Khemchand Prakash | एक बेहद प्रतिभावान मगर बहुत ही अभागे Music Director की कहानी | Biography

Khemchand prakash. एक बहुत काबिल लेकिन बदनसीब संगीतकार। नौशाद साहब की कहानी की चौथी किश्त में इनका ज़िक्र भी आया था। नौशाद इन्हें अपना उस्ताद मानते थे। 

12 दिसंबर सन 1907 को राजस्थान के बीकानेर ज़िले के सुजानगढ़ में खेमचंद प्रकाश का जन्म हुआ था। संगीत की शुरुआती तालीम इनके पिता ने ही इन्हें दी थी। 

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Biography of Music Director Khemchand Prakash - Photo: Social Media

Khemchand prakash जी के पिता ध्रूपद गायक थे। साथ ही वो कत्थक के मास्टर भी थे। Khemchand prakash जी को उन्होंने कत्थक की ट्रेनिंग भी दी थी। खेमचंद जी के एक बड़े भाई भी थे जिनका नाम था बसंत प्रकाश। वो भी एक संगीतकार थे और उस वक्त की फिल्म इंडस्ट्री में ही काम किया करते थे।

1940 के दौर के बहुत मशहूर संगीतज्ञ थे खेमचंद प्रकाश। उस वक्त की कई हिट फिल्मों का संगीत इन्होंने ही दिया था। लता मंगेशकर जी के शुरुआती दौर में खेमचंद प्रकाश जी ने उनसे कुछ बड़े ही शानदार गीत गवाए थे। 

जैसे 1948 की ज़िद्दी फिल्म का गीत चंदा जा रे जा। ज़िद्दी में ही किशोर कुमार जी ने अपने करियर का पहला गीत गाया था जिसके बोल थे 'मरने की दुआएं क्यों माूंग। जीने की तमन्ना कौन करे।' 

यानि किशोर दा को पहला ब्रेक देने वाले भी Khemchand prakash जी ही थे। 1943 में आई फिल्म तानसेन Khemchand prakash जी के खाते में दर्ज एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। उस फिल्म में के.एल.सहगल व खुर्शीद ने काम किया था। और इन्हीं दोनों ने फिल्म के सभी गीत भी गाए थे जो बड़े मक़बूल हुए थे।  

खेमचंद प्रकाश जी की एक और शानदार फिल्म है 1949 की महल। इस फिल्म में उन्होंने लता जी से गवाया था 'आएगा आने वाला।' 

इस गीत ने लता जी को बहुत लोकप्रियता दिलाई थी। इस गीत से एक बड़ी रोचक कहानी जुड़ी है। कहते हैं कि महल के फाइनेंसर को जब ये गीत सुनाया गया तो वो इसे सुनकर बहुत नाराज़ हो गया। 

फाइनेंसर ने कहा कि ये गाना भी फ्लॉप होगा। और फिल्म भी फ्लॉप हो जाएगी। इसे फौरन फिल्म से हटाओ। 

बड़ी मुश्किल से फाइनेंसर को ये गाना फिल्म में रहने देने के लिए मनाया गया। इस गाने की रिकॉर्डिंग के वक्त भी खेमचंद प्रकाश जी ने उस वक्त के हिसाब से कई अनोखे एक्सपैरीमेंट्स किए थे। 

जैसे गाने का एक हिस्सा उन्होंने लता जी को बाथरूम में खड़ा करके रिकॉर्ड कराया था। और एक जगह तो रिकॉर्डिंग कुछ ऐसे की गई थी कि एक बड़े से हॉल के बीचों बीच एक माइक खड़ा कर दिया गया।

 लता जी गाते हुए कुछ दूर से माइक की तरफ चलकर आती हैं। ये गाना मधुबाला जी पर फिल्माया गया था। 

कहते हैं कि महल जब हिट हो गई तो उसका फाइनेंसर, जो 'आएगा आने वाला' गाने को फिल्म से हटाना चाहता था, उसकी नज़रें भी खेमचंद प्रकाश जी से नहीं मिल पा रही थी। 'आएगा आने वाला' गीत बहुत पसंद किया गया। 

इस बात पर बहसें होने लगी कि महल फिल्म की कामयाबी में मधुबाला की खूबसूरती और अदाकारी का ज़्यादा योगदान है। या लता मंगेशकर की बेहद सुरीली गायकी का।

जिस वक्त महल फिल्म का गीत-संगीत चारों तरफ धूम मचा रहा था। ठीक उसी वक्त इसके संगीतकार खेमचंद प्रकाश गंभीर रूप से बीमार हो गए। अस्पताल में भर्ती खेमचंद प्रकाश अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन गिन रहे थे। 

और आखिरकार 10 अगस्त 1950 के दिन खेमचंद प्रकाश जी की मृत्यु हो गई। वो महल फिल्म के संगीत की कामयाबी का जश्न तक ना मना सके। 

जब उनकी मृत्यु हुई थी उस वक्त उनकी उम्र महज़ 42 साल ही थी। कहा जाता है कि ज़िंदगी के आखिरी दिनों में उनकी पत्नी के अलावा अस्पताल की एक नर्स थी जो उनका ध्यान रख रही थी। 

खेमचंद प्रकाश जी की मौत का सदमा उस नर्स पर इतना गहरा हुआ कि वो अपने होश खो बैठी। बाद में लोगों ने उसे सड़कों पर गाते देखा था 'आएगा, आएगा, आएगा आने वाला।'

वो ज़माना कुछ ऐसा था कि फ़नकार लोग पैसों के लिए काम नहीं करते थे। वो संतुष्टि के लिए काम करते थे। 

उनका मानना था कि काम एकदम अच्छे से होना चाहिए। बदले में पेट भरने लायक पैसा भी मिल जाए तो कोई दिक्कत नहीं। ऐसे ही विचार खेमचंद प्रकाश जी के भी थे। 

यही वजह है कि वो भी दौलत जमा नहीं कर पाए थे। उन्होंने भी कई दूसरों की तरह सिर्फ नाम ही कमाया था। 

लेकिन कहते हैं कि इस सबकी वजह से खेमचंद प्रकाश जी की पत्नी को बहुत कुछ झेलना पड़ा था। ज़िंदगी के आखिरी सालों में उन्हें भीख मांगकर अपना गुज़ारा करना पड़ा था। 

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