Junior Mehmood | Naeem Sayyed कैसे बना Bollywood का जूनियर महमूद? | Biography

Junior Mehmood. हिंदी सिनेमा के शौकीनों ने इनका नाम कहीं ना कहीं ज़रूर सुना होगा। साठ और सत्तर के दशक में फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर नज़र आने वाला ये चेहरा अपने समय में बेहद मशहूर था। 

उस दौर के लगभग हर बड़े फिल्मस्टार के साथ काम कर चुके जूनियर महमूद ने अपने हुनर के दम पर बॉलीवुड में अपना एक बड़ा ही खास मुकाम बनाया था। 

और कम उम्र में ही जूनियर महमूद लोकप्रियता के चरम पर पहुंच चुके थे। ये कितने मशहूर थे इसका अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि एक दौर में मुंबई में केवल 10 या 12 इंपाला कार हुआ करती थी। उनमें से एक कार जूनियर महमूद के पास थी।

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Junior Mehmood Biography - Photo: Social Media

तो कैसे इतनी लोकप्रियता हासिल करने के बाद Junior Mehmood गुमनामी के अंधेरों में खोते चले गए? आखिर कैसे Junior Mehmood को बॉलीवुड ने भुला दिया और इन दिनों ये कहां और किस हाल में हैं? Meerut Manthan की इस पेशकश में आज हम इनके बारे में सबकुछ अपने पाठकों को बताएंगे।

Junior Mehmood की शुरूआती ज़िंदगी

जूनियर महमूद का असल नाम है नईम सैय्यद। इनका जन्म हुआ था 15 नवंबर 1956 को मुंबई में। इनके पिता इंडियन रेलवे में इंजन ड्राइवर का काम करते थे और ये अपने परिवार के साथ एंटोप हिल इलाके में स्थित रेलवे कॉलोनी में रहा करते थे। 

ये चार भाई और दो बहनें थे। भाई-बहनों में नईम तीसरे नंबर पर थे। इनका परिवार एक बेहद साधारण मुस्लिम परिवार था। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थी। 

कम उम्र से ही इनके बड़े भाई फिल्म सेट पर स्टिल फोटोग्राफी का काम करने लगे थे। अक्सर इनके भाई इन्हें फिल्म सेट की कहानियां सुनाया करते थे। और भाई के मुंह से वो कहानियां सुनकर फिल्म इंडस्ट्री की तरफ ये आकर्षित होने लगे थे।

ऐसे Junior Mehmood पहुंचे थे फिल्म के सेट पर

नईम की दिलचस्पी पढ़ाई-लिखाई में ज़रा भी नहीं थी। ये बचपन से ही फिल्मों के शौकीन थे और अक्सर फिल्म स्टार्स की नकल उतारा करते थे। एक दिन इन्होंने अपने भाई से ज़िद की, कि वो इन्हें भी अपने साथ फिल्म के सेट पर ले जाएं। 

भाई ने इन्हें मना किया और कहा, "तेरी जु़बान बहुत चलती है। अगर तूने वहां किसी को कुछ उल्टा-सीधा बोल दिया तो मेरी तो नौकरी ही चली जाएगी।" 

इन्होंने अपने भाई को भरोसा दिलाया कि ये वहां एकदम चुप रहेंगे और किसी से कुछ नहीं बोलेंगे। इनके भरोसा दिलाने के बाद इनके बड़े भाई ने इन्हें अपने साथ ले जाने के लिए रज़ामंदी दे दी।

इस तरह Junior Mehmood को पहली दफा मिला एक्टिंग करने का मौका

अगले दिन नईम के बड़े भाई इन्हें अपने साथ एक फिल्म के सेट पर ले गए जिसका नाम था 'कितना नाज़ुक है दिल'। इस फिल्म में मशहूर कॉमेडियन जॉनी वॉकर साहब थे और वो इस फिल्म में एक टीचर के किरदार में थे। 

जॉनी वॉकर साहब के साथ शॉट दे रहा एक बच्चा बार-बार अपनी लाइनें भूल रहा था। वो शॉट हो ही नहीं पा रहा था। इत्तेफाक से ये वहीं डायरेक्टर की कुर्सी के पीछे खड़े थे। इन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि ये डायरेक्टर की कुर्सी के पीछे खड़े हैं और डायरेक्टर होता कौन है। 

इनकी उम्र मात्र 9 बरस थी। शूटिंग कर रहा वो बच्चा जब फिर से अपनी लाइन भूल गया तो डायरेक्टर की कुर्सी के पीछे खड़े नईम सैय्यद बोले,"इतनी सी लाइन नहीं बोल पा रहा है और आ गया एक्टिंग करने।" 

डायरेक्टर साहब ने पीछे मुड़कर इन्हें देखा और इनसे पूछा,"बेटा, क्या तुम ये लाइनें बोल सकते हो।" इस पर नईम ने जवाब दिया," मुझे तो जॉनी वॉकर की लाइनें भी याद हो गई हैं। मैं तो वो भी बोल सकता हूं।"

