Mubarak Begum | ग़रीबी से लड़कर फिल्मों में गायकी कर पहचान बनाने वाली एक Singer जो ग़रीबी में ही चली भी गई | Biography

"अगर हम तुमसे प्यार ना करते तो तुम्हें कब का इंडस्ट्री से बाहर फिंकवा देते" एक मशहूर गायिका ने फोन पर मुबारक बेग़म को ये धमकी जैसी ना लगने वाली धमकी दी थी। 

चलिए आज Mubarak Begum की कहानी जानते हैं। और इस कहानी में वो किस्सा भी आगे आएगा जब उन्हें किसी मशहूर गायिका ने फोन पर इंडस्ट्री से निकलवाने की बात कही थी।

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Biography of Singer Mubarak Begum - Photo: Social Media

5 जनवरी 1936 को Mubarak Begum का जन्म हुआ था। Mubarak Begum के दादे-पड़दादे राजस्थान के नवलगढ़ के रहने वाले थे। लेकिन उनका जन्म हुआ था अपने ननिहाल झुंझनू में। वो कभी स्कूल नहीं गई थी। बताती थी कि उस दौर में बहुत से लोग लड़कियों को स्कूल भेजने से घबराते थे। ये सोचकर कि कहीं पढ़-लिख गई तो घर से ना भाग जाए। 

मुबारक बेगम के दादा अहमदाबाद में एक चाय की दुकान चलाते थे। एक दिन उनके पिता भी सपरिवार अहमदाबाद चले गए और वहां फलों की ठेली लगाने लगे। मुबारक जी ने अहमदाबाद में ही होश संभाला था। मुबारक बेगम के पिता को तबला बजाने का शौक था। 

उसी शौक के चलते उनकी मुलाकात उस्ताद थिरकवां खां से हुई। और उस्ताद थिरकवां खां ने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया। कुछ समय तक उस्ताद थिरकवां खां से तबले की बारीकियां सीखने के बाद 1940 के दशक की शुरुआत में मुबारक बेगम के पिता परिवार सहित मुंबई आ गए। 

संगीत के संस्कार Mubarak Begum को अपने पिता से ही मिले थे। Mubarak Begum भी छोटी उम्र से गुनगुनाने लगी थी। और उन्हें नूरजहां व सुरैया के गीत गुनगुनाना अच्छा लगता था। बेटी के गाने के शौक को पहचानकर पिता ने इन्हें किराना घराने के उस्ताद रियाज़ुद्दीन खां और उस्ताद समद खां से गायकी की तालीम दिलानी शुरू कर दी। 

गायकी में निपुणता मिलनी शुरु हुई तो ऑल इंडिया रेडियो में मुबारक जी को गाने के मौके मिलने लगे। एक दिन उस दौर के नामी संगीतकार रफ़ीक गज़नवी ने मुबारक बेगम को रेडियो पर गाते सुना। 

उन्हें मुबारक जी की आवाज़ पसंद आई। और उन्होंने अपनी एक फिल्म में गायकी करने के लिए मुबारक बेगम को बुलाया। उनके बुलावे पर मुबारक बेगम स्टूडियो पहुंची। 

वो गीत आगाजान कश्मीरी ने लिखा था। जैसे ही मुबारक बेगम ने रिकॉर्डिंग शुरू की, उन्हें घबराहट होने लगी। उस दिन वो रिकॉर्डिंग नहीं कर सकी। 

1950 की फिल्म भाई-बहन के एक गीत की रिकॉर्डिंग के लिए भी मुबारक बेगम को बुलाया गया था। लेकिन तब भी वो गा ना सकी थी। स्टूडियो में लोगों की भीड़ देखकर उन्हें घबराहट होने लगती थी। वो फिल्म राम दरमियानी बना रहे थे। और गीतकार थे श्यामसुंदर।

खुद से बेहद निराश हो चुकी मुबारक बेगम ने उस वक्त फिल्मों के लिए कभी गायकी ना करने का फैसला किया था। लेकिन शुभचिंतकों द्वारा हौंसला दिए जाने पर उन्होंने एक दफा फिर से हिम्मत जुटाई। 

1949 की 'आईए' वो पहली फिल्म थी जिसमें मुबारक बेगम ने पार्श्वगायकी की थी। और उनके पहले गीत के बोल थे 'मोहे आने दे अंगड़ाई।' वो फिल्म याकूब ने बनाई थी। 

याकूब ही उसके हीरो थे। हीरोइन थी सुलोचना चटर्जी। संगीतकार थे शौक़त हैदरी देहलवी, जिन्हें बाद में नाशाद के नाम से जाना गया था। गीत लिखे थे नख़्शब ने।

फिर तो Mubarak Begum जी ने कई फिल्मों में सोलो व ड्यूट गायकी की। लेकिन शोहरत की बुलंदियों पर Mubarak Begum को पहुंचाया 1961 में आई किदार शर्मा की फिल्म 'हमारी याद आएगी' के टाइटल ट्रैक 'कभी तनहाईयों में यूं हमारी याद आएगी' ने। 

किदार शर्मा साहब ने अपनी आत्मकथा 'दि वन एंड लोनली किदार शर्मा' में इस गीत का ज़िक्र करते हुए एक जानने लायक किस्सा सुनाया है। किदार शर्मा लिखते हैं कि वो गीत पहले लता मंगेशकर गाने वाली थी। लता जी दो बार ये गीत रिकॉर्ड करने आई थी। लेकिन दोनों बार रिकॉर्डिंग कैंसिल करके वापस चली गई।

और वो इसलिए क्योंकि लता जी के ड्राइवर ने किदार शर्मा से 140 रुपए की मांग दोनों दफा की। ड्राइवर कहता था कि टेक तब होगा जब आप मुझे 140 रुपए दे देंगे। किदार शर्मा ने उससे पूछा कि किस बात के 140 रुपए तुम्हें चाहिए? वो बोला, सब देते हैं। 

किदार शर्मा ने उसे जवाब दिया कि बाकि लोग क्या करते हैं मुझे इससे मतलब नहीं। मुझसे मेरी बात करो। जो शर्तें लता जी के साथ तय हुई हैं मैं सिर्फ वही पूरी करूंगा। 140 रुपए तुम्हें देने होंगे, ये बात उन्होंने मुझसे नहीं की।

किदार शर्मा जी की वो बात सुनकर लता जी का ड्राइवर मुस्कुराया और बोला- ठीक है। कोशिश करके देख लीजिए। और इस तरह लता जी ने दूसरी दफा भी रिकॉर्डिंग कैंसिल कर दी। लता जी का वो अनप्रोफेशनल रवैया किदार शर्मा को बहुत खराब लगा। 

तभी उन्होंने फैसला किया कि वो मुबारक बेगम से गीत रिकॉर्ड कराएंगे, जो कि उन्होंने कराया भी। किदार शर्मा अपनी किताब में लिखते हैं कि ये बात सही है कि अगर लता जी वो गीत गाती तो शायद वो उनके सबसे खूबसूरत गीतों में से एक होता। लेकिन तब शायद वो अनूठापन उस गीत को ना मिल पाता जो मुबारक बेगम की गायकी से मिला।

वो गाना जब रिकॉर्ड हो गया तो किदार शर्मा जी ने मुबारक बेगम की तरफ एक चवन्नी बढ़ाई। मुबारक बेगम बड़ी हैरान हुई। उनकी हैरानी भांपकर संगीतकार स्नेहल भाटकर बोले,"इसे ले लो। मना मत करना। क्योंकि शर्मा जी ये चवन्नी किसी को तब ही देते हैं जब वो उससे बहुत खुश होते हैं।" 

मुबारक बेगम कहती थी कि शर्मा जी द्वारा उस दिन चवन्नी के रूप में दिया गया वो आशीर्वाद उनके लिए बहुत शुभ साबित हुआ। वो गीत सुपरहिट रहा। और मुबारक बेगम के लिए आगे की राह आसान हो गई। उन्हें धड़ाधड़ गीत मिलते चले गए और वो गाती चली गई।

एक इंटरव्यू में मुबारक बेगम ने खुलासा किया था कि जैसे-जैसे उनका नाम बनता गया, उनके खिलाफ साजिशें भी होने लगी। फिल्म 'जब जब फूल खिले' का गीत 'परदेसियों से ना अंखियां मिलाना' और 'काजल' फिल्म का गीत 'अगर मुझे ना मिले तुम' मुबारक बेगम ने रिकॉर्ड किए थे। 

लेकिन वो गीत कभी मार्केट में आए ही नहीं। एक दफा रेडियो पर मुबारक बेगम का इंटरव्यू प्रसारित हो रहा था। मुबारक तब अपने घर पर थी। तभी उनके फोन की घंटी बजी। फोन करने वाली एक मशहूर गायिका थी। वो बोली,''पहचाना हमें? अगर हमें तुमसे प्यार ना होता तो तुम्हें कभी का इंडस्ट्री से निकलवा दिया होता।'' 

वो मशहूर गायिका कौन थी, मुबारक जी ने कभी इसका खुलासा नहीं किया। बहुत लोग अपनी तरफ से अंदाज़ा लगाते हुए कहते हैं कि वो लता मंगेशकर थी। लेकिन पर्सनली मुझे नहीं लगता कि लता जी ने ऐसा कुछ किया होगा। 

क्योंकी जब मुबारक बेगम जी का देहांत हुआ था तब लता जी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी। और ये बात भी तब सामने आई थी कि मुबारक बेगम के बुरे समय में लता जी भी उन लोगों में से एक थी जिन्होंने मुबारक जी को आर्थिक सहायता दी थी। बाकि सत्य क्या है, अब तो ईश्वर ही जानें। 

