David Abraham Cheulkar | भारतीय सिनेमा के सबसे चहेते चाचा यानि डेविड अंकल की कहानी | Biography

David Abraham Cheulkar. इनका फिल्मी करियर तकरीबन चार दशकों तक चला था। वैसे तो इनका पूरा नाम था डेविड अब्राहम चेउलकर। लेकिन लोग इन्हें सिर्फ डेविड के नाम से जानते थे। फिल्मों में इन्होंने कॉमेडी की, विलेनी की और कैरेक्टर आर्टिस्ट की हैसियत से भी काम किया। 

और अपने काम से ये हरदिल अजीज़ बन गए। महज़ पांच फीट तीन इंच की हाइट वाले डेविड अंकल के चेहरे पर हमेशा एक प्यारी सी मुस्कान होती थी। अपनी इसी मुस्कान से इन्होंने अपने फैंस के दिलों में बहुत बड़ी जगह बना ली थी।

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David Abraham Cheulkar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर आज पेश है David Abraham Cheulkar यानि David Uncle की ज़िंदगी की कहानी। कैसे वकालत के स्टूडेंट David Abraham Cheulkar फिल्मों में आए और इनका फिल्मी सफर कैसा रहा, आज ये सारी कहानी हम और आप जानेंगे।

David Abraham Cheulkar की भतीजी ने बताई कई दिलचस्प बातें

डेविड के जन्म की सही तारीख पता करना भी अपने आप में एक चुनौती था। हमने काफी खोजबीन की। यूट्यूब तलाशा और गूगल को काफी गहराई तक खंगाला। 

और आखिरकार गूगल पर हमें एक तस्वीर मिली जो कि डेविड की कब्र की तस्वीर थी। डेविड की कब्र पर लगे पत्थर में उनके जन्म की तारीख लिखी है जो है 21 जून 1908। डेविड का जन्म मुंबई के पास ठाणे में हुआ था।

डेविड को बचपन से ही खेलकूद में बड़ी दिलचस्पी थी। वो पहलवानी को बेहद पसंद करते थे और खुद भी एक पहलवान थे। एक डिजिटल प्लेटफॉर्म से बात करते हुए डेविड की भतीजी रुथ कृष्णा ने उनकी ज़िंदगी से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां शेयर की। रूथ कहती हैं कि वास्तव में डेविड एक बॉडी बिल्डर थे।

हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर डेविड की अच्छी पकड़ थी और शोज़ की मेजबानी भी वो बड़ी खूबसूरती से किया करते थे। एक वक्त पर डेविड की एंकरिंग भारत की इलीट क्लास में बेहद पसंद की जाती थी। 

और डेविड केवल फिल्मफेयर ही नहीं बल्कि और भी कई सरकारी व गैर सरकारी कार्यक्रमों की एंकरिंग भी किया करते थे। डेविड को एंकरिंग करने के लिए विशेषतौर पर बुलाया जाता था।

भाईयों ने की थी डेविड अब्राहम चेहुलकर की परवरिश

डेविड पढ़ाई-लिखाई में बहुत बढ़िया थे। स्कूल के दिनों में इन्हें बढ़िया स्टूडेंट होने का खिताब मिला था। इनकी शुरूआती पढ़ाई हुई थी सेंट जोसेफ स्कूल बॉम्बे से। 

बॉम्बे यानि मुंबई के ही विल्सन कॉलेज से इन्होंने बीए एलएलबी किया था। डेविड तो चाहते थे कि ये स्पोर्ट्स में ही अपना करियर बनाएं। लेकिन अपने बड़े भाई शेलोम के कहने पर इन्होंने एलएलबी किया था।

डेविड के पिता का नाम अब्राहम था और उनकी माता का नाम था दीना चेहुलकर। डेविड जब मात्र 15-16 साल के थे तब ही उनके पिता अब्राहम की मृत्यु हो गई थी। 

ऐसे में बड़े भाईयों ने डेविड की परवरिश की थी। यही वजह थी कि जब बड़े भाई ने डेविड से कहा कि वो एलएलबी करें तो डेविड ने अपने भाई की बात मानते हुए वकालत की।

रुथ कहती हैं कि उनकी दादी यानि डेविड की मां दीना काफी लंबे वक्त तक ज़िंदा रही थी। वो 104 साल तक जीवित रही। वो हमेशा एक साड़ी पहनती थी और केवल मराठी बोलती थी। 

रुथ कहती हैं कि उनके पिता डेनियल और उनके अंकल डेविड काफी हद तक एक जैसे दिखते थे। डेनियल एक डॉक्टर थे और डेविड एक एक्टर। हालांकि डेनियल डेविड के मुकाबले थोड़े से हैवी दिखते थे।

लेकिन फिर भी लोग डेनियल को अक्सर डेविड समझ लिया करते थे और उनके पास ऑटोग्राफ मांगने पहुंच जाते थे। डेनियल भी ऐसे लोगों को ऑटोग्राफ दे देते थे और साइन में डी अब्राहम लिखते थे। 

डेनियल कहते थे कि वो अपने पास आए लोगों को निराश नहीं देखना चाहते थे इसलिए वो डेविड की जगह खुद उन्हें ऑटोग्राफ दे दिया करते थे।

बचपन से ही कला प्रेमी थे डेविड

खेलकूद के अलावा डेविड को आर्ट से भी काफी प्यार था। खासतौर पर नाटकों में काम करने में डेविड को बड़ा मज़ा आता था। डेविड के पड़ोस में एक महिला रहती थी जो फ्रेंच मूल की थी। 

वो अक्सर अपने घर के आंगन में फ्रेंच में नाटकों का आयोजन किया करती थी और डेविड भी इन नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। माना जाता है कि यही वो वक्त था जब ये तय हो गया था कि डेविड भविष्य में एक्टिंग में ही अपना मुकाम बनाएंगे। 

इन्हीं फ्रेंच नाटकों में ही डेविड पर एक शख्स की नज़र पड़ी जो कि फिल्म डिविज़न से जुड़ा था। उसी इंसान ने डेविड को फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया और डेविड ने भी खुशी-खुशी ये ऑफर स्वीकार कर लिया।

शुरूआत में डेविड के परिवार को उनका ये फैसला ज़रा भी पसंद नहीं आया था। डेविड के भाईयों को डेविड पर काफी गुस्सा आ रहा था। उस दौर में वैसे भी माना जाता था कि अच्छे घरों के लोग फिल्मों में काम नहीं करते। 

घर में काफी हंगामा हुआ। लेकिन डेविड अपनी ज़िद पर अड़े रहे और ज़रा भी टस से मस नहीं हुए। आगे चलकर जब डेविड फिल्मों में कामयाब हुए तो उनके घरवालों का गुस्सा गर्व में तब्दील हो गया।

फिल्मी दुनिया और डेविड

डेविड का फिल्मी सफर शुरू हुआ "Zambo The Ape Man" नाम की फिल्म से जो साल 1937 में रिलीज़ हुई थी। ये फिल्म डायरेक्ट की थी मोहन भवनानी ने जो कि फिल्म्स डिविज़न के चीफ रह चुके थे और इनके बारे में कई लोग ये दावा भी करते हैं कि यही वो शख्स भी थे जो डेविड को फिल्मों में लेकर आए थे।

पहली फिल्म के बाद डेविड बतौर कैरेक्टर आर्टिस्ट काम करते रहे। इन्होंने कई फिल्मों में काम किया। लेकिन इन्हें पहचान मिली साल 1954 में रिलीज़ हुई फिल्म बूट पॉलिश से। 

इस फिल्म में इनके किरदार का नाम जॉन चाचा था जो सड़क पर रहने वाले दो भाई बहनों को पालने की ज़िम्मेदारी लेता है और उन्हें ज़िंदा रहने के तरीके सिखाता है।

डेविड के इस किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल के पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इतना ही नहीं, बूट पॉलिश नाम की ये फिल्म कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी प्रदर्शित की गई थी और वहां भी डेविड की एक्टिंग का हर कोई कायल हो गया था।

पंडित नेहरू भी थे David Abraham Cheulkar के फैन

कहा जाता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी डेविड के फैन थे। खासतौर पर डेविड की एंकरिंग पंडित नेहरू को बहुत पसंद थी। 

पंडित नेहरू की मांग होती थी कि सभी सरकारी कार्यक्रमों का संचालन डेविड ही करें। साल 1969 में भारत सरकार ने भी फिल्म क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

डेविड की भतीजी रुथ कृष्णा बताती हैं कि डेविड को पढ़ने का बहुत शौक था और साथ ही उन्हें पेंटिंग्स कलेक्ट करना भी बड़ा पसंद था। डेविड ताउम्र खेलों के शौकीन रहे। 

वो अक्सर कहते थे कि खेलों से राजनीति को दूर रखना चाहिए और राजनीति में खेल भावना आनी चाहिए। डेविड पूरे पचास सालों तक महाराष्ट्र वेटलिफ्टिंग फेडेरशन के प्रेज़िडेंट रहे। साथ ही लगभग 35 सालों तक ये इंडियन वेटलिफ्टिंग फेडेरेशन के वाइस प्रेज़िडेंट भी रहे।

कई सालों तक डेविड इंडियन ओलंपिक असोसिएशन के भी मेंबर रहे और 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक्स, 1960 के रोम ओलंपिक्स, 1964 के टोक्यो ओलंपिक्स, 1968 के मैक्सिको सिटी ओलंपिक्स और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक्स में ये भारतीय डेलिगेशन का हिस्सा भी रहे थे। 

