Amjad Khan's Son Shadab Khan Interview | पिता अमजद खान के बारे में बेटे शादाब खान का ये इंटरव्यू आपको बहुत पसंद आएगा
"मैं जब बड़ा हो रहा था तो जानता था कि मेरे पिता बहुत मशहूर हैं। लेकिन मैंने उनके अंदर किसी तरह के स्टार वाले नखरे नहीं देखे। उन्होंने ना कभी खुद को और ना ही कभी अपने स्टारडम को गंभीरता से लिया। हमारे घर का माहौल एकदम सामान्य सा था। इसलिए पिता जी के स्टारडम का हम पर कोई प्रभाव कभी नहीं पड़ा।"
Amjad Khan's Son Shadab Khan Interview - Photo: Social Media
Shadab Khan ने अपने Father Amjad Khan को याद करते हुए एक Interview में ये बात कही थी। उस इंटरव्यू में Shadab Khan ने Amjad Khan के बारे में और भी कई बातें की थी।
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घोड़ी नफरतीती की मज़ेदार कहानी
स्कूल की छुट्टियों में मैं अक्सर अपने पिता की शूटिंग देखने उनकी फिल्मों के सेट पर जाता था। उस वक्त बहुत से एक्टर्स के बच्चे फिल्म सेट्स पर आने से कतराते थे। क्योंकि उस ज़माने में आज की तरह वैनेटी वैन्स नहीं होती थी। सेट्स भी एयर कंडीशन्ड नहीं होते थे। लेकिन मुझे तो शूटिंग देखना बहुत पसंद था। मेरे लिए तो वो जैसे एजुकेशन होती थी।
पिता जी तो हमारे साथ बहुत फ्रेंडली थे। लेकिन मां स्ट्रिक्ट थी। पिता जी ने कभी भी हमारे ऊपर हाथ नहीं उठाया। हमारी गलतियों पर वो ठहाके मार-मारकर हंसते थे। हम भी अपनी लिमिट जानते थे। हमने कभी उन लिमिट्स को क्रॉस करने की कोशिश नहीं की।
मैं भले ही अमजद खान का बेटा था। लेकिन मेरे टीचर्स ने कभी भी उसकी वजह से मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं दिया। मैं जिस स्कूल में पढ़ता था उसका नाम मानेकजी कूपर। वो स्कूल जुहू में था। वहां और भी स्टार किड्स पढ़ते थेे। ट्विंकल खन्ना, रिंकी खन्ना, तेजस्विनी कोल्हापुरे, फरहान और ज़ोया अख्तर, साजिद खान, फराह खान, शरमन जोशी और रानी मुखर्जी, ये सब मेरे ही स्कूल में थे।
मैं तीन साल का था जब मैंने शोले देखी थी। जब पिता जी की पिटाई शोले में होती है तो मुझे बड़ा बुरा लगता था। मेरी मां बताती थी कि मैं रोने लगता था। चिल्लाने भी लगता था। काफी चुप कराने पर भी चुप नहीं होता था। परेशान होकर मेरी मां और दादी मुझे लेकर थिएटर से बाहर ही आ जाती थी। शोले बहुत शानदार फिल्म है। आखिरकार बनाई भी तो एक शानदार डायरेक्टर ने है। और मेरे पिता तो शोले की सबसे बड़ी हाईलाइट हैं।
Amjad Khan Family - Photo: Social Media
पिता जी ने शोले और शतरंज के खिलाड़ी में ज़बरदस्त काम किया था। ये ही वो दो फिल्में हैं जिनके लिए उन्हें बहुत तैयारी करनी पड़ी थी। जबकी उस ज़माने में एक्टर्स अपने रोल के लिए रिसर्च करते ही नहीं थे। और आज? आज तो औसत दर्जे के एक्टर्स भी अपने रोल के लिए प्रिपरेशन करते हैं। और फिर लोग उन्हें ग्रेट एक्टर्स कहने लगते हैं। अब तो एनएसडी से ग्रेजुएशन करने पर ही लोग किसी भी एक्टर को ग्रेट एक्टर कहने लगते हैं।
लोग मेरे पिता के और किसी रोल के बारे में बात नहीं करते। बस गब्बर सिंह की बात करते थे। पिता जी को ये अच्छा नहीं लगता था। वो मुझसे कहते थे,"मैंने 25वें फ्लोर से शुरुआत की। और मैं कभी उससे ऊपर नहीं गया। मेरी शुरुआत कुछ ज़्यादा ही ऊंची हो गई थी।"
पिता जी को शोले बहुत पसंद थी। लेकिन उन्हें ये बात भी अखरती थी कि लोग उनसे सिर्फ शोले के बारे में ही बात करते थे। उन्हें गब्बर सिंह के फ्रेम में ही हमेशा देखते थे। अगर लोग शोले से इतर देखने की कोशिश करें तो मेरे पिता बहुत बेहतरीन और वैरायटी वाले एक्टर थे।
पिता जी ने हमें कभी नहीं बताया कि शोले की शूटिंग के दौरान वो अपने जीवन में कैसी-कैसी परेशानियों से गुज़रे थे। जब शोले की शूटिंग हो रही थी तो मेरे दादा कैंसर से लड़ रहे थे। बहुत सारी रिहर्सल करने के बावजूद अपना पहला सीन शूट करते वक्त उन्हें 70 टेक्स करने पड़ गए थे। उस वजह से उन्हें उस पूरे शेड्यूल में शूटिंग नहीं करने दी गई थी। लेकिन मेरे पिता ने कभी हमसे उस बारे में बात नहीं की थी।
उन्हें कभी इस बात से फर्क नहीं पड़ता था कि उनकी जेब में कितने पैसे हैं। वो सिर्फ ये परवाह करते थे कि उन्हें रात को नींद आराम से आ जाए। पिता जी ने हमसे कभी इस बारे में बात नहीं की कि कितने एक्टर्स उनसे ईर्ष्या करते थे। कितने डायरेक्टर्स ने उन्हें मुश्किलों में डाला। और कितने प्रोड्यूसर्स ने उन्हें उनकी फीस के लिए भगाया।
मुझे पता है कि सलीम साहब और जावेद साहब ने मेरे पिता को शोले फिल्म दिलाने में कितनी अहम भूमिका निभाई थी। जावेद साहब से ज़्यादा सलीम साहब उस वक्त मेरे पिता को वो रोल दिलाने के लिए कोशिशें कर रहे थे।
Amjad Khan with His Kids - Photo: Social Media
शोले जब रिलीज़ हुई थी तब इसका प्रदर्शन बहुत खास नहीं था। रमेश सिप्पी जी पर डिस्ट्रीब्यूटर्स फिल्म में बदलाव करने का बहुत प्रैशर डाल रहे थे। कुछ ने तो ये भी कहा कि अमजद की आवाज़ में दम नहीं है। उसके सभी डायलॉग्स किसी और से डब कराने चाहिए।
प्रैशर इतना ज़्यादा था कि सलीम साहब को भी मेरे पिता के डायलॉग्स किसी और से डब कराने के लिए राज़ी होना पड़ा था। वो तो अमिताभ जी थे जिन्होंने रमेश जी को सलाह दी कि फिल्म में कोई बदलाव ना किया जाए। जो है उसे ऐसे ही रहने दिया जाए।
और फाइनली रमेश जी ने मेरे पिता के डायलॉग्स किसी और से डब कराने का फैसला छोड़ दिया। उस घटना की वजह से मेरे पिता के संबंध सलीम साहब और जावेद साहब से खराब हो गए थे। और फिर कभी भी नॉर्मल नहीं हुए।
जब मेरे पिता की मृत्यु हुई थी उसके कुछ दिन बाद सलीम खान जी ने मुझे अपने घर बुलाया और कहा कि तुम्हारे पिता और हमारे बीच में जो गलतफहमियां हुई थी वो बहुत पुरानी बात हो चुकी है। अब तुम्हारे पिता इस दुनिया में नहीं है। अब ये सब खत्म होना चाहिए। उनका ये जैस्चर मुझे बहुत अच्छा लगा था। आज सलीम साहब के तीनों बेटों संग मेरे अच्छे संबंध हैं। हम जब मिलते हैं तो बहुत अच्छे से मिलते हैं। और उस जैस्चर की वजह से सलीम साहब की इज्ज़त मेरी नज़रों में बहुत बढ़ गई है।
