Lalita Pawar | Hindi Cinema की वो खतरनाक सास जिसका अंत बड़ा ही दुखद हुआ था | Biography

Lalita Pawar. हिंदी सिनेमा के शौकीन इनके नाम और इनके चेहरे से बड़ी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। अक्सर फिल्मों में खतरनाक सास के किरदारों में नज़र आने वाली ललिता पवार अपनी बेजोड़ अदायगी से सिनेप्रेमियों का जमकर मनोरंजन किया करती थी। 

रामानंद सागर की रामायण में इन्होंने मंथरा का किरदार कुछ इस तरह से जिया, कि लोगों को लगा जैसे उन्होंने साक्षात मंथरा को देख लिया हो। 7 दशक तक भारतीय सिनेमा में सक्रिय रही ललिता पवार ने 700 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया और अपना एक अलग मुकाम बनाया।

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Lalita Pawar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज आपको भारत की महानतम चरित्र अभिनेत्रियों में से एक Lalita Pawar की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। Lalita Pawar कैसे हिरोइन से कैरेक्टर आर्टिस्ट बनी और उनकी निजी ज़िंदगी में क्या-क्या उथल-पुथल हुई, ये सारी कहानी आज हम और आप जानेंगे।

Lalita Pawar का शुरूआती जीवन

ललिता पवार का जन्म 18 अप्रैल 1916 को नासिक शहर के येओला कस्बे में हुआ था। मां बाप ने इन्हें नाम दिया था Amba Laxman Rao Sagun. इनके पिता लक्ष्मण राओ शगुन सिल्क और कॉटन व्यापारी थे और अच्छे-खासे अमीर थे। 

ये जब मात्र 11 बरस की थी तभी इन्होंने फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम करना शुरू कर दिया था। एक मूक फिल्म में ये बाल कलाकार के तौर पर दिखी थी और बतौर मेहनताना इन्हें 18 रुपए मिले थे।

घर पर ही की Lalita Pawar ने पढ़ाई

ये वो दौर था जब लड़कियों को स्कूल भेजना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी। लेकिन इनके पिता ने इनके लिए घर पर ही उर्दू और हिंदी टीचर की व्यवस्था कर दी थी। 

इसलिए ये थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना जानती थी। घर पर ही इन्होंने शास्त्रीय संगीत भी सीखा था। भारत में जब मूक फिल्में बना करती थी तो ये उनमें काफी एक्टिव थी। 

इन्होंने ढेर सारी मूक फिल्मों में काम किया था। उस ज़माने में बनने वाली तकरीबन हर मूक फिल्म में ये नज़र आती थी और एक साल में एक दर्जन फिल्मों में ये काम कर लेती थी। उसके बाद साल 1934 से इन्होंने टॉकी फिल्मों में काम करना भी शुरू कर दिया था।

अपने दौर की सबसे महंगी हिरोइन थी Lalita Pawar

ललिता पवार दिखने में काफी खूबसूरत थी और ये एक ज़बरदस्त अदाकारा भी थी। यही वजह थी कि इनके पास फिल्मों की कमी नहीं रहती थी। उस दौर में ये हिंदी सिनेमा की सबसे महंगी हिरोइन थी। 

ये वो वक्त था जब फिल्म की हीरोइन को अपने गाने भी खुद ही गाने पड़ते थे। चूंकि ललिता पवार ने संगीत की शिक्षा ली थी तो ये आराम से गाने भी गा लिया करती थी। 

इनके गाए गीत लोगों को बड़े पसंद भी आ रहे थे और ये कामयाबी की डगर पर तेज़ी से आगे बढ़ती चली जा रही थी। लेकिन साल 1942 में इनके साथ एक ऐसा हादसा हुआ जिसने इनकी ज़िंदगी बदलकर रख दी और इनके मशहूर हीरोइन बनने के सपने को चकनाचूर कर दिया।

जब Lalita Pawar के साथ हुआ बहुत बुरा हादसा

जंग-ए-आज़ादी नाम की फिल्म के लिए ये भगवान दादा के साथ एक सीन शूट कर रही थी। उस सीन में भगवान दादा को इन्हें थप्पड़ मारना था। भगवान दादा ने इन्हें वो थप्पड़ बेहद ज़ोर से मार दिया। 

इतनी ज़ोर से कि ये ज़मीन पर गिर पड़ी और बेहोश हो गई। इनकी आंख की एक नस फट गई। कहा जाता है कि एक डॉक्टर ने इन्हें गलत दवाई दे दी जिससे इनके चेहरे पर लकवा मार गया। 

इसके बाद लगभग तीन सालों तक ये फिल्म इंडस्ट्री से दूर रही। उस चोट ने इनकी वो आंख बेकार कर दी और इनकी आंख छोटी हो गई। इस तरह फिल्मों में बतौर लीडिंग लेडी कामयाबी पाने का इनका सपना कुछ ही फिल्मों के बाद टूट गया। इनकी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल गई।

फिल्मों से बेहद प्यार करती थी Lalita Pawar

ललिता पवार को फिल्मों से बेहद प्यार था। कहना चाहिए कि एक्टिंग ही उनकी असली ज़िंदगी थी। इतना बुरा हादसा होने के बाद जहां अक्सर लोग बुरी तरह से टूट जाते हैं तो वहीं ललिता पवार ने खुद को अंदर से मजूबत किया और फिल्मों में कैरेक्टर आर्टिस्ट के तौर पर काम करने लगी। 

दिलीप कुमार, देवानंद और राजकपूर जैसे उस दौर के सितारे इनसे उम्र में महज़ एक या दो बरस ही छोटे थे। लेकिन एक आंख बेकार हो जाने की वजह से इन्हें उनकी मां के रोल निभाने पड़ रहे थे और ये भी बिना किसी संकोच के ये सारे रोल किए जा रही थी।

इस फिल्म में बनी थी पहली दफा क्रूर सास

चोटिल होने के बाद 1948 में एमएम यूसुफ की फिल्म गृहस्थी से ललिता पवार ने फिल्मों में वापसी की। 1950 में रिलीज़ हुई वी शांताराम की फिल्म दहेज में ये पहली दफा सास के किरदार में दिखी। 

एक ऐसी क्रूर और अत्याचारी सास जो बहू का जीना हराम कर देती है। इस फिल्म ने ललिता पवार को दर्शकों के बीच लोकप्रिय कर दिया। उस रोल से इन्हें बेहद प्रसिद्धि मिली थी। 

इन्होंने वो रोल इस गहराई से निभाया कि उस दौर मे ज़्यादातर मांएं ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि उनकी बेटी को कभी भी ललिता पवार जैसी सास ना मिले। इसका एक असर ये भी रहा कि उत्तर भारत के ज़्यादातर घरों में लोग उन्हें नापसंद करते थे।

मंथरा के किरदार ने कर दिया अमर

70 सालों तक इन्होंने लगभग 700 फिल्मों में काम किया। हिंदी के अलावा इन्होंने मराठी और गुजराती फिल्मों में भी काम किया। और इन फिल्मों में इन्होंने एक से बढ़कर एक किरदार निभाए। 

रामानंद सागर की रामायण में इनका निभाया मंथरा का किरदार भला कौन भुला सकता है। रामायण देखने वाले हर दर्शक ने माना था कि मंथरा के किरदार को ललिता पवार से बेहतर कोई और अदाकारा कभी नहीं निभा सकती थी।

Lalita Pawar की प्रमुख फिल्में

ललिता पवार के करियर की प्रमुख फिल्मों की बात करें तो ये नज़र आई दाग, श्री 420, फूल और पत्थर, खानदान, नूरजहां, आबरू, आनंद, गोपी, बॉम्बे टू गोवा, तपस्या, याराना, सौ दिन सास के, नसीब, घर संसार, वतन के रखवाले, बहुरानी और मुस्कुराहट जैसी फिल्मों में। 

इनकी आखिरी फिल्म थी 1997 में रिलीज़ हुई भाई जिसमें ये एडवोकेट सत्यप्रकाश यानि ओमपुरी की मां के रोल में नज़र आई थी।

पॉजिटिव रोल्स में भी की गई पसंद

यूं तो ज़्यादातर फिल्मों में ये वैंप के किरदारों में दिखी। लेकिन कुछ फिल्में ऐसी भी थी जिनमें ये बड़े ही पॉज़िटिव रोल्स में नज़र आई। 

इनमें सबसे प्रमुख है 1959 में रिलीज़ हुई राज कपूर की फिल्म अनाड़ी में इनके द्वारा निभाया गया मिसेज दीसा का रोल। 

इसके अलावा आनंद फिल्म में सीनियर नर्स और नसीब फिल्म में मिसेज गोम्स के रोल में भी ये पॉजिटिव कैरेक्टर्स में दिखी थी जिन्हें दर्शकों ने भी बेहद पसंद किया था।

राज कपूर थे इनके फैन

राज कपूर तो इनके इतने बड़े फैन थे कि इनके साथ काम करने का कोई मौका वो नहीं छोड़ते थे। उन्होंने जब आरके स्टूडियो की नई बिल्डिंग बनवाई तो उसका उदघाटन भी उन्होंने ललिता पवार से ही कराया।

ऐसी थी इनकी निजी ज़िंदगी

बात अगर ललिता पवार जी की निजी ज़िंदगी के बारे में करें तो इनकी दो शादियां हुई थी। इनके पहले पति थे जी.पी. पवार जो कि इनके फिल्मी करियर के शुरूआती दिनों के एक बड़े फिल्म प्रोड्यूसर थे। 

लेकिन कुछ ही दिनों में ललिता पवार ने जी.पी. पवार से तलाक ले लिया क्योंकि जी.पी.पवार और ललिता पवार की छोटी बहन के बीच अफेयर शुरू हो गया था। इसके बाद इन्होंने राज कुमार गुप्ता से शादी की। उनसे इनका एक बेटा भी हुआ जिसका नाम था जय पवार।

तीन दिनों तक सड़ती रही लाश

अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में ये पुणे स्थित अपने बंगले आरोही में आ गई थी। इन्हें जबड़े का कैंसर हो गया था। पुणे में ही 24 फरवरी 1998 को ललिता पवार जी ने 81 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

इनकी मौत की खबर 3 दिन के बाद लोगों को मालूम चली थी। दरअसल, जिस वक्त इनकी मौत हुई थी इनके पति अस्पताल में भर्ती थे और इनका बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में रह रहा था। 

बेटा तीन दिन तक लगातार इन्हें फोन करता रहा लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। चौथे दिन बेटे ने पुलिस को फोन किया और पुलिस ने घर का दरवाज़ा तोड़कर इनका शव बरामद किया।

अमर रहेंगी ललिता पवार

ललिता पवार आज भी भारतीय सिने प्रेमियों के ज़ेहन में ज़िंदा हैं और हिंदी सिनेमा में तो ये अमर हो चुकी हैं। ये बात पूरे यकीन के साथ कही जा सकती है कि बॉलीवुड में ललिता पवार जैसी अभिनेत्री शायद ही फिर कभी आए। Meerut Manthan Lalita Pawar को याद करते हुए उन्हें नमन करता है। जय हिंद।

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