Anwar Sagar | 90s में एक से एक शानदार गीत देने वाले Lyricist अनवर सागर की शानदार कहानी | Biography
Anwar Sagar. 1980-90 के दौर में इनके गीतों ने भी बड़ी प्रसिद्धि हासिल की थी। जैसे, ये दुआ है मेरी रब से। तुझे आशिकों में सबसे। मेरी आशिकी पसंद आए। और भी कई गीत हैं उस दौर के जो अनवर सागर की कलम से जन्मे थे।
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Lyricist Anwar Sagar Biography - Photo: Social Media |
30 अगस्त 1949 को लखनऊ में Anwar Sagar जी का जन्म हुआ था। लिखने का शौक Anwar Sagar को बचपन से था। एक इंटरव्यू में अनवर सागर ने बताया था कि ये शुरू से ही ज़रा रुमानी तबियत के इंसान थे। इसलिए इश्क पर नग्में खूब लिखा करते थे।
कॉलेज के दिनों में अनवर सागर के लिखे नग़्मे इनके साथियों को बड़े पसंद आते थे। उसी दौर में अनवर सागर अमीन सयानी साहब के बिनाका गीत माला प्रोग्राम के बड़े फैन हुआ करते थे।
और ख्वाब देखते थे कि किसी दिन इनका लिखा कोई गीत भी बिनाका गीत माला में चलाया जाएगा और अमीन सयानी उनका नाम भी लेंगे।
आंखों में गीतकार बनने का ख्वाब लिए एक दिन अनवर सागर मुंबई आ गए। लेकिन वहां उन्हें भी कड़े संघर्ष से गुज़रना पड़ा।
दर-बदर की ठोकरें खानी पड़ी। लोग अनवर सागर की लिखाई की तारीफ तो खूब करते थे। मगर काम मांगने पर आजकल-आजकल करते थे।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। बुरे से बुरा वक्त Anwar Sagar ने उस दौरान देखा। लेकिन हिम्मत और हौंसले ने उनका साथ नहीं छोड़ा। वो मुंबई में डटे रहे। उन्होंने उम्मीद का साथ नहीं छोड़ा। आखिरकार एक दिन Anwar Sagar की की रूठी किस्मत को तरस आ ही गया।
हुआ यूं कि आज के ज़माने के बहुत नामी फिल्म प्रोड्यूसर साजिद नाडियाडवाला के पिता सुलेमान नाडियाडवाला ने अनवर सागर को संगीतकार जोड़ी नदीम-श्रवण से मिलाया।
नदीम-श्रवण की धुनें सुनकर अनवर सागर उनसे बहुत प्रभावित हुए। वहीं जब अनवर सागर की लिखी कुछ शायरी नदीम-श्रवण ने सुनी तो वो भी उनके हुनर के कद्रदान हो गए।
उस दिन नदीम-श्रवण ने अनवर सागर से वादा किया कि आप हमारे साथ काम ज़रूर करेंगे। और नदीम-श्रवण ने अपना वादा निभाया भी।
करीब तीन-चार साल बाद नदीम-श्रवण ने अनवर सागर को "साथ जिएंगे साथ मरेंगे" नाम की एक फिल्म के लिए गीत लिखने का मौका दिया।
अनवर सागर ने कुछ गीत लिखे भी। और वो गीत रिकॉर्ड भी हुए। लेकिन दुर्भाग्यवश, जाने क्यों वो फिल्म कभी रिलीज़ ना हो सकी।
नदीम-श्रवण ने अनवर सागर को अगली दफा फिल्म "मैंने जीना सीख लिया" के गीत लिखने का मौका दिया।
वो फिल्म तो कुछ खास प्रदर्शन ना कर सकी। लेकिन उस फिल्म के गीतों को ज़रूर लोगों ने पसंद किया। यूट्यूब पर जाकर आप भी "मैंने जीना सीख लिया" फिल्म के गीत सुन सकते हैं।
और उसका टाइटल ट्रैक ज़रूर सुनिएगा जिसे अमित कुमार जी ने गाया है। वो आपको ज़रूर पसंद आएगा। अच्छा गीत है।
अनवर सागर को एक बढ़िया शुरुआत मिल चुकी थी। आगे चलकर अनवर सागर ने नया सफर, खूनी महल, क़ातिल और आशिक़, मेरा लहू, ज़ुल्म को जला दूंगा, हिसाब ख़ून का, इलाका, लश्कर, अपमान की आग और हुकुम फिल्म के गीत लिखे।
फिर आया वो दौर जब Anwar Sagar का बरसों पुराना एक ख्वाब पूरा हुआ। Binaca Geetmala में अपना लिखा गीत सुनने का ख्वाब। Ameen Sayani की ज़ुबान से अपना नाम सुनने का ख्वाब
उस समय तक अनवर सागर की शादी हो चुकी थी। वो अपने गृह-नगर लखनऊ में थे। किशन कन्हैया रिलीज़ हो चुकी थी।
इंदीवर जी के अलावा अनवर सागर ने भी किशन कन्हैया में कुछ गीत लिखे थे। संगीत दिया था राजेश रोशन जी ने।
एक दिन अनवर सागर अपनी पत्नी संग लखनऊ में गूंज रहे थे। उन्होंने नोटिस किया कि कई जगह किशन कन्हैया फिल्म का एक गीत लोग खूब सुन रहे हैं।
वो गीत अनवर सागर ने ही लिखा था। उस गीत के बोल थे "आपको देखके, देख देखके राज़ गया ये जान।" किशन कन्हैया फिल्म का वो गाना अमीन सयानी ने बिनाका गीत माला में में खूब प्ले किया था।
अनवर सागर जी का लिखा अगला गीत जिसे बिनाका गीतमाला में जगह मिली थी वो था 1992 में आई अक्षय कुमार की फिल्म खिलाड़ी का "वादा रहा सनम, होंगे जुदा ना हम। चाहे ना चाहे ज़माना। हमारी चाहतों का मिट ना सकेगा फसाना" ये गीत जतिन-ललित ने कंपोज़ किया था। ये गीत आपको भी पसंद आता होगा।
बिनाका गीतमाला में जगह बनाने वाला अनवर सागर का तीसरा गीत था फिल्म "दिल का क्या कसूर" का एक बहुत ही प्यारा सा गाना जिसके बोल थे "ख़ता तो जब हो के हम हाल-ए-दिल किसी से कहें। किसी को चाहते रहना कोई ख़ता तो नहीं।" इस गीत को भी नदीम-श्रवण ने ही कंपोज़ किया था।
अनवर सागर का लिखा तीसरा गीत जिसने बिनाका गीतमाला में जगह बनाई थी वो था 1992 में आई काजोल व कमल सदाना की डेब्यू फिल्म बेखुदी का "जब ना माना दिल दीवाना। कलम उठाके जाने जाना। ख़त मैंने तेरे नाम लिखा। हाल-ए-दिल तमाम लिखा।"
ये गीत कुमार सानू व आशा भोसले जी ने गाया था। और इसे भी नदीम-श्रवण ने ही कंपोज़ किया था। ये गीत भी बहुत हिट हुआ।
इस गीत से जुड़ा एक रोचक किस्सा भी है। बेखुदी राहुल रवैल ने डायरेक्ट की थी। और प्रोड्यूस की थी उनके पिता एच.एस.रवैल जी ने।
अनवर सागर उस ज़माने से एच.एस.रवैल साहब के नाम से वाकिफ़ थे जब लखनऊ में अनवर सागर ने फिल्म मेरे महबूब(1963) देखी थी।
और सिर्फ वाकिफ़ ही नहीं थे। रवैल साहब के काम के कद्रदान भी थे अनवर सागर। मेरे महबूब एच.एस.रवैल साहब ने ही डायरेक्ट-प्रोड्यूस की थी।
जिस दिन बेखुदी फिल्म का उपरोक्त गाना रिकॉर्ड हो रहा था उस दिन एच.एस.रवैल साहब भी रिकॉर्डिंग स्टूडियो में पहुंचे थे।
गीत कंप्लीट हो जाने के बाद रवैल साहब ने अनवर सागर की खूब तारीफ की। उनके मुंह से अपनी तारीफें सुनकर अनवर सागर जी की आंखें नम हो गई। किसी की भी हो जाती।
उस दिन अनवर सागर ने एच.एस.रवैल जी से कहा,"आपको शायद अंदाज़ा भी नहीं होगा कि आपकी ये तारीफें मेरे लिए क्या मायने रखती हैं। मैं मेरे महबूब फिल्म के दौर से आपका फैन रहा हूं। मैं अब इस गाने के पैसे नहीं ले सकूंगा।"
पैसे ना लेने वाली बात पर एच.एस.रवैल साहब ने अनवर सागर से कहा,"आपको आपकी मेहनत की पूरी कीमत देना हमारे लिए ज़रूरी है। अगर हम आपको आपके हक़ का पूरा पैसा नहीं देंगे तो हम गलत हो जाएंगे।"
और फिर एच.एस.रवैल साहब ने अपने बेटे राहुल रवैल को बोलकर अनवर सागर को बेखुदी के उस गीत के लिए जो तय हुई थी उससे दोगुनी फीस दिलाई।
अनवर सागर का चौथा गीत जिसने बिनाका गीतमाला में जगह बनाई वो है 1992 में ही आई फिल्म "सपने साजन के" का बहुत ही लोकप्रिय गीत,"ये दुआ है मेरी रब से। तुझे आशिक़ों में सबसे, मेरी आशिक़ी पसंद आए।" इस गीत को भी नदीम-श्रवण की जोड़ी ने ही कंपोज़ किया था।
ये गीत बहुत बड़ा हिट गीत था उस समय का। अनवर सागर जी के लिखे और भी कुछ गीत थे जिन्होंने अमीन सयानी साहब के बिनाका गीतमाला में जगह बनाई थी। लेकिन उनकी जानकारी फिलहाल मेरे पास नहीं है।
03 जून 2020 को अनवर सागर कोरोना महामारी का शिकार होकर ये दुनिया छोड़ गए थे। जिस समय उनकी मृत्यु हुई थी तब उनकी उम्र 70 साल हो चुकी थी।
Meerut Manthan Anwar Sagar जी को इतने शानदार गीत लिखने के लिए सैल्यूट करता है। साथ ही साथ नमन भी करता है। जय हिंद।
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