Praveen Kumar Sobti | पंजाब के छोटे से गांव का ये तगड़ा सा लड़का कैसे बन गया महाभारत में महाबली भीम? | Biography
Praveen Kumar Sobti. ये बात सच है कि इनका नाम सब नहीं जानते थे। लेकिन इनके चेहरे से हर मनोरंजन प्रेमी अच्छी तरह से वाकिफ था।
बीआर चोपड़ा की महाभारत में महाबली भीम के किरदार को इन्होंने कुछ इस अंदाज़ में जिया था कि लोग कहने लगे, प्रवीण कुमार सोबती पैदा ही महाभारत में भीम बनने के लिए हुए थे।
खेलों की दुनिया से लेकर मनोरंजन की दुनिया तक, प्रवीण कुमार सोबती ने एक बेहद शानदार सफर तय किया था। मगर अब इनका सफर पूरा हो चुका है। क्योंकि ये दुनिया छोड़कर प्रवीण कुमार सोबती अब जा चुके हैं।
Praveen Kumar Sobti Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज लेकर आया है हिंदी सिनेमा के लंबे-चौड़े अभिनेता Praveen Kumar Sobti की कहानी। खेलों की दुनिया से Praveen Kumar Sobti एंटरटेनमेंट जगत में कैसे आए और इस चमकीली दुनिया में इनका सफर कैसा रहा, ये सारी कहानी आज हम और आप इस Article के ज़रिए जानेंगे।
Praveen Kumar Sobti का शुरूआती जीवन
प्रवीण कुमार सोबती का जन्म 6 दिसंबर 1947 को पंजाब के सरहली कलां इलाके में हुआ था। यूं तो इनके खानदान में हर किसी की कद-काठी अच्छी-खासी थी।
लेकिन छोटी उम्र में ही प्रवीण के पिता को आभाष हो गया था कि प्रवीण परिवार के दूसरे लोगों से ज़रा हटकर है। मात्र 18 साल की उम्र में ही प्रवीण कुमार छह फीट सात इंच की लंबाई तक पहुंच गए थे।
लंबा-चौड़ा शरीर था तो इन्होंने खुद को उन खेलों के लिए ट्रेंड करना शुरू कर दिया जिनमें शारीरिक ताकत की सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है।
जैसे कि हैमर थ्रो और डिस्कस थ्रो। दिनचर्या ऐसी कि प्रवीण रोज़ सुबह तीन बजे जाग जाया करते थे। वो रोज़ इतनी सुबह जागकर कसरत करते थे और हैमर थ्रो व डिस्कस थ्रो की प्रैक्टिस किया करते थे।
स्कूल से हुई खेलों की शुरूआत
इनके घर में एक हाथ चक्की थी जिसका इस्तेमाल इनकी मां अनाज पीसने के लिए किया करती थी। उस चक्की की सिल्लियों से प्रवीण कसरत किया करते थे।
कसरत और खेल की मेहनत को ये सूरज निकलने से पहले ही खत्म कर लिया करते थे। खान-पान एकदम देसी था। दूध, दही और घी की कोई कमी नहीं थी।
तीन सालों की कड़ी मेहनत के बाद प्रवीण कुमार सोबती का शरीर एकदम भीमकाय हो गया था। उनके रिश्तेदार उन्हें देखकर हैरान रह जाते थे।
स्कूल में तो ये हीरो थे। सबसे पहले स्कूल में होने वाले खेलों में ही इन्होंने हिस्सा लेना शुरू किया था। हेडमास्टर ने जब प्रवीण कुमार सोबती की शारीरिक बनावट देखी और उनकी ताकत का अंदाज़ा लगाया तो उन्होंने प्रवीण को जिला स्तर के खेलों में हिस्सा लेने भेजना शुरू कर दिया।
सपोर्ट मिला तो प्रवीण ने भी खुद को साबित कर दिखाया और वो लगभग हर इवेंट को जीतकर ही वापस लौटने लगे।
एशियन गेम्स में Praveen Kumar Sobti ने जीता सिल्वर मेडल
प्रवीण जब 20 साल के हुए तो BSF में इनका चयन हो गया। वहां भी खेलों में इन्होंने बढ़िया नाम कमाया। पंजाब में प्रवीण का खूब नाम होने लगा। आगे चलकर नेशनल लेवल पर भी इन्होंने खूब चर्चाएं बटोरी।
