Sitara Devi | Kathak Queen कहलाने वाली सितारा देवी की पूरी कहानी जानिए | Biography
Sitara Devi. भारतीय नृत्य कला का एक ऐसा नाम जिसे हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता है और लिया जाता रहेगा। बात जब कत्थक की हो तो सितारा देवी के सामने बड़े-बड़े कत्थक नर्तकों का सिर सम्मान में झुक जाता है।
सितारा देवी, जो ना केवल एक शानदार कत्थक नृत्यांगना थी, बल्कि एक बेहतरीन अदाकारा और एक खूबसूरत गायिका भी थी।
![]() |
Kathak Queen Sitara Devi Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan पर आज पेश है डोएम ऑफ द कत्थक Sitara Devi की Biography. Sitara Devi के जीवन से जुड़ी कई रोचक बातें आज हम आपको अपनी इस पेशकश में बताएंगे।
Sitara Devi का शुरूआती जीवन
सितारा देवी का जन्म 8 नवंबर 1920 को कलकत्ता के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुखदेव महाराज था और वो उस ज़माने के एक बड़े कत्थक डांसर थे। मूलरूप से इनका परिवार बनारस का रहने वाला था।
इनकी मां का नाम था नृत्य साम्राजनी और इनकी मां नेपाल के शाही परिवार से ताल्लुक रखती थी। इनकी मां भी कत्थक नृत्य में पारंगत थी। चूंकि ये धनतेरस के दिन पैदा हुई थी तो इनके माता-पिता ने इनका नाम धनलक्ष्मी रखा था।
पिता भी बहुत बड़ी हस्ती थे
इनके पिता एक बहुत बड़े कत्थक कलाकार थे तो वो अक्सर देश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी नृत्य प्रस्तुति देने जाते रहते थे। सितारा देवी के अलावा सुखदेव महाराज की दो बेटियां और दो बेटे थे।
सुखदेव महाराज ने अपने सभी बच्चों को नृत्यशास्त्र की विधिवत शिक्षा दी। हालांकि उस दौर में नृत्य करने वालों को समाज में सम्मान की नज़रों से नहीं देखा जाता था। लेकिन सुखदेव महाराज ने कभी इस बात की चिंता नहीं की।
ऐसे धनलक्ष्मी से बनी Sitara Devi
चूंकि उस दौर में कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी तो इस कुप्रथा से सुखदेव महाराज भी खुद को अछूता नहीं रख पाए। उन्होंने धनलक्ष्मी देवी यानि सितारा देवी की शादी भी 8 साल की छोटी सी उम्र में ही तय कर दी थी।
उस ज़माने में धनलक्ष्मी अपनी 20 साल बड़ी बहन से नृत्य कलाएं सीख रही थी। लेकिन जब उन्हें पता चला कि पिता ने उनकी शादी तय कर दी है तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि वो पढ़ना चाहती हैं। मगर पिता ने उनकी मांग को ज़रा भी गंभीरता से नहीं लिया।
हालंकि जब पिता सुखदेव महाराज को मालूम चला कि धन्नो यानि धनलक्ष्मी ने एक दिन पहले ही सत्यवान और सावित्री के जीवन पर आधारित एक डांस ड्रामा में बहुत ही शानदार प्रस्तुति दी और दर्शकों ने धनलक्ष्मी की प्रतिभा को खूब सराहा है तो उन्होंने अपना इरादा बदल दिया। उन्होंने धनलक्ष्मी का नाम बदलकर सितारा देवी रख दिया।
इस तरह आई मुंबई
सितारा महज़ 10 साल की थी जब इन्होंने प्रोफेशनली कत्थक नृत्य परफॉर्म करना शुरू कर दिया था। कत्थक के प्रति इनका समर्पण इतना अधिक था कि पढ़ाई-लिखाई में मुश्किल होने लगी।
आखिरकार सितारा देवी ने पढ़ाई छोड़ दी और उन्होंने पूरी तरह से खुद को कत्थक को समर्पित कर दिया। एक दिन सितारा अपने पिता के साथ नृत्य अभ्यास कर रही थी कि उस दौर के एक नामी एक्टर-डायरेक्टर निरंजन शर्मा उनके घर पहुंच गए।
निरंजन शर्मा खुद भी मूलरूप से बनारस के ही रहने वाले थे और उन दिनों वो अपनी एक फिल्म के लिए एक ऐसी चाइल्ड एक्टर की तलाश में थे जिसे नाचना आता हो।
सितारा के घर आकर निरंजन शर्मा ने उनका नृत्य देखा और उन्हें सितारा का नृत्य बड़ा पसंद आया। निरंजन शर्मा ने सितारा देवी के पिता सुखदेव महाराज से कहा कि वो इस बच्ची को अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं।
निरंजन शर्मा ने सुखदेव महाराज से कहा कि अगर ये अपने परिवार के साथ बॉम्बे आएंगे तो इन्हें वहां रहने के लिए एक फ्लैट दिया जाएगा और हर महीने 400 रुपए पगार भी दी जाएगी।
उस ज़माने में 400 रुपए एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। निरंजन शर्मा का वो ऑफर सुखदेव महाराज ने स्वीकार कर लिया और 13 लोगों के अपने परिवार को लेकर वो बॉम्बे यानि मुंबई आ गए।
उषा हरण थी पहली फिल्म
मुंबई आने के बाद निरंजन शर्मा की फिल्म उषा हरण में सितारा ने काम किया और इस तरह ये फिल्म इनके करियर की पहली फिल्म बनी। जब ये फिल्म रिलीज़ हुई तो सितारा देवी बॉम्बे फिल्म इंडस्ट्री में सनसनी बन गई।
लोग इनके नृत्य के बड़े फैन बन गए। मुंबई में कई जगह इन्हें डांस परफॉर्मेंस के लिए बुलाया जाने लगा। इत्तेफाक से उन दिनों बॉम्बे में कत्थक नृत्य कोई करता नहीं था। इसलिए सितारा देवी देखते ही देखते वहां एक जाना-पहचाना चेहरा बन गई।
जब गुरूदेब रबिन्द्रनाथ टैगौर से मिली Sitara Devi
एक दफा सितारा देवी को बॉम्बे के अतिया बेगम पैलेस में कत्थक नृत्य प्रस्तुति देने का मौका मिला। इत्तेफाक से वहां गुरूदेव रबिन्द्रनाथ टैगौर और सरोजिनी नायडू भी मौजूद थे। उन्हें सितारा देवी का नृत्य बड़ा पसंद आया।
उन्होंने सितारा देवी को टाटा ग्रुप के टाटा पैलेस में परफॉर्म करने के लिए बुलाया।उनके बुलावे पर सितारा टाटा पैलेस गई और उन्होंने वहां कत्थक की बहुत ही शानदार प्रस्तुति दी। उस प्रस्तुति के बाद सितारा देवी को सम्मानित भी किया गया।
गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने सितारा को अपनी तरफ से एक शॉल और पचास रुपए बतौर ईनाम देने की पेशकश की। लेकिन सितारा ने ये कहकर गुरुदेब का दिया ईनाम नहीं लिया कि इसकी जगह वो अपना आशीर्वाद उन्हें दें।
पिता ने सुने ऐसे-ऐसे ताने
यहां आपको ये बताना भी ज़रूरी है कि पंडित सुखदेव महाराज को मुंबई जाने के बाद अपने समाज की तरफ से कई तरह के आरोप झेलने पड़े थे। लोगों ने उनकी बेटियों को वैश्या तक कहा था।
ये सब इसलिए हुआ था क्योंकि उस ज़माने में भारतीय नृत्य कला कत्थक केवल तवायफों के कोठों तक सिमटकर रह गई थी।लोगों का मानना था कि अच्छे घरों के लोग ये सब काम नहीं करते हैं।
पर चूंकि पंडित सुखदेव महाराज से गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर ने कत्थक नृत्य कला को सहेजकर रखने की गुज़ारिश की थी तो पंडित सुखदेव महाराज जी ने लोगों की बातों की ज़रा भी परवाह नहीं की।
जब शुरू हुआ सितारा देवी का एक्टिंग करियर
पंडित जी की बेटी सितारा तरक्की की राह पर तेजी से बढ़ने लगी। कई फिल्मों में उन्हें अपना नृत्य कौशल दिखाने का मौका मिला। और फिर सन 1935 में आई महबूब खान की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म अल हिलाल में उन्हें पहली दफा एक्टिंग करने का मौका मिला।
इसके बाद सितारा देवी ने महबूब खान की ही वतन और रोटी में भी एक्टिंग की और इन फिल्मों में इनकी शानदार एक्टिंग के लिए इन्हें सम्मानित भी किया गया। कमाल की बात तो ये है कि जिस वक्त सितारा देवी ने इन फिल्मों में एक्टिंग की थी उस वक्त इनकी उम्र मात्र 16 बरस थी।
बेहद प्रतिभावान थी Sitara Devi
सितारा देवी को नृत्य से बेहद प्यार था। वे ना केवल कत्थक में निपुण थी, भरतनाट्यम में भी उन्होंने महारत हासिल की थी। साथ ही भारत के कई अन्य लोकनृत्यों पर भी इन्होंने अपनी पकड़ बनाई।
इसके अलावा अपनी कुछ फिल्मों में इन्होंने रशियन बैले भी परफॉर्म किया था। सितारा देवी केवल एक्टर और डांसर ही नहीं थी। वे एक गायिका भी थी। फिल्मोें में उन पर जितने भी गाने फिल्माए गए थे उनमें अपनी आवाज़ उन्होंने खुद ही दी थी।
ऐसी थी निजी ज़िंदगी
बात अगर उनकी निज़ी ज़िंदगी के बारे में करें तो उन्होंने तीन शादियां की थी। उनकी पहली शादी हुई थी एक्टर नज़ीर अहमद खान से। लेकिन कुछ ही महीनों बाद उनकी वो शादी टूट गई। इसके बाद उन्होंने डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और राइटर के. आसिफ से शादी की।
हालांकि उनकी ये शादी भी नहीं चल पाई। के. आसिफ से तलाक के कुछ साल बाद उन्होंने प्रताप बैरोट से शादी की। इस शादी से उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम है रंजीत बैरोट। इनकी एक बेटी भी है जिनका नाम जयंती माला। इनके पुत्र रंजीत बैरोट एक संगीतकार हैं।
बचपन में ऐसा कुछ भी झेला था
सितारा देवी जब छोटी थी तो इनके माता-पिता इन्हें प्यार से धन्नो कहकर पुकारते थे। कहा जाता है कि जब ये पैदा हुई थी तो इनका मुंह टेढ़ा था।
किसी पुरोहित की सलाह पर इन्हें एक महिला को गोद दे दिया गया। आठ साल तक उसी महिला ने इनको पाला-पोषा। आठ साल की उम्र पूरी करने के बाद इनके अपने माता-पिता इन्हें वापस अपने घर ले आए।
Sitara Devi को मिले ये पुरस्कार
नृत्य और कला के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें साल 1970 में पद्मश्री पुरष्कार से सम्मानित किया था। साल 1994 में इन्हें कालिदास सम्मान से नवाज़ा गया था।
साल 2002 में जब भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण सम्मान देने की घोषणा की तो इन्होंने ये कहकर पद्मभूषण लेने से इन्कार कर दिया कि ये भारत रत्न से कम कोई भी पुरस्कार नहीं लेंगी। देश-विदेश में इन्होंने अपने नृत्य जौहर दिखाए।
बड़े बॉलीवुड सितारों को सिखाया नृत्य
सितारा देवी के शरीर ने जब तक उनका साथ दिया उन्होंने नृत्य किया। कई बॉलीवुड अभिनेत्रियों को उन्होंने कत्थक की ट्रेनिंग दी। उनकी बहन तारा देवी का बेटा गोपीकृष्णन भी कत्थक जगत का एक बहुत बड़ा नाम है।
90 साल की उम्र तक सितारा देवी ने स्टेज पर अपनी नृत्यकला के जौहर दिखाए थे। लेकिन फिर बुढ़ापे के चलते उन्हें स्टेज से दूर होना पड़ा।
जब Sitara Devi दुनिया से विदा हुई
25 नवंबर 2014 को मुंबई के जसलोक अस्पताल में 94 साल की उम्र में इन्होंने आखिरी सांस ली और इस तरह भारतीय नृत्यकला का एक चमचमाता सितारा टूटकर हमेशा के लिए गायब हो गया।
Meerut Manthan महान सितारा देवी को सैल्यूट करता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि सितारा देवी जहां भी हों, ऐसे ही जगमगाती रहें जैसे कि वो इस जन्म में जगमगाती रही थी। जय हिंद।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें