Junior Mehmood | 10 Lesser Known Facts | जूनियर महमूद की दस अनसुनी कहानियां

 हिंदी सिनेमा में यूं तो जाने कितने ही पॉप्युलर चाइल्ड आर्टिस्ट हुए हैं। लेकिन जो रुतबा और जो प्यार Junior Mehmood को मिला, वो शायद ही किसी और को मिला होगा। यूं तो इनका असल नाम Mohammad Naeem Sayyed है। 

लेकिन ये महान Comedian Mehmood साहब थे जिन्होंने इन्हें अपना शागिर्द बनाया था और इन्हें जूनियर महमूद नाम दिया था। पांच दशक लंबे अपने करियर में जूनियर महमूद जी ने गुज़रे ज़माने के लगभग हर बड़े स्टार के साथ काम किया। और केवल फिल्मों में ही नहीं, बल्कि टीवी पर भी अपने एक्टिंग स्किल्स दिखाए। 

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Junior Mehmood Lesser Known Facts - Photo: Social Media

Junior Mehmood साहब के फिल्मों में आने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। और वो कहानी Meerut Manthan पहले ही बता चुका है। इनकी उस कहानी को पाठकों का बहुत प्यार भी मिला है। आज Meerut Manthan आपको Junior Mehmood जी के जीवन की वो कुछ कहानियां बताएगा जो इनकी बायोग्राफी में नहीं बता सका था। और यकीन मानिएगा दोस्तों, आपको जूनियर महमूद जी की ये कहानियां भी बहुत ज़्यादा पसंद आएंगी। 

पहली कहानी

जूनियर महमूद का फिल्मी सफर बतौर बाल कलाकार शुरू हुआ था। और ये बात भी काबिल-ए-गौर है कि बाल कलाकार की हैसियत से ही इन्होंने दौलत और शोहरत कमाई थी। 

बड़ा होने के बाद इनका करियर कभी भी वैसा मुकाम हासिल नहीं कर सका जैसा कि इन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से किया था। खैर, जूनियर महमूद जी ने पहली दफा 'कितना नाज़ुक है ये दिल' नाम की एक फिल्म में एक्टिंग की थी। 

उस फिल्म में इन्हें काम कैसे मिला था, वो किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है। और वो किस्सा आपको जूनियर महमूद जी की बायोग्राफी में जानने को मिलेगा। 'कितना नाज़ुक है ये दिल' नाम की वो फिल्म कभी रिलीज़ तो नहीं सकी। 

लेकिन उस फिल्म में बोले गए एक डायलॉग के लिए इन्हें पांच रुपए मेहनताना मिला था। जो उस ज़माने में एक बड़ी बात हुआ करती थी। 

और जूनियर महमूद जी के लिए तो ये बात इसलिए भी और ज़्यादा बड़ी थी क्योंकि उसी फिल्म के सेट पर स्टिल फोटोग्राफर की हैसियत से नौकरी कर रहे इनके भाई को तीन रुपए दिन के मिला करते थे। वो भी आठ घंटे काम करने के बाद।

दूसरी कहानी

पहली फिल्म जिसमें जूनियर महमूद को दर्शकों ने सिल्वर स्क्रीन पर देखा, वो थी साल 1967 में रिलीज़ हुई संजीव कुमार साहब की नौनिहाल। उस फिल्म में जूनियर महमूद जी ने संजीव कुमार जी के छोटे भाई का रोल निभाया था।

फिल्म में जूनियर महमूद के किरदार का नाम बिल्लू है जो एक बड़ा शरारती बच्चा है। इस रोल के लिए लगभग सवा तीन सौर बच्चे ऑडिशन देने आए थे। लेकिन जूनियर महमूद उन सभी बच्चों में इकलौते थे जो बार-बार अपने बालों में कंघी कर रहा था। 

वो भी बड़े स्टाइल में। इनकी ये अदा कमल डांस मास्टर जी को बड़ी पसंद आई। उन्होंने डायरेक्टर से इनके बारे में बात की। डायरेक्टर ने उस फिल्म के लेखक सावन कुमार टांक को इनके बारे में बताया। 

सावन कुमार टांक ने भी कुछ देर तक दूर से इन्हें देखा। और फाइनली ये तय हो गया कि नौनिहाल में संजीव कुमार के भाई के रोल के लिए इसी लड़के को कास्ट किया जाएगा।

तीसरी कहानी

जूनियर महमूद जी जब फिल्मों में सफल हो गए तो इनकी डिमांड बहुत ज़्यादा होने लगी। डिमांड बढ़ी तो इन्होंने अपनी फीस भी बढ़ा दी। और एक वक्त वो भी आया जब ये एक दिन के तीन हज़ार रुपए चार्ज किया करते थे। 

ये साल 1969 के दौरान का वक्त था। एक दिन की शूटिंग के लिए इतना चार्ज करने के बावजूद जूनियर महमूद के पास काम की कोई कमी नहीं होती थी। यानि, छोटी उम्र में ही जूनियर महमूद साहब ने काफी पैसा कमाना शुरू कर दिया था। 

और जब पैसा आया तो जूनियर महमूद जी ने भी वही कार खरीदी जो इनके गुरू महमूद साहब के पास थी। वो थी इंपाला कार, जो उस ज़माने में पूरे मुंबई में महज़ 10 या 12 ही थी।

चौथी कहानी

जूनियर महमूद जी की ज़िंदगी में एक वक्त वो भी आया जब बतौर चाइल्ड स्टार इन्हें जो स्टारडम मिला था वो खत्म होने लगा। इन्हें फिल्में मिलनी कम हो गई। ऐसे में इन्होंने स्टेज शोज़ करना शुरू कर दिया। 

और स्टेज शोज़ से भी इन्होंने खूब नाम व पैसा कमाया। इनके स्टेज शोज़ में फिल्म इंडस्ट्री के और भी कई नामी कलाकार आया करते थे। जैसे भारत की पहली फीमेल कॉमेडियन टुन टुन जी, कॉमेडियन राजेंद्र नाथ जी व कॉमेडियन मोहन चोटी जी। 

एक इंटरव्यू में जूनियर महमूद जी ने बताया था कि अपने दौर के किसी भी दूसरे कलाकार से ज़्यादा स्टेज शोज़ इन्होंने किए थे। और कई दफा तो कुछ कलाकारों का घर चलाने में मदद करने के लिए इन्होंने अपने ग्रुप के साथ उन कलाकारों को जोड़ा। जिनमें से एक थे कुछ ही महीनों पहले दुनिया छोड़कर गए बीरबल जी।

पांचवी कहानी

जूनियर महमूद साहब ने धर्मेंद्र जी के साथ कई फिल्मों में काम किया है। धर्मेंद्र जी के साथ इन्होंने सबसे पहली दफा साल 1966 में आई 'मोहब्बत ज़िंदगी है' में काम किया था। 

और उस वक्त जूनियर महमूद इतने छोटे थे कि वो जानते भी नहीं थे कि धर्मेंद्र कौन हैं। हालांकि जब इन्होंने धर्मेंद्र जी को पहली दफा देखा था तो उनकी पर्सनैलिटी के ये बड़े मुरीद हुए थे। 

उस फिल्म में जूनियर महमूद और धर्मेंद्र जी का साथ में कोई सीन नहीं था। और वो इसलिए क्योंकि जूनियर महमूद उस फिल्म में एक्स्ट्रा बाल कलाकारों में से एक थे। 

लेकिन तीन साल बाद यानि साल 1969 में आई फिल्म 'प्यार ही प्यार' में इन्हें धर्मेंद्र जी के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिल ही गया। और इत्तेफाक देखिए। 'प्यार ही प्यार' में धर्मेद्र जी के अलावा इनके गुरू महमूद साहब भी थे।

छठी कहानी

जूनियर महमूद जी ने सुपरस्टार राजेश खन्ना साहब के साथ भी कुछ बड़ी ही ज़बरदस्त फिल्मों में काम किया है। यूं तो जूनियर महमूद जी ने पहली दफा राजेश खन्ना को उन दिनों में देखा था जब ये अपनी फिल्म 'ब्रह्मचारी' की शूटिंग कर रहे थे। 

राजेश खन्ना वहां किसी से मिलने अपनी इंपाला कार में आते थे। और उसी वक्त से जूनियर महमूद को इंपाला कार बहुत पसंद आने लगी थी। खैर, राजेश खन्ना के साथ जूनियर महमूद की पहली मुलाकात चेन्नई में हुई थी। 

ये दोनों वहां 'छोटी बहू' नाम की फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में गए थे। और दोनों ने उस फिल्म में काम किया भी था। हालांकि 'छोटी बहू' की शूटिंग में काफी वक्त लग गया। 

और उससे बहुत पहले ही 'दो रास्ते' फिल्म रिलीज़ हो गई। फिर कटी पतंग और उसके बाद 'आन मिलो सजना' में भी इन्होंने राजेश खन्ना जी के साथ काम किया। जबकी 'छोटी बहू' नाम की वो फिल्म रिलीज़ हुई साल 1971 में।

सातवीं कहानी

जूनियर महमूद ने दिलीप कुमार साहब के साथ साल 1968 में आई 'संघर्ष' में काम किया था। उस फिल्म दिलीप कुमार जी के अलावा संजीव कुमार साहब भी थे। और जूनियर महमूद ने उस फिल्म में संजीव कुमार जी के बेटे का रोल ही निभाया था। जूनियर महमूद और दिलीप कुमार जी की पहली मुलाकात भी चेन्नई में ही हुई थी। 

दिलीप कुमार जी जब इनसे पहली दफा मिले तो उन्होंने इनसे इनका नाम पूछा। इन्होंने कहा,'जूनियर महमूद'। दिलीप कुमार बोले,'ये नाम नहीं। वो नाम बताओ जो तुम्हें तुम्हारे अम्मी-अब्बा ने दिया है।' तब इन्होंने दिलीप साहब को अपना असली नाम मोहम्मद नईम सैयद बताया। दिलीप कुमार ने इनसे पूछा,'क्या तुम अपने नाम का मतलब जानते हो? 

इन्होंने जब झिझकते हुए इन्कार किया तो दिलीप साहब इनसे बोले,'अगली बार जब मैं आपसे मिलूंगा तो फिर से आपके नाम का मतलब पूछूंगा। इसलिए अपने अम्मी-अब्बा से अपने नाम का मतलब पूछना ज़रूर। क्योंकि हमारे नाम का मतलब क्या है, ये हमें ज़रूर पता होना चाहिए।'

आठवीं कहानी

जूनियर महमूद ने सदाबहार देवानंद साहब के साथ दो फिल्मों में काम किया था। एक थी हरे रामा हरे कृष्णा। और दूसरी थी अमीर ग़रीब। ये वो ज़माना था जब जूनियर महमूद एक बेहद सफल और बहुत ज़्यादा बिज़ी बाल कलाकार हुआ करते थे। 

जब जूनियर महमूद जी के पास हरे रामा-हरे कृष्णा फिल्म का ऑफर आया तो ये बहुत खुश हुए। लेकिन जल्द ही इनकी खुशी उस वक्त गम में बदल गई जब इन्हें पता चला कि इनके पास तो फुर्सत ही नहीं है। 

जबकी देव साहब चाहते थे कि जूनियर महमूद उनके साथ पूरे 24 दिनों के लिए नेपाल चलें। जूनियर महमूद के सेक्रेटरी ने देव साहब के मैनेजर से कह दिया कि ये नेपाल नहीं आ सकेंगे। फिर शाम को जूनियर महमूद के घर का फोन बजा। 

इत्तेफाक से फोन इन्होंने ही उठाया। दूसरी तरफ से आवाज़ आई, मैं देव बोल रहा हूं। इन्हें लगा कि शायद इनका कोई दोस्त मज़ाक कर रहा है। इन्होंने फोन करने वाले की क्लास लगाना शुरू कर दिया। 

लेकिन जब देवानंद थोड़ी तेज़ आवाज़ में इनसे बोले कि मैं देवानंद बोल रहा हूं तो इन्हें समझ में आ गया कि ये तो असली देवानंद हैं। इन्होंने देव साहब से माफी मांगी। देव साहब ने इनसे कहा कि कल मेरे ऑफिस आ जाओ। साथ बैठकर चाय पिएंगे। 

अगले दिन जब ये देव साहब के ऑफिस पहुंचे तो देव साहब ने इनसे कहा कि तुम्हें हर हाल में मेरे साथ 24 दिनों के लिए नेपाल आना है। अब तुम देखो तुम अपनी डेट्स कैसे एडजस्ट करोगे। चाहे तो कोई फिल्म छोड़ दो। 

लेकिन इस फिल्म में तुम्हें काम करना होगा। देव साहब का ये अंदाज़ देखकर जूनियर महमूद जी ने अपने सेेक्रेटरी को बुलाकर कुछ दूसरी डेट्स कैंसिल की और हरे रामा-हरे कृष्णा की शूटिंग के लिए देव साहब के साथ नेपाल गए। 

इस घटना से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जूनियर महमूद को फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े लोग कितना ज़्यादा पसंद करते थे।

नौंवी कहानी

जूनियर महमूद साहब ने जितेंद्र जी के साथ भी सात से आठ फिल्मों में काम किया है। और इन दोनों की सबसे शानदार फिल्म मानी जाती है साल 1971 में आई कारवां। 

इस फिल्म में जूनियर महमूद ने जितेंद्र के छोटे भाई मोंटू का रोल निभाया था। इस फिल्म के क्लाइमैक्स में एक सीन था जिसमें गुंडे जितेंद्र के गले में फंदा बांधकर उन्हें जूनियर महमूद के कांधों पर खड़ा कर देते हैं। 

यानि अगर जूनियर महमूद डगमगाते तो जितेंद्र की जान जानी तय थी। लेकिन फिल्म की कहानी के मुताबिक छोटा भाई किसी भी हाल में अपने भाई की जान बचाना चाहता है। 

ये सीन जिस वक्त शूट किया जा रहा था तो लॉन्ग शॉट्स में जितेंद्र जी के पूरे शरीर का भार जूनियर महमूद के कांधों पर दिखाना था। 

और लॉन्ग शॉट्स रिकॉर्ड करते वक्त जूनियर महमूद को बड़ी परेशानी आई थी। क्योंकि उस वक्त वो बहुत छोटे थे। और जितेंद्र साहब का वज़न संभालना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। लेकिन उन्होंने बिना कोई गड़बड़ किए वो सीन्स शूट किए। उस दिन इनकी खूब तारीफें हुई थी।

दसवीं कहानी

जूनियर महमूद ने द डैशिंग फिरोज़ खान साहब के साथ दो फिल्मों में काम किया था। गीता मेरा नाम और जादू टोना। हालांकि इन दोनों की जान-पहचान साथ काम करने से पहले ही हो चुकी थी। 

और वो इसलिए क्योंकि जब जूनियर महमूद फेमस हुए तो इंडस्ट्री के लगभग हर बड़े सितारे संग इनके अच्छे रिलेशन हो गए थे। फिरोज़ खान साहब भी उनमें से एक थे। फिरोज़ खान जी से जूनियर महमूद की पहली मुलाकात मुंबई के सी-साउंड स्टूडियो में हुई थी। 

उस दिन फिरोज़ खान साहब की स्पोर्ट कार देखकर जूनियर महमूद काफी प्रभावित हुए थे। पहली ही मुलाकात में फिरोज़ खान भी जूनियर महमूद को पसंद करने लगे थे। 

फिरोज़ खान के पास उनका एक घरेलू ड्रिंक था जो एक तरह का पेशावरी कोल्ड ड्रिंक था। उन्होंने जूनियर महमूद को भी वो ड्रिंक पिलाया था। बकौल जूनियर महमूद, उन्होंने वैसा ड्रिंक आज तक कहीं और नहीं पिया है।

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