1972 में जब म्यूनिख ओलंपिक्स के दौरान इज़रायली खिलाड़ियों को आतंकवादियों द्वारा बंधक बना लिया गया था और 11 इज़रायली खिलाड़ियों को मौत के घाट उतार दिया गया था तो मरने वालों में से एक डेविड का दोस्त भी था।

क्रिकेट के भी ज़बरदस्त शौकीन थे

मुंबई के परेल में डेविड का एक पुश्तैनी मकान था। इनका सारा परिवार वहीं पर रहता था। लेकिन डेविड रहते थे चर्चगेट के पास मौजूद क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया मे। डेविड को यहां पर एक पर्सनल रूम अलॉट किया गया था। 

उनके रूम और उसके आस-पास के इलाके को एक वक्त पर डेविड कॉर्नर कहा जाता था। डेविड क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के उन शुरूआती मेंबर्स में से एक जिनके पास इसकी लाइफ टाइम मेंबरशिप थी। रुथ बताती हैं कि पहले डेविड ने विलिंगडन क्लब की मेंबरशिप के लिए अप्लाय किया था। 

लेकिन चूंकि वो एक एक्टर थे और विलिंग्डन क्लब के उस वक्त के ज़्यादातर मेंबर्स किसी एक्टर को क्लब के साथ जोड़ने के खिलाफ थे, इसलिए डेविड को क्लब की मेंबरशिप नहीं दी गई थी। फिर बाद में डेविड ने क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया की मेंबरशिप के लिए अप्लाय किया था और उन्हें आसानी से मेंबरशिप मिल भी गई थी। 

धार्मिक भी थे डेविड

रुथ ये भी बताती हैं कि डेविड काफी धार्मिक थे और ईश्वर पर उनका विश्वास अटूट था। डेविड के घर के बिल्कुल पास सिनेगॉग मौजूद था और उस सिनेगॉग के मुख्य कर्ता धर्ता डेविड के बड़े भाई ही थे। 

वो ही उस सिनेगॉग में प्रेयर्स कराते थे। डेविड अगर मुंबई में होते थे तो वो हर शुक्रवार को होने वाली खास प्रेयर में ज़रूर शरीक होते थे। 

साथ ही योम किप्पूर और ज्यूइश न्यू ईयर जैसे प्रमुख यहूदी त्यौहारों पर तो डेविड हमेशा अपने परिवार के साथ होते थे। रूथ कहती हैं कि डेविड को हिब्रू भाषा का भी बहुत अच्छा ज्ञान था और वो क्लासिकल हिब्रू भाषा भी आराम से पढ़ लेते थे।

अंतिम दिनों में इस देश चले गए थे डेविड अब्राहम चेहुलकर

डेविड जब एक बड़ा नाम बन गए तो उन्होंने अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को भी बखूभी निभाया। डेविड के बड़े भाई जब गुज़र गए तो उनके बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी डेविड ने ही उठाई। 

साल 1970 में डेविड के परिवार के कई सदस्य इज़रायल शिफ्ट हो गए। लेकिन डेविड अपने भतीजे और भतीजी के साथ कनाडा गए।कनाडा में भी डेविड ने एंकरिंग करना जारी रखी और यहां के भारतीय समुदायों के प्रोग्राम्स में डेविड एंकरिंग करते नज़र आ जाते थे। 

फिल्में छोड़ने से पहले डेविड लगभग 150 फिल्मों में काम कर चुके थे। डेविड आखिरी दफा नज़र आए थे साल 1980 में रिलीज़ हुई फिल्म खूबसूरत में। हालांकि 2 जनवरी 1982 को स्ट्रोक के चलते डेविड की मृत्यु होने के बाद उनकी दो फिल्में, संबंध और गहरी चोट रिलीज़ हुई थी।

David Abraham Cheulkar को Meerut Manthan का सैल्यूट

आज के ज़माने में डेविड को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने भुला ज़रूर दिया है। लेकिन अब भी जब लोग किसी फिल्म में डेविड को देखते हैं तो उनकी अदाकारी के फैन हो जाते हैं। डेविड केवल एक शानदार अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि एक बेहतर इंसान और एक ज़बरदस्त व्यक्तित्व के मालिक भी थे।

डेविड को इस दुनिया से गए 40 साल से भी ज़्यादा का वक्त हो चुका है। लेकिन पुरानी फिल्मों के शौकीन आज भी डेविड को याद करते हैं और मुस्कुराने लगते हैं। 

Meerut Manthan Hindi Cinema के इस Legendary Actor को सैल्यूट करता है। और मानता है कि David Abraham Cheulkar जैसा Bollywood में अब शायद ही कोई दूसरा कलाकार आ पाएगा।  

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