram Lagoo क्यों 42 साल की उम्र में फिल्मों में आए और वो कौन सा कैरेक्टर था जिसने इन्हें मराठी थिएटर में अमर कर दिया, आज ये पूरी कहानी हम आपको बताएंगे।

16 नवंबर 1927 को महाराष्ट्र के सतारा में बालाकृष्णा चिंतामन लागू और सत्यभामा लागू के घर श्रीराम लागू का जन्म हुआ था। स्कूल वो पहली जगह थी जहां इन्हें सबसे पहले स्टेज पर चढ़ने का मौका मिला था। दरअसल, इनकी पढ़ाई लिखाई पुणे में हुई थी। 

शुरूआत से ही लागू जी को एक्टर्स की नकल करने का बड़ा शौक था। उन दिनों भारत में मूक फिल्मों का दौर खत्म हुआ था और बोलती फिल्में बननी शुरू हो चुकी थी। एक दिन इन्होंने अपने स्कूल में होने वाले नाटक में हिस्सा लिया। जब इनकी बारी आई तो ये Stage Fear से घिर गए। 

इन्हें स्टेज पर चढ़ने से ही घबराहट होने लगी। लेकिन जब टीचर ने हौंसला दिया तो ये स्टेज पर आए और एक्टिंग भी की। जब इनकी एक्टिंग खत्म हुई तो हर कोई हैरान था। किसी को यकीन नहीं हो पा रहा था कि इतना छोटा सा बच्चा आखिर इतनी शानदार एक्टिंग कैसे कर सकता है। यहीं से इन्हें एक्टिंग से प्यार हो गया। 

इसके बाद तो इन्होंने एक्टिंग को बारीकी से देखना समझना शुरू कर दिया। मराठी नाटक देखना और लोगों की मिमिक्री करना इनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन गया। कई दिग्गज हॉलीवुड एक्टर्स की फिल्में भी इन्होंने देखी। लेकिन पढ़ाई के दबाव की वजह से स्कूल के बाद लंबे वक्त तक दोबारा ये एक्टिंग करने का साहस ना कर सके।

स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद Dr Shriram Lagoo ने Pune के BJ Medical College में दाखिला लिया। यहां से इन्होंने MBBS किया और ENT Surgery भी यहीं से पास किया। और यही वो जगह भी थी जहां डॉक्टर श्रीराम लागू ने थिएटर में एक्टिंग की। एमबीबीएस के दौरान ही इन्होंने अपने मेडिकल कॉलेज में पांच नाटकों में हिस्सा लिया था। 

साथ ही कुछ एकाकी नाटकों में भी इन्होंने इसी दौरान काम किया था। डॉक्टर श्रीराम लागू को अभिनय से प्यार होने लगा था। लेकिन जब इनकी मेडिकल की पढ़ाई पूरी हुई तो रोज़ी रोटी कमाने के चक्कर में इन्हें अभिनय के अपने शौक को पीछे छोड़ना पड़ा। 

इन्होंने अपना क्लीनिक खोल लिया और ये मरीज़ देखने लगे। श्रीराम लागू थिएटर कर नहीं पा रहे थे। लेकिन थिएटर देखना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा था। ये अक्सर नाटक देखने जाते रहते थे। एकाध दफा तो इन्होंने छोटे-मोटे किरदार भी नाटकों में निभाए थे। 

इसी दौरान मेडिकल ट्रेनिंग के सिलसिले में ये कनाडा और इंग्लैंड भी गए। वहां से वापस लौटने के बाद इन्होंने अपने पुराने क्लीनिक पर फिर से बैठना शुरू कर दिया और कुछ महीने यहां प्रैक्टिस करने के बाद ये अफ्रीकी देश तंजानिया चले गए। तंजानिया में इनकी प्रैक्टिस अच्छी चलने लगी। 

मगर अब तक थिएटर से ये पूरी तरह से दूर हो चुके थे। भले ही भारत में ये नाटकों में हिस्सा ना ले पा रहे हों। लेकिन कम से कम ये वहां पर नाटक देखने ज़रूर जाया करते थे। पर तंजानिया में इनका नाटक देखना भी छूट गया और इस बात से मन ही मन ये बड़े दुखी रहने लगे। 

डॉक्टर लागू के मन में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। थिएटर उनका पैशन था और अपने पैशन को जीने की कोई उम्मीद उन्हें नज़र नहीं आ रही थी। भारत से बहुत दूर तंजानिया में वो चाहकर भी थिएटर के लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे। ऐसे में एक दिन डॉक्टर लागू ने एक फैसला लिया। एक बेहद कड़ा फैसला

तंजानिया में जब इनका दिल नहीं लगा तो ये भारत वापस लौट आए। और भारत आकर इन्होंने डॉक्टरी छोड़कर फुल टाइम एक्टिंग करने का फैसला लिया। ‘इठे ओशालाला मृत्यू‘ नाम के एक नाटक से बतौर एक्टर इनका डेब्यू भी हो गया। 

कुछ और नाटकों में काम करने के बाद इन्होंने एक नाटक में वो किरदार निभाया जिसके बाद ये मराठी रंगमंच में हमेशा के लिए अमर हो गए। विष्णू वामन श्रीवदकर के नाटक "Natsamrat" में इन्होंने लीड कैरेक्टर प्ले किया। 

उस नाटक को देखने वालों ने ये दावा किया कि श्रीराम लागू उस नाटक में एक्टिंग नहीं कर रहे थे। बल्कि गणपत बेलवलकर के किरदार को जी रहे थे। डॉक्टर श्रीराम लागू के अलावा भी कई दूसरे एक्टर्स ने नटसम्राट गणपत बेलवलकर के किरदार को निभाया था। 

और इस किरदार को निभाने वाले ज़्यादातर एक्टर्स शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार पड़ जाते थे। कहा जाता है कि डॉक्टर श्रीराम लागू को भी इस किरदार को निभाने के बाद दिल का दौरा आया था। 

लेकिन ये रोल ही वो रोल भी था जिसने इन्हें इनके हिस्से की शोहरत भी दिलाई। क्योंकि इससे पहले इनके आठ नाटक लगातार बुरी तरह से फ्लॉप हो चुके थे।

डाक्टरी छोड़कर एक्टर बने डॉक्टर श्रीराम लागू ने खुद को केवल थिएटर तक ही सीमित नहीं रखा। ये सिनेमा में भी आए और इनकी पहली फिल्म रही 1972 में रिलीज़ हुई ‘पिंजरा‘। बेहतरीन म्यूज़िक से सजी ये एक मराठी फिल्म थी। हालांकि इसे हिंदी में भी बनाया गया था। 

लेकिन इसका हिंदी वर्ज़न उतना कामयाब नहीं हो सका था जितना की मराठी व़र्जन हुआ था। हिंदी वर्ज़न में भी खुद डॉक्टर श्रीराम लागू ने ही एक्टिंग की थी और इस तरह ये फिल्म इनकी पहली हिंदी फिल्म भी रही। 

‘पिंजरा‘ फिल्म एक और लिहाज से खास थी। ये फिल्म उन चंद फिल्मों में से एक थी जिनमें डॉक्टर श्रीराम लागू ने लीड भूमिका निभाई थी। क्योंकि अपनी अधिकतर हिंदी फिल्मों में ये पिता या अंकल की भूमिका में ही दिखे। 

खुद डॉक्टर लागू भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि सिनेमा में देर से एंट्री लेने की वजह से उन्हें इसी तरह के किरदार मिलेंगे। 

अपने करियर में Dr Shriram Lagoo ने 150 से भी ज़्यादा हिंदी फिल्मों में काम। एक पल, एक दिन अचानक, साजन बिन सुहागिन, इंसाफ का तराजू, इनकार, किनारा और घरोंदा इनकी कुछ प्रमुख फिल्में हैं। ‘घरोंदा‘ के लिए तो इन्हें फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड भी दिया गया था। 

डॉक्टर लागू ने फिल्मों में ही नहीं, टीवी सीरियल्स में भी काम किया। और चूंकी ये रंगकर्मी थे तो इन्होंने नाटकों में काम करने के अलावा कई नाटकों का डायरेक्शन भी किया था। 

डॉक्टर लागू कुछ विज्ञापनों में भी नज़र आए थे और इनके एक विज्ञापन पर विवाद भी हुआ था। दरअसल, श्रीराम लागू मेडिकल प्रैक्टिस तो छोड़ चुके थे लेकिन इनका डाक्टरी लाइसेंस इनके पास था और ये कभी कभार मरीज़ देख लिया करते थे। 

एक बार इन्होंने एक च्यवनप्राश ब्रांड के विज्ञापन में काम किया और विज्ञापन में इनके काम करने से एमसीए यानि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया काफी खफा हो गई। एमसीए ने इनका लाइसेंस कैंसिल कर दिया। 

लेकिन डॉक्टर लागू को इससे ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा। अपना लाइसेंस कैंसिल होने पर इन्होंने कहा था कि मुझे तब दुख होता अगर मुझे एक्टिंग करने से रोक दिया जाता।

