Sadashiv Amrapurkar | वो शानदार Bollywood Actor जिसे आज सभी ने भुला दिया | Biography

Sadashiv Amrapurkar. एक ऐसा ज़बरदस्त एक्टर जिसने अपनी आंखों से ही लोगों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया। एक ऐसा शानदार कॉमेडियन जिसकी हर हरकत पर लोग पेट पकड़ कर हंसा करते थे। एक ऐसी बेहतरीन शख्सियत का मालिक, जिसने समाज से मिले प्यार को कुछ बेहद खूबसूरत काम करके लौटाया।

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Late Bollywood Actor Sadashiv Amrapurkar Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर आज कही जाएगी Sadashiv Amrapurkar की कहानी। Sadashiv Amrapurkar जब तक ज़िंदा रहे और फिल्मों में एक्टिव रहे, इंडस्ट्री ने उनको पलकों पर बैठाया। लेकिन जैसे ही मजबूरी के कारण सदाशिव को फिल्मों से दूर होना पड़ा तो यही इंडस्ट्री उनसे मुंह फेरकर बैठ गई। 

Sadashiv Amrapurkar का शुरुआती जीवन

सदाशिव अमरापुरकर का जन्म 11 मई 1950 को हुआ था। माता पिता ने इनका नाम रखा था गणेश कुमार। गणेश कुमार से ये सदाशिव अमरापुरकर कैसे बने ये कहानी भी आपको आगे पता चलेगी। 

सदाशिव का जन्म महाराष्ट्र के अहमद नगर शहर के बिल्कुल पास मौजूद अमरापुर गांव में हुआ था। इनके घर के लोग व इनके दोस्त इन्हें तात्या कहा करते थे। 

क्रिकेट के शौकीन थे सदाशिव अमरापुरकर

स्कूल के दिनों में सदाशिव को क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था। क्रिकेट से इन्हें इतना लगाव था कि ये क्रिकेटर बनने के ख्वाब भी देखते थे। हालांकि स्कूल में होने वाले नाटकों में भी ये कभी-कभार भाग ले लिया करते थे। पर उस वक्त किसे अंदाज़ा था कि भविष्य में इन्हें एक्टिंग ही करनी है।

स्कूल के बाद जब इन्होंने अहमद नगर कॉलेज में दाखिला लिया तो वहां के स्पोर्ट्स टीचर इस बात से खुश थे कि उनके कॉलेज में एक ऐसे लड़के ने दाखिला लिया है जो बढ़िया बैटिंग करता है और धार धार लेग स्पिन गेंदबाज़ी भी करता है। 

और बदल गई Sadashiv Amrapurkar की ज़िंदगी

चूंकि अहमद नगर कॉलेज में ही हर साल एक नाटक कॉम्पिटीशन का आयोजन भी किया जाता था तो सदाशिव ने उसमें भी हिस्सा लिया। कॉलेज में होने वाले उस नाटक कॉम्पिटीशन में स्टूडेंट्स को ही नाटक लिखना और डायरेक्ट करना होता था। साथ ही एक्टिंग भी स्टूडेंट्स खुद ही किया करते थे।

कॉलेज के उस नाटक में सदाशिव को एक कातिल का किरदार मिला था। और इन्होंने वो किरदार इतने बढ़िया तरीके से निभाया कि इन्हें उस किरदार के लिए अवॉर्ड भी मिल गया। बस यहीं से गणेश कुमार उर्फ सदाशिव अमरापुरकर की ज़िंदगी बदल गई।

इस तरह गणेश बने सदाशिव अमरापुरकर

पहले ही नाटक में अवॉर्ड मिलने के बाद सदाशिव को थिएटर में रूचि जाग गई। अब उनका ध्यान क्रिकेट से हटकर पूरी तरह थिएटर पर आ गया। कॉलेज में इन्होंने ढेरों नाटकों में काम किया। 

अहमद नगर कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद ये पूना यूनिवर्सिटी गए और वहां से इन्होंने एमए इन हिस्ट्री व एमए इन सोशियोलॉजी की। साथ ही साथ नाटक में भी वे एक्टिव रहे।

वे ना केवल नाटकों में एक्टिंग करते थे, बल्कि डायरेक्शन भी किया करते थे। अब तक इन्होंने अपना नाम गणेश से बदलकर सदाशिव रख लिया था और साथ ही अपने गांव अमरापुर को भी अपने नाम संग जोड़ लिया। इस तरह गणेश कुमार बन गए सदाशिव अमरापुरकर। 

परिवार से लड़ी लड़ाई

अब तक इन्हें अहसास हो चुका था कि ये सिर्फ थिएटर के लिए ही पैदा हुए हैं। हालांकि इनके घरवाले, और खासतौर पर इनके पिता थिएटर को लेकर इनके जुनून से बेहद परेशान थे। 

उन्हें फिक्र थी कि उनका बेटा शादीशुदा है और पिता भी बन चुका है। लेकिन उसे काम धंधें की कोई फिक्र नहीं है। इनके पिता ने इन्हें खूब समझाया। डांटा भी। एक दिन तो इन्हें कमरे में बंद तक कर दिया। 

लेकिन इन्होंने अपने पिता से कह दिया कि थिएटर इनकी सांस है और ये थिएटर के अलावा कुछ और करने की सोच भी नहीं सकते। किसी के रोकने से ये नहीं रुकेंगे। 

इनकी ज़िद के सामने पिता को हार माननी ही पड़ी। इन्हें नाटक करने की छूट दे दी गई। चूंकि इनकी पत्नी एलआईसी में नौकरी करती थी तो घर चलाने की टेंशन इन्हें थी ही नहीं। 

थिएटर के नामी एक्टर बन गए सदाशिव

धीरे धीरे महाराष्ट्र में थिएटर जगत में इनका नाम होने लगा। इन्होंने महाराष्ट्र थिएटर प्रतियोगिता में भी कई अवॉर्ड जीते। ख्याति मिली तो इनके पास प्रोफेशनल थिएटर के ऑफर्स भी आने लगे। 

इस तरह प्रोफेशनल थिएटर का हिस्सा बनने के लिए सदाशिव मुंबई आ गए। प्रोफेशनल थिएटर से होने वाली कमाई से मुंबई में ये आराम से अपना खर्च उठाने लगे।

विजय तेंदुलकर ने दिया पहला रोल

मुंबई में ये महान नाटककार विजय तेंदुलकर के नाटक कन्यादान में काम कर रहे थे। अपनी एक्टिंग स्किल्स से ये विजय तेंदुलकर का दिल कब का जीत चुके थे। एक दिन विजय तेंदुलकर ने इनसे कहा कि मैंने अर्धसत्य नाम से एक फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है।

उसमें एक किरदार है जिसे मैं आपसे कराना चाहता हूं। सदाशिव ने उनसे कहा कि आपको मैं कैसे मना कर सकता हूं। इस तरह साल 1983 में सदाशिव अमरापुरकर ने फिल्म अर्धसत्य से अपने फिल्मी करियर का आगाज़ कर लिया। 

Ardh Satya के Rama Shetty बनकर छा गए Sadashiv Amrapurkar

अर्धसत्य में इनके किरदार का नाम रामा शेट्टी था। रामा शेट्टी का वो छोटा सा किरदार बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हुआ। पहले ही फिल्मी किरदार के लिए सदाशिव अमरापुकर को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के खिताब से नवाज़ा गया। 

इस फिल्म के बाद सदाशिव के पास ऑफर्स की झड़ी लग गई। फिर इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिल्मों के साथ साथ सदाशिव ने टीवी पर भी कुछ बेहद दमदार किरदार जिए। 

टीवी पर भी खूब किया काम

अस्सी के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए शो राज से स्वराज तक में इन्होंने लोकमान्य तिलक का किरदार निभाया था। जबकी पंडित जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर बनाई गई श्याम बेनेगल की सीरीज़ भारत एक खोज में इन्होंने महात्मा फूले का किरदार निभाया था। 

ऐसा रहा फिल्मी करियर

बात अगर फिल्मों की करें तो सदाशिव अमरापुकर ने 300 से भी ज़्यादा छोटी व बड़ी, हिंदी, मराठी व अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्मों में काम किया था। इनके निभाए कई किरदार बेहद चर्चित हुए। 

मगर साल 1991 में रिलीज़ हुई महेश भट्ट की सड़क में इनका निभाया महारानी का किरदार कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।सदाशिव अमरापुकर ने महारानी का ये किरदार इतने सशक्त अंदाज़ में निभाया था कि फिल्मफेयर ने भी इस फिल्म के बाद अपनी अवॉर्ड कैटेगरी में बेस्ट एक्टर इन ए विलेनियस रोल को भी शुमार किया। 

और ये पहला अवॉर्ड भी सदाशिव अमरापुकर को महारानी फिल्म के लिए दिया गया। जहां ढेरों फिल्मों में इन्होंने बेहद खतरनाक और डरवाने विलेन के रोल निभाए तो कई फिल्मों में इन्होंने अपनी ज़बरदस्त कॉमिक टाइमिंग से अपने चाहने वालों को खूब हंसाया भी। 

समाज सेवक भी थे सदाशिव अमरापुरकर

सदाशिव अमरापुकर केवल अभिनेता नहीं, बल्कि एक समाज सेवी भी थे। दिग्गज एक्टर डॉक्टर श्रीराम लागू संग मिलकर इन्होंने समाज सेवा के कई शानदार काम किए थे। 

अपने पूण्य कार्यों के लिए ये अपनी जान-पहचान के लोगों से फंड जुटाते और उस फंड को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाते।

समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को सदाशिव अमरापुकर बखूबी समझते थे। लेकिन एक दफा इसी समाज के कुछ लोगों ने उनके साथ एक ऐसा शर्मसार करने वाला बर्ताव किया जिसे जानकर हर कोई दुखी हो गया। 

सदाशिव के साथ की गई हाथापाई

साल 2013 के दौरान जब महाराष्ट्र के कई इलाके भयंकर सूखे की चपेट में थे और हर कोई बेहद परेशान था तो स्थानीय प्रशासन और पुलिस लोगों से अपील कर रही थी कि पानी की बर्बादी ना करें और पानी बचाकर इस्तेमाल करें।

इसी दौरान होली के मौके पर सदाशिव अमरापुकर जी के पास वाली सोसायटी में कुछ नौजवान लड़के-लड़कियां पानी की बर्बादी करने में मशगूल थे। उन लोगों को जब पूरा दिन पानी बर्बाद करते हुए हो गया तो सदाशिव जी से ना रहा गया।

वो शाम के वक्त उन्हें समझाने और पानी की कीमत बताने के लिए चले गए। लेकिन नशे में धुत कुछ लड़कों ने इनके साथ अभद्रता करनी शुरू कर दी। यहां तक की इन पर हाथ भी उठा दिया। हालांकि बाद में पुलिस ने आकर बीच बचाव करा दिया था। 

आखिरी फिल्म

करियर के आखिरी दिनों में सदाशिव अमरापुकर की तबियत खराब रहने लगी थी। इसलिए धीरे धीरे इन्होंने खुद को फिल्मों से दूर कर लिया। पर चूंकि थिएटर से इन्हें बेइंतिहा मुहब्बत थी तो इन्होंने थिएटर करना नहीं छोड़ा। 

अपने फिल्मी करियर के पीक पर रहने के दौरान भी ये बराबर थिएटर करते रहते थे। सदाशिव अमरापुकर की आखिरी फिल्म थी 2013 में आई बॉम्बे टॉकीज़। इस फिल्म में ये एक कैमियो में नज़र आए थे। 

निजी ज़िंदगी

बात अगर इनके पारिवारिक जीवन की करें तो इनकी पत्नी का नाम सुनंदा करमाकर है। सुनंदा करमाकर इनकी बचपन की दोस्त भी थी। साल 1973 में इन दोनों का विवाह हुआ था। इन दोनों की एक बेटी है जिनका नाम है रीमा अमरापुरकर। रीमा अमरापुरकर डायरेक्शन के फील्ड में एक्टिव हैं।

3 नवंबर 2014 को फेंफड़ों के कैंसर के चलते कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल में सदाशिव अमरापुकर की मौत हो गई थी। और जैसा कि सदाशिव अमरापुकर चाहते थे, उनका अंतिम संस्कार उनकी जन्म भूमि अहमद नगर में किया गया। 

आखिरी समय में बॉलीवुड ने सदाशिव को भुला दिया

फिल्म इंडस्ट्री के लगभग हर बड़े स्टार के साथ सिल्वर स्क्रीन शेयर कर चुके सदाशिव अमरापुकर की अंतिम यात्रा में बॉलीवुड से सिर्फ अभिनेता रज़ा मुराद और डायरेक्टर गोविंद निहलानी ही शामिल हुए थे। 

इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बॉलीवुड भी केवल चढ़ते सूरज को ही सलाम करने में विश्वास रखता है। कोई अभिनेता कितना टैलेंटेड है, ये बात यहां मायने नहीं रखती। 

लेकिन Meerut Manthan और इसके सभी पाठक Sadashiv Amrapurkar जी को कभी नहीं भूलेंगे। हमेशा इनका नाम सम्मान से लेंगे और फिल्म इंडस्ट्री को किए इनके योगदान के लिए इन्हें सैल्यूट करेंगे। जय हिंद।

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