Rajendra Kumar Biography | Jublee Kumar की पूरी और अनसुनी कहानी जानिए

Rajendra Kumar. एक ऐसा नौजवान जो अपने दम पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत बड़ा नाम बना। एक ऐसा नौजवान जिसने पिता की दी हुई महंगी घड़ी को महज़ 65 रुपए में बेचकर अपनी किस्मत बदल दी। हौंसला इतना कि जिस घर को भूतिया बताकर कोई दूसरा इंसान खरीद नहीं रहा था उसे खरीदा और फिर बन गए जुबली कुमार।

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Rajendra Kumar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर पेश है गुज़रे ज़माने के हैंडसम एक्टर रहे Rajendra Kumar की कहानी। Rajendra Kumar के फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने, और फिर जुबली कुमार बनने की ये कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। और ये सारी कहानी आज हम और आप जानेंगे।

पाकिस्तान में पैदा हुए थे Rajendra Kumar

20 जुलाई 1927 को सियालकोट के संखटरा गांव में पैदा हुए थे राजेंद्र कुमार। ये वो दौर था जब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था और सियालकोट देश का एक बेहद समृद्ध इलाका था। 

राजेंद्र कुमार का पूरा नाम था राजेंद्र कुमार तुली और इनके दादा जी एक बड़े मिलिट्री कॉन्ट्रैक्टर थे। इनके पिता की कुछ टैक्सटाइल मिल्स थी जो सियालकोट और आस-पास के इलाकों में मौजूद थी। गांव में सबसे शानदार घर इन्हीं का था।

बंटवारे के बाद आना पड़ा भारत

एक छह मंज़िला मकान में 42 कमरे थे और उस मकान में राजेंद्र कुमार साहब का पूरा परिवार साथ रहा करता था। राजेंद्र कुमार पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार थे। 

राजेंद्र ने ग्रेजुएशन पूरी की ही थी कि इसी बीच देश का बंटवारा हो गया और इनका भरा-पूरा और समृद्ध परिवार अपने घर और कारोबार को छोड़कर भारत आने को मजबूर हो गया।

परिवार के साथ जैसे-तैसे राजेंद्र कुमार दिल्ली पहुंचे। कुछ महीनों के संघर्ष के बाद जब दिल्ली में इनका परिवार इस्टैब्लिश होने लगा तो राजेंद्र कुमार ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी और आखिरकार इन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की। इस तरह ये बन गए डॉक्टर राजेंद्र कुमार तुली।

बचपन से ही लग गया था फिल्मों का चस्का

राजेंद्र कुमार जब छोटे थे तब ही उन्हें फिल्मों का चस्का लग गया था। फिल्मों का वो चस्का कब जुनून में तब्दील हो गया था इन्हें मालूम ही नहीं था। आज़ादी मिलने से पहले लाहौर शहर में फिल्म इंडस्ट्री अच्छी-खासी पनप रही थी। 

राजेंद्र कुमार सपना देखते थे कि बड़े होकर वो भी लाहौर जाएंगे और फिल्मों में काम करेंगे। उनका ये सपना पूरा होता उससे पहले ही देश का बंटवारा हो गया। 

राजेंद्र कुमार का लाहौर में हीरो बनने का ख्वाब टूट गया। लेकिन 1947 के बाद मुंबई यानि बॉम्बे भारत में फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा।

पिता की घड़ी बेच बॉम्बे आए थे Rajendra Kumar

राजेंद्र कुमार के लिए बॉम्बे अब सपनों का शहर बन चुका था। वो किसी भी तरह बॉम्बे पहुंचकर फिल्मों में काम करने के लिए उतावले होने लगे थे। हालांकि शुरू में उन्हें नहीं मालूम था कि वो फिल्मों में हीरो बनेंगे या फिर कोई कैरेक्टर आर्टिस्ट। 

फिल्मों में काम करने की अपनी चाहत को लिए एक दिन ये अपने पिता के द्वारा दी गई घड़ी को बेचकर मुंबई के लिए रवाना हो गए। वो घड़ी जो इनके पिता ने इन्हें बड़े ही प्यार से तोहफे में दी थी और जो एक महंगी घड़ी थी। 

लेकिन मुंबई जाने के लिए राजेंद्र कुमार ने वो घड़ी 63 रुपए में बेच दी थी। पिता की दी वो घड़ी बेचना इन्हें अच्छा तो नहीं लग रहा था। लेकिन इन्हें भरोसा था कि इस घड़ी को बेचकर ही ये अपना वक्त बदल सकेंगे। 

63 रुपए में से 13 रुपए का इन्होंने दिल्ली मुंबई फ्रंटियर मेल का टिकट खरीद लिया। बचे हुए पचास रुपए से मुंबई में इन्हें अपनी किस्मत बदलनी थी।

शुरू में बने असिस्टेंट डायरेक्टर

मुंबई आने के बाद राजेंद्र कुमार ने एक कमरा किराए पर लिया। उसके बाद इन्होंने अपना संघर्ष शुरू किया। कई डायरेक्टर्स-प्रोड्यूसर्स के ऑफिसों के धक्के खाने के बाद आखिरकार उस ज़माने के दिग्गज डायरेक्टर एचएस रवैल ने इन्हें अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बना लिया। 

और आखिरकार राजेंद्र कुमार को फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने का मौका मिल ही गया। अगले पांच सालों तक राजेंद्र कुमार एचएस रवैल साहब के असिस्टेंट डायरेक्टर की हैसियत से काम करते रहे। इस दौरान पतंगा, पॉकेटमार और सगाई जैसी फिल्मों के डायरेक्शन में इन्होंने असिस्टेंट के तौर पर काम किया।

ये थी Rajendra Kumar की पहली फिल्म

एचएस रवैल जब जोगन फिल्म बना रहे थे तो दिलीप कुमार के दोस्त के रोल के लिए उन्हें एक कलाकार की तलाश थी। वो रोल बहुत छोटा सा रोल था। 

जब रवैल साहब को कोई कलाकार नहीं मिला तो उन्होंने हैंडसम दिखने वाले अपने असिस्टेंट राजेंद्र कुमार से वो रोल करा लिया। 

इस तरह जोगन फिल्म में दिलीप कुमार और नरगिस जैसे बड़े सितारों के साथ राजेंद्र कुमार को पहली दफा सिल्वर स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला।

राजेंद्र कुमार की पहली फुल टाइम फिल्म

यूं तो राजेंद्र कुमार उस फिल्म में कुछ ही देर के लिए नज़र आए थे। लेकिन प्रोड्यूसर राजेंद्र गोयल ने इन्हें उस छोटे से रोल में भी नोटिस कर लिया। 

उन्हें ये लड़का बहुत सही लगा। साल 1955 में जब उन्होंने फिल्म वचन बनाई तो उसमें राजेंद्र कुमार को एक बहुत ही इंपोर्टेंट रोल दिया। 

इस तरह वचन फिल्म राजेंद्र कुमार के करियर की एज़ एन एक्टर फुल टाइम फिल्म थी और इस फिल्म के लिए उन्हें पूरे 1500 रुपए मेहनताना भी मिला था। 

ये फिल्म ज़बरदस्त हिट रही थी और राजेंद्र कुमार के करियर की सबसे पहली सिल्वर जुबली फिल्म यही फिल्म थी जिसका नाम था वचन।

और बदल गई Rajendra Kumar की किस्मत

वचन फिल्म के बाद राजेंद्र कुमार की किस्मत पूरी तरह से बदल गई। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि एक नए स्टार का जन्म हो चुका है। 

असिस्टेंट डायरेक्टर की नौकरी छोड़कर राजेंद्र कुमार फुल टाइम एक्टर बन चुके थे। 1956 में राजेंद्र कुमार ने दो फिल्मों में काम किया था। ये फिल्में थी तूफान और दिया व आवाज़। 

इसके अगले साल यानि 1957 में राजेंद्र कुमार एक ऐसी फिल्म में दिखे जो ना केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में पसंद की गई और सराही गई। ये थी महबूब खान की मदर इंडिया। राजेंद्र कुमार इस फिल्म में रामू के रोल में दिखे थे। 

यूं तो ये फिल्म पूरी तरह से नर्गिस की फिल्म थी। लेकिन राजेंद्र कुमार ने भी इस फिल्म में इतनी शानदार एक्टिंग की थी कि वो फिल्म इंडस्ट्री के स्थापित अभिनेताओं में इस फिल्म के बाद शुमार हो गए थे। 

यही वजह है कि इस फिल्म के बाद राजेंद्र कुमार को काम के ढेरों ऑफर्स मिलने लगे थे। इनमें से कुछ ऑफर्स उन्होंने कबूल भी किए और बतौर हीरो काम भी किया। 

लेकिन एक हीरो के रूप में इन्हें पहली दफा सफलता मिली साल 1959 में रिलीज़ हुई फिल्म गूंज उठी शहनाई से। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट साबित हुई।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने की थी तारीफ

इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक किस्सा कुछ यूं है कि फिल्म के स्पेशल प्रीमियर में राजेंद्र कुमार साहब ने प्रख्यात शहनाई वादक रहे मरहूम उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को बुलाया था। 

प्रीमियर खत्म होने के बाद राजेंद्र कुमार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से मिले और बोले, खां साहब, "मेरी परफॉर्मेंस आपको कैसी लगी।" खां साहब बोले, "आपकी परफॉर्मेंस? भई हमें तो आप फिल्म में कहीं दिखे ही नहीं।" 

खां साहब के मुंह से ये बात सुनकर राजेंद्र कुमार कन्फ्यूज़ हो गए। तब खां साहब बोले,"अरे भई। हमें तो फिल्म के हीरो को देखकर लगा जैसे हम अपने आप को देख रहे हैं।" शहनाई वादन के इतने बड़े नगीने के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर राजेंद्र कुमार को बहुत खुशी मिली।

लोगों को लगा मुस्लिम हैं Rajendra Kumar

फिल्म मेरे महबूब में राजेंद्र कुमार ने अनवर नाम के एक नौजवान मुस्लिम शायर का किरदार निभाया था। इस फिल्म की कहानी और इस फिल्म का संगीत उस ज़माने में बहुत ज़्यादा पसंद किए गए थे। 

राजेंद्र साहब ने इस फिल्म में इतनी ज़बरदस्त एक्टिंग की थी कि इनके बहुत से फैंस को लगा जैसे राजेंद्र कुमार वास्तव में कोई मुस्लिम एक्टर हैं। 

इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद राजेंद्र कुमार को ढेर सारी ऐसी चिट्ठियां मिली जिसमें उनसे सवाल किया गया था कि आप कम से कम अपना असली नाम बताएं। क्योंकि जैसे यूसुफ खान साहब दिलीप कुमार के नाम से मशहूर हैं। 

हो सकता है आप भी कोई मुस्लिम हों जो राजेंद्र कुमार के नाम से फिल्मों में एक्टिंग करता हो। राजेंद्र कुमार ने लगभग हर चिट्ठी को जवाब देते हुए लिखा कि मेरे मां-बाप ने मुझे यही नाम दिया है। राजेंद्र कुमार तुली। और यही मेरा असली नाम है।

खास था राजेंद्र कुमार का बंगला

राजेंद्र कुमार की बात हो और कार्टर रोड वाले उनके बंगले के बारे में बात ना हो तो फिर बात अधूरी मानी जाएगी। ये उन दिनों की बात है जब राजेंद्र कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। 

राजेंद्र कुमार मुंबई में एक बड़ा मकान खरीदना चाहते थे। ताकि जल्द से जल्द अपने घरवालों को दिल्ली से मुंबई बुला लें। किसी ने इन्हें बताया कि कार्टर रोड पर मौजूद एक बंगला बिकाऊ है। ये उस बंगले को देखने चले गए। 

पहली ही नज़र में राजेंद्र कुमार को वो बंगला पसंद आ गया। लेकिन दिक्कत ये थी कि राजेंद्र कुमार के पास उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि वो तभी इस बंगले को अपना बना पाते। 

राजेंद्र कुमार सोचने लगे कि आखिर बंगले को खरीदने के लिए पैसों का इंतज़ाम कैसे किया जाए। उन्हें कहीं से कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। पर चूंकि इनकी किस्मत में वो बंगला लिखा था तो उस बंगले को खरीदने का रास्ता खुद इनके पास चलकर आया।

भूतिया बताया गया था बंगला

दरअसल, बीआर चोपड़ा इनके पास अपनी एक फिल्म की कहानी लेकर आए और साथ ही एडवांस भी इनके लिए लेकर आए। वो हर हाल में अपनी उस फिल्म में इन्हें लेना चाहते थे। 

इतना ही नहीं, उस फिल्म के अलावा भी दो और फिल्मों में बीआर चोपड़ा राजेंद्र कुमार को साइन करना चाहते थे। इस तरह राजेंद्र कुमार ने बीआर चोपड़ा की मदद से कार्टर रोड वाला वो बंगला खरीद लिया।

जब राजेंद्र कुमार ने ये बंगला खरीदा था तो कई लोगों ने इनसे कहा कि ये बंगाल शुभ नहीं है। यहां तरह-तरह की आवाज़ें आती हैं। और चूंकि कई लोग इस बंगले में आने के बाद भाग भी चुके हैं तो ये बंगला भूतिया भी है। 

लेकिन बंगले को अपना दिल दे बैठे राजेंद्र कुमार ने किसी की एक ना सुनी। राजेंद्र कुमार अपने परिवार के साथ बंगले में रहने पहुंच गए।

इसी बंगले में रहकर बने जुबली कुमार

इस बंगले में आने के बाद राजेंद्र कुमार की किस्मत तो मानो एकदम पलट गई। राजेंद्र कुमार की फिल्में सुपरहिट होने लगी। उनकी हर दूसरी फिल्म सिल्वर जुबली होने लगी। 

आलम ये था कि मुंबई के सात सिनेमाघरों में एक ही समय पर इनकी 7 अलग-अलग फिल्में लगी हुई थी। इनमें से ज़्यादातर सिल्वर जुबली थी। 

यही वजह है कि राजेंद्र कुमार को जुबली कुमार भी कहा गया। देखते ही देखते राजेंद्र कुमार उस ज़माने में बॉलीवुड के सबसे अमीर स्टार्स में से एक बन गए।

राज कपूर के बिना अधूरी है राजेंद्र कुमार की कहानी

राजेंद्र कुमार की कहानी में राज कपूर का ज़िक्र होना भी लाज़िमी है। और इन दो सितारों की बात हो तो फिल्म संगम की बात करना ज़रूरी हो जाता है। साल 1964 में रिलीज़ हुई इस फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर राज कपूर थे। 

पहले राज कपूर इस फिल्म में दिलीप कुमार को लेना चाहते थे। लेकिन दिलीप कुमार के इन्कार करने के बाद राज कपूर ने अपने जिगरी दोस्त राजेंद्र कुमार को इस फिल्म में ले लिया। राज कपूर और राजेंद्र कुमार दोनों बहुत गहरे दोस्त थे।

राज कपूर की मौत पर बहुत आहत हुए थे Rajendra Kumar

राज कपूर कहते थे कि फिल्म इंडस्ट्री में राजेंद्र कुमार के अलावा उनका कोई दोस्त नहीं है। यही बात राजेंद्र कुमार भी कहते थे। दोनों साथ खाते-पीते थे और हर रोज़ मिला करते थे। 

अगर किसी दिन मुलाकात नहीं होती थी तो टेलिफोन पर बात ज़रूर होती थी। दोनों अपने बच्चों की शादी के बारे में भी सोच रहे थे। लेकिन ऐसा हो ना सका। 

जब राज कपूर दुनिया छोड़कर गए तो राजेंद्र कुमार ने ऐलान कर दिया कि अपने दोस्त के बिना वो किसी भी पार्टी में नहीं जाएंगे।

संगम फिल्म से जुड़ा रोचक किस्सा

संगम फिल्म का गीत दोस्त दोस्त ना रहा जब शूट हो रहा था तो राजेंद्र कुमार को ये गीत पसंद नहीं आया। उन्होंने राज कपूर से कहा कि फिल्म में इस गीत की कोई ज़रूरत नहीं है। 

दोस्त अपनी दोस्ती निभा रहा है और प्यार भी कोई दगा नहीं कर रहा है तो इस गाने का कोई मतलब नहीं है। तब राज कपूर ने कहा कि वो इस गीत को फिल्म में बहुत अलग तरीके से पेश करेंगे। 

राज कपूर ने वो गाना शूट किया। पर चूंकि राजेंद्र कुमार की कही बात उनके दिमाग में घर कर चुकी थी तो उन्होंने उस गाने में राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला के क्लॉज़ शॉट्स लगाए। खुद को बहुत कम दिखाया।

Rajendra Kumar का डायलॉग हटा ना सके राज कपूर

फिल्म रिलीज़ हुई तो ये गाना भी बहुत पसंद किया गया। इस गाने के आखिर में एक डायलॉग आता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले ये डायलॉग फिल्म में था ही नहीं। 

पर गाने की शूटिंग खत्म होने के बाद राजेंद्र कुमार ने ऑन द स्पॉट ये डायलॉग बोला था। डायलॉग था," सुंदर, जो गीतकार पर गुज़री। उसने अपने गीत में कह दिया। मगर दोस्त। कुछ लोग ऐसे होते हैं। जिन पर गुज़रती तो है। मगर वो चुप रहते हैं। कुछ कह नहीं सकते।" 

राज कपूर को राजेंद्र कुमार का अचानक और अपने मन से बोला गया डायलॉग इतना पसंद आया कि उन्होंने ये पूरा डायलॉग फिल्म में इस्तेमाल किया। कुछ ऐसी दोस्ती थी राज कपूर साहब और राजेंद्र कुमार साहब की।

कानून थी ज़बरदस्त फिल्म

राजेंद्र कुमार के करियर की सबसे यादगार फिल्मों में से एक फिल्म थी कानून। ये एक ऐसी फिल्म थी जिसमें ना तो कोई गाना था और न ही किसी तरह का रोमांस था। 

ये ढाई घंटे का एक कोर्ट रूम ड्रामा था जिसमें दर्शकों को बैठा कर रखना डायरेक्टर के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती था। लेकिन बीआर चोपड़ा ये कारनाम कर दिखाने में कामयाब रहे। 

और कहने की ज़रूरत नहीं कि दादा मुनी अशोक कुमार और राजेंद्र कुमार की ज़बरदस्त एक्टिंग की बदौलत ही बीआर चोपड़ा ऐसा कर पाने में कामयाब रहे थे।

जज ने की थी कानून फिल्म की तारीफ

जस्टिस सांखला नाम के एक जज ने जब ये फिल्म देखी तो उन्होंने कहा था कि अपने चालीस साल के तजुर्बे में उन्होंने अशोक कुमार जैसा जज और राजेंद्र कुमार जैसा वकील नहीं देखा। 

फिल्म से जुड़ा एक और रोचक किस्सा कुछ यूं है कि जब मुंबई के मिनरवा थिएटर हॉल से राजेंद्र कुमार बीआर चोपड़ा के साथ फिल्म का प्रीमियर खत्म होने के बाद बाहर निकल रहे थे तो एक ग़रीब आदमी दौड़ता हुआ आया और राजेंद्र कुमार के पैरों में आकर गिर गया। 

वो आदमी इनसे बोला,"साहब। मेरा बेटा बेकसूर है। उसने कोई गुनाह नहीं किया है। मैं बहुत ग़रीब हूं। उसे बचा लीजिए। आप ही इकलौते ऐसे वकील हैं जो उसे बचा सकते हैं।" 

राजेंद्र कुमार ने उस आदमी को समझाने की कोशिश की कि मैंने तो उस फिल्म में केवल वकील का रोल निभाया है। मैं सच में कोई वकील नहीं हूं। वो आदमी मानने को तैयार नहीं हुआ। जैसे-तैसे उसे समझाया गया। 

इस घटना से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राजेंद्र कुमार कितने बढ़िया एक्टर थे। वो अपने किरदार में कुछ इस कदर उतर जाया करते थे कि लोग उन्हें असलियत में वही समझने लगते थे, जो किरदार वो फिल्म में जीते थे।

Rajendra Kumar की शानदार फिल्म है आरज़ू

राजेंद्र कुमार की फिल्म आरज़ू से भी एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी जुड़ी है। इस फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर रामानंद सागर थे और फिल्म में राजेंद्र कुमार की हीरोइन साधना थी। 

फिल्म में राजेंद्र कुमार ने एक अपाहिज का रोल किया था। एक दिन रामानंद सागर के ऑफिस में एक पुणे से एक लड़का पहुंचा। वो लड़का बैसाखी के सहारे चलकर आया था। उस लड़के ने रामानंद सागर से गुज़ारिश की कि उसे राजेंद्र कुमार से मिलाया जाए।

लड़के ने Rajendra Kumar को हार पहनाया

रामानंद सागर को जब उस लड़के की पूरी कहानी पता चली तो उन्होंने राजेंद्र कुमार को फोन किया और बोले,"भई राजेंद्र। पूना से एक लड़का खास तुमसे मिलने आया है। तुम फौरन मेरे ऑफिस चले आओ।" 

रामानंद सागर की बात सुनकर राजेंद्र कुमार उनके ऑफिस पहुंचे। उन्होंने देखा कि बैसाखी लिए एक अपाहिज लड़का कुर्सी पर बैठा है और उसके हाथों में फूलों का एक बड़ा ही खूबसूरत सा हार है। जैसे ही उस लड़के ने राजेंद्र कुमार को देखा तो उसने वो हार उनके गले में डाल दिया।

उस लड़के की ज़िंदगी बदल दी थी Rajendra Kumar ने

वो लड़का राजेंद्र कुमार के गले लग गया और रोते हुए अपनी कहानी बताने लगा। वो लड़का बोला,"सर, एक एक्सीडेंट में मेरी टांग कट गई थी। मैं जीवन से इतना निराश हो गया था कि आत्महत्या करने ही वाला था। तभी मुझे किसी ने आपकी फिल्म आरज़ू दिखाई। 

उस फिल्म में आपका अपाहिज वाला किरदार देखने के बाद मुझे अहसास हुआ कि ज़िंदगी कितनी खूबसूरत हो सकती है और आत्महत्या करना कितना खराब है। वो फिल्म देखने के बाद मैंने आत्महत्या का इरादा छोड़कर खुद को ज़िंदगी की तरफ मोड़ लिया। आपकी वजह से मेरा जीवन बचा है। आप मेरे भगवान हैं।" 

उस लड़के की कहानी सुनकर राजेंद्र कुमार की आंखों में भी आंसू आ गए थे। राजेंद्र कुमार उस लड़के से बोले,"मैंने तो बस एक्टिंग की थी। असली हीरो तो तुम हो मेरे दोस्त।" जी हां। इतनी शानदार शख्सियत के मालिक थे राजेंद्र कुमार।

Rajendra Kumar की सूरज भी शानदार फिल्म थी

राजेंद्र कुमार की चर्चित फिल्मों में से एक फिल्म सूरज भी थी। इस फिल्म के डायरेक्टर एस कृष्ममूर्ती उनके दोस्त हुआ करते थे। एक दिन उन्होंने राजेंद्र कुमार से कहा कि मैं आपके साथ एक फिल्म बनाना चाहता हूं। 

बताइए किस तरह की रोमांटिक कहानी पर फिल्म बनाई जाए। इस पर राजेंद्र कुमार ने उनसे कहा कि रोमांटिक छोड़िए। आप तलवारबाज़ी पर फिल्म बनाईए। ये सुनकर एस कृष्णमूर्ती बोले कि आप क्यों मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं। 

तब राजेंद्र कुमार ने उनसे कहा कि अगर आप फिल्म से ढेर सारा पैसा कमाना चाहते हैं तो आपको मेरी बात माननी चाहिए।

फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई

जैसे-तैसे एस कृष्णमूर्ती ने राजेंद्र कुमार की बात मान ली और सूरज फिल्म बनाई गई। फिल्म इतनी कामयाब हुई की एस कृष्णमूर्ती पर दौलत की बरसात हो गई। 

बाद में फिर कभी राजेंद्र कुमार ने ऐसी कोई फिल्म नहीं की जिसमें तलवार बाज़ी हो। कई सालों के बाद गोरा और काला फिल्म में एक बार फिर से उनके हाथों में तलावर नज़र आई थी। लेकिन चूंकि उस फिल्म की कहानी बहुत अलग थी तो इसलिए राजेंद्र कुमार ने वो फिल्म की थी।

गोरा और काला के लिए की थी खूब मेहनत

फिल्म गोरा और काला में ये डबल रोल में थे। अपने काले किरदार के लिए ये जो मेकअप लिया करते थे उसमें इन्हें पूरे ढाई घंटे लगते थे। काले किरदार का शॉट देने के बाद ये गोरे किरदार का शॉट देते थे और उसके लिए भी काला मेकअप उतारने में इन्हें डेढ़ घंटे लग जाते थे। 

यानि कहा जा सकता है कि अपने काम को लेकर डेडिकेशन राजेंद्र कुमार में बहुत ज़्यादा थी। सालों तक चले अपने फिल्मी करियर में राजेंद्र कुमार ने कई तरह के रोल निभाए। लेकिन वो कभी भी किसी फिल्म में विलेन के रोल में नहीं दिखे।

जब ढलान पर आया Rajendra Kumar का करियर

एक बेहद शानदार कैरियर के बाद सत्तर के दशक के शुरूआती सालों में राजेंद्र कुमार का करियर अपने ढलान की तरफ बढ़ने लगा। दरअसल, ये वो दौर था जब सिनेमा के शौकीनों पर राजेश खन्ना नाम के नए लड़के का जादू चढ़ने लगा था। 

वक्त की चाल को समझते हुए राजेंद्र कुमार हीरो के बजाय सपोर्टिंग रोल्स करने लगे। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि राजेंद्र कुमार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। उन्हें अपना बंगला तक बेचना पड़ा। 

वही बंगला जिसे बड़े ही प्यार से उन्होंने खरीदा था। और जानते हैं वो बंगला किसने खरीदा? उस ज़माने के उभरते हुए सितारे राजेश खन्ना ने।

राजेश खन्ना की तकदीर भी बदल दी उस बंगले ने

दरअसल, जब राजेश खन्ना को मालूम चला कि राजेंद्र कुमार अपना बंगला बेच रहे हैं तो वो तुरंत उसे खरीदने पहुंच गए। ये सोचकर, कि जैसे राजेंद्र कुमार की किस्मत इस बंगले में आने के बाद चमक गई थी, उसी तरह शायद उनकी किस्मत भी चमक जाए। हुआ भी ठीक ऐसे ही। 

राजेश खन्ना का करियर इतना ज़बरदस्त रहा कि उन्हें भारत का पहला सुपरस्टार कहा जाने लगा। कभी जिस बंगले को भूतिया कहा जाता था उस बंगले ने फिल्म इंडस्ट्री को दो शानदार सितारे दिए थे।

ये किस्सा भी मशहूर है

राजेंद्र कुमार एक ऐसे एक्टर के तौर पर मशहूर थे जो किसी भी फिल्म की स्क्रिप्ट को बहुत ध्यान से पढ़ और समझकर ही साइन करता था। लोग कहते थे कि अगर फिल्म राजेंद्र कुमार ने साइन की है तो यकीनन फिल्म की कहानी बहुत बढ़िया होगी। 

फिल्म झुक गया आसमान की कहानी जब सायरा बानो के पास पहुंची तो उन्होंने शुरू में उस फिल्म में काम करने से इन्कार कर दिया था। 

लेकिन किसी ने जब उनसे कहा कि राजेंद्र कुमार ने इस फिल्म को साइन किया है तो तुम्हें ये फिल्म नहीं छोड़नी चाहिए तो सायरा बानो से इस फिल्म को करने के लिए हां कह दिया। 

फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई। लेकिन इतना शानदार फिल्मी करियर होने के बावजूद भी राजेंद्र कुमार को कभी फिल्मफेयर अवॉर्ड्स नहीं मिल सके। 

हालांकि चार दफा इन्हें नॉमिनेशन ज़रूर मिला था। पर कहा जा सकता है कि राजेंद्र कुमार का अवॉर्ड था जनता की तरफ से उन्हें मिला प्यार और सपोर्ट। साल 1969 में भारत सरकार ने राजेंद्र कुमार को पद्मश्री से नवाज़कर ज़रूर उनके हुनर को सलाम किया था।

