50 Facts You Didn't Know about Sholay 1975 | शोले फिल्म की 50 अनसुनी कहानियां | Trivia

50 Facts You Didn't Know about Sholay 1975. बॉलीवुड की कल्ट क्लासिक फिल्म है शोले। बेहद शानदार स्टारकास्ट से सजी शोले ने जाने कितने ही रिकॉर्ड्स बनाए हैं। बेशक उनमें से बहुत से रिकॉर्ड्स टूट चुके हैं। लेकिन शोले के बनाए कुछ रिकॉर्ड्स आज भी कायम हैं। 

50-Facts-You-Didn't-Know-about-Sholay-1975
50 Facts You Didn't Know about Sholay 1975 - Photo: Social Media

3 करोड़ रुपए में बनकर तैयार हुई इस फिल्म ने लगभग साढ़े 45 करोड़ रुपए का कारोबार किया था। फिल्म की कहानी और फिल्म का म्यूज़िक, दोनों ही ज़बरदस्त हिट साबित हुए थे। अमिताभ और धर्मेंद्र की पॉप्युलैरिटी को शोले ने चरम पर पहुंचा दिया था।

Meerut Manthan आज आपको शोले फिल्म की मेकिंग से जुड़ी कुछ बेहद दिलचस्प कहानियां बताएगा। और हमें पूरा यकीन है कि आपको हमारी ये पेशकश ज़रूर पसंद आएगी। 50 Facts You Didn't Know about Sholay 1975.

पहली कहानी

शोले में अभिनेता मुश्ताक मर्चेंट ने भी काम किया है। मुश्ताक मर्चेंट उस ज़माने के फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर कैरेक्टर आर्टिस्ट व कॉमेडियन थे। 

हालांकि उन्हें कभी भी वो पहचान नहीं मिल पाई जो कोई भी अभिनेता अपने लिए चाहता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मुश्ताक मर्चेंट ने शोले में दो रोल निभाए थे।

शोले के मशहूर ट्रेन वाले सीन में मुश्ताक मर्चेंट ट्रेन ड्राइवर बने थे। वहीं फिल्म के गाने ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे में जब जय और वीरू एक पारसी आदमी की बाइक चुराते हैं तो उस पारसी आदमी का किरदार भी मुश्ताक मर्चेंट ने ही निभाया था। अभिनेता मुश्ताक मर्चेंट अब इस दुनिया में नहीं रहे। 27 दिसंबर 2021 को उनका निधन हो गया था।

दूसरी कहानी

आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरु में धर्मेंद्र शोले के ठाकुर बलदेव सिंह का रोल निभाना चाहते थे। लेकिन जब डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने धर्मेंद्र से कहा कि अगर तुम ठाकुर बलदेव सिंह का रोल निभाओगे तो संजीव कुमार वीरू का रोल निभाएंगे। और अगर ऐसा हुआ तो हिरोइन हेमा मालिनी संजीव कुमार के साथ रोमांस करेंगी।

ये वो वक्त था जब संजीव कुमार ने हेमा मालिनी को शादी के लिए प्रपोज़ किया था और धर्मेंद्र भी ये बात जानते थे। जबकी धर्मेंद्र खुद भी हेमा मालिनी से प्यार करते थे। रमेश सिप्पी के समझाने पर धर्मेंद्र मान गए और ठाकुर बलदेव सिंह का रोल निभाने की ज़िद छोड़कर वीरू का किरदार जीने के लिए तैयार हो गए।

तीसरी कहानी

शोले के मुख्य किरदारों का नाम जय और वीरू कैसे पड़ा ये भी बड़ा दिलचस्प है। दरअसल, सलीम खान जब इंदौर में रहा करते थे तो उनके दो दोस्त थे। जिनके नाम थे वीरेंद्र सिंह बियास जिन्हें सलीम खान प्यार से वीरू कहा करते थे।

जबकी सलीम खान के दूसरे दोस्त का नाम था जय सिंह राव कलेवर। जहां वीरेंद्र सिंह बियास उर्फ वीरू के पिता इंदौर की खजराना कोठी के जागीरदार हुआ करते थे तो वहीं जय सिंह राव पिंडारी योद्धा समाज से थे और उनके पिता सब्जियां उगाया करते थे।