नतीजा ये हुआ कि साल 1966 में जमैका में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में डिस्कस थ्रो के लिए प्रवीण कुमार सोबती को भारत की तरफ से चुना गया। इस खबर से इनके गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
इनसे पहले गांव के किसी भी इंसान ने इतनी कामयाबी हासिल नहीं की थी। प्रवीण ने जमैका कॉमनवेल्थ गेम्स में डिस्कस थ्रो में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता।
इसके बाद इसी साल यानि 1966 और फिर इसके चार साल बाद यानि 1970 में हुए एशियन गेम्स में प्रवीण ने भारत को गोल्ड मेडल जिताए। साल 1974 में ईरान में हुए एशियन गेम्स में प्रवीण ने सिल्वर मेडल जीता था।
ओलंपिक में हुआ था खौफनाक तजुर्बा
यहां आपको ये बताना भी ज़रूरी है कि साल 1972 में जर्मनी में हुए ओलंपिक्स में भी प्रवीण कुमार सोबती ने हिस्सा लिया था।
ये वही ओलंपिक था जिसमें एक फिलिस्तनी आतंकी संगठन ने इज़रायल के ओलंपिक दल को बंधक बना लिया था और उनमें से 11 को मार डाला था।
इत्तेफाक से प्रवीण भी उसी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में मौजूद थे जहां पर आतंकियों द्वारा इस घटना को अंजाम दिया गया था।
नाश्ते के लिए जब प्रवीण डाइनिंग एरिया की तरफ जा रहे थे तो उन्हें भी गोलियां चलने की आवाज़ें सुनाई दी थी।
प्रवीण थोड़ा घबरा गए थे। वहां अफरा-तफरी मच गई थी। थोड़ी देर बाद पता चला कि आतंकियों ने इज़रायल की हॉकी टीम को मार डाला है।
वैसे आपको बता दें कि प्रवीण कुमार सोबती ने भारत के लिए केवल 1972 के समर ओलंपिक्स में ही नहीं बल्कि 1968 के समर ओलंपिक्स में भी हिस्सा लिया था जो कि मैक्सिको में हुए थे। हालांकि ओलंपिक्स में इन्हें कोई कामयाबी नहीं मिल पाई थी।
बिना कोई सप्लीमेंट खाए हासिल की थी ताकत
एक इंटरव्यू में प्रवीण कुमार सोबती ने बताया था कि उनकी मां उन्हें मछली, मटन और चिकन हमेशा देसी घी में पकाकर खिलाती थी। प्रवीण जमकर दूध बादाम और दूसरे मेवों का सेवन करते थे।
उस ज़माने में कोई सप्लीमेंट नहीं होता था। इसलिए शरीर की सारी ताकत एकदम ऑरिजिनल थी। ताकत कितनी है इसका अंदाज़ा लगाने के लिए खेतों में सांड और भैंसों के सींग पकड़कर उन्हें चित्त किया जाता था।
इस तरह फिल्मों में आए थे Praveen Kumar Sobti
चूंकि अपने ताकतवर शरीर के चलते प्रवीण को खेलों में कामयाबी मिली थी तो उन पर फिल्म इंडस्ट्री वालों की नज़रें भी पड़ने लगी। और फिल्मों में भला कौन नज़र आना नहीं चाहता होगा।
प्रवीण को पहली दफा जितेंद्र की जेम्स बॉन्ड स्टाइल फिल्म रक्षा में गोरिल्ला नाम के एक ताकतवर गुंडे के रोल में देखा गया।
ये रोल हूबहू वैसा ही था जैसा कि जेम्स बॉन्ड की फिल्म The Spy Who Loved Me में Jaws नाम के एक गुंडे का था। ये फिल्म साल 1982 में रिलीज़ हुई थी।
इसी साल प्रवीण एक और फिल्म में नज़र आए जिसका नाम था मेरी आवाज़ सुनो। इत्तेफाक से इस फिल्म में भी जितेंद्र ही लीड रोल में थे और प्रवीण का रोल भी लगभग वैसा ही था जैसा कि उनकी पहली फिल्म रक्षा में उनका रोल था।
कभी नहीं किए भूतिया रोल
फिल्म इंडस्ट्री में ये दौर वैसे भी उन कलाकारों के लिए सुनहरा दौर था जो कि दिखने में बेहद लंबे-चौड़े और खूंखार शख्सियत के मालिक हों। उस ज़माने में कई ऐसे कलाकार थे जो प्रवीण की ही तरह दिखते थे।
ज़्यादातर ऐसे कलाकारों को भूतिया फिल्मों में भूत के रोल में देखा जाता था। यूं तो प्रवीण ने भी रामसे ब्रदर की फिल्म डाक बंगला में विलेन का रोल किया था।
लेकिन वो कभी भूत के रोल में नहीं दिखे। डाक बंगला में भी उनकी मौत के बाद उनके भूत का का रोल उन्हीं की तरह लंबे-चौड़े शमशुद्दीन ने किया था।
और बदल गई किस्मत
प्रवीण ने फिल्मों में एक्टिंग तो शुरू कर दी थी। लेकिन इन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिल पाई थी जिसकी ख्वाहिश हर एक्टर को होती है। अपनी कदकाठी से ये लोगों की नज़रों में चढ़ने तो लगे थे।
लेकिन मजबूत किरदार इन्हें अब भी नहीं मिल पा रहे थे। मगर इनकी किस्मत ने पलटी मारी साल 1986 में। इनके एक पंजाबी दोस्त ने इन्हें बताया कि मशहूर डायरेक्टर-प्रोड्यूसर बीआर चोपड़ा इनसे मिलना चाहते हैं।
वो कोई टीवी शो बना रहे हैं। उस दोस्त के कहने पर ये बीआर चोपड़ा से मिलने उनके ऑफिस पहुंच गए। बीआर चोपड़ा ने इन्हें अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट महाभारत के बारे में बताया और इन्हें भीम का रोल ऑफर किया।
बीआर चोपड़ा को मालूम था कि भीम के रोल के लिए इनसे बढ़िया एक्टर कोई और नहीं हो सकता। इसके बाद तो प्रवीण कुमार सोबती का नाम इतिहास में दर्ज हो गया।
भीम बनकर अमर हो गए Praveen Kumar Sobti
महाभारत के महाबली भीम का रोल बेहद पसंद किया गया। प्रवीण जहां भी जाते, लोग उन्हें घेर लेते और उनसे ऑटोग्राफ की डिमांड करते।
महाभारत से मिली सफलता ने इनके करियर को बहुत फायदा पहुंचाया। फिल्म शहंशाह का इनका किरदार मुख्तार सिंह आज भी सिने प्रेमियों के ज़ेहन में एकदम ताज़ा है।
वहीं लोकप्रिय टीवी शो चाचा चौधरी में साबू के किरदार में इन्हें देखकर लोगों ने कहा कि प्रवीण के अलावा इस रोल को कोई और कलाकार कर ही नहीं पाता।
हालांकि ये भी सच है कि चाचा चौधरी में प्रवीण के अलावा भी कई दूसरे एक्टर्स साबू के रोल में नज़र आए थे।
राजनीति में भी आज़माई थी किस्मत
एक्टिंग में बढ़िया नाम कमाने के बाद प्रवीण कुमार सोबती ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आज़माई थी। साल 2013 में इन्होंने आम आदमी पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी।
आम आदमी पार्टी के टिकट पर इन्होंने दिल्ली की वज़ीरपुर सीट से 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा। लेकिन इन्हें हार का सामना करना पड़ा।
हालांकि इसके अगले साल ही इन्होंने आम आदमी पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था।
कभी ना भुलाए जा सकेंगे प्रवीण कुमार सोबती
पिछले काफी समय से प्रवीण कुमार सोबती छाती के संक्रमण से परेशान थे। उनका इलाज भी चल रहा था। लेकिन 7 फरवरी 2022 को प्रवीण कुमार सोबती को अचानक एक तेज़ दिल का दौरा पड़ा। उन्हें बचाने की काफी कोशिश की गई। लेकिन डॉक्टर्स उन्हें नहीं बचा सके।
और इस तरह 74 साल की उम्र में प्रवीण कुमार सोबती ये दुनिया छोड़कर अनंत की यात्रा पर हमेशा हमेशा के लिए निकल पड़े। मेरठ मंथन प्रवीण कुमार सोबती को नमन करता है। जय हिंद।
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