ज़िंदगी से ये तजुर्बा भी मिला

उनके जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा कुछ यूं है कि जब वचन फिल्म के प्रोड्यूसर ने इनसे पूछा कि फिल्म के प्रीमियर में अपनी फैमिली के लिए इन्हें कितने टिकट की ज़रूरत होगी तो इन्हें लगा कि इन्हें तो टिकट फ्री में ही मिलेंगे। 

इन्होंने 10 टिकट ले लिए। मगर जब फिल्म का पेमेंट इन्हें दिया गया तो उसमें से 10 टिकट के पैसे भी काट लिए गए। उस दिन इन्हें अहसास हुआ कि प्रोफेशनल लाइफ में कुछ भी फ्री नहीं होता। 

इस घटना के सालों बाद नाम फिल्म की शूटिंग के दौरान जब अमृता सिंह हॉन्ग कॉन्ग से रोज़ इंडिया अपने घर बात करती थी तो उसका बिल इनके प्रोडक्शन में जाता था। 

चूंकि राजेंद्र कुमार उस फिल्म के प्रोड्यूसर भी थे तो उन्होंने इस घटना का पता चलते ही अमृता सिंह की फीस में से टेलिफोन का वो सारा बिल काट लिया।

Rajendra Kumar की निजी ज़िंदगी

राजेंद्र कुमार की निजी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो इनकी शादी निर्माता निर्देशक ओपी रल्हन की बहन शुक्ल से हुई थी। जब शुक्ल से इनकी पहली मुलाकात हुई थी तो इन्होंने उनसे कहा,"देखो भई शुक्ल। मैं तो पीजी में रहता हूं। मेरी सैलरी भी बहुत कम है। क्या तुम मेरे साथ खुश रह पाओगी?" 

शुक्ल जी ने कहा कि बिल्कुल खुश रह पाऊंगी। उसके बाद इन्होंने शुक्ल से शादी कर ली। इनके और शुक्ल के तीन बच्चे हुए। दो बेटियां और एक बेटा मनोज। इनका बेटा मनोज आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री में कुमार गौरव के नाम से मशहूर हुआ था।

बेटा नहीं कर सका इनके जैसा कमाल

खुद राजेंद्र कुमार ने लव स्टोरी नाम की फिल्म से अपने बेटे मनोज उर्फ कुमार गौरव को बॉलीवुड में लॉन्च किया था। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई थी। 

कुमार गौरव रातों रात स्टार बन गए थे। लेकिन अपने पिता की तरह वो अपना स्टारडम मैंटेन नहीं रख पाए और कुछ ही सालों के बाद गुमनामी के अंधेरों में खो गए। 

कुमार गौरव की शादी सुनील दत्त साहब की बेटी नम्रता दत्त से हुई थी। यानि मदर इंडिया के वो दो भाई सालों बाद समधी बन गए थे।

बहुत मुश्किल थे ज़िंदगी के आखिरी साल

राजेंद्र कुमार की ज़िंदगी के आखिरी कुछ साल बड़ी ही मुश्किलों में गुज़रे थे। वो कैंसर के शिकार हो गए थे। लेकिन अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने वाले राजेंद्र कुमार ने दवाई खाने से साफ इन्कार कर दिया। 

इसका असर कुछ ये रहा कि 12 जुलाई सन 1999 को अपने जन्मदिन से महज़ 8 दिन पहले 71 साल की उम्र में राजेंद्र कुमार कार्डियक अरेस्ट के चलते ये दुनिया छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चले गए। 

जिस दिन राजेंद्र कुमार की मौत हुई थी उससे ठीक एक दिन पहले यानि 11 जुलाई को इनके बेटे मनोज उर्फ कुमार गौरव का 39वां जन्मदिन था।

अमर रहेंगे Rajendra Kumar

राजेंद्र कुमार की मौत से उनके फैंस बहुत दुखी हुए थे। हर किसी की ज़ुबान पर बस एक ही बात थी। हिंदी सिनेमा के एक युग का अंत हो गया। 

Meerut Manthan राजेंद्र कुमार साहब को नमन करता है। और फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए उन्हें सैल्यूट करता है। जय हिंद।

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