Shailendra और Raj Kapoor की पहली मुलाकात की बहुत दिलचस्प कहानी | पसंद आएगी इसकी गारंटी है
आज शैलेंद्र और राज कपूर जी की पहली मुलाकात का एक ज़बरदस्त किस्सा आपको बताता हूं। हो सकता है कईयों के लिए ये किस्सा कोई नई बात ना हो।
उन्होंने पहले ही ये किस्सा सुन रखा हो। लेकिन उन लोगों को ये किस्सा बहुत पसंद आएगा जो इस किस्से से वाकिफ़ नहीं हैं।
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Story of Raj Kapoor & Shailendra First Meeting - Photo: Social Media |
शैलेंद्र जी उन दिनों रेलवे में अप्रेंटिस करते थे उन दिनों। वो शौकियाना कविताई करते थे। उन्हीं दिनों मुंबई में एक प्रोग्रेसिव राइटर्स असोसिएशन भी हुआ करती थी जिसका ऑफिस ओपेरा सिनेमा हाउस के सामने था।
प्रोग्रेसिव राइटर्स असोसिएशन में उस ज़माने के कवि व शायर सामाजिक मुद्दों पर रची गई अपनी रचानएं सुनाते थे। आम लोगों के लिए भी वहां के दरवाज़े खुले थे।
यानि कोई आम इंसान भी वहां जाकर कविताएं व शायरी सुन सकता था। वो भी बिना को टिकट या एंट्री पास लिए।
एक दिन शैलेंद्र जी भी वहां गए। उन्होंने भी अपनी एक कविता का पाठ किया। उस कविता का शीर्षक था "जलता है पंजाब।" वो कविता विभाजन की त्रासदी पर थी। जब शैलेंद्र जी ने अपनी कविता खत्म की तो हॉल तालियों से गूंज उठा।
फिर एक खूबसूरत सा दिखने वाला नौजवान शैलेंद्र जी के पास आया और बोला,"मेरा नाम राज कपूर है। मैं पृथ्वीराज कपूर का बेटा हूं। मैं एक फिल्म बनाने जा रहा हूं जिसका नाम "आग" है।
मेरी फिल्म भी विभाजन के मुद्दे पर ही है। आपकी ये कविता मेरी फिल्म की कहानी में फिट होती है। आप ये कविता हमारी फिल्म में इस्तेमाल करने को दे दीजिए। और बाकि गीत भी आप ही लिखिए।"
शैलेंद्र कुछ क्षणों के लिए राज कपूर को देखते रहे। और फिर बोले,"मैं मेरी कविताएं बेचना नहीं चाहता। कभी नहीं बेचूंगा। इसलिए आप किसी और से बात कर लीजिए। मैं फिल्म के लिए नहीं लिख सकूंगा।"
राज कपूर बड़े निराश हुए। लेकिन वहां से जाने से पहले उन्होंने शैलेंद्र जी की जेब में अपना एक कार्ड रख दिया और बोले,"अगर आपका विचार बदल जाए तो मुझसे संपर्क ज़रूर कीजिएगा।"
राज कपूर की फिल्म आग बनी और रिलीज़ हुई। फिल्म को वो सफलता नहीं मिली जो राज कपूर चाहते थे।
आग के बाद राज कपूर ने बरसात फिल्म पर काम शुरू किया। फिल्म में उस समय तक कुल नौ गीत थे जिनमें से सात तब तक रिकॉर्ड भी हो चुके थे।
एक दिन शैलेंद्र राज कपूर से मिलने उनके ऑफिस पहुंच गए। उस समय तक आर.के.स्टूडियो की स्थापना नहीं हुई थी। राज कपूर से मिलकर शैलेंद्र बोले,"पहचाना मुझे?" राज कपूर ने जवाब दिया,"हां, आप तो कवि हैं। कहिए, कैसे आना हुआ?" शैलेंद्र ने उन्हें बताया,"मेरी पत्नी गर्भवती है। और उसे कुछ ज़्यादा ही परेशानी हो रही है। मुझे पांच सौ रुपए की सख्त ज़रूरत है।"
उस समय राज कपूर की जेब में तीन सौ रुपए थे। उन्होंने अपने ऑफिस बॉय को बुलाया और उससे कहा,"बगल वाले ऑफिस से मेरा नाम लेकर दो सौ रुपए ले आओ। कह देना कल लौटा देंगे।"
ये 1949 की बात है। उस ज़माने में पांच सौ रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी। जिस वक्त राज कपूर के ऑफिस में शैलेंद्र पांच सौ रुपए मांगने गए थे उस समय वहां राज कपूर के एक मामा भी मौजूद थे।
राज कपूर ने जब अपने ऑफिस बॉय को बराबर के ऑफिस से दो सौ रुपए लाने भेजा तो ये देखकर उनके मामा उन्हें एक कोने में ले गए और बोले,"इस आदमी का हुलिया देखा है? ये कभी इस उधारी को वापस नहीं दे पाएगा।"
राज कपूर ने अपने मामा से कहा,"आप अपने काम से काम रखिए। मुझे जो करना है वो मुझे करने दीजिए।" जब ऑफिस बॉय दो सौ रुपए लेकर आ गया तो राज कपूर ने अपनी जेब से तीन सौ रुपए निकाले और कुल पांच सौ रुपए शैलेंद्र जी को दे दिए।
शैलेंद्र ने राज कपूर को धन्यवाद कहा। साथ ही ये भी कहा,"शायद ये रकम लौटाने में समय लग जाए। क्योंकि मैं एक मामूली सी नौकरी करता हूं। लेकिन आपके पांच सौ रुपए मैं लौटाऊंगा ज़रूर।" राज कपूर ने शैलेंद्र से कहा कि आप पहले अपनी समस्या सुलझाइए। बाद में बात करेंगे।
फिर कुछ हफ्तों बाद शैलेंद्र पांच सौ रुपए लौटाने राज कपूर के ऑफिस फिर से गए। राज कपूर उनसे बोले,"क्या आपने मुझे कोई मनी लैंडर समझा है? कि पहले पैसे उधार दिए फिर वसूलने की चिंता की। मैं ये काम नहीं करता।" शैलेंद्र बोले कि ये तो आपके ही पैसे हैं। लौटाने तो हैं ही।
तब राज कपूर बोले,"हां, पैसे तो मैं लूंगा ही। लेकिन आपको मेरा एक काम करना होगा। मेरी एक फिल्म बन रही है जिसका नाम है बरसात। उसके दो गाने अभी बचे हुए हैं। आप वो लिख दीजिए। पांच सौ रुपए बराबर हो जाएंगे।" राज कपूर का वो ऑफर शैलेंद्र जी को पसंद आया।
शैलेंद्र जी ने बरसात के लिए दो गीत लिखे जिनमें से एक था "बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे मिले हम।"
शैलेंद्र जी के पुत्र दिनेश शंकर कहते हैं कि ये भारतीय सिनेमा का पहला टाइटल गीत था। उस फिल्म के लिए जो दूसरा गीत शैलेंद्र ने लिखा था वो था "पतली कमर है तिरछी नज़र है।"
और यूं राज कपूर जी के प्रयासों से हिंदी सिनेमा को मिला एक बहुत ही बिरला और शानदार गीतकार जिसे दुनिया ने शैलेंद्र के नाम से जाना। और जिसने कई कालजयी गीत लिखे।
शैलेंद्र जी के पुत्र दिनेश शंकर जी ने एक और रोचक बात उनके बारे में बताई। उनके मुताबिक, 1949 की बरसात फिल्म से शुरू हुआ राज कपूर और शैलेंद्र का साथ 1970 की मेरा नाम जोकर तक चला।
और इतने सालों में शैलेंद्र जी ने राज कपूर के साथ 500 रुपए महीना की तनख्वाह पर ही काम किया। एक इकन्नी अधिक नहीं ली।
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