और हो गया Junior Mehmood का Acting Debut

इसके बाद डायरेक्टर ने उस बच्चे की जगह इनसे वो डायलॉग बुलवाया। और इत्तेफाक से एक ही टेक में वो शॉट ओके हो गया। ये बात अलग है कि "कितना नाज़ुक है दिल" नाम की वो फिल्म कभी रिलीज़ नहीं हो पाई। 

लेकिन उस फिल्म से नन्हे नईम सैयद का एक्टिंग डेब्यू ज़रूर हो गया। उस शॉट के लिए इन्हें पांच रुपए दिए गए थे जो कि उस ज़माने में एक बड़ी बात थी।

इस तरह नईम का नाम पड़ा Junior Mehmood

पहली फिल्म में काम करने के बाद ये अक्सर अपने भाई के साथ फिल्मों के सेट पर जाने लगे और फिर इन्होंने कई फिल्मों में बड़े छोटे-छोटे किरदार निभाए। 

कई दफा तो कई फिल्मों में ये बच्चों की भीड़ में भी खड़े दिखे जहां इन्हें किसी ने भी नोटिस नहीं किया। इनका नाम नईम सैयद से जूनियर महमूद कैसे पड़ा इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 

दरअसल, इन्हें फिल्म सुहागरात में काम करने का मौका मिला था जिसमें जितेंद्र, राजश्री और महमूद साहब जैसे दिग्गज कलाकार थे। इनके ज़्यादातर सीन महमूद साहब के साथ थे।

महमूद की बेटी के जन्मदिन में कराया खुद को इनवाइट

इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही महमूद साहब की इकलौती बेटी जीनी का जन्मदिन आ गया। महमूद साहब ने बेटी के जन्मदिन की खुशी में अपने बंगले पर एक बड़ी पार्टी रखी। 

उन्होंने सुहागरात फिल्म से जुड़े लगभग हर इंसान को बेटी के जन्मदिन में इनवाइट किया। लेकिन इन्हें नहीं किया। इस पर छोटे से बच्चे नईम ने महमूद साहब से कहा कि मेरा बाप कोई बड़ा प्रोड्यूसर या डायरेक्टर नहीं है इसलिए आपने मुझे अपनी बेटी के जन्मदिन में इनवाइट नहीं किया। 

साथ ही इन्होंने महमूद साहब से ये भी कहा कि अगर मैं आपकी बेटी के जन्मदिन पार्टी में आया तो पार्टी में चार चांद लग जाएंगे। इसके बाद महमूद साहब ने इन्हें इनवाइट कर ही लिया।

और पार्टी में लगाया ज़बरदस्त तड़का

ये अपने पिता के साथ महमूद साहब के बंगले पर पहुंचे और वहां इन्होंने अमीन सयानी साहब से कहा कि महमूद साहब को बता दें कि वो आए हैं। जबकी ये अमीन सयानी को जानते ही नहीं थे। 

फिर उसके बाद तो इन्होंने पार्टी में ऐसा रंग जमाया, ऐसा डांस किया कि पार्टी में मौजूद हर शख्स इनका फैन हो गया। महमूद साहब के लोकप्रिय गीत हम काले हैं तो क्या हुआ पर इन्होंने हूबहू उनके जैसा गैटअप लेकर डांस किया।

खुद महमूद साहब इनसे बेहद खुश हुए और पार्टी के बाद महमूद साहब ने इनके पिता से कहा कि अब से ये मेरा चेला है और अब से फिल्मों में इसका नाम जूनियर महमूद होगा। 

इसी के साथ महमूद साहब ने इनके हाथ में एक गंडा भी बांध दिया। इन्होंने भी साढ़े पांच रुपए महमूद साहब को गुरू दक्षिणा के तौर पर दिए। यहीं से इनका नाम पड़ गया जूनियर महमूद।

ब्रह्मचारी ने बदली किस्मत

नईम सैयद काफी हद तक महमूद साहब जैसे ही दिखते थे। कई लोग तो उन्हें इनका बेटा ही समझते थे। नईम सैयद से जूनियर महमूद बनने के बाद तो इनकी किस्मत पूरी तरह से बदल गई। 

ये हफ्ते में तीन दिन महमूद साहब से मिलते ही मिलते थे। जूनियर महमूद की किस्मत का टर्निंग पॉइन्ट बनी फिल्म ''ब्रह्मचारी'', जिसमें ये शम्मी कपूर के साथ नज़र आए थे।

इस फिल्म ये जुड़ा एक किस्सा भी बड़ा ही दिलचस्प है। दरअसल, फिल्म के लिए जीपी सिप्पी साहब 12 ऐसे बच्चों को तलाश रहे थे जिनके फीचर्स एकदम अलग हों। 

उन्हीं बारह बच्चों में इन्हें भी चुन लिया गया। फिल्म के डायरेक्ट भप्पी सोनी इन्हें बेहद पसंद करते थे। अक्सर पैकअप के बाद वो इन्हें अपने साथ अपने घर ले जाते थे और इन्हें एक्टिंग की बारीकियां समझाते थे।

भप्पी सोनी को भा गया इनका डांस

इत्तेफाक से इसी दौरान दुर्गा पूजा भी आ गई और फिल्ममेकर राहुल रवैल के पिता एचएस रवैल के घर पर आयोजित दुर्गा पूजा इवेंट में इन्होंने महमूद साहब के फेमस सॉन्ग ''हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं'' पर डांस किया। 

चूंकि एचएस रवैल की फिल्म ''संघर्ष'' में भी इन्होंने काम किया था तो उनसे भी जूनियर महमूद की अच्छी जान-पहचान हो गई थी। उस डांस परफॉर्मेंस में इन्होंने लुक भी हूबहू महमूद साहब जैसा ही लिया था। 

इनका वो डांस भप्पी सोनी ने भी देखा। अगले दिन भप्पी सोनी ने इनसे कहा कि अपनी वो लुंगी और बनियान लेकर करदार स्टूडियो में आ जाएं। 

करदार स्टूडियो ही वो जगह थी जहां पर ब्रह्मचारी फिल्म की शूटिंग चल रही थी। भप्पी सोनी जूनियर का वो डांस शम्मी कपूर को दिखाना चाहते थे।

और छा गए जूनियर

अगले दिन लंच ब्रेक में पूरी यूनिट ने जूनियर की वो परफॉर्मेंस देखी। और हर कोई इनका मुरीद हो गया। फिल्म के स्क्रीनराइटर सचिन भौमिक ने फिल्म में इनकी इस परफॉर्मेंस को डालने के लिए स्क्रीनप्ले में बदलाव किया और राइटर आनंद रोमानी के बंगले पर ये सीन शूट किया गया। 

बड़ी बात ये है कि इस सीन के शूट के लिए कोई कोरियोग्राफर नहीं था। जूनियर ने जैसा अपनी तरफ से परफॉर्म किया वही एज़ इट इज़ फिल्म में ले लिया गया। इसके बाद तो मानो इनकी किस्मत ही बदल गई।

ऐसा था जूनियर का जलवा

ब्रह्मचारी के बाद इन्होंने दो रास्ते, आन मिलो सजना, कटी पतंग, हाथी मेरे साथी और कारवां जैसी बड़ी और सुपरहिट फिल्मों में काम किया। इनकी अधिकतर फिल्में सिल्वर जुबली रहती थी। 

ये इतने पॉप्युलर हो गए कि स्क्रीनराइटर्स इन्हें ध्यान में रखकर फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखने लगे। कभी गरीबी में ज़िंदगी गुज़ारने वाला ये बच्चा अब इतना अमीर हो गया था कि मुंबई शहर में मौजूद कुल 10 या 12 इंपाला कारों में से एक इसके पास थी।

जब खत्म होने लगा जूनियर का स्टारडम

9 साल की उम्र में जूनियर को जो स्टारडम मिला था वो 12 साल की उम्र तक कम होना शुरू हो चुका था। फिल्म इंडस्ट्री में दूसरे चाइल्ड आर्टिस्ट्स ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी। 

और 18 साल की उम्र तक आते-आते इनका स्टारडम पूरी तरह से खत्म हो चुका था। गीत गाता चल, दीवानगी और अंखियों के झरोखे से जैसी फिल्में इनकी कुछ वो आखिरी फिल्में थी जिन्हें सफलता मिली थी और जिनमें इनके काम की तारीफ की गई थी। 

इसके बाद इन्हें काम मिलना बंद हो गया। फिर इन्होंने अपना एक ग्रुप बना लिया और ये जूनियर महमूद म्यूज़िकल नाइट्स नाम से स्टेज प्रोग्राम्स करने लगे। 

नब्बे के दशक में तो इन्होंने कुछ मराठी फिल्में भी डायरेक्ट और प्रोड्यूस की थी। फिर बाद में इस तरफ से भी उन्हें कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई और जूनियर महमूद पूरी तरह से फिल्म इंडस्ट्री से दूर हो गए।

जूनियर को सैल्यूट

जूनियर महमूद कहते हैं कि वो आज भी हिंदी फिल्मों में काम करना चाहते हैं और उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि लोग उन्हें छोटे रोल दें। लेकिन वो बस इतना चाहते हैं कि अगर उन्हें रोल छोटा भी दिया जाए तो वो रोल दमदार तो होना ही चाहिए। 

Meerut Manthan यही उम्मीद करता है कि जूनियर महमूद की ये ख्वाहिश पूरी हो और कोई प्रोड्यूसर या डायरेक्टर इन्हें बढ़िया रोल ऑफर कर दे। कम वक्त के लिए ही सही, लेकिन जूनियर महमूद ने फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा-खासा योगदान दिया है और उनके इस योगदान को मेरठ मंथन करता है। जय हिंद।

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