सलीम खान की इन दोनों से ही बहुत बढ़िया दोस्ती थी। इसलिए इन दोनों के ही नाम पर सलीम खान ने शोले के मुख्य किरदारों को जय और वीरू नाम दे दिया।

चौथी कहानी

साल 1975 की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी शोले। शुरुआती असफलताओं के बावजूद शोले ने बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त सफलता हासिल की थी। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म को केवल एक ही Filmfare Award मिला था।

और वो था Best Editing का अवॉर्ड जो कि फिल्म के एडिटर MS Shinde को मिला था। उस साल ज़्यादातर फिल्मफेयर अवॉर्ड दीवार को मिले थे। और इत्तेफाक से दीवार में भी अमिताभ बच्चन ही मुख्य भूमिका में थे। जबकी दीवार की कहानी भी सलीम जावेद ने ही लिखी थी।

पांचवी कहानी

शोले के बाद अमज़द खान का निभाया गब्बर सिंह का किरदार बहुत ज़्यादा पॉप्युलर हुआ था। इस किरदार की पॉप्युलैरिटी का आलम क्या था इसका अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि ब्रिटैनिया बिस्किट ने अपने टीवी कमर्शियल में अमज़द खान के गब्बर सिंह के कैरेक्टर को ही पिक्चराइज़ किया था।

और भारतीय टीवी कमर्शियल के इतिहास में ये पहली दफा था जब किसी विलेन के किरदार को किसी टीवी कमर्शियल में मुुख्य भूमिका में लिया था। और ब्रिटैनिया का ये टीवी कमर्शियल ज़बरदस्त हिट रहा था। खासतौर पर बच्चों को ये कमर्शियल बहुत पसंद आया था।

छठी कहानी

शोले देख चुका लगभग हर आदमी ये बात मान चुका है कि फिल्म में सांभा का केवल एक ही डायलॉग है। पूरे पचास हज़ार। लेकिन ये सही नहीं है। फिल्म में सांभा के वास्तव में तीन डायलॉग हैं। 

फिल्म का वो सीन जब अहमद रामगढ़ से शहर आ रहा होता है तो गब्बर के गुंडे रास्ते में ताश खेल रहे होते हैं। उन गुंडों में सांभा भी होता है।और इस सीन में डायलॉग बोलता है,"चल बे जंगा। चिड़ी की रानी है।" 

तब दूसरा गुंडा कहता है कि चिड़ी की रानी तो ठीक है सांभा। वो देख। चिड़ी का गुलाम आ रहा है। इसके बाद ये लोग अहमद को पकड़कर गब्बर के पास ले जाते हैं। जहां सांभा गब्बर से कहता है,"सरदार, ये रामगढ़ का छोकरा है। स्टेशन जा रहा था। हमें रास्ते में मिला।"

सातवीं कहानी

शोले जब रिलीज़ हुई थी तो इसे बिल्कुल भी दर्शक नहीं मिल पा रहे थे। नौबत यहां तक आ गई थी कि सोमवार को सिनेमाघरों ने शोले को उतारने की तैयारी कर ली थी।

लेकिन शनिवार और रविवार को माउथ पब्लिसिटी ने शोले को लेकर सिने प्रेमियों के दिलों में इतनी उत्सुकता भर दी थी कि सोमवार को दर्शकों का हुजूम इस फिल्म को देखने के लिए उमड़ पड़ा। 

उसके बाद तो शोले ने इतिहास रच दिया। कुछ सिनेमाघरों ने तो शोले को कई सालों तक अपने यहां प्रदर्शित किया। सालों बाद शोले का रिकॉर्ड शाहरुख खान की डीडीएलजे ने तोड़ा था।

आठवीं कहानी

शोले के गब्बर सिंह का रोल निभाकर अमज़द खान ने अपना नाम हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया था। लेकिन 50 के दशक में भारत के ग्वालियर इलाके में वास्तव में एक डकैत हुआ करता था जिसका नाम गब्बर सिंह ही था।

कहा जाता है कि वो डकैत पुलिस वालों से बेहद नफरत करता था। जब भी कोई पुलिस वाला उसके चंगुल में फंस जाता था तो वो उनके नाक और कान काट लिया करता था।

नौंवी कहानी

शोले का ओरिजिनल बजट 3 करोड़ रुपए था। इस फिल्म ने लगभग 45 करोड़ रुपए की कमाई की थी। लेकिन साल 2014 में शोले को थ्रीडी में भी रिलीज़ किया गया था। और शोले को थ्रीडी में रिलीज़ करने के लिए 25 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।

वहीं फिल्म में सांभा का बहुत ही छोटा सा रोल निभाने वाले मैकमोहन ने 27 दफा बॉम्बे से बैंगलौर तक की यात्रा की थी। इस दौरान कई दफा वो ट्रेन से बैंगलौर पहुंचे थे और कई दफा फ्लाइट से भी उन्होंने बैंगलौर तक का सफर पूरा किया था।

दसवीं कहानी

शोले की कहानी जितनी पसंद की गई थी इसका म्यूज़िक भी उतना ही पसंद किया गया था। फिल्म में कुल छह गीत थे और इन सभी गीतों को महान गीतकार आनंद बक्षी जी ने लिखा था। जबकी फिल्म का संगीत दिया था आरडी बर्मन ने।

शोले में एक कव्वाली भी रखी गई थी जिसका टाइटल था "के चांद सा कोई चेहरा" और ये कव्वाली भी आनंद बक्षी जी ने ही लिखी थी। इस कव्वाली को रिकॉर्ड तो कर लिया गया था। 

लेकिन इसे शूट ना किया जा सका। और चूंकि शोले की लंबाई पहले ही काफी ज़्यादा हो चुकी थी तो फाइनली इस कव्वाली को फिल्म से हटा दिया गया।

एक और रोचक बात जो इस कव्वाली से जुड़ी है वो ये कि इस कव्वाली में गीतकार आनंद बक्षी ने भी अपनी आवाज़ दी थी। जबकी किशोर कुमार और मन्ना डे ने इस कव्वाली को गाया था। आप चाहें तो यूट्यूब पर इस कव्वाली को सुन भी सकते हैं।

11वीं कहानी

शोले के सूरमा भोपाली के किरदार को भला कौन भुला सकता है। महान कॉमेडियन जगदीप ने ये रोल निभाया था और इसी के साथ जगदीप भी भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गए। लेकिन सूरमा भोपाली के किरदार से भी एक रोचक किस्सा जुड़ा है।

दरअसल, पूरी फिल्म कंप्लीट होने के बाद सूरमा भोपाली का किरदार इसमें डाला गया था। और सलीम-जावेद ने काफी ज़िद करके सूरमा भोपाली के किरदार को फिल्म में डलवाया था। 

जबकी पहले रमेश सिप्पी इस किरदार को फिल्म में लेना ही नहीं चाहते थे। इस रोल के लिए जब पहली दफा जगदीप साहब को अप्रोच किया गया तो उन्होंने ये रोल निभाने से मना कर दिया। 

इसलिए जगदीप नहीं करना चाहते थे काम

जगदीप इसलिए ये रोल नहीं करना चाहते थे कि एक तो फिल्म पहले ही कंप्लीट हो चुकी थी और दूसरा ये कि जगदीप पहले इस फिल्म में असरानी का निभाया जेलर वाला रोल निभाना चाहते थे। वहीं प्रोड्यूसर जीपी सिप्पी ने ब्रह्मचारी फिल्म के पैसे भी उस वक्त तक जगदीप को नहीं दिए थे।

लेकिन सलीम जावेद के काफी मनाने पर आखिरकार जगदीप इस शर्त पर ये रोल निभाने को मान गए कि रोल चाहे छोटा ही क्यों ना हो, उन्हें उनकी पूरी फीस दी जाएगी और उनका पुराना बकाया भी चुकाया जाएगा। और आखिरकार जगदीप का निभाया सूरमा भोपाली का वो किरदार अमर हो गया।

12वीं कहानी

बहुत ही कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि किसी वक्त पर सलीम-जावेद सूरमा भोपाली के किरदार के लिए प्राण साहब को भी लेने पर विचार कर रहे थे। 

लेकिन रमेश सिप्पी ने उन्हें बताया कि प्राण साहब शायद उतनी बढ़िया भोपाली नहीं बोल पाएंगे जितनी की इस रोल के लिए चाहिए होगी।

चूंकि प्राण साहब पंजाबी हैं तो हो सकता है कि उनका पंजाबी एक्सेंट सूरमा भोपाली के किरदार पर हावी हो जाए। रमेश सिप्पी की बात सलीम-जावेद को समझ में आ गई और आखिरकार प्राण साहब को सूरमा भोपाली के किरदार में लेने का विचार उन्होंने ड्रॉप कर दिया।

हालांकि सालों बाद एक इंटरव्यू में प्राण साहब ने कहा भी था कि अगर उन पर भरोसा किया जाता तो वो इस रोल के लिए अपनी जान लड़ा देते।

13वीं कहानी

फिल्म में संजीव कुमार के कैरेक्टर का नाम ठाकुर बलदेव सिंह कैसे पड़ा, इसके पीछे का किस्सा छोटा लेकिन दिलचस्प है। दरअसल, सलीम खान के ससुर यानि सलमा खान के पिता का नाम ठाकुर बलदेव सिंह ही था। 

वो पेशे से एक डेंटिस्ट थे और मुंबई के माहिम इलाके में उनका क्लीनिक हुआ करता था। सलीम खान ने उन्हीं के नाम पर उस कैरेक्टर का नाम ठाकुर बलदेव सिंह रखा था।

14वीं कहानी

शोले के डायरेक्टर थे रमेश सिप्पी। लेकिन रमेश सिप्पी से भी पहले सलीम-जावेद उस ज़माने के मशहूर डायरेक्टर मनमोहन देसाई के पास गए थे। 

मगर चूंकि उन दिनों मनमोहन देसाई चाचा भतीजा फिल्म की शूटिंग में बिज़ी थे तो उन्होंने शोले को डायरेक्ट करने से इन्कार कर दिया। इत्तेफाक से चाचा भतीजा में धर्मेद्र ही काम कर रहे थे। और इस फिल्म की कहानी भी सलीम जावेद ने ही लिखी थी।

15वीं कहानी

किसी ज़माने में सलीम-जावेद ने प्रोड्यूसर जीपी सिप्पी को मजबूर फिल्म की कहानी बेची थी। उसी दौरान ही सलीम-जावेद ने जीपी सिप्पी को चार लाइनों में लिखे शोले के आइडिया को भी बेचा था।

आपको जानकर हैरत होगी कि सलीम जावेद ने महज़ डेढ़ लाख रुपए में शोले का ये आइडिया सेल किया था। जबकी मजबूर के लिए उन्होंने जीपी सिप्पी से दो लाख रुपए लिए थे। हालांकि बाद में जीपी सिप्पी ने प्रोड्यूसर प्रेमजी को मजबूर फिल्म की कहानी बेच दी थी।

फिर साल 1972 में जब सीता और गीता की सक्सेस पार्टी हो रही थी तो उसमें जीपी सिप्पी ने अपने बेटे रमेश सिप्पी से कहा था कि हेमा मालिनी और धर्मेंद्र को लेकर उन्हें कोई एक्शन फिल्म बनानी चाहिए। इस तरह शोले फिल्म की नींव पड़ी थी।

16वीं कहानी

साल 2007 में राम गोपाल वर्मा ने "राम गोपाल वर्मा की आग" नाम से एक फिल्म बनाई थी जो कि शोले की रीमेक ही थी। उस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने गब्बर का रोल निभाया था। 

ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही थी। और बिना इजाज़त शोले का रीमेक बनाने की वजह से राम गोपाल वर्मा पर अदालत ने साल 2015 में 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था।

17वीं कहानी

फिल्म में अभिनेता मैकमोहन का निभाया सांभा का किरदार भी हमेशा के लिए यादगार बन गया। सांभा का ये रोल इतना ज़्यादा चर्चित हुआ था कि सिप्पी ग्रुप ने तो इसी नाम से एक फिल्म बनाने की घोषणा कर दी थी जिसमें उन्होंने मैकमोहन को ही लीड रोल में लेने की बात कही थी।

लेकिन ये फिल्म कभी नहीं बन पाई। फिर साल 2010 में आई फिल्म "अतिथि तुम कब जाओगे" में भी सांभा का किरदार रखे जाने पर विचार किया गया था। अपने किरदार को शूट करने के लिए मैकमोहन फिल्म के सेट पर भी गए।

लेकिन सेट पर ही उनकी बहुत ज़्यादा तबियत खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। दरअसल, उन दिनों मैकमोहन कैंसर से जूझ रहे थे। बाद में मैकमोहन के किरदार सांभा को रिप्लेस करके विजू खोटे के निभाए कालिया के किरदार को "अतिथि तुम कब जाओगे" में शामिल किया गया था।

18वीं कहानी

15 अगस्त 1996 को पहली दफा शोले फिल्म को दूरदर्शन पर टैलिकास्ट किया गया था। इत्तेफाक से ये शोले फिल्म की 21वीं सालगिरह भी थी। 

जैसे ही ये खबर फैली कि शोले टीवी पर आ रही है, देश के कई हिस्सों में उस वक्त एकदम सन्नाटा पसर गया था जब शोले टीवी पर आनी शुरु हुई थी। लोगों ने इस फिल्म को टीवी पर पहली दफा देखने के लिए अपने काम से छुट्टी ले ली थी।

19वीं कहानी

फिल्म में अमिताभ बच्चन के अपोज़िट उनकी पत्नी जया बच्चन नज़र आई थी। शोले की शूटिंग से पहले ही अमिताभ और जया की शादी हो चुकी थी। 

जिस वक्त जया बच्चन अपने रोल की शूटिंग कर रही थी उस वक्त वो गर्भवती थी और उनके गर्भ में उनकी बेटी श्वेता बच्चन थी। 

और इत्तेफाक से जब शोले रिलीज़ हुई थी तो उस वक्त जया बच्चन दोबारा गर्भवती हो चुकी थी और इस दफा इनके गर्भ में बेटा अभिषेक बच्चन था।

20वीं कहानी

साल 1995 में रिलीज़ हुई फिल्म अंदाज़ अपना अपना में सलीम खान के बेटे सलमान खान ने बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। 

बताया जाता है कि सलमान खान जब अंदाज़ अपना अपना के प्रेम के रोल के लिए ऑडिशन देने आए थे तो उनसे पूछा गया था कि क्या उन्होंने शोले फिल्म देखी है।

तब सलमान खान ने जवाब दिया कि हां, मैंने 10 दफा शोले फिल्म देखी है। इत्तेफाक से उस वक्त आमिर खान भी वहां मौजूद थे। उन्होंने मज़ाक मज़ाक में सबके सामने कहा कि इसके बाप ने ही तो लिखी है।

21वीं कहानी

शोले फिल्म की मेकिंग के दौरान ही अमज़द खान और लेखक जोड़ी सलीम-जावेद के बीच मतभेद होने शुरू हो गए थे। एक वक्त वो था जब जावेद अख्तर खुद अमज़द खान को गब्बर सिंह का रोल निभाने के लिए लेकर आए थे। 

लेकिन बाद में जावेद अख्तर ही उन्हें फिल्म से निकलवाना चाहते थे।दरअसल, सलीम खान और जावेद अख्तर को अमज़द खान की आवाज़ गब्बर सिंह के कैरेक्टर के मुताबिक नहीं लग रही थी। 

अमज़द खान को जब पता चला कि सलीम-जावेद उन्हें फिल्म से निकलवाना चाहते हैं तो उन्हें बहुत बुरा लगा और उन्होंने सलीम-जावेद से बात करना लगभग बंद ही कर दिया।

फिल्म के प्रीमियर के दौरान सलीम खान ने काफी शराब पी रखी थी। और नशे में वो अमज़द खान से भिड़ गए। दोनों के बीच तीखी बहस होने लगी। बताया जाता है कि दोनों के बीच हाथापाई भी होने वाली थी।

लेकिन तभी अमिताभ बच्चन ने इन दोनों को शांत कराया। अगले दिन सलीम खान ने अपनी गलती के लिए अमज़द खान से माफी भी मांगी। लेकिन अमज़द ने दोबारा कभी सलीम-जावेद की लिखी किसी फिल्म में काम नहीं किया।

22वीं कहानी

साल 2007 में जब आईफा अवॉर्ड्स में धर्मेंद्र को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया जा रहा था तो उस वक्त स्टेज पर अमिताभ बच्चन भी मौजूद थे। 

उस वक्त अमिताभ बच्चन ने धर्मेंद्र को धन्यवाद करते हुए कहा था कि अगर धर्मेंद्र ने उनके नाम की सिफारिश ना की होती तो वो कभी भी शोले का हिस्सा नहीं बन पाते।

दरअसल, सलीम-जावेद ने जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा को फाइनल करा लिया था। लेकिन चूंकि सिप्पी कैंप में धर्मेंद्र की तगड़ी बात थी तो उन्होंने जय के रोल के लिए अमिताभ बच्चन के नाम की सिफारिश की।

और प्रोड्यूसर जीपी सिप्पी ने धर्मेंद्र के कहने पर शत्रुघ्न सिन्हा को हटाकर अमिताभ को इस रोल के लिए साइन कर लिया। 

दरअसल, अमिताभ व धर्मेंद्र इसी साल यानि 1975 की अप्रैल में रिलीज़ हुई चुपके चुपके में साथ काम कर चुके थे। और इस दौरान इन दोनों की बढ़िया दोस्ती भी हो गई थी।

23वीं कहानी

फिल्म शोले जब शुरू होती है तो क्रेडिट्स में अमज़द खान के नाम के लिए इंट्रोड्यूज़िंग अमज़द खान लिखा गया था। इसका मतलब हुआ कि अमज़द खान की पहली फिल्म शोले ही थी। 

जबकी ये बात सही नहीं है। शोले से भी लगभग दो साल पहले रिलीज़ हुई चेतन आनंद की फिल्म हिंदुस्तान की कसम में अमज़द खान पाकिस्तानी एयरफोर्स के पायलट का किरदार निभा चुके थे।

24वीं कहानी

शोले की कहानी और डायलॉग्स कितने पसंद किए गए थे इसका अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि जब शोले के ऑडियो कैसेट्स बाज़ार में लॉन्च किए गए तो लोगों ने इन्हें जमकर खरीदा। 

लोग अक्सर अपने घर में बैठे शोले के डायलॉग्स और इसकी कहानी टेप रिकॉर्डर पर सुना करते थे। कई लोग तो ऐसे भी थे जो काम के साथ साथ शोले की कैसेट चला देते थेे और साथ साथ काम करते रहते थे।

25वीं कहानी

शोले में सूरमा भोपाली बने जगदीप का किरदार इतना ज़्यादा पसंद किया गया था कि साल 1988 में इन्होंने एक फिल्म में काम किया जिसका नाम ही सूरमा भोपाली था। 

और उस फिल्म में जगदीप ही लीड रोल में थे। इसके बाद अंदाज़ अपना अपना में भी जगदीप ने एक भोपाली का ही किरदार निभाया था।शोले के सूरमा भोपाली का किरदार जावेद अख्तर ने लिखा था।

दरअसल, जावेद अख्तर खुद भी भोपाल से हैं। भोपाल में वो एक ऐसे ही आदमी को जानते थे जो एकदम उसी अंदाज़ में बोलता था जैसे कि शोले का सूरमा भोपाली बोलता है।

26वीं कहानी

शोले की ज़्यादातर शूटिंग बैंगलौर के पास रामनगरम इलाके में हुई थी। उस इलाके में चारों तरफ ग्रेनाइट की चट्टानें हैं। इन्हीं चट्टानों के बीच की एक लोकेशन पर गब्बर के ठिकाने का सेट लगाया गया था।

जिस वक्त शोले की शूटिंग हुई थी उस वक्त इस इलाके में रहने वाले लोगों ने फिल्म यूनिट को काफी सपोर्ट किया था। लोगों ने डायरेक्टर रमेश सिप्पी के नाम पर रामनगरम के एक इलाके का नाम सिप्पी नगर रख दिया था।

आज भी उस इलाके को सिप्पी नगर ही कहा जाता है। एक और रोचक बात जो इस जगह से जुड़ी है वो ये कि ठाकुर का घर गब्बर के चट्टानों वाले इलाके के ऊपर ही मौजूद था। 

लेकिन फिल्म देखने पर हमें लगता है मानो ठाकुर किसी गांव में रहता है और गब्बर उस गांव से बहुत दूर किसी बीहड़ में रहता है।

27वीं कहानी

शोले में हेमा मालिनी के बॉडी डबल की हैसियत से रेशमा पठान नाम की महिला ने काम किया था। 70 और 80 के दशक में रेशमा पठान ने लगभग हर हिरोइन के बॉडी डबल के तौर पर स्टंट्स किए थे। 

उस ज़माने में रेशमा पठान बॉलीवुड की नामी स्टंट वुमन हुआ करती थी। शोले का वो सीन जिसमें हेमा मालिनी गब्बर के गुंडों से बचने के लिए अपने तांगे को भगाती है, वो रेशमा पठान पर ही शूट किया गया था। 

लेकिन इस सीन को शूट करते वक्त तांगा पलटने की वजह से रेशमा पठान बुरी तरह से घायल हो गई थी। रमेश सिप्पी को लगा कि शायद अब रेशमा वापस शूटिंग पर नहीं आ पाएंगी। 

इसलिए उन्होंने वो सीन ही हटाने का फैसला कर लिया था। लेकिन कुछ ही दिनों बाद रेशमा फिर से शूटिंग पर लौट आई और इस दफा उन्होंने वो सीन पूरा शूट कर ही लिया।

28वीं कहानी

शोले में कालिया का किरदार निभाने वाले विजू खोटे ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो अपने रोल के लिए ऑडिशन देने आए थे तो रमेश सिप्पी के ऑफिस के बाहर उनकी मुलाकात अमज़द खान से हुई थी। 

अमज़द ने विजू से कहा,"विजू, कर ले यार। बहुत अच्छा रोल है।" कुछ महीनों बाद विजू को पता चला था कि इस रोल के लिए अमज़द खान ने ही रमेश सिप्पी को उनका नाम सुझाया था।

दरअसल, पहले रमेश सिप्पी ने एक स्टंटमैन को इस रोल के लिए साइन किया था। ये सोचकर कि छोटा सा रोल है। कोई भी कर लेगा। रमेश सिप्पी ने उस स्टंटमैन के साथ शूटिंग करने की कोशिश भी की। 

लेकिन वो स्टंटमैन एक्टिंग के मामले में कमज़ोर साबित हुआ।तब रमेश सिप्पी ने कहा कि इस रोल को किसी ऐसे इंसान से ही कराना पड़ेगा जो एक्टिंग करना जानता हो। 

फिर जब अमज़द खान ने विजू खोटे का नाम सुझाया तो रमेश सिप्पी ने विजू को ऑडिशन के लिए बुला लिया और कालिया के रोल के लिए उन्हें फाइनल भी कर लिया। और आखिरकार कालिया का वो रोल भी अमर हो गया।

29वीं कहानी

आपको जानकर हैरानी होगी कि शोले की शूटिंग पूरी होने के बाद जब इसे सेंसर बोर्ड के पास भेजा गया तो सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को रिलीज़ करने देने से इन्कार कर दिया। सेंसर बोर्ड का मानना था कि फिल्म के क्लाइमैक्स में बहुत ज़्यादा वॉयलेंस है।

ऐसे में रमेश सिप्पी केवल ज़रूरी कलाकारों को साथ लेकर फिर से रामनगरम वापस गए और उन्होंने फिल्म का आखिरी सीन दोबारा शूट किया। इस दफा गब्बर सिंह को फिल्म में मरते हुए नहीं दिखाया गया।

30वीं कहानी

शोले फिल्म का वो सीन जिसमें वीरू बसंती को बंदूक चलाना सिखाता है और अमिताभ बच्चन यानि जय इस सीन में वीरू की टांग खींचता है। इस सीन में जय वीरू को कहता है कि जेम्स बॉन्ड के पोते हैं। लेकिन पहले जय ने यहां पर एक दूसरा डायलॉग बोला था। 

जय ने वीरू की टांग खींचते हुए कहा था कि तात्या टोपे के पोते हैं। लेकिन बाद में इस डायलॉग को किन्हीं कारणों से बदल दिया गया था और इसमें तात्या टोपे की जगह जेम्स बॉन्ड का नाम डाला गया था।

31वीं कहानी

शोले एक मल्टीस्टारर फिल्म थी। धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार जैसे सितारों से सजी फिल्म को देखने वाले दर्शकों में अक्सर ऐसे लोग हुआ करते थे जो या तो धर्मेंद्र के लिए फिल्म देखने जाते थे। 

या फिर अमिताभ बच्चन के लिए फिल्म देखने जाते थे। संजीव कुमार का अपना फैन बेस हुआ करता था और उनके फैंस केवल उनके लिए ये फिल्म देखने थिएटरों तक जा रहे थे। 

जबकी हेमा मालिनी को चाहने वाले लोग उनके लिए शोले फिल्म देखने जा रहे थे। मगर फिल्म खत्म होने के बाद जब ये लोग सिनेमा घरों से बाहर निकलते थे तो गब्बर यानि अमज़द खान के फैंस बनकर लौटते थे।

32वीं कहानी

ये जानकर आपको हैरानी होगी कि शोले में ठाकुर का रोल निभाने वाले महान अभिनेता संजीव कुमार पहले गब्बर सिंह का रोल निभाना चाहते थे। 

लेकिन सलीम-जावेद की जोड़ी को संजीव कुमार का गब्बर का रोल निभाना किसी एंगल से सही नहीं लग रहा था। इसलिए उन्होंने संजीव कुमार से साफ कह दिया कि आप गब्बर का रोल तो निभा ही नहीं सकते। 

फिर एक दिन संजीव कुमार ने अपने बाल रंगे और अपने दांतों पर भी कुछ धब्बे लगाए। और फिर वो वापस रमेश सिप्पी व सलीम-जावेद के पास गए।

मगर रमेश सिप्पी को संजीव कुमार गब्बर के रोल के लिए कहीं से भी फिट नहीं लगे। जबकी सलीम जावेद तो पहले ही उन्हें मना कर चुके थे। आखिरकार उन्हें ठाकुर का रोल ही निभाना पड़ा।

33वीं कहानी

लेखक सलीम खान चाहते थे कि इस फिल्म का नाम शोले ना रखकर अंगारे रखा जाए। लेकिन बाद में उन्होंने ही अंगारे की जगह शोले टाइटल इस फिल्म को देने का आइडिया दिया। साथ फिल्म के गीत महबूबा महबूबा से भी एक किस्सा जुड़ा है।

पहले ये गीत किशोर कुमार गाने वाले थे। लेकिन जिस दिन इस गीत की फाइनल रिकॉर्डिंग होने वाली थी उस दिन किशोर दा स्टूडियो में पहुंच ही नहीं पाए।

चूंकि आर डी बर्मन इस गीत का स्क्रैच रिकॉर्ड कर ही चुके थे तो फाइनल रिकॉर्डिंग भी उन्होंने खुद ही करने का फैसला किया। और आर डी बर्मन का गाया महबूबा महबूबा आज भी अपनी यूनीकनेस के लिए जाना जाता है।

34वीं कहानी

जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि शोले फिल्म के कालिया के रोल के लिए पहले रमेश सिप्पी ने एक स्टंटमैन को हायर किया था। लेकिन जब वो स्टंटमैन एक्टिंग नहीं कर सका तो रमेश सिप्पी ने फैसला किया कि कालिया का रोल किसी ट्रेंड एक्टर से ही कराया जाएगा।

रमेश सिप्पी की पहली पसंद उस ज़माने के नामी कैरेक्टर आर्टिस्ट हबीब थे। लेकिन चूंकि हबीब उन दिनों अफगानिस्तान में धर्मात्मा फिल्म की शूटिंग में बिज़ी थे तो वो कालिया का रोल नहीं कर पाए।

हालांकि जब हबीब धर्मात्मा फिल्म के अपने सीन शूट करके अफगानिस्तान से लौटे तो वो तुरंत रमेश सिप्पी के पास गए। तब रमेश सिप्पी ने हबीब को हीरा का रोल दिया। हीरा वही हथियारों का स्मगलर था जो गब्बर को हथियार मुहैया कराता है। और महबूबा महबूबा सॉन्ग में वो गब्बर के साथ नज़र आता है।

35वीं कहानी

इस Article में ही हमने आपको बताया था कि सलीम जावेद और रमेश सिप्पी ने सूरमा भोपाली के रोल के लिए प्राण साहब के नाम पर विचार किया था। 

लेकिन बाद में प्राण साहब की जगह जगदीप को सूरमा भोपाली का वो ऐतिहासिक रोल मिल गया। लेकिन शोले की अनाउंसमेंट के बाद फिल्मी गलियारों और मीडिया में ये अफवाहें उड़ने लगी कि प्राण साहब को शोले में ठाकुर के रोल के लिए साइन किया जा सकता है। 

मगर रमेश सिप्पी ने ऐसा नहीं किया। क्योंकि रमेश सिप्पी को लगता था कि ठाकुर के रोल के लिए संजीव कुमार से बेस्ट कोई और हो ही नहीं सकता।

36वीं कहानी

अभिनेता सचिन पिलगांवकर ने शोले में अहