Padosan 1968 Movie Facts | Sunil Dutt-Saira Banu की प्यारी फिल्म पड़ोसन की 15 रोचक और अनसुनी बातें

Padosan 1968 Movie Facts. 29 नवंबर साल 1968 को रिलीज़ हुई थी सुनील दत्त और सायरा बानो की बड़ी ही खूबसूरत फिल्म पड़ोसन। जी हां, वही पड़ोसन जिसके गीत आज भी लोग बड़े शौक से सुनते-गाते-गुनगुनाते हैं। ये फिल्म डायरेक्ट की थी ज्योति स्वरूप ने। 

और इसके प्रोड्यूसर थे महान कॉमेडियन महमूद साहब व एन.सी.सिप्पी साहब। इस फिल्म में किशोर कुमार, महमूद, ओम प्रकाश, केस्टो मुखर्जी, मुकरी, राज किशोर, आग़ा और दुलारी भी अहम भूमिकाओं में नज़र आते हैं। 

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Padosan 1968 Movie Facts - Photo: Social Media

बात अगर इस फिल्म के गीत-संगीत की करें तो इसके सभी गीत लिखे थे राजेंद्र कृष्णन जी ने। म्यूज़िक कंपोज़ किया था आर.डी.बर्मन साहब ने। 

फिल्म में कुल आठ गीत थे जिन्हें किशोर कुमार, लता मंगेशकर, आशा भोंसले और मन्ना डे ने अपनी आवाज़ दी थी। साल 1968 की टॉप 10 फिल्मों की लिस्ट में ये पड़ोसन छठे नंबर पर आई थी।

Padosan फिल्म जितनी शानदार है, उतनी ही शानदार है इस फिल्म से जुड़ी वो कहानियां जो आज Meerut Manthan के माध्यम से आप जानेंगे। और गारंटी है इस बात की कि अगर आप पुरानी फिल्मों के शौकीन हैं तो आपको पड़ोसन फिल्म की ये अनसुनी कहानियां बहुत ज़्यादा पसंद आएंगी। Padosan 1968 Movie Facts.

पहली कहानी

किशोर कुमार ने पड़ोसन में विद्यापति का किरदार निभाया था। विद्यापति एक मस्तमौला टाइप का इंसान है। वो संगीत और अभिनय का बहुत बड़ा ज्ञाता है। लेकिन रहता बिल्कुल आम इंसान की तरह है। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरू में किशोर दा पड़ोसन फिल्म में एक्टिंग करना ही नहीं चाहते थे। वो सिर्फ इस फिल्म के गीत गाने में ही दिलचस्पी ले रहे थे। लेकिन महमूद साहब ने विद्यापित का रोल किशोर दा के अलावा किसी और एक्टर से कराने के बारे में इमैजिन भी नहीं किया था। 

यही वजह है कि जब किशोर दा ने पड़ोसन फिल्म में एक्टिंग करने से मना कर दिया तो महमूद साहब एक शाम किशोर दा के घर उन्हें मनाने पहुंच गए। किशोर दा जब नहीं माने तो महमूद साहब उनके घर के बाहर खड़े हो गए। 

और फिर पूरी रात महमूद किशोर दा के घर के बाहर यूं ही खड़े रहे। महमूद साहब का ये जज़्बा देखकर किशोर दा पिघल गए। और फाइनली उन्होंने पड़ोसन फिल्म में एक्टिंग करने की हामी भर दी। यानि एज़ ए प्रोड्यूसर अपनी पहली फिल्म में किशोर कुमार से एक्टिंग कराने का अपना ख्वाब महमूद साहब ने पूरा करके ही दम लिया।

दूसरी कहानी

पड़ोसन फिल्म का गीत 'एक चतुर नार' एक मास्टरपीस गीत है। ये गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है जितना कि फिल्म की रिलीज़ के वक्त हुआ था। इस गीत में किशोर दा के अलावा महान मन्ना डे जी ने भी अपनी आवाज़ दी थी। 

लेकिन जब ये गीत रिकॉर्ड किया जा रहा था, उस वक्त एक सिचुएशन पैदा हो गई थी। दरअसल, फिल्म की कहानी के मुताबिक महमूद साहब का कैरेक्टर सुनील दत्त से गायकी में हार जाता है। हालांकि सुनील दत्त खुद नहीं गाते, बल्कि वो किशोर दा की गायकी पर सिर्फ लिप सिंक करते हैं। 

मन्ना डे को पता नहीं था कि महमूद का किरदार सुनील दत्त के किरदार से गायकी के मुकाबले में हार जाएगा। मगर जब मन्ना डे को ये बात पता चली तो उन्होंने इस पर कडा़ ऐतराज़ जताया। 

उन्होंने सीधे-सीधे महमूद साहब से डिमांड कर दी कि महमूद के किरदार को हारता हुआ नहीं दिखाना है। दरअसल, मन्ना डे एक वैल ट्रेंड क्लासिकल सिंगर थे। उन्होंने कड़ी साधना से क्लासिकल गायकी में महारत हासिल की थी। 

दूसरी तरफ किशोर दा ने कभी भी क्लासिकल गायकी की विधिवत दीक्षा नहीं ली थी। वो बस अपनी मेहनत और लगन के दम पर गायकी का बड़ा नाम बने थे। 

मन्ना डे को ये बात सही नहीं लग रही थी कि एक वैल ट्रेंड क्लासिकल सिंगर किसी ऐसे सिंगर से शास्त्रीय गायन में हार जाए जिसने कभी भी गायन की प्रॉपर शिक्षा ना ली हो। 

हालांकि जब महमूद साहब ने मन्ना डे को समझाया कि ये स्क्रिप्ट की डिमांड है कि उनका कैरेक्टर इस मुकाबले में हारेगा, तो मन्ना डे वो गीत रिकॉर्ड करने को राज़ी हुए। 

वैसे ये बात भी जानने लायक है कि कुछ इसी तरह की सिचुएशन साल 1956 में आई फिल्म बसंत बहार के गीत केतकी गुलाब जुही की रिकॉर्डिंग के दौरान भी आई थी। 

उस गीत में मन्ना डे और पंडित भीमसेन जोशी के किरदारों के बीच भी गायकी का मुकाबला होता है। और उस मुकाबले में पंडित भीमसेन जोशी ने जिस किरदार को अपनी आवाज़ दी थी, वो हार जाता है। 

तब मन्ना डे जी को ये बात सही नहीं लग रही थी कि पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान शास्त्रीय गायक उनसे हार जाएं। उस वक्त भी मन्ना डे जी ने फिल्म से वो सीन्स हटाने को कहे थे। हालांकि तब भी उन्हें समझाया गया था कि ये सब स्क्रिप्ट की डिमांड पर हो रहा है।

तीसरी कहानी

पड़ोसन फिल्म का गीत 'मेरी प्यारी बिंदू' बहुत ज़्यादा पसंद किया गया था। इस गीत में सुनील दत्त को प्यार का पाठ पढ़ाते हुए किशोर कुमार अपने चेलों के साथ जमकर ठुमकते हुए दिखाई देते हैं। 

और मज़ेदार बात ये है कि इस गीत में किशोर कुमार जो डांस करते नज़र आते हैं वो उन्हें किसी कोरियोग्राफर या डांस मास्टर ने नहीं सिखाए थे। वो स्टेप्स तो किशोर दा ने खुद ही करने शुरू कर दिए थे। 

किशोर दा ने खुद ही उस गीत के लिरिक्स साथी कलाकारों को बताए। और सबसे कह दिया कि जैसे मैं करूंगा, वैसा ही तुम भी करने की कोशिश करना। हो जाएगा गाना कंप्लीट। वैसा ही हुआ। और ये गाना उस वक्त का सबसे कॉमिक गाना बन गया। वैसे, आज भी इस गाने को देखकर मज़ा आ जाता है।

चौथी कहानी

पड़ोसन फिल्म जब रिलीज़ हुई तो दर्शकों ने सुनील दत्त और महमूद से भी ज़्यादा किशोर कुमार की एक्टिंग को सराहा। कहते हैं कि किशोर कुमार को मिल रही ज़बरदस्त तारीफों की वजह से महमूद साहब और सुनील दत्त साहब टेंशन में आ गए थे। उन्हें लगने लगा कि किशोर कुमार के सामने उनके काम की तो कोई बात हो ही नहीं पाएगी। 

तब किशोर दा के किरदार को थोड़ा कमतर करने के लिए महमूद ने उनके कुछ सीन्स काट दिए। ताकि लोग किशोर दा की जगह फिल्म के हीरो सुनील दत्त और उन पर अधिक ध्यान दें। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। किशोर कुमार लोगों के मन-मस्तिष्क पर अपनी गायकी और अपने अभिनय की छाप छोड़ चुके थे। 

पांचवी कहानी

पड़ोसन महमूद साहब की एज़ ए प्रोड्यूसर पहली फिल्म थी। जिस रोल में सुनील दत्त साहब इस फिल्म में दिखे हैं, पहले वो रोल महमूद साहब अपने दोस्त गुरूदत्त से कराना चाहते थे। 

लेकिन फिल्म पर काम शुरू होने से पहले ही गुरूदत्त जी की मृत्यु हो गई थी। गुरूदत्त जी की मृत्यु के बाद महमूद को समझ में नहीं आ रहा था कि किसे हीरो लिया जाए। फिर किसी ने उन्हें सुनील दत्त जी का नाम सुझाया। 

सुनील दत्त महमूद साहब को भी सही लगे। लेकिन महमूद को डर था कि कहीं स्क्रिप्ट सुनकर दत्त साहब इस फिल्म में काम करने से मना ना कर दें। हालांकि, जब दत्त साहब ने पड़ोसन की स्क्रिप्ट सुनी तो उन्हें ये कहानी बड़ी पसंद आई। और उन्होंने तुरंत इस फिल्म में काम करने की हामी भर दी।

छठी कहानी

पड़ोसन वो फिल्म है जिसे भारतीय क्रिकेट टीम के सभी खिलाड़ियों ने वर्ल्ड कप के फाइनल मैच से एक रात पहले एक साथ बैठकर देखा था। ये साल 1983 के वर्ल्ड कप के फाइनल से एक रात पहले की बात थी। 

कपिल पाजी के नेतृत्व में टीम इंडिया को उस वक्त की सबसे खतरनाक टीम, और शुरूआती दोनों विश्व कपों को जीत चुकी वेस्ट इंडीज़ से फाइनल में भिड़ना था। सभी खिलाड़ी प्रेशर में थे। ऐसे में खिलाड़ियों को मेंटली थोड़ा रिलैक्स्ड करने के लिए कपिल पाजी ने ही ये फिल्म सबको ड्रैसिंग रूम में दिखाई थी।

सातवीं कहानी

पड़ोसन फिल्म की कहानी मशहूर बंगाली लेखक अरुण चौधरी की कहानी पशेर बारी पर आधारित है। वैसे, पशेर बारी नाम से ही इस कहानी पर एक बांग्ला फिल्म पहले ही बन चुकी थी। 

और उसके बाद 1960 में तेलुगू व 1961 में तमिल भाषा में इसी कहानी पर फिल्में बन चुकी थी। फिर साल 1968 में आई थी पड़ोसन। यानि पड़ोसन बांग्ला फिल्म पशेर बाली का चौथा रीमेक है। 

1981 में बार फिर से ये कहानी तेलुगू भाषा में दोहराई गई। और 2003 में कन्नड़ भाषा में भी इस कहानी पर फिल्म बनी।

आठवीं कहानी

पड़ोसन फिल्म जब दक्षिण भारत में रिलीज़ हुई थी तो वहां इसका विरोध भी हुआ था। एक इंटरव्यू में एक्टर कमल हासन ने खुद कहा था कि वो इस फिल्म का विरोध करने थिएटर के बाहर गए थे। 

उन्हें बताया गया था कि इस फिल्म में दक्षिण भारतीयों का मज़ाक बनाया गया है। प्रोटेस्ट खत्म होने के बाद कमल हासन इस फिल्म को देखने थिएटर के अंदर भी चले गए। 

और जब फिल्म खत्म होने के बाद कमल हासन थिएटर से बाहर आए तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्हें पड़ोसन बहुत पसंद आई थी। ये वो वक्त था जब दक्षिण भारत में बहुत ज़्यादा हिंदी फिल्में नहीं दिखाई जाती थी। 

खुद कमल हासन साहब ने भी पहली हिंदी फिल्म पड़ोसन ही देखी थी। और ये फिल्म उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने फिर तो हिंदी फिल्में देखना शुरू कर दिया। और ये पूरा किस्सा कमल हासन जी ने महमूद साहब को भी बताया था। तब, जब वो महमूद साहब से पहली दफा मिले थे।

नौंवी कहानी

पड़ोसन फिल्म भारत की ऑल टाइम बेस्ट रोमांटिक कॉमेडीज़ यानि रोम कॉम्स में से एक है। इस फिल्म ने किशोर कुमार और महमूद साहब की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए थे। 

लेकिन कहते हैं कि सुनील दत्त साहब को इस फिल्म की कामयाबी से एक नुकसान हो गया था। सुनील दत्त साहब के फैंस को पड़ोसन फिल्म में उनका ठेठ गंवई आशिक का किरदार पसंद नहीं आया। 

उस वक्त कई फैंस ने चिट्ठी लिखकर दत्त साहब से नाराज़गी और निराशा जताई थी। हालांकि दत्त साहब ने हमेशा पड़ोसन को अपनी टॉप टेन बेस्ट फिल्मों की लिस्ट में रखा है।

दसवीं कहानी

पड़ोसन फिल्म में सायरा बानो जी पर एक गीत फिल्माया गया है, जिसके बोल हैं भाई बत्तूर। इस गीत को लता मंगेशकर जी ने गाया था। और ये गीत भी बेहद कर्णप्रिय गीत है। 

इस गीत से भी एक बात जुड़ी है जो बड़ी रोचक है। पड़ोसन फिल्म से ठीक लगभग 3 साल पहले, यानि साल 1965 में गुमनाम रिलीज़ हुई थी। जी हां, वही गुमनाम जिसमें मनोज कुमार और नंदा लीड रोल में थे। 

गुमनाम में महमूद साहब ने एक हैदराबादी बटलर का रोल निभाया था। और अगर आप फिर से गुमनाम फिल्म देखें तो ध्यान दीजिएगा कि महमूद साहब इस फिल्म में हैदराबादी स्टाइल में भई बत्तूर गाना खूब गुनगुनाते हैं। 

तो क्या पड़ोसन फिल्म के म्यूज़िक पर पंचम दा ने उसी वक्त से काम शुरू कर दिया था? या बाद में महमूद साहब ने ये गीत पड़ोसन में डलवाया था

वैल, ये तो हमें भी नहीं पता चल सका। लेकिन इतना ज़रूर हम कह सकते हैं कि पड़ोसन का भई बत्तूर गीत इसकी मेकिंग शुरू होने से काफी पहले ही शेप लेने लगा था।

11वीं कहानी

पड़ोसन में महमूद साहब का निभाया मास्टर पिल्लई का रोल बहुत ज़्यादा हिट हुआ था। आज भी लोग इस कैरेक्टर को बहुत पसंद करते हैं। और इस कैरेक्टर की लोकप्रियता का आलम ये है कि इसे बाद में भी कई लोगों ने कॉपी करने का प्रयास किया। 

जिनमें से एक थे मरहूम सतीश कौशिक जी। सतीश कौशिक जी ने फिल्म साजन चले ससुराल में पड़ोसन के मास्टर पिल्लई से प्रेरित होकर ही अपने कैरेक्टर मुरनचंद स्वामी की प्रिपरेशन की थी। 

और सतीश कौशिक जी ने इतनी शानदार प्रिपरेशन की, कि उन्हें इस रोल के लिए फिल्मफेयर बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड भी मिल गया। 

12वीं कहानी

पड़ोसन फिल्म का गीत 'एक चतुर नार' उस वक्त भी बहुत पसंद किया गया था। और आज भी ये गीत लोगों को बहुत अच्छा लगता है। इस गीत को महमूद साहब और सुनील दत्त साहब व किशोर दा की एक्टिंग, और मन्ना डे व किशोर कुमार की गायकी ने कालजयी बना दिया है। 

लेकिन पड़ोसन फिल्म का ये गीत ऑरिजनली किशोर दा के बड़े भाई दादामुनि अशोक कुमार ने सालों पहले गाया था। अशोक कुमार जी ने साल 1941 में आई झूला नाम की फिल्म में ये गीत गाया था। उस फिल्म में अशोक कुमार की हीरोइन थी खूबसूरत लीला चिटनिस जी।

13वीं कहानी

पड़ोसन फिल्म की बिंदू यानि सायरा बानो जी की खूबसूरती ने भी उस वक्त बहुत सुर्खियां बटोरी थी। और ये बात भी बड़ी दिलचस्प है कि पड़ोसन की शूटिंग शुरू होने से कुछ पहले ही सायरा बानो और दिलीप कुमार जी ने शादी कर ली थी। 

जबकी पहले वो लगभग एक साल बाद शादी करने वाले थे। सायरा बानो की शादी होने के बाद महमूद साहब टेंशन में आ गए थे। क्योंकि वो जानते थे कि शादी के बाद सायरा बानो फिल्मों में काम नहीं करेंगी। 

उन्हें लगा कि अब सायरा बानो उनकी फिल्म पड़ोसन में काम करने से भी मना कर देंगी। सायरा बानो जी भी ये तय कर चुकी थी कि वो महमूद साहब से मना कर देंगी। 

लेकिन दिलीप कुमार जी ने सायरा बानो जी से कहा कि जो फिल्में साइन्ड हैं उन्हें तो पूरी कर ही लो। इस तरह सायरा बानो जी ने महमूद की पड़ोसन और मनोज कुमार की पूरब और पश्चिम की शूटिंग कंप्लीट की। यानि अगर दिलीप कुमार सलाह ना देते तो सायरा बानो इन दोनों ही फिल्मों में नज़र ना आती।

14वीं कहानी

चूंकि पड़ोसन महमूद साहब का पहला प्रोजेक्ट था जिसे वो खुद प्रोड्यूस भी कर रहे थे, इसलिए इस फिल्म के लिए महमूद साहब ने बहुत मेहनत की थी। फिल्म की एक-एक चीज़ पर महमूद साहब बारीकी से नज़र रखते थे। 

फिल्म की कहानी, कैरेक्टर्स का लुक और फिल्म का गीत-संगीत, सब कुछ महमूद साहब बड़े ध्यान से देखते थे। महमूद साहब को अपने बालों से बहुत प्यार था। लेकिन चूंकि इस फिल्म में उनके कैरेक्टर मास्टर पिल्लई को गंजा दिखना था, तो इसके लिए महमूद साहब ने अपना सिर मुंडवा लिया था। 

और सायरा बानो जी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जिस वक्त महमूद साहब को गंजा किया जा रहा था, उस वक्त उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े थे।

15वीं कहानी

पड़ोसन में किशोर कुमार का कैरेक्टर विद्यापति एक ऐसा शख्स है जो बहुत ज़्यादा पान खाता है। महमूद साहब ने अपनी प्रोडक्शन टीम को सख्त हिदायत दे रखी थी कि किशोर दा को पान की कमी ना होने पाए। 

पड़ोसन की काफी शूटिंग चेन्नई में हुई थी। और जिस दिन भी किशोर दा के सीन्स शूट होने होते थे, उनके लिए पान की एक पूरी प्लेट तैयार की जाती थी। किशोर दा कम से कम दो पान एक दफा में चबाते थे। 

और अपने सफेद कुर्ते पर पान की पीक की कुछ बूंदे भी गिराते थे। ताकि कैमरे पर उनका कैरेक्टर विद्यापति एकदम रियल लगे।

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