डॉक्टर श्रीराम लागू की निजी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो इन्होंने एक्ट्रेस दीपा लागू से शादी की। उनसे इनके तीन बच्चे हुए। दो बेटे और एक बेटी। इनके बेटों के नाम हैं तनवीर लागू और आनंद लागू। वहीं इनकी बेटी का नाम है बिम्बा कानितकर। 

1994 में इनका बड़ा बेटा तनवीर लागू ट्रेन से कहीं जा रहा था कि तभी अचानक बाहर से फेंका गया एक पत्थर उसके सिर में लगा और वो बुरी तरह घायल हो गया। तनवीर को नहीं बचाया जा सका। जवान बेटे की इस तरह से मौत होने से डॉक्टर लागू को काफी झटका लगा। परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। 

बेटे की याद में डॉक्टर श्रीराम लागू ने तनवीर अवॉर्ड शुरू किया और देशभर में थिएटर जगत में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को ये सम्मान दिया जाने लगा। 

इनका दूसरा बेटा आनंद लागू अमेरिका में रहता है और वो एक मशहूर मोलेक्यूलर बायोलोजिस्ट है। वहीं इनकी बेटी बिम्बा कानितकर एक गायनिकोलोजिस्ट है। 

यहां ये बात भी आप दर्शकों को बतानी ज़रूरी है कि अपने जमाने की दिग्गज अदाकारा रही रीमा लागू को इनकी बेटी समझ लिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों का सरनेम एक जैसा ही है। लेकिन इन दोनों ही कलाकारों के बीच कोई रिश्ता नहीं है। 

डॉक्टर श्रीराम लागू केवल एक्टर ही नहीं थे। वो एक सामाजिक कार्यकर्ता भी थे और महाराष्ट्र अंधविश्वास निर्मूलन समिति से भी जुड़े थे। ये वही समिति है जिससे नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पनसारे जैसी शख्सियतें भी जुड़ी थी और जिनकी बेरहमी से हत्या भी कर दी गई थी। 

डॉक्टर श्रीराम लागू ने जब अपने एक आर्टिकल में खुद के नास्तिक होने की बात लिखी और कहा कि ईश्वर को रिटायर कर दिया जाना चाहिए तो इस पर काफी विवाद हुआ था। 

इन्हें भी जान से मारने की धमकियां मिली थी। लेकिन ये कभी भी इस तरह की धमकियों से नहीं घबराए और आजीवन अपनी विचारधारा से जुड़े रहे। 

डॉक्टर श्रीराम लागू ने अपनी ऑटोबायोग्राफी भी लिखी थी जिसका नाम है लमाण। मराठी भाषा में लमाण का मतलब होता है किसी कुली जैसा मालवाहक। डॉक्टर श्रीराम लागू कहते भी थे कि एक्टर काम होता है राइटर और डायरेक्टर के काम को अपने कंधों पर ढो कर दर्शकों तक पहुंचाना। 

इसलिए उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी का नाम लमाण रखा है। साल 1982 में रिलीज़ हुई हॉलीवुड मूवी गांधी में डॉक्टर श्रीराम लागू ने गोपाल कृष्ण गोखले का रोल निभाया था। इत्तेफाक से ये वही रोल था जो अपने बचपन में इन्होंने पहली दफा स्कूल में निभाया था और जब ये स्टेज फीयर के शिकार हुए थे। 

17 दिसंबर 2019 को कार्डियक अरेस्ट के चलते डॉक्टर श्रीराम लागू की मृत्यू हो गई। मौत के वक्त इनकी उम्र 92 साल थी। ज़िंदगी के आखिरी सालों में ये अपने पसंदीदा शहर पुणे में रहते थे। डॉक्टर श्रीराम लागू की मौत फिल्म इंडस्ट्री और थिएटर जगत के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। 

फिल्म इंडस्ट्री के भी कई दिग्गज कलाकार शोकाकुल थे। इनकी मौत पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा था,"मैं डॉक्टर श्रीराम लागू को भारत का सबसे महान रंगकर्मी मानता हूं। बल्कि दुनिया के बेहतरीन एक्टर्स में से एक में उन्हें रखना चाहूंगा। दुर्भाग्य से उनकी फिल्में उनके साथ न्याय नहीं करती।" 

नसीरुद्दीन शाह ने जो कहा है वो सही कहा है। डॉक्टर श्रीराम लागू की प्रतिभा के मुताबिक फिल्मों में उन्हें किरदार नहीं मिले। लेकिन Meerut Manthan Dr Shriram Lagoo की प्रतिभा से अच्छी तरह वाकिफ हैं और उन्हें पूरा सम्मान देते हैं। डॉक्टर श्रीराम लागू को शत शत नमन।

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