Abrar Alvi | वो धाकड़ लेखक जिनके बिना Gurudutt की Team अधूरी ही रहती | Biography
Gurudutt साहब का ज़िक्र हो तो उनकी टीम के लगभग हर सदस्य का ज़िक्र भी होता है। और सबसे पहले ज़िक्र होता है उनके पसंदीदा लेखक व जिगरी दोस्त Abrar Alvi का। आज अबरार अल्वी साहब के बारे में कुछ रोचक बातें जानेंगे।
Writer Abrar Alvi Biography - Photo: Social Media
1 जुलाई 1927 को Abrar Alvi का जन्म अयोध्या में हुआ था। वो यहीं के रहने वाले थे। Abrar Alvi के पिता उस वक्त के सेंट्रल प्रोविंस के यवतमाल ज़िले में नौकरी करते थे। वो भी पुलिस प्रोसिक्यूटर की हैसियत से। वो जब रिटायर हुए थे तब DIG की पोस्ट तक पहुंच गए थे।
पिता की नौकरी के चलते अबरार जी का जन्म देश के अलग-अलग शहरों में गुज़रा जैसे होशंगाबाद, अकोला, नागपुर, जबलपुर और खामगांव। बाद में उनके जीवन के कई साल नागपुर में बीते।
वहीं से अबरार अल्वी की पढ़ाई-लिखाई हुई थी। जब ये कॉलेज में आए तो रेडियो नाटकों में अभिनेता व लेखक के तौर पर काम करने लगे। कॉलेज फंक्शन्स के लिए भी अबरार अल्वी ने कुछ नाटक लिखे थे।
अपना एमए, एलएलबी कंप्लीट करने के बाद एक्टर बनने का ख्वाब लिए अबरार अल्वी मुंबई आ गए। नागपुर में अबरार जिस कॉलेज में पढ़ते थे वहां थिएटर जगत की बहुत नामी हस्ती हबीब तनवीर इनके सीनियर हुआ करते थे। उन्होंने अबरार को इप्टा से जुड़कर नाटकों में अभिनय करने की सलाह दी।
अबरार ने उनकी सलाह मान ली और इप्टा से जुड़ गए। इस दौरान इन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। खाने-पीने और रात गुज़ारने के लिए यहां-वहां शरण लेनी पड़ी। कई दफा शरण ना मिलती तो फुटपाथ पर रातें काटी।
एक दिन मुंबई में ही Abrar Alvi की मुलाकात हुई इरशाद हुसैन से। इरशाद हुसैन Abrar Alvi के सगे चाचा के लड़के थे। और वो फिल्मों में काम कर रहे थे।
अबरार अल्वी को कोई जानकारी नहीं थी कि उनका चचेरा भाई फिल्मों में एक्टर है और जसवंत नाम से एक्टिंग कर रहा है। उन दिनों इरशाद हुसैन उर्फ जसवंत गुरूदत्त साहब की बाज़ में एक्टिंग कर रहे थे।
इरशाद अबरार अल्वी को अपने साथ अपने घर ले गए। और इस तरह अबरार को मुंबई शहर में पहली दफा छत मिली। अबरार अल्वी को ड्राइविंग करने का बहुत शौक था।
और उनके भाई इरशाद हुसैन उर्फ जसवंत के पास अपनी गाड़ी थी। अबरार जसवंत के साथ बतौर ड्राइवर जुड़ गए और उन्हें बाज़ फिल्म के सेट पर ले जाने व वापस लाने का काम करने लगे।
इसका फायदा ये हुआ कि उन्हें फिल्म की शूटिंग देखने का मौका मिलने लगा। नामी डायरेक्टर राज खोसला तब गुरूदत्त के असिस्टेंट हुआ करते थे। अबरार अल्वी और राज खोसला के बीच बढ़िया दोस्ती हो गई।
अबरार ने राज खोसला को बताया कि वो लेखन भी करते हैं। एक दिन अबरार अल्वी और राज खोसला की बातचीत चल रही थी। इस दौरान अबरार ने राज खोसला से कहा कि डायलॉग्स फिल्म के कैरेक्टर के हिसाब से होने चाहिए। ये बात गुरूदत्त साहब ने सुन ली।
बाद में उन्होंने राज खोसला से अबरार अल्वी के बारे में पूछताछ की। और जब उन्हें पता चला कि अबरार लेखन करते हैं और कॉलेज में कुछ नाटक लिख चुके हैं तो उन्होंने अपनी अगली फिल्म आर-पार के डायलॉग्स लिखने की ज़िम्मेदारी अबरार अल्वी को दे दी।