मेरे पिता जब मशहूर हो गए तो भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया था। लेकिन उनके आस-पास रहने वाले लोग ज़रूर बदल गए थे। कुछ चमचागीरी करने वाले लोग उनके साथी बन गए। वो हमेशा पिता जी के आस-पास जमा रहते थे। मेरे पिता इतने सिंपल इंसान थे कि उन चमचों को पहचान ही ना सके।
मैं कहूंगा कि वो मेरे पिता की एक गलती थी। वो चमचे सुबह आठ बजे ही घर आ जाते थे। ताकि पिता जी की शूटिंग पर उनके साथ जा सकें। संडे के दिन भी घर पर लंच करने आ जाया करते थे। वो सब फ्री-लोडिंग टाइप लोग थे। पिता जी जहां जाते थे वो उनके साथ जाते थे।
पिता जी के कॉलेज के दोस्त हमेशा ईमानदारी से उनके साथ रहे। उन्होंने कभी कोई परेशानी नहीं खड़ी की। वो कभी फिल्म के सेट्स पर नहीं जाते थे। ना ही स्क्रिप्ट पढ़ाने की ज़िद करते थे। लेकिन ये चमचे टाइप के लोग तो इंसान का करियर बर्बाद कर देते हैं।
Amjad Khan Family - Photo: Social Media
क्योंकि ये लोग आपको सलाह देते हैं कि आपको कौन सी फिल्म करनी चाहिए, कौन सी नहीं। फिज़ूल की गॉसिप्स करते हैं। इससे आपका जजमेंट और दूसरों संग आपकी रिलेशनशिप बहुत प्रभावित होती है। इन्हीं चमचों की वजह से मेरे पिता को अपने करियर में बहुत नुकसान उठाना पड़ा था।
एक और चीज़ जिसने मेरे पिता के करियर को बहुत ज़्यादा प्रभावित किया वो था उनका एक्सीडेंट। पिता जी एक शूट के लिए गोवा जा रहे थे जब उनकी गाड़ी का एक बहुत खतरनाक एक्सीडेंट हो गया। वो मरते-मरते बचे थे। उनकी जान तो बच गई थी। लेकिन उनका वज़न बहुत बढ़ने लगा। और वो कुछ ना कर सके। उस एक्सीडेंट के दुष्प्रभावों से वो कभी ठीक ना हो सके।
मैं उस दिन घर पर नहीं था जब मेरे पिता जी की मौत हुई थी। मैं रात को आठ बजे घर आया था तब मुझे पता चला कि क्या हुआ है। वो 48 साल के थे जब उनकी डेथ हुई थी। और मैं तब सिर्फ 18 साल का था। मुझ पर उनके जाने का बहुत बुरा असर पड़ा था।
मुझे एक साल से ज़्यादा का वक्त लगा था उससे उबरने में। मैं हमेशा अपने पिता को याद करता हूं। मेरे पिता से मेरे ताल्लुकात बहुत अच्छे थे। वो मुझसे मेरे करियर प्लान्स के बारे में बात करते थे। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि वो इतना जल्दी चले जाएंगे।
मेरे पिता को भी भी वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो असल हकदार थे। मामूली से एक्टरों को ग्रेट समझा जाता है। लेकिन मेरे पिता को लोग सिर्फ गब्बर सिंह के रोल के लिए याद करते हैं। वो उन सभी मामूली एक्टरों से कहीं ज़्यादा अच्छे एक्टर थे। मैं तो शतरंज के खिलाड़ी को उनकी नंबर वन फिल्म मानता हूं। शोले दूसरे पायदान पर आती है।
मेरे पिता की कॉमिक टाइमिंग शानदार थी। लेकिन मुझे उनका कॉमेडी फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं लगता था। अगर आज वो ज़िंदा होते तो मैं उनसे कॉमेडी रोल्स ना करने को कहता। कुर्बानी जैसे रोल निभाने को कहता। लोग कॉमेडी और जोकरपंती में फर्क नहीं समझ पाते हैं। वो होते तो मैं उन्हें लावारिस जैसे और रोल्स निभाने की सलाह देता।
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