Ashok Kumar | Dadamoni of Indian Cinema के जीवन की अनकही कहानी | Biography

Ashok Kumar. हिंदी सिनेमा के दादामुनि। हिंदी सिनेमा का एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े कलाकार पूरे सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं। हीरो के तौर पर करियर शुरू करने वाले अशोक कुमार ने लगभग 7 दशक लंबे अपने करियर में कई प्रसिद्ध चरित्र भूमिकाएं निभाई। और कई अवॉर्ड्स अपने नाम किए।

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Dadadmoni Ashok Kumar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज Dadamoni Ashok Kumar की कहानी कहेगा। Kumudlal Ganguly से ये कैसे Ashok Kumar बने? और कैसे ये फिल्म इंडस्ट्री में आकर छा गए? दादामुनि अशोक कुमार जी के बारे में आज बहुत कुछ हम और आप जानेंगे।

Ashok Kumar का शुरुआती जीवन

अशोक कुमार का जन्म 13 अक्टूबर 1911 को भागलपुर में रहने वाले एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। चार भाई बहनों में ये सबसे बड़े थे। इनके पिता कुंजलाल गांगुली पेशे से एक वकील थे और मध्य प्रदेश के खंडवा में प्रैक्टिस करते थे। जबकी इनकी मां गौरी देवी एक गृहणी थी। अशोक कुमार से छोटी इनकी एक बहन सती देवी और दो भाई कल्याण व आभास थे। 

नाम की कहानी

अशोक कुमार के बारे में कहा जाता है कि जब ये फिल्मों में आए थे तब इन्होंने अपना नाम कुमुदलाल से बदलकर अशोक कुमार रखा था। लेकिन ये सच नहीं है। अशोक कुमार अपने ननिहाल भागलपुर में पैदा हुए थे। वहीं पर इनका नाम इनके किसी रिश्तेदार ने अशोक रखा था। 

पर चूंकि ये मिथुन राशि के थे तो इनके नाना ने इनका नाम क से रखने का फैसला किया। उस वक्त इनके नाना ने इन्हें नाम दिया था काशी विश्वेश्वर। पर ये नाम इनके पिता कुंजलाल को पसंद नहीं आया। सो उन्होंने इनका नाम कुमुदलाल रख दिया। 

एक इंटरव्यू में खुद अशोक कुमार जी ने बताया था कि कागज़ों में भले ही इनका नाम कुमुदलाल था। लेकिन कॉलेज में इनके साथी इन्हें अशोक ही कहकर पुकारा करते थे। और वो इसलिए क्योंकि ननिहाल से मिला ये नाम उस वक्त तक हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया था। और लोग इन्हें कुमुदलाल नहीं, अशोक ही कहते थे।

ननिहाल का वो पहला नाटक

अशोक कुमार जी के पिता चाहते थे कि ये भी पढ़-लिखकर उनकी तरह एक वकील बनें। इसलिए स्कूली पढ़ाई के बाद पिता ने इन्हें कलकत्ता के प्रेसिडेंसी लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई करने भेज दिया। क्लासेज़ खत्म होने के बाद ये अपना ज़्यादातर वक्त फिल्मों के बारे में पढ़ने और फिल्में देखने में गुज़ारा करते थे। 

वैसे भी अपने बचपन से ही इन्हें अभिनय की तरफ रुझान तो था ही। बचपन में एक दफा जब ये अपने ननिहाल में थे, तब एक नाटक कंपनी वालों ने इन्हें अपने एक नाटक में बाल कलाकार के तौर पर लिया था। 

यूं तो उस नाटक में अपने सीन के वक्त ये काफी शरमा रहे थे। लेकिन किसे पता था कि जो बच्चा आज स्टेज पर शर्म कर रहा है। वो एक दिन भारत में दादामुनि के नाम से जाना जाएगा। 

Himanshu Rai से मिलने की चाहत खींच लाई बॉम्बे

बहरहाल, कलकत्ता में इनका मन कानून की पढ़ाई में ज़रा भी नहीं लग रहा था। इनके मन में हर दिन फिल्मों के प्रति आकृषण बढ़ता जा रहा था। इत्तेफाक से एक दिन इन्हें खबर मिली की हिमांशु राय जर्मनी के कुछ नामी डायरेक्टर्स के साथ भारत आए हैं और यहां एक बड़ा फिल्म स्टूडियो खोलने की प्लानिंग कर रहे हैं। 

इन्होंने सोचा, कि क्यों ना किसी तरह हिमांशु राय से संपर्क किया जाए। और उनकी सिफारिश के ज़रिए जर्मनी जाकर फिल्म डायरेक्शन सीखा जाए। इस वक्त तक इनके बहनोई सशाधर मुखर्जी भी बॉम्बे पहुंच चुके थे और वहां फेमस स्टूडियो के साथ बतौर साउंड इंजीनियर काम कर रहे थे। 

अशोक कुमार जी ने सशाधर मुखर्जी को चिट्ठी लिखकर हिमांशु राय से मिलने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। उस चिट्ठी के जवाब में सशाधर मुखर्जी ने इनसे कहा कि देर मत करो। फौरन बॉम्बे चले आओ। 

बहनोई सशाधर मुखर्जी का इशारा मिलते ही अशोक कुमार ने तुरंत कलकत्ता से बॉम्बे की एक थर्ड क्लास ट्रेन टिकट करा ली। उस वक्त इनके पास 33 रुपए थे, जो इनके पिता ने एग्‍ज़ाम फीस के लिए इन्हें दिए थे। 

पर चूंकि अशोक कुमार तय कर चुके थे कि इन्हें तो फिल्म लाइन में जाना है तो इन्होंने एग्ज़ाम फीस की परवाह नहीं की। और ये अपने बहनोई सशाधर मुखर्जी के पास बॉम्बे आ गए। 

बहनोई भी बॉलीवुड का बहुत बड़ा नाम थे

यहां आपको ये भी बता दें कि इनके बहनोई सशाधर मुखर्जी भी आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा नाम बने थे। उन्होंने फिल्मालय नाम से अपना एक फिल्म प्रोडक्शन हाउस खोला था जो बहुत सफल रहा था। 

और उनका परिवार, जिसे मुखर्जी परिवार के नाम से जाना जाता है, वो भी फिल्म इंडस्ट्री का एक नामी परिवार बना। एक्ट्रेस नूतन, तनुजा, जॉय मुखर्जी, अयान मुखर्जी, काजोल, रानी मुखर्जी व और भी कई बड़े नाम इसी मुखर्जी परिवार का हिस्सा हैं। 

हिमांशु राय से पहली मुलाकात

खैर, चलिए दादामुनि अशोक कुमार की कहानी पर वापस आते हैं। मुंबई आने के बाद सशाधर मुखर्जी ने हिमांशु राय से अशोक कुमार की मीटिंग फिक्स कराई। जिस वक्त अशोक कुमार हिमांशु राय से मिले थे उस वक्त वहां जर्मन डायरेक्टर फ्रेंज़ ऑस्टन भी मौजूद थे। 

फ्रेंज़ ऑस्टन ने इनका स्क्रीन टेस्ट लिया। जिस जगह पर इनका स्क्रीन टेस्ट लिया जा रहा था उसी जगह पर आगे चलकर मशहूर बॉम्बे टॉकीज़ की इमारत वजूद में आई थी। 

हालांकि जिस वक्त अशोक कुमार हिमांशु राय और फ्रेंज़ ऑस्टिन से पहली दफा वहां मिले थे, उस वक्त वहां एक बड़ा सा घर मौजूद था। उसी घर को गिराकर उसकी जगह बॉम्बे टॉकीज़ की स्थापना की गई थी।

रिजैक्ट हुए तो बॉम्बे टॉकीज़ में बन गए लैब टैक्निशियन 

अशोक कुमार साल 1935 में बॉम्बे यानि मुंबई आए थे। ये वो ज़माना था जब भारत के लोगों का मानना था कि पढ़े-लिखे और अच्छे परिवारों के लोगों को फिल्मों में काम नहीं करना चाहिए। 

इसलिए जब हिमांशु राय को पता चला था कि उनसे मिलने अशोक नाम का जो लड़का कलकत्ता से आया है, वो कानून की पढ़ाई कर रहा है, तो वे बड़े खुश हुए थे। उन्होंने अशोक कुमार से कहा भी था कि मैं चाहता हूं अब फिल्मों में पढ़े-लिखे लोग काम करना शुरू करें। 

इससे भारत में फिल्मों का भविष्य उज्जवल होगा। स्क्रीनटेस्ट के वक्त जर्मन डायरेक्टर फ्रेज़ ऑस्टन ने अशोक कुमार को उस घर की सीढ़ियों पर बैठा दिया और एक गाना सुनाने को कहा। 

कुछ सेकेंड्स सोचने के बाद अशोक कुमार ने वो गाना उन्हें सुनाया जो कभी इनकी मां इन्हें सुनाया करती थी। अशोक कुमार के गाने के अंदाज़ से हिमांशु राय तो खासे प्रभावित हुए। लेकिन फ्रेज़ ऑस्टन को अशोक कुमार का चेहरा पसंद नहीं आया। 

उन्हें लग रहा था कि इस लड़के के जबड़े की बनावट ऐसी नहीं है कि इसे फिल्मों में हीरो बनाया जा सके। उन्होंने हिमांशु राय से कहा भी कि ये लड़का उन्हें सही नहीं लग रहा। 

इतना ही नहीं, फ्रेज़ ऑस्टन ने तो अशोक कुमार से भी कलकत्ता वापिस जाकर फिर से पढ़ाई शुरू करने की बात कही थी। लेकिन हिमांशु राय को अशोक कुमार में संभावनाएं नज़र आ रही थी। 

इसलिए उन्होंने अशोक कुमार से कहा कि फिलहाल तुम हमारी लैब में काम करो। अशोक कुमार भी इसके लिए राज़ी हो गए। और इस तरह अशोक कुमार ने हिमांशु राय की फिल्म लैब में प्रिटिंग, फिल्म धोना और एडिटिंग करने का काम सीखा। 

पहले ऑफर को ठुकरा चुके थे अशोक कुमार

अशोक कुमार ने लगभग 1 साल तक हिमांशु रॉय की फिल्म कंपनी बॉम्बे टॉकीज़ में लैब टैक्निशियन की हैसियत से काम किया। और फिर साल 1936 में कुछ ऐसा हुआ कि अशोक कुमार को एक्टिंग करने का मौका भी मिल गया। 

और वो भी बतौर फिल्म का हीरो। वो फिल्म थी 'जीवन नैया' जिसमें इनकी हीरोइन थी गॉर्जियस देविका रानी जो फिल्म के प्रोड्यूसर हिमांशु राय की पत्नी थी। पहले इस फिल्म में अभिनेता नजमुल हसन हीरो थे। 

लेकिन किन्हीं वजहों से नजमुल हसन को हिमांशु राय ने इस फिल्म से निकाल दिया था। नजमुल हसन को जिन वजहों से हिमांशु राय ने निकाला था वो भी बड़ी दिलचस्प और जानने लायक हैं। 

लेकिन वो कहानी फिर कभी। फिलहाल तो हम अपना पूरा फोकस दादामुनि अशोक कुमार की कहानी पर ही रखेंगे। हिमांशु राय जब अशोक कुमार के पास 'जीवन नैया' में एक्टिंग करने का ऑफर लेकर गए तो अशोक कुमार ने साफ इन्कार कर दिया। 

और वो इसलिए क्योंकि इस वक्त तक अशोक कुमार के माता-पिता को पता चल चुका था कि ये पढ़ाई छोड़कर मुंबई में किसी फिल्म कंपनी में काम कर रहे हैं। और क्योंकि उस ज़माने में फिल्मों में काम करना शर्म की बात समझी जाती थी। 

इसलिए इनके माता-पिता को इनके फिल्म कंपनी में काम करने से बड़ा दुख पहुंचा था। उस वक्त इन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने माता-पिता को समझाया था कि मैं तो टैक्निशियन का काम करता हूं। कोई ड्रामा नहीं करता। 

और ना ही कभी करूंगा। यही वजह है कि हिमांशु राय जब पहली दफा इनके पास 'जीवन नैया' में हीरो का रोल लेकर आए थे तो इन्होंने वो रोल अस्वीकार कर दिया था। 

हिमांशु राय की आखिरी उम्मीद

चूंकि नजमुल हसन को फिल्म से हटाने के बाद हिमांशु राय के पास कोई और रास्ता बचा ही नहीं था, तो उन्होंने हर हाल में अशोक कुमार से ही एक्टिंग कराने का फैसला कर लिया था। 

उन्होंने अशोक कुमार से कहा कि तुम केवल इस फिल्म में एक्टिंग कर लो। उसके बाद हम तुमसे कभी नहीं कहेंगे कि तुम फिल्म में काम करो। हिमांशु राय की ये बात अशोक कुमार ने मान ली। और जैसे-तैसे उन्होंने 'जीवन नैया' की शूटिंग पूरी की। 

अशोक कुमार को लगा कि अब शायद हिमांशु राय उनसे कभी एक्टिंग करने को नहीं कहेंगे। पर चूंकि इन्हें तो बनना ही था फिल्म इंडस्ट्री का दादामुनि। तो भला किस्मत क्यों ना इन्हें दोबारा एक्टिंग की तरफ खींचती? 'जीवन नैया' कामयाब रही। 

इस कामयाबी ने अशोक कुमार जी की भी काफी हौंसलाअफज़ाई की। इसलिए जब हिमांशु राय इनके पास दो और फिल्मों में काम करने का ऑफर लेकर आए तो अशोक कुमार मना ना कर सके। 

इनकी दूसरी फिल्म रही 'जन्मभुमि' जो भारत में बनी पहली देशभक्ति फिल्म थी। इसी फिल्म का गीत 'जय जय जननी जन्मभुमि' हिंदी सिनेमा का पहला देशभक्ति गीत था। 

और उस ज़माने में ये गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस गीत की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि उस वक्त बीबीसी ने अपनी इंडियन न्यूज़ सर्विस की सिग्नेचर ट्यून में इस गीत की धुन का इस्तेमाल किया था। और फिर आई इनकी तीसरी फिल्म जिसका नाम था 'अछूत कन्या'। 

इस फिल्म ने तो अशोक कुमार को लोकप्रियता के शिखर पर बैठा दिया। और इस तरह अशोक कुमार के करियर की शुरुआती तीनों फिल्में सफल रही। 

ये तीनों फिल्में एक ही साल यानि साल 1936 में रिलीज़ हुई। इन तीनों ही फिल्मों के डायरेक्टर फ्रेंज़ ऑस्टन थे। और इत्तेफाक से इन तीनों ही फिल्मों में इनकी हीरोइन देविका रानी ही थी।

खुद पर की कड़ी मेहनत

फिल्में कामयाब हुई तो पैसा और शोहरत खुद चलकर अशोक कुमार जी के कदमों में आने लगे। लेकिन इसी के साथ आने लगी आलोचनाएं भी। कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि ये नया लड़का लगता तो बढ़िया है। 

लेकिन ये खुलकर एक्टिंग नहीं कर पा रहा है। लोगों की ये बातें सुनकर अशोक कुमार ने खुद भी अपनी फिल्में कई-कई दफा देखनी शुरू की। इन्हें भी अहसास हुआ कि इनके काम में कुछ तो कमी है। 

लेकिन ये अपनी कमी को पकड़ नहीं पा रहे थे। तब इनके एक जानकार ने इनसे कहा कि अगर इस इंडस्ट्री में लंबा टिकना चाहते हो तो तुम्हें वाकई में अपनी एक्टिंग स्किल्स को संवारने-निखारने पर मेहनत करनी चाहिए। 

उसी जानकार ने इन्हें एक किताब सजेस्ट की। उस किताब में स्टेज ड्रामा और एक्टिंग स्किल्स की बारीकियां लिखी थी। अशोक कुमार जी ने वो किताब खरीद ली और उसे कई दफा पढ़ा। 

और फिर उस किताब में दी गई टिप्स के मुताबिक अपनी वॉइस और एक्स्प्रेशन्स पर काम करना शुरू कर दिया। ये अक्सर समंदर किनारे जाकर अपनी आवाज़ और अपनी पिच पर मेहनत करते थे। 

इनकी वो मेहनत रंग लाई व कुछ और फिल्मों के बाद लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि अशोक कुमार की एक्टिंग अब काफी बेहतर हो गई है। लेकिन लोगों की ये बातें अशोक कुमार को सुकून देने की बजाय और बेचैन कर रही थी। 

और वो इसलिए क्योंकि इन्हें खुद को एकदम पर्फेक्ट बनाना था। और जब तक लोग अपने मुंह से इन्हें पर्फेक्ट ना कहते तब तक इन्हें ये लगता ही नहीं कि इनकी एक्टिंग में कोई सुधार हुआ है। 

फिर साल 1940 में पहली दफा बंधन फिल्म में इनकी हीरोइन बनी लीला चिटनिस। और लीला चिटनिस ने इन्हें बताया कि आपकी बॉडी लैंग्वेज सही रहती है। लेकिन आप अपनी आंखों का इस्तेमाल अपने सीन्स में नहीं करते। 

लीला चिटनिस की ये बात अशोक कुमार जी को भी समझ में आ गई। उसके बाद तो अशोक कुमार ने अपनी आंखों का इस्तेमाल भी अपने अभिनय में जमकर किया। और फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

ऐसा रहा Ashok Kumar का करियर

शुरुआती कुछ सालों तक अशोक कुमार जी ने फिल्मों में बतौर हीरो काम किया। और केवल अभिनय ही नहीं, 30 और चालीस के दशक में इन्होंने अपनी फिल्मों में अपने गाने भी खुद ही गाए थे। क्योंकि उस ज़माने में हीरो या हिरोइन को अपने गीत खुद ही गाने पड़ते थे। 

यहां एक दिलचस्प बात जो हम आपको बताना चाहते हैं वो ये कि अशोक कुमार जी ने अपनी पहली फिल्म 'जीवन नैया' में एक गीत गाया था। उस गीत के बोल थे 'कोई हमदम ना रहा।' 

साल 1961 में अशोक कुमार जी के छोटे भाई किशोर कुमार ने अपनी फिल्म 'झुमरू'(1961) में इस गीत को अपनी आवाज़ में गाया था। और वो गीत उस वक्त बहुत हिट हुआ था। 

वक्त के साथ जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगी, अशोक कुमार चरित्र किरदारों की तरफ आने लगे। साठ साल से ज़्यादा लंबे अपने फिल्मी करियर में दादामुनि अशोक कुमार ने लगभग तीन सौ तीस फिल्मों में काम किया था। 

किसी ज़माने में लीड हीरो के तौर पर करियर शुरू करने वाले अशोक कुमार दादा-नाना के किरदारों में भी बखूबी पसंद किए गए। और केवल फिल्मों में ही नहीं, टीवी पर भी इन्होंने काफी काम किया था। 

भारत के पहले सॉप ओपेरा 'हम लोग' का नैरेशन दादामुनि ने ही किया था। वहीं रामानंद सागर की 'रामायण' के पहले एपिसोड का नैरेशन भी इन्होंने ही किया था। जबकी कुछ टीवी शोज़ में तो दादामुनि ने एक्टिंग भी की थी।

अशोक कुमार का परिवार

अशोक कुमार जी की निजी ज़िंदगी की बात करें तो इनके माता-पिता के बारे में तो हम आपको बता ही चुके हैं। इनकी बहन की जानकारी भी हम आपको दे चुके हैं। इनके भाई कल्याण कुमार गांगुली व आभाष कुमार गांगुली को आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। 

जहां कल्याण कुमार गांगुली फिल्मों में अनूप कुमार के नाम से जाने जाते थे। तो वहीं आभाष कुमार गांगुली तो किशोर कुमार के नाम से भारतीय मनोरंजन जगत में अमर हो चुके हैं। 

अशोक कुमार जी फिल्मों में नए-नए ही आए थे जब इनके माता-पिता ने शोभा देवी से इनकी शादी करा दी थी। इनके तीन बेटियां भारती, रूपा और प्रीति गांगुली और एक बेटा अरूप कुमार हुए। इनकी बेटियां शोभा और प्रीति गांगुली ने भी अभिनय की दुनिया में अपनी किस्मत आज़माई थी। 

हालांकि प्रीति गांगुली को ही कुछ हद तक अभिनय करियर में सफलता मिल पाई थी। जबकी इनका बेटा अरूप कुमार गांगुली साल 1962 में आई फिल्म 'बेज़ुबान' में बतौर हीरो नज़र आया था। 

लेकिन ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई और फिर उसने फिल्म लाइन को ही हमेशा के लिए छोड़ दिया। अरूप कुमार गांगुली ने बाद में कॉर्पोरेट वर्ल्ड में अपना करियर बनाया। 

कहानी अभी बाकी है

साल 2001 में 90 की उम्र में दादामुनि अशोक कुमार ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दादामुनि की मौत के साथ ही भारतीय सिनेमा के एक दौर का हमेशा-हमेशा के लिए अंत हो गया। 

दादामुनि के बारे में बताने के लिए अभी बहुत कुछ बाकी है। लेकिन आज की पेशकश बस यहीं तक। फिर किसी दिन दादामुनि से जुड़ी और भी कई सारी दिलचस्प बातें हम आपको बताएंगे। फिलहाल हमें दीजिए इजाज़त। जय हिंद। जय भारत।

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