Actor P. Jairaj Biography | संघर्षों की एक दास्तान इनकी भी है
Actor P. Jairaj Biography. भारत में बोलती फिल्मों का दौर शुरू भी नहीं हुआ था जब ये हैदराबाद से मुंबई आ गए थे। और मुंबईया फिल्म इंडस्ट्री में इनके कदम कुछ ऐसे जमे कि साठ सालों तक इन्होंने फिल्मों में काम किया। इनका पूरा नाम था पैदापती जयराजुलू नायडू। मगर मशहूर ये हुए P. Jairaj नाम से।
Actor P Jairaj Biography - Photo: Social Media |
28 सितंबर 1909 को आंध्र प्रदेश के करीम नगर में P. Jairaj का जन्म हुआ था। जिस वक्त P. Jairaj मुंबई फिल्मों में काम करने के इरादे से घर से निकल रहे थे तब इनके घरवाले बहुत नाराज़ हुए थे। घर पर खूब ड्रामा हुआ था तब। लेकिन इन्होंने किसी की परवाह नहीं की। सभी को नाराज़ करके मुंबई आ ही गए।
यूं हुई फिल्मों में शुरुआत
मुंबई आने के बाद जल्द ही जयराज जी को अहसास हो गया कि अगर फिल्मों में कामयाब होना है तो अच्छा शरीर बनाना होगा। तलवार चलाना और घुड़सवारी भी सीखनी होगी। क्योंकि उस ज़माने में धार्मिक, साहासिक और पौराणिक कहानियों पर फिल्में बन रही थी। और उन फिल्मों में मजबूत कदकाठी के हीरो ही चाहिए होते थे।
जयराज जी ने मेहनत शुरू कर दी। कसरत तो ये पहले से करते थे। घुड़सवारी और तलवारबाज़ी पर इन्होंने जमकर मेहनत की। और कुछ ही समय में ये एक माहिर तलवारबाज़ और घुड़सवार हो गए। इनकी मेहनत रंग लाई।
और 1929 की जगमगाती जवानी में इन्हें काम करने का मौका मिल गया। अगले साल, यानि 1930 में आई रसीली रानी नाम की फिल्म में ये पहली दफा हीरो बने थे। और देखते ही देखते मूक फिल्मों का ये लोकप्रिय चेहरा बन गए। और इन्होंने कुछ बढ़िया फिल्मों में काम किया।
बोलती फिल्मों ने बदला करियर
बोलती फिल्मों का दौर शुरु हुआ तो जयराज जी ज़रा मुश्किल में आ गए। दरअसल, शुरुआती बोलती फिल्मों में हीरो-हीरोइन को अपने गीत खुद ही गाने पड़ते थे। लेकिन गायकी से जयराज जी का कोई नाता नहीं था। दूर-दूर तक नाता नहीं था। रैलेवेंट बनने रहने के लिए जयराज जी ने संगीतकार बी.आर.देवधर से संगीत की ट्रेनिंग ली।
1932 में आई शिकारी नामक फिल्म में इन्होंने पहली दफा गायकी की थी। शिकारी उस वक्त की कामयाब फिल्म थी। और चूंकि एक बड़ी सफलता इस फिल्म को मिली थी तो उस सफलता की चमक ने इनकी गायकी की कमियों को ढक लिया। वक्त के साथ बोलती फिल्मों में भी जयराज जी सफल होने लगे। इन्हें अच्छा काम मिलने लगा था। और नाम भी चमकने लगा था।
धार्मिक फिल्मों ने दिलाई पहचान
यूं तो पी.जयराज ने रोमांटिक फिल्मों में काफी काम किया था। लेकिन जिन चंद धार्मिक फिल्मों में इन्होंने काम किया था उनकी वजह से जो ख्याति इन्हें मिली थी वो अतुलनीय थी। पृथ्वीराज चौहान, अमर सिंह राठौर, हैदर अली, दुर्गा दास, टीपू सुल्तान व चंद्रशेखर आज़ाद नामक फिल्मों में पी.जयराज ने बहुत शानदार काम किया था। इस तरह ये एतिहासिक फिल्में बनाने वाले फिल्मकारों के पसंदीदा हीरो बन गए।
फिल्में भी डायरेक्ट की थी
साल 1945 में पी.जयराज ने एक फिल्म भी डायरेक्ट की। उस फिल्म का नाम था प्रतिमा। और उसमें दिलीप कुमार व स्वर्णलता हीरो-हीरोइन थे। फिर तो एक्टिंग के साथ-साथ जयराज जी समय-समय पर डायरेक्शन भी करते रहते थे।
इनके द्वारा निर्देशित की गई एक फिल्म थी मोहर जो 1959 में रिलीज़ हुई थी। 1951 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था सागर। वो फिल्म पी.जयराज जी ने ही प्रोड्यूस की थी। और उसका डायरेक्शन भी इन्होंने ही किया था। उस फिल्म में हीरो भी यही थे। और हीरोइन थी नर्गिस।
चरित्र किरदार निभाने को होना पड़ा मजबूर
1960 के दशक में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री बड़े बदलावों के दौर से गुज़र रही थी। ऐसे में पी.जयराज जैसे पुराने कलाकारों को बहुत अच्छा काम नहीं मिल रहा था। इसलिए 1965 से पी.जयराज जी ने चरित्र किरदार निभाने शुरू कर दिए। और बतौर चरित्र अभिनेता इनकी पहली फिल्म थी 'मुजरिम कौन खूनी कौन।' फिर तो 1995 तक पी.जयराज जी ने फिल्मों में विभिन्न प्रकार की सहायक भूमिकाएं निभाई।
P. Jairaj को मेरठ मंथन का नमन
1995 में आई गॉड एंड गन इनकी आखिरी फिल्म थी। इसके बाद इन्होंने किसी और फिल्म में काम नहीं किया। इसके पांच साल बाद यानि 11 अगस्त 2000 को 90 बरस की उम्र में पी.जयराज जी का निधन हो गया था। मेरठ मंथन पी.जयराज जी को नमन करता है।
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