Peace Kanwal | 50s के Bollywood की वो Beautiful Actress जो आज गुमनामी के अंधेरों में खो चुकी है | Biography
Peace Kanwal. ये चाहती तो थी अपने पापा की तरह डॉक्टर बनना। एक कामयाब डॉक्टर बनना। लेकिन किस्मत इन्हें ले आई फिल्मी दुनिया की तरफ। और फिर किस्मत ने ही कुछ ऐसी करवटें भी बदली, कि अब ये बन चुकी हैं एक समाज सेविका और चित्रकार।
किसी ज़माने में हिंदी सिनेमा के चमचमाते आसमान में किसी धूमकेतू की तरफ उभरी पीस कंवल बहुत जल्दी ही गुमनामी के अंधेरों में खो भी गई। और अब उनका ज़िक्र भी शायद ही कहीं होता होगा।
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Actress Peace Kanwal Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज आपको 50 के दशक की खूबसूरत एक्ट्रेस Peace Kanwal की कहानी बताएगा। Peace Kanwal फिल्मी दुनिया में कैसे आई? और फिर क्यों सुपरहिट फिल्में देने के बावजूद इन्हें फिल्मी दुनिया से खुद को दूर करना पड़ा?
Peace Kanwal का शुरुआती जीवन
पीस कंवल का जन्म 16 दिसंबर को अमृतसर में हुआ था। इनके पिता इंद्रियास मुंशीराम कंवल एक डॉक्टर थे, जो जोधपूर के राजपूत परिवार से थे। जोधपुर के राजा मानसिंह के खानदान से इनके पिता के बहुत अच्छे ताल्लुक हुआ करते थे।
उन्हीं की बदौलत जयपुर के राजपरिवार से भी पीस कंवल जी के पिता की बढ़िया जान-पहचान थी। पीस कंवल जी की मां भी जबलपुर के एक अमीर राजपूत खानदान से थी।
इनके पिता आगरा के एक मिशनरी अस्पताल में नौकरी करते थे। साथ ही साथ अमृतसर में उनका खुद का एक अस्पताल भी था। मिशनरी अस्पताल की नौकरी के चलते पीस कंवल जी के पिता का काफी वक्त तक्षशिला, लाहौर और रावलपिंडी में गुज़रता था।
मिशनरी अस्पताल की नौकरी में ही पीस कंवल के पिता डॉक्टर इंद्रियास मुंशीराम कंवल ईसाई धर्म से बहुत प्रभावित हुए। और आखिरकार वो ईसाई ही बन गए। उन्होंने अपना नाम भी बदलकर एंड्रयू रख लिया।
Ludhiana Medical College में ले लिया पीस कंवल ने दाखिला
पिता जहां-जहां भी नौकरी के सिलसिले में जाते, परिवार भी उनके साथ ही जाता। सो पीस कंवल की स्कूलिंग अमृतसर, लाहौर और रावलपिंडी में हुई।
पीस कंवल भी चाहती थी कि वो बड़ी होकर अपने पिता की तरह डॉक्टर बनें। मगर साल 1943 में इनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद पीस कंवल जी की मां अपने परिवार को लेकर दिल्ली आ गई।
दिल्ली से स्कूलिंग कंप्लीट करने के बाद पीस कंवल जी ने डॉक्टर बनने का अपना बचपन का ख्वाब पूरा करने के लिए लुधियाना मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया। लेकिन इनकी किस्मत में डॉक्टर बनना तो लिखा ही नहीं था।
यूं Film Industry का हिस्सा बनी Peace Kanwal
लुधियाना मेडिकल कॉलेज में पीस कंवल जी ने एक साल ही पढ़ाई की थी कि छुट्टियों में एक दफा ये अपने एक रिश्तेदार से मिलने मुंबई आ गई। मुंबई के कालाघोड़ा इलाके में मौजूद मशहूर रिदम हाउस बिल्डिंग में इनकी दोस्ती एक लड़की से हुई।
उस ज़माने में फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा नाम रहे अब्दुल रशीद कारदार यानि ए.आर.कारदार ने इत्तेफाक से इसी दौरान एक टैलेंट हंट कॉम्पिटिशन का आयोजन कराया। उस कॉम्पिटिशन का नाम उन्होंने रखा था कारदार कॉलिनोज़ टैलेंट कॉम्पिटिशन।
उन दिनों वो कॉम्पिटिशन मुंबई में चर्चा का विषय बना हुआ था। रिदम हाउस वाली पीस कंवल की उसी मुंबईया दोस्त ने इन्हें भी उस कॉम्पिटिशन का फॉर्म भरने के लिए प्रेरित किया। और पीस कंवल जी ने भी फॉर्म भर दिया।
बस यही पल पीस कंवल जी के लिए ज़िंदगी बदलने वाला साबित हुआ। ए.आर.कारदार के उस कॉम्पिटिशन में पीस कंवल जी फर्स्ट आई। जबकी दूसरे नंबर पर रही चांद उस्मानी, जो आगे चलकर नामी एक्ट्रेस बनी।
उसी कॉम्पिटिशन में अनिता गुहा और शुभा खोटे जी ने भी हिस्सा लिया था। चूंकि पीस कंवल जी उस कॉम्पिटिशन की विनर थी तो कारदार प्रोडक्शन्स लिमिटेड ने इनके साथ दो साल का कॉन्ट्रैक्ट किया।
और फिर साल 1953 में रिलीज़ हुई पीस कंवल की पहली फिल्म 'दिल-ए-नादान'। इस फिल्म में इनके हीरो थे तलत महमूद। ये एक म्यूज़िकल फिल्म थी जिसका संगीत तैयार किया था गुलाम मोहम्मद ने। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी।
जल्द ही शादी के बंधन में भी बंध गई पीस कंवल
साल 1954 में पीस कंवल जी की दूसरी फिल्म आई जिसका नाम था 'बाराती'। ये फिल्म भी कारदार प्रोडक्शन्स लिमिटेड ने ही बनाई थी। 'बाराती' में इनके हीरो थे आग़ा।
इस फिल्म को डायरेक्ट किया था जे.के.नंदा ने। और इस फिल्म में म्यूज़िक दिया था रोशन साहब ने। ये वही रोशन हैं जिनका पोता आज हिंदी सिनेमा का बहुत बड़ा सितारा है। और जिसे दुनिया ऋतिक रोशन के नाम से जानती है।
खैर, पीस कंवल जी की कहानी पर वापस आते हैं। बाराती में पीस कंवल जी के साथ चांद उस्मानी ने भी काम किया था। वही चांद उस्मानी, जो कारदार कॉलिनोज़ टैलेंट कॉम्पिटिशन में दूसरे नंबर पर रही थी।
ये फिल्म भी उस वक्त बहुत पसंद की गई थी। पीस कंवल जी का करियर अभी जमना शुरू ही हुआ था कि साल 1955 में इन्होंने सुशील रुईया से शादी कर ली।
सुशील रुईया मशहूर रुईया घराने से ताल्लुक रखते थे। और पीस कंवल से उनकी दोस्ती इनकी पहली फिल्म दिल-ए-नादान की शूटिंग के दौरान हुई थी। सुशील रुईया अपने किसी दोस्त के साथ दिल-ए-नादान फिल्म के सेट पर आए थे। दोस्ती हुई तो मुलाकातें बढ़ी।
और हर मुलाकात के साथ नज़दीकियां भी बढ़ती चली गई। जो आखिरकार शादी में तब्दील हुई। और पीस कंवल व सुशील रुईया दो जिस्म एक जान हो गए।
हालांकि इस शादी के बाद से ही पीस कंवल के लिए चुनौतियां भी खड़ी होने लगी। मेडिकल की पढ़ाई तो वो फिल्मों के लिए पहले ही छोड़ चुकी थी। शादी के बाद पति सुशील रुईया ने भी फिल्मों में काम करने से मना कर दिया।
उन्होंने पीस कंवल जी का नाम बदलकर राजश्री कर दिया था। पीस कंवल जी के पास फिल्मों के ऑफर्स तो खूब आते थे। लेकिन पति के नाखुश होने की वजह से वो हर ऑफर को ठुकरा देती। हालांकि बड़ी मिन्नतों के बाद पति ने साल 1956 में आई 'किस्मत' में काम करने की इजाज़त दे दी।
पहले पति से तलाक हुआ और फिर मिला नया हमसफर
साल 1957 में पीस कंवल जी ने एक बेटे को जन्म दिया। पति को लगा कि अब पीस कंवल खुद ही फिल्मों में दिलचस्पी लेना बंद कर देंगी। लेकिन फिल्मों से इन्हें काफी लगाव हो चुका था।
इसलिए बेटे के जन्म के बाद भी ये अपने पति से फिल्मों में काम करने की छूट मांगती रहती थी। इस वजह से पति संग इनका कई दफा झगड़ा भी हो जाता था।
पति से लड़-झगड़कर ही सही, लेकिन पीस कंवल जी ने साल 1960 की 'बरसात की रात', 'नई मां', 'मां-बाप'। और साल 1962 की 'आरती' में काम किया।
हालांकि इन सभी फिल्मों में वो हीरोइन नहीं, सपोर्टिंग एक्ट्रेस के रोल में दिखी थी। पीस कंवल को ये बात बहुत अखरती थी कि उनका फिल्मी करियर बहुत जल्दी खत्म हो गया। दूसरी तरफ पति से भी इनके ताल्लुकात काफी खराब हो चुके थे।
इसलिए साल 1968 में इन्होंने अपने पति से तलाक ले लिया। बेटा पति के पास ही रहा। पति से अलग होने के बाद पीस कंवल जी समाज सेवा से जुड़ गई। इन्होंने कई सामाजिक संस्थाओं में काम किया।
नरगिस दत्त की अध्यक्षता वाली वॉर विडोज़ एसोसिएशन नाम की संस्था से भी ये जुड़ी। ये संस्था युद्ध में शहीद हुए जवानों की विधवाओं के वेलफेयर के लिए काम करती थी।
पीस कंवल इस संस्था की उपाध्यक्ष बन गई थी। जबकी गरीब और बेसहारा बच्चों के विकास के लिए भी इन्होंने काफी काम किया। चूंकि पीस कंवल बहुत अच्छी चित्रकार भी थी, तो इन्होंने चित्रकारी में भी खूब नाम कमाया।
दिल्ली की ललित कला अकादमी सहित देश के अलग-अलग शहरों में इनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती रहती थी। और केवल देश ही नहीं, विदेशों में भी इन्होंने चित्रकारी में लोकप्रियता हासिल की। साल 1976 की एक प्रदर्शनी में पीस कंवल जी की मुलाकात भारत के पूर्व राष्ट्रपति वी.वी.गिरी के नाति वी.महेश से हुई।
वी.महेश पीस कंवल जी को पहली मुलाकात के बाद से ही पसंद करने लगे थे। एक दिन उन्होंने पीस कंवल जी को शादी के लिए प्रपोज़ कर दिया। और आखिरकार साल 1977 में पीस कंवल जी और वी.महेश ने शादी कर ली।
अब कहां हैं पीस कंवल?
पीस कंवल अब अपने पति वी.महेश के साथ मुंबई में रहती हैं। वी.महेश से शादी के बाद पीस कंवल ने साल 1979 की फिल्म 'चंबल की कसम' और साल 1984 की फिल्म 'ज़मीन-आसमान' में काम किया।
फिर साल 1991 में आई फिल्म 'वो सुबह कभी तो आएगी' में इन्होंने आखिरी दफा एक्टिंग की। उसके बाद इन्होंने हमेशा के लिए सिनेमा को अलविदा कह दिया। और खुद को पूरी तरह से समाज सेवा व चित्रकला को समर्पित कर दिया।
सिनेमाई दुनिया से पीस कंवल का नाता अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है। लोग भी अब पीस कंवल को पूरी तरह भुला चुके हैं। अब तो फिल्म इंडस्ट्री में भी बहुत कम लोग होंगे जो पीस कंवल जी को याद करते होंगे।
लेकिन Meerut Manthan हमेशा हर कलाकार को याद करेगा और पूरे सम्मान के साथ याद करेगा। Meerut Manthan Peace Kanwal जी को सैल्यूट भी करता है। और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि पीस कंवल हमेशा स्वस्थ रहें। जय हिंद।
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