वहीं बाज़ फिल्म, जिसकी शूटिंग के दौरान अबरार अल्वी और राज खोसला की दोस्ती हुई थी, वो साल 1953 में रिलीज़ हुई। उस फिल्म में हीरो थे गुरूदत्त व हीरोइन थी गीता बाली। संगीत ओपी नैयर साहब ने दिया था। जबकी फिल्म प्रोड्यूस की थी हरिदर्शन कौर ने। ये हरीदर्शन कौर अभिनेत्री गीता बाली की सगी बड़ी बहन थी।
गीता बाली जी का भी वास्तविक नाम हरकीर्तन कौर था। शूटिंग के दौरान प्रोड्यूसर हरीदर्शन कौर और अबरार के चचेरे भाई इरशाद हुसैन उर्फ जसवंत में इश्क हो गया। दोनों ने शादी कर ली।
इन्हीं दोनों की बेटी हैं एक्ट्रेस योगिता बाली, जो अब मिथुन दा की पत्नी हैं। यानि शम्मी कपूर योगिता बाली के मौसा थे। इस तरह मिथुन चक्रबर्ती भी दूर के ही सही, कपूर खानदान के रिश्तेदार हैं।
योगिता बाली के एक भाई भी थे जिनका नाम था योगेश। उन्होंने गायिका हेमलता जी से शादी की थी। योगेश जी अब इस दुनिया में नहीं हैं। खैर, अबरार अल्वी साहब की कहानी पर वापस आते हैं।
गुरूदत्त ने अबरार अल्वी को फिल्म आर पार के डायलॉग्स लिखने की ज़िम्मेदारी दी। वो फिल्म साल 1954 में रिलीज़ हुई और सुपरहिट रही। आर पार की सफलता ने गुरूदत्त व अबरार अल्वी के बीच स्थायी मित्रता स्थापित कर दी।
अबरार जब कॉलेज में थे तो उन्होंने एक नाटक लिखा था जिसका नाम उन्होंने रखा था मॉडर्न मैरिज। एक दिन अबरार ने वो नाटक गुरूदत्त साहब को भी पढ़ाया। गुरूदत्त को वो नाटक इतना पसंद आया कि उन्होंने उस पर एक फिल्म बना दी।
उस फिल्म का नाम था मिस्टर एंड मिसेज 55 जो कि एक सफल फिल्म थी। हालांकि इस फिल्म के क्रेडिट्स में अबरार अल्वी को सिर्फ डायलॉग राइटर बताया गया था। जबकी उन्होंने इसकी कहानी व पटकथा भी लिखी थी। ऐसा क्यों हुआ था, हमें नहीं पता।
एक इंटरव्यू में अबरार अल्वी जी ने बताया था कि जब वो कॉलेज में पढ़ते थे तब उनकी दोस्ती हैदराबाद के ज़मींदार परिवार के एक लड़के से हुई थी। उस लड़के ने एक दिन अबरार को एक वेश्या से मिलवाया था।
अबरार को जब उस वेश्या की कहानी पता चली तो उन्हें वो बड़ी अनोखी लगी। वो लड़की गुजरात के किसी इलाके के एक मंदिर के पुजारी की बेटी थी जो प्रेम प्रसंग के चलते अपने घर से भाग गई थी।
बाद में उसके प्रेमी ने उसे धोखा देकर एक कोठे पर बेच दिया। और वो लड़की वेश्यावृति के दलदल में फंस गई। अबरार जब उससे मिलते तो उस लड़की का बात करने का ढंग उन्हें बहुत प्रभावित करता था।
सालों बाद जब अबरार अल्वी ने प्यासा फिल्म लिखी थी तब गुलाबो का किरदार उन्होंने उसी लड़की को ध्यान में रखकर लिखा था।
प्यासा में गुलाबो का किरदार एक्ट्रेस वहीदा रहमान ने निभाया था। प्यासा फिल्म में भी अबरार अल्वी को सिर्फ डायलॉग राइटर ही कहा गया। जबकी उन्होंने प्यासा की कहानी व किरदारों को गढ़ने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
ब्लॉग बीते हुए दिन के लेखक श्री शिशिर कृष्ण शर्मा जी को दिए एक इंटरव्यू में अबरार अल्वी ने प्यासा फिल्म से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताई थी। उन्होंने बताया था कि वो हमेशा फिल्म के सेट पर रहते थे।
और नज़र रखते थे कि कलाकारों की भाषा और उनका उच्चारण सही है कि नहीं। लेकिन एक दफा ऐसा हुआ कि वो कुछ दिनों तक प्यासा फिल्म के सेट पर आ नहीं सके। प्यासा में
अभिनेता महमूद और राधेश्याम गुरूदत्त के बड़े भाईयों का किरदार निभा रहे थे। शूटिंग जब शुरू हुई तो महमूद ने पहले ही दिन गुरूदत्त से कहा कि उन्हें उनके डायलॉग्स बंगाली लहज़े में बोलने दिए जाएं।
गुरूदत्त ने उनकी बात मान भी ली। अबरार अल्वी ने कहा था कि अगर उस दिन वो सेट पर होते तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं होने देते। अबरार जी के मुताबिक, प्यासा फिल्म में दिखा गुरूदत्त का परिवार बंगाली ज़रूर है।
लेकिन वो बनारस में रहने वाला परिवार है जो भोजपुरी मिश्रित हिंदी बोलता है। सबसे छोटा बेटा यानि गुरूदत्त हिन्दी व उर्दू का शायर है। ऐसे में परिवार के किसी एक सदस्य का बंगाली लहज़े में बात करना अटपटा लगता है।
मगर अफसोस कि गुरूदत्त साहब ने इस पर ध्यान नहीं दिया। 1959 में आई कागज़ के फूल वो पहली फिल्म थी जिसके क्रेडिट्स में अबरार अल्वी का नाम डायलॉग्स लेखक के साथ स्क्रीनप्ले लेखक के तौर पर भी दिया गया था।
कागज़ के फूल गुरूदत्त का ड्रीम प्रोजेक्ट थी। मगर वो फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई। इस फिल्म के बाद गुरूदत्त जी ने एक पुरानी स्क्रिप्ट पर फिल्म बनाने का फैसला किया था। एक वक्त पर वो स्क्रिप्ट मशहूर गायिका नूरजहां के पति व डायरेक्टर-प्रोड्यूसर शौकत हुसैन रिज़वी ने लिखवाई थी।
शौकत हुसैन उस फिल्म का नाम पहली झलक रखना चाहते थे। मगर जब देश का विभाजन हुआ था तब शौकत हुसैन पाकिस्तान चले गए थे। उसी वक्त से वो स्क्रिप्ट गुरूदत्त के पास रखी थी।
जब गुरूदत्त ने उस स्क्रिप्ट पर काम शुरू किया तो उन्होंने अबरार अल्वी से उस स्क्रिप्ट पर बात की। अबरार अल्वी ने गुरूदत्त को उस कहानी का नाम बदलने की सलाह दी थी। इस तरह पहली झलक से उस फिल्म का नाम बदलकर कर दिया गया चौदहवीं का चांद।
विकीपीडिया पर बताया जाता है कि अबरार अल्वी ने चौदवहीं का चांद फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा था। लेकिन ऐसा नहीं है। अबरार अल्वी का चौदहवीं का चांद फिल्म में कोई योगदान नहीं है। सिवाय इसके नाम के।
कागज़ के फूल फिल्म के फ्लॉप होने के बाद गुरूदत्त ने डायरेक्शन से तौबा कर ली थी। इसलिए चौदहवीं का चांद फिल्म का डायरेक्शन उन्होंने एम सादिक से कराया था।
गुरूदत्त साहब ने जब साहिब बीवी और गुलाम फिल्म पर काम शुरू किया तो उन्होंने इस फिल्म के डायलॉग्स व इसका स्क्रीनप्ले अबरार अल्वी से ही लिखवाया। गुरूदत्त इस फिल्म से एक दफा फिर से डायरेक्शन शुरू करना चाहते थे।
उन दिनों अबरार अल्वी कुछ दूसरे बैनर्स की फिल्मों का काम भी कर रहे थे। इसलिए उनके लिए मुमकिन नहीं था कि वो चौदहवीं का चांद फिल्म की शूटिंग पर गुरूदत्त के साथ मौजूद रहते।
तब गुरूदत्त ने चार घंटे की वो स्क्रिप्ट स्पूल(पुराने ज़माने का एक यंत्र) पर अबरार अल्वी से रिकॉर्ड कराई। इसलिए ताकि शूटिंग के वक्त उन्हें कोई परेशानी ना आ सके।
मगर निजी जीवन की दिक्कतों व मानसिक तनाव के चलते गुरूदत्त ने साहिब बीवी और गुलाम फिल्म को डायरेक्ट करने का इरादा छोड़ दिया। उन्होंने नितिन बोस व सत्येन बोस जैसे उस वक्त के दिग्गज डायरेक्टर्स से बात की। मगर उनसे साथ बात नहीं बन सकी।
आखिरकार गुरूदत्त ने अबरार अल्वी से ही डायरेक्शन करने को कहा। अबरार अल्वी हिचकिचाए। हिचकिचाना लाज़िमी भी था। उन्होंने कभी डायरेक्शन नहीं किया था।
मगर गुरूदत्त जी ने उनसे कहा कि जैसे तुमने स्पूल पर रिकॉर्डिंग की है वैसे ही बनानी है। अबरार अल्वी ने उनकी बात मान ली। साल 1962 में साहिब बीवी और गुलाम रिलीज़ हुई। फिल्म सुपरहिट रही।
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हाथों अबरार अलवी को सिल्वर मेडल मिला। फिल्मफेयर ने भी साहिब बीवी और गुलाम को बेस्ट फिल्म के खिताब से नवाज़ा।
अबरार अल्वी को बेस्ट डायरेक्टर व मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी दिया गया। इस तरह बतौर डायरेक्टर अबरार अल्वी की पहली व इकलौती फिल्म साहिब बीवी और गुलाम ने झंडे गाड़ दिए।
इस फिल्म को बंगाली उपन्यासकार बिमल मित्रा के एक उपन्यास पर बनाया गया था जिसका नाम भी यही थी। साहिब बीवी और गुलाम के बाद गुरूदत्त साहब ने 1937 में आई प्रैसीडेंट फिल्म का रीमेक बनाने की तैयारी शुरू की। प्रैसीडेंट को कलकत्ता के मशहूर बैनर न्यू थिएटर्स ने बनाया था। और उस वक्त वो एक बहुत सफल फिल्म रही थी।
चूंकि अबरार अल्वी उन दिनों अन्य प्रोजेक्ट्स में बिज़ी थे तो नई स्क्रिप्ट लेखिका इस्मत चुगताई से लिखाई गई। और फिल्म का नाम रखा गया बहारें फिर भी आएंगी।
इस्मत जी के कहने पर उनके पति शाहिद लतीफ को डायरेक्शन का ज़िम्मा सौंपा गया। मगर तीन रील्स की शूटिंग होने के बाद फिल्म बंद हो गई। कुछ वक्त बाद गुरूदत्त ने फिर से फिल्म शुरू की।
उन्होंने ऑरिजिनल फिल्म प्रेसीडेंट के लेखक बिनॉय चटर्जी को कोलकाता से मुंबई बुलवाया। अबरार अल्वी बिनॉय चटर्जी के साथ बैठे और कहानी में कुछ ज़रुरी बदलाव किए गए। गुरूदत्त ने फैसला किया कि अब फिल्म का डायरेक्शन वो खुद करेंगे। ये बात शाहिद लतीफ को पसंद नहीं आई।
उन्होंने के.आसिफ से बात की। के.आसिफ गुरूदत्त के दोस्त थे। शाहिद लतीफ को लगा कि के.आसिफ के कहने पर गुरूदत्त फिर से डायरेक्शन की ज़िम्मेदारी उन्हें दे देंगे। लेकिन गुरूदत्त जी ने कहा कि डायरेक्शन तो मैं ही करूंगा।
शाहिद लतीफ चाहें तो सेट पर रोज़ आकर बैठ जाएं। उनके जो पैसे तय हुए थे वो मिलते रहेंगे। शाहिद लतीफ इसके लिए तैयार हो गए। मगर तभी गुरूदत्त जी की मृत्यु हो गई।
जिस समय गुरूदत्त जी का देहांत हुआ था उस समय तक 12-13 रील की शूटिंग हो चुकी थी। इसलिए गुरूदत्त के भाई आत्माराम दत्त और डिस्ट्रीब्यूटर बी.एम.शाह तगड़ा नुकसान होने के डर से टेंशन में आ गए।
उनकी टेंशन को देखते हुए अबरार अल्वी ने खुद बाकी बची शूटिंग कंप्लीट की। चूंकि पहले गुरूदत्त ही फिल्म के हीरो थे तो उनके बाद धर्मेंद्र जी को हीरो के तौर पर लिया गया और सभी सीन्स फिर से फिल्माए गए।
इस फिल्म को पूरा करने के लिए अबरार अल्वी को शैलेंद्र जी की फिल्म तीसरी कसम व लेख टंडन जी की झुक गया आसमान छोड़नी पड़ी थी। फिल्म बनी और रिलीज़ हुई।
और चूंकि शाहिद लतीफ से कॉन्ट्रैक्ट गुरूदत्त साहब के ज़िंदा रहते ही हुआ था तो डायरेक्टर के तौर पर शाहिद लतीफ का ही नाम दिया गया। फिल्म एवरेज रही थी।
18 नवंबर 2009 को 82 साल की आयु में अबरार अल्वी जी का निधन हो गया था। उनके द्वारा लिखी गई आखिरी फिल्म थी साल 1995 में आई गुड्डू जिसमें शाहरुख खान व मनीषा कोईराला ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। ये फिल्म फ्लॉप रही थी। Meerut Manthan अबरार अल्वी जी को ससम्मान याद करते हुए उन्हें नमन करता है।
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