लता जी व मुबारक जी ने साथ में एक कव्वाली भी गाई थी जिसके बोल थे 'दिल हमसे वो लगाए जो हंस के तीर खाए। जिनको हो जान प्यारी वो सामने ना आए।' ये कव्वाली 1955 की फिल्म बारादारी में है। इसे मीनू मुमताज़ व शीला वाज़ पर पिक्चराइज़ किया गया था। यूट्यूब पर उपलब्ध है।

मुबारक बेगम का कहना था कि उन्हें कभी समझ नहीं आया कि उस दिन फोन पर उस मशहूर गायिका ने उन्हें प्यार दिया था कि धमकी दी थी। क्योंकि 1970 के दशक की शुरुआत में वाकई में मुबारक बेगम को इंडस्ट्री से आउट कर दिया गया था। इक्का-दुक्का फिल्मों में उन्होंने गायकी ज़रूर की थी। लेकिन वो गीत भी कभी मार्केट में नहीं आ सके।

फिल्म 'जब जब फूल खिले' के डायरेक्टर सूरज प्रकाश ने एक इंटरव्यू में इस बात की पुष्टि की थी कि 'परदेसियों से ना अंखियां मिलाना' गीत पहले मुबारक बेगम से ही गवाया गया था। मगर बाद में वो लता जी से रिकॉर्ड कराया गया। 

हालांकि सूरज प्रकाश ने इस बात से इन्कार किया था कि मुबारक बेगम की जगह लता जी की आवाज़ वाला गाना फिल्म में रखने के लिए कोई दबाव उन पर डाला गया था। या राजनीति की गई थी। उन्होंने कहा था कि मुबारक बेगम की गायकी में गीत वैसा नहीं आ पा रहा था जैसा वो चाहते थे। इसलिए लता जी से दोबारा गीत रिकॉर्ड कराना पड़ा।

1980 की फिल्म 'रामू तो दीवाना है' में आखिरी दफा मुबारक बेगम ने दो गीत रिकॉर्ड किए थे। संगीतकार थे चंद्रू और उन गीतों के बोल थे 'आओ तुझे मैं प्यार करूं' व 'सांवरिया तेरी याद में।' उसके बाद से कभी किसी फिल्म में मुबारक बेगम को गाने का मौका नहीं मिला। 

वो गरीबी और बदहाली की ज़िंदगी जीने को मजबूर हो गई। मुबारक बेगम के परिवार में बेटा-बहू, चार पोतियां और एक बेटी थी। उनका बेटा छोटा-मोटा काम करके घर का खर्च चलाता था। जब पोतियां बड़ी हुई तो मुबारक बेगम ने बेटे से मदद लेना बंद कर दिया। उनकी बेटी शफाक़ बानो पार्किंसन बीमारी की मरीज़ थी।

मुबारक बेगम जब तक ज़िंदा रही, सुनील दत्त साहब की अहसानमंद रही। क्योंकि उन्हीं की कोशिशों से मुबारक बेगम को रहने के लिए जोगेश्वरी में सरकारी कोटे से एक फ्लैट मिला था। मुबारक बेगम के पति कौन थे, इसके बारे में बहुत अधिक जानकारियां नहीं मिल सकी। क्योंकि वो अपने पति के बारे में बात करना पसंद नहीं करती थी। 

एक दफा खुद पर एक न्यूज़ चैनल द्वारा बनाई जा रही डॉक्यूमेंट्री के शूट के दौरान मुबारक बेगम ने पति के बारे में कहा था कि पता नहीं कौन थे। अब तो नाम तक याद नहीं। 

जबकी उन्हें करीब से जानने वाले लोग कहते हैं कि उनके पति का नाम जगन्नाथ शर्मा था। वो एक फिल्म मेकर थे। साल 1950 में आई देव आनंद और नरगिस की फिल्म 'बिरहा की रात' जगन्नाथ शर्मा ने ही प्रोड्यूस की थी।

आखिरी सालों में मुबारक बेगम स्टेज शोज़ में ज़रूर गाने के लिए जाती थी। 2008 में हैदराबाद में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने 'मुझको अपने गले लगा लो ओ मेरे हमराही' गाया तो दर्शक दीर्घा में सबसे आगे की कतार में बैठी पुराने ज़माने की हीरोइन जमुना भावुक हो उठी। 

वो भी मुबारक बेगम के साथ उस गीत को गुनगुनाने लगी। क्योंकि परदे पर वो गीत उन्हीं पर फिल्माया गया था। फिल्म थी 1963 की हमराही। 2023 की 27 जनवरी को जमुना जी का निधन हो गया था।

मुबारक बेगम की ज़िंदगी के आखिरी साल बहुत अभावों में गुज़रे थे। फिल्म इंडस्ट्री से मिलने वाली मदद के भरोसे ही उनका गुज़ारा चल रहा था। बेटी शफ़ाक़ बानो की दवाई के लिए उन्हें बहुत परेशान रहना पड़ता था। 

अभावों से जूझते हुए ही अक्टूबर 2015 में मुबारक जी की बेटी का निधन हो गया। बेटी की मौत का उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। वो बीमार हो गई। और 18 जुलाई 2016 को मुबारक बेगम का इंतकाल हो गया। 

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