Akhilendra Mishra | Chandrakanta में Kroor Singh का किरदार निभाने वाले अखिलेंद्र मिश्रा की कहानी जानिए | Biography
Akhilendra Mishra. पिछले कई सालों से आप इन्हें फिल्मों और टीवी शोज़ में देखते आ रहे हैं। दूरदर्शन के सुपरहिट शो रहे चंद्रकांता में इनका निभाया क्रूर सिंह का किरदार भला कौन भुला सकता है।
लेकिन फिर भी अखिलेंद्र मिश्रा को वो पहचान फिल्म इंडस्ट्री में नहीं मिल सकी जो उनके समकालिक रहे कई दूसरे कलाकारों को मिली।
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Akhilendra Mishra Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज आपको बेहद टैलेंटेड Akhilendra Mishra की कहानी सुनाएगा। बिहार के लाल Akhilendra Mishra फिल्म इंडस्ट्री में कैसे पहुंचे? और इनका फिल्मी सफर कैसा रहा? ये सारी कहानी आज हम और आप जानेंगे।
Akhilendra Mishra का शुरुआती जीवन
अखिलेंद्र मिश्रा बिहार के सिवान ज़िले के रहने वाले हैं। 28 मार्च 1962 को इनका जन्म हुआ था। मूलरूप से इनका परिवार किसानों का परिवार है।
लेकिन जब इनके पिता ने कस्टम विभाग में नौकरी करनी शुरू की तो उन्हें ट्रांसफर के चलते अलग-अलग शहरों में अपने बीवी-बच्चों संग रहना पड़ा। 10 भाई बहनों में अखिलेंद्र मिश्रा सबसे छोटे हैं।
इंजीनियर बनना चाहते थे अखिलेंद्र मिश्रा
अखिलेंद्र की शुरूआती पढ़ाई एक गुरूकुल में हुई थी। गुरूकुल के बाद एक पब्लिक स्कूल में इन्हें चौथी क्लास में दाखिला मिला। शुरुआती स्कूलिंग के बाद मैट्रिक की पढ़ाई करने ये अपने शहर छपरा वापस आ गए।
बाद में छपरा के ही राजेंद्र कॉलेज से इन्होंने बीएससी पूरी की। चूंकि अखिलेंद्र की मां चाहती थी कि ये इंजीनियर बनें, तो इन्होंने इंजीनियरिंग की तैयारी करनी शुरू कर दी।
इन्होंने इंजीनियिरंग करने के लिए कई एंट्रेस एग्ज़ाम्स भी दिए। लेकिन इन्हें सफलता नहीं मिल सकी। और शायद इनकी किस्मत ने इन्हें इंजीनियर इसिलिए नहीं बनने दिया क्योंकि आगे चलकर इन्हें अभिनय जगत में अपना नाम बनाना था।
गांव में होता था नाटक
अखिलेंद्र अपने स्कूली दिनों से ही एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ में हिस्सा लेते रहते थे। ये डिबेट में पार्टिसिपेट करते थे। सेमिनार्स में हिस्सा लेते थे। विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ये शिरकत किया करते थे।
जब ये आठवी क्लास में थे तो दशहरे की छुट्टियों में परिवार संग अपने गांव गए थे। इनके गांव में परंपरा थी कि हर साल दशहरा और दुर्गा पूजा के मौके पर एक भोजपुरी और एक हिंदी नाटक का आयोजन किया जाता था।
और नाटक का हिस्सा बन गए Akhilendra Mishra
एक दिन शाम के वक्त ये अपने भाईयों संग गांव के ही प्राइमरी स्कूल घूमने चले गए। इत्तेफाक से वहां गांव में हर साल दशहरे के मौके पर होने वाले नाटक की रिहर्सल चल रही थी।
उस नाटक के डायरेक्टर ने जब अखिलेंद्र को देखा तो उसने इनसे पूछा कि क्या तुम एक्टिंग करना चाहोगे।दरअसल, जिस नाटक में वो डायरेक्टर इन्हें लेना चाहता था वो बाल विवाह पर आधारित था।
उस नाटक में लीड किरदार के लिए उन्हें एक छोटे लड़के की ज़रूरत थी। अखिलेंद्र ने जब नाटक करने में दिलचस्पी दिखाई तो डायरेक्टर ने इन्हें स्क्रिप्ट दे दी और अगले दिन याद करके आने को कहा।
मशहूर होने लगे अखिलेंद्र
इस तरह अखिलेंद्र मिश्रा ने पहली दफा गांव में हुए उस नाटक में हिस्सा लिया और उस नाटक में इनके काम को खूब सराहा गया। तारीफें मिली तो अखिलेंद्र हर साल दशहरे की छुट्टियों में गांव आने लगे और नाटकों में हिस्सा लेने लगे।
यहीं से अखिलेंद्र मिश्रा की अवचेतना में ये बात घर कर चुकी थी कि क्यों ना एक्टिंग को ही प्रॉफेशन बनाया जाए। सफलता मिलनी शुरू हुई तो ज़िला स्तर पर अखिलेंद्र ने नाटकों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
बिहार की राजधानी पटना में हुए बिहार यूथ फैस्टिवल में इन्होंने छपरा का प्रतिनिधित्व किया और वहां भी एक नाटक परफॉर्म किया।
इंजीनियर बन ही ना सके अखिलेंद्र
जहां एक तरफ नाटकों में अखिलेंद्र को सफलता मिलती जा रही थी तो वहीं दूसरी तरफ इंजीनियर बनने की इनकी तमाम कोशिशें नाकाम हो रही थी।
हालांकि ये एक ब्रिलिएंट स्टूडेंट थे। लेकिन किस्मत इन्हें इंजीनियिरिंग में जाने नहीं दे रही थी। इनके घरवालों ने इनसे एमएससी करने को कहा।
घरवाले हुए थे नाराज़
इस वक्त तक नाटकों को ही अपनी दुनिया मान चुके अखिलेंद्र को पता था कि अगर उन्होंने एमएससी कर ली तो फिर वे कभी भी अभिनय की दुनिया में नहीं जा सकेंगे।
इन्होंने किसी तरह एक्टर बनने की अपनी ख्वाहिश के बारे में अपने घरवालों को बताया। इनके घरवाले पहले तो बेहद हैरान हुए। बाद में थोड़ा नाराज़ भी हुए।
लेकिन जब इन्होंने साफ कर दिया कि ये सिर्फ और सिर्फ एक्टिंग करेंगे तो घरवालों को इन्हें इजाज़त देनी ही पड़ी।
और मुंबई में शुरू हुआ अखिलेंद्र मिश्रा का संघर्ष
अखिलेंद्र को पता था कि अगर उन्हें थिएटर में करियर बनाना है तो दिल्ली या मुंबई जैसे बड़े शहरों का रुख तो हर हाल में करना ही होगा। घरवालों से इजाज़त मिल ही चुकी थी।
बस फिर क्या था। एक दिन ट्रेन पकड़कर ये आ गए उस ज़माने के बॉम्बे यानि मुंबई शहर। यहां आकर ये इप्टा संग जुड़ गए। शुरूआत में इन्हें इप्टा में भी काफी संघर्ष करना पड़ा। जाते ही इन्हें बढ़िया रोल्स नहीं मिल गए।
ये पानी पिलाने, झाड़ू लगाने, कॉस्ट्यूम्स आयरन कराने जैसे कई छोट-मोटे काम शुरू में करते थे। बाद में इन्हें भीड़ में खड़ा होने के मौके मिलने लगे।
धीरे-धीरे इनकी मेहनत रंग लाई और इन्हें एक या दो लाइनों के डायलॉग्स मिलने लगे। और जब इन्होंने उन लाइनों को बढ़िया तरीके से बोलना शुरू कर दिया तो इन्हें नाटकों में बड़े और मजबूत रोल्स भी मिलने लगे।
अखिलेंद्र की कड़ी मेहनत रंग लाई और मुंबई में थिएटर जगत में इनका नाम और इनका कद बढ़ने लगा। थिएटर में नाम हुआ तो फिल्म इंडस्ट्री की नज़रें भी इन पर पड़ने लगी।
इसी दौरान इन्हें नीरजा गुलेरी के अपकमिंग टीवी शो चंद्रकांता की खबर मिली। बस फिर क्या था। इनकी किस्मत ने एक बार फिर से एक बड़ा टर्न लेने की तैयारी शुरू कर दी।
ऐसे बने चंद्रकांता में क्रूर सिंह
उन दिनों अखिलेंद्र मिश्रा मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर बेस्ड नाटक मोटेराम का सत्याग्रह में काम कर रहे थे। ये नाटक पृथ्वी थिएटर में चल रहा था।
अखिलेंद्र को किसी ने बताया कि नीरजा गुलेरी बॉम्बे में हैं और वो अपने नए शो के लिए एक्टर्स की तलाश में हैं। किसी तरह अखिलेंद्र को नीरजा गुलेरी के असिस्टेंट का नंबर मिल गया।
उससे बात करके अखिलेंद्र एक दिन नीरजा गुलेरी से मिलने उनके ऑफिस पहुंचे। वहां जाकर ये हैरान रह गए। इनसे पहले ढेर सारे एक्टर्स वहां नीरजा गुलेरी से मिलने के लिए मौजूद थे।
बहरहाल, अखिलेंद्र जब नीरजा गुलेरी से मिले तो इनकी शख्सियत नीरजा को बेहद पसंद आई। वो इनके थिएटर बैकग्राउंड से बेहद इंप्रैस थी।
नीरजा ने अखिलेंद्र को विलेन क्रूर सिंह का रोल ऑफर किया। कहानी के मुताबिक, शो के 10-12 एपिसोड्स के बाद क्रूर सिंह की मौत हो जाएगी।
अखिलेंद्र ने ये रोल स्वीकार कर लिया। हालांकि चंद्रकांता से पहले अखिलेंद्र कुछ टीवी शोज़ में काम भी कर चुके थे।
चंद्रकांता की शूटिंग शुरू हुई और अखिलेंद्र ने पहले ही दिन नीरजा गुलेरी के सामने एक ऐसी बात कह दी जिसे उनके सामने आमतौर पर कोई छोटा एक्टर कहने की हिम्मत भी नहीं करता।
क्रूर सिंह को वो लुक अखिलेंद्र ने ही दिया था
पहले चंद्रकांता में क्रूर सिंह के किरदार का लुक एकदम अलग था। दिखने में वो क्रूर सिंह किसी राज कुमार जैसा ही था। अखिलेंद्र को क्रूर सिंह के किरदार का ऐसा लुक सही नहीं लग रहा था।
वो नीरजा गुलेरी के पास पहुंचे और उनसे बोले कि क्रूर सिंह का लुक बदलना बेहद ज़रूरी है। किरदार के मुताबिक लुक नहीं दिया गया तो मज़ा नहीं आएगा।
नीरजा गुलेरी हैरान थी। उन्हें यकीन नही हो रहा था कि एक नया कलाकार उनसे ये बातें कह रहा है। लेकिन काफी सोच-विचार करने के बाद नीरजा को अखिलेंद्र की बात सही लगी।
फिर मोटी-मोटी मूंछों और भयानक दिखने वाली भौंह वाला क्रूर सिंह सामने आया। यहां आपको ये बताना भी ज़रूरी है कि क्रूर सिंह का गैटअप बदलने के बाद अखिलेंद्र को एक नई चिंता सताने लगी थी।
और घर-घर में मशहूर हो गया क्रूर सिंह का तकिया कलाम
दरअसल, नए रूप वाले क्रूर सिंह की भौंहे और मूंछें इतनी मोटी थी कि अखिलेंद्र का पूरा चेहरा उनमें छिप गया था। अखिलेंद्र को आभास हुआ कि इस तरह उनके चेहरे को तो कोई पहचान ही नहीं पाएगा।
लेकिन जल्द ही उन्हें इसका एक बड़ा सॉलिड सॉल्यूशन भी मिल गया। चंद्रकांता की स्क्रिप्ट में उनके डायलॉग्स के बाद यक लिखा था। ये दरअसल एक साउंड इफैक्ट था जो इनके हर डायलॉग के बाद एडिटर को लगाना था।
अखिलेंद्र ने इस यक को शो में अपने तकिया कलाम की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। यही यक ही आगे चलकर यक्कू के तौर पर मशहूर हुआ था।
हालांकि शुरू में नीरजा गुलेरी ने इनसे ये तकिया कलाम इस्तेमाल करने से मना किया था। नीरजा ने इनसे कहा था कि इसका मतलब अच्छा नहीं होता।
लेकिन अखिलेंद्र के मनाने पर नीरजा मान गई। अखिलेंद्र चंद्रकांता में बोलते तो यक्क थे। लेकिन बच्चों ने इसे यक्कू के नाम से पॉप्युलर कर दिया।
और शुरू हो गया फिल्मी सफर
अखिलेंद्र जब छपरा से मुंबई आए थे तो इनके घरवालों को लोगों के बहुत ताने सुनने पड़े थे। लेकिन अखिलेंद्र को मिली कामयाबी ने हर आलोचक की बोलती बंद कर दी।
चंद्रकांता ने अखिलेंद्र को पूरे भारत में पहचान दिला दी थी। इस कामयाबी ने अखिलेंद्र के लिए फिल्मों के दरवाज़े भी खोल दिए।
साल 1995 में आई सलमान खान की फिल्म वीरगति से अखिलेंद्र का फिल्मी सफर भी आखिरकार शुरू हो गया।
इस फिल्म में अखिलेंद्र विलेन के रोल में नज़र आए थे। हालांकि इससे पहले धारावी, बेदर्दी जैसी कुछ फिल्मों में ये छोटे-छोटे किरदार निभा चुके थे।
वीरगति से जुड़ा है ये रोचक किस्सा
वीरगति फिल्म से जुड़ा एक रोचक किस्सा यूं है कि छपरा में अखिलेंद्र का पूरा परिवार उनकी ये पहली फिल्म देखने गया था।
फिल्म के क्लाइमैक्स में जब सलमान खान अखिलेंद्र के किरदार इक्का सेठ को मारते-पीटते हैं और आखिर में पेट्रोल से नहलाकर एक जलते घर में फेंक देते हैं तो ये सीन देखकर सिनेमा हॉल में बैठी अखिलेंद्र की मां रोने लगी। किसी तरह उनको समझाया-बुझाया गया था।
इस घटना के बाद अखिलेंद्र के पिता इनसे अक्सर कहा करते थे कि तुम क्यों हमेशा विलेन के रोल करते हो। अच्छे किरदार भी निभाया करो। हालांकि ऐसा हो ना सका।
अखिलेंद्र को अधिकतर निगेटिव रोल्स ही ऑफर हुए और वो भी इन्हीं रोल्स को करते गए। फिल्म सरफरोश में अखिलेंद्र का निभाया मिर्ची सेठ का किरदार भी बेहद दमदार था।और इत्तेफाक से ये भी एक निगेटिव किरदार ही था।
गायत्री मंत्र ने करा दी आमिर और अखिलेंद्र की दोस्ती
अखिलेंद्र की सबसे खास फिल्मों में से एक है लगान। लगान में अखिलेंद्र के किरदार का नाम अर्जन था। चूंकि आमिर खान सरफरोश में अखिलेंद्र संग काम कर चुके थे तो उन्होंने ही अखिलेंद्र को भी लगान में एक रोल देने का फैसला किया था। इस फिल्म की शूटिंग गुजरात के भुज में हुई थी।
शूटिंग की लोकेशन से फिल्म के क्र्यू का होटल लगभग पांच घंटे की दूरी पर था। सुबह-सुबह फिल्म की पूरी यूनिट बस में सवार होकर लोकेशन तक जाती थी।
अखिलेंद्र रोज़ बस में गायत्री मंत्र चला दिया करते थे। शुरू में तो सब हैरान थे। लेकिन बाद में सबको इसकी आदत लग गई। खुद आमिर खान को भी रोज़ सुबह गायत्री मंत्र सुनकर अच्छा लगने लगा।
एक दिन आमिर ने अखिलेंद्र को अपने पास बुलाया और उनसे गायत्री मंत्र का अर्थ बताने के लिए कहा। अखिलेंद्र ने आमिर को गायत्री मंत्र का पूरा अर्थ समझाया भी। इसके बाद आमिर और अखिलेंद्र की दोस्ती और भी गहरी हो गई।
रावण के किरदार में छा गए थे Akhilendra Mishra
रामानंद सागर के भाई आनंद सागर की साल 2008 वाली रामायण में अखिलेंद्र मिश्रा ने रावण का रोल किया था। हालांकि शुरू में जब उन्हें रावण का ये किरदार ऑफर किया गया था तो उन्होंने इसे निभाने से साफ इन्कार कर दिया था।
दरअसल, इससे पहले रामानंद सागर की रामायण में अरविंद त्रिवेदी ने रावण का किरदार निभाया था। और अखिलेंद्र किसी भी हाल में अरविंद त्रिवेदी की लैगेसी को चैलेंज नहीं करना चाहते थे।
लेकिन आनंद सागर ने अखिलेंद्र से कहा कि एक बार आकर बात कर लो। आनंद सागर के बार-बार बुलाने पर एक दिन अखिलेंद्र उनसे मिलने पहुंच ही गए।
लगभग चार घंटे चली उस मीटिंग के बाद अखिलेंद्र इस शर्त पर आनंद सागर की रामायण में काम करने के लिए तैयार हुए कि रावण के किरदार को खुद पोर्ट्रे करेंगे। शो का टैलिकास्ट शुरू होता है और एक एपिसोड में रावण को रोते हुए दिखाया जाता है।
रावण को रोते देखकर दर्शक एकदम हैरान थे। अखिलेंद्र की खूब प्रशंसा हुई। रावण की शख्सियत के इस पहलू को जानकर भी लोग अचंभित और खुश थे।
ये हैं अखिलेंद्र मिक्षा के लोकप्रिय किरदार
अखिलेंद्र मिश्रा के लोकप्रिय किरदारों की बात करें तो अपहरण के बृजनाथ मिश्र, वीर ज़ारा का जेलर, फिदा के बाबू अन्ना, गंगाजल के डीएसपी भूरेलाल, दि लैजेंड ऑफ भगत सिंग के चंद्रशेखर आज़ाद के किरदारों में ये बहुत पसंद किए गए। गुजराती फिल्म गुजरात नो नाथ में इन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किरदार निभाया था।
वहीं बात अगर इनकी निज़ी ज़िंदगी के बारे में करें तो इनकी निज़ी ज़िंदगी के बारे में सोशल मीडिया पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। अखिलेंद्र के जीवन में थिएटर का बहुत बड़ा स्थान है।
यही वजह है कि आज भी वो थिएटर से एक्टिवली जुड़े हैं और लगातार थिएटर करते रहते हैं। Meerut Manthan अखिलेंद्र मिश्रा की अच्छी सेहत और उनके बेहतर भविष्य की कामना करता है। जय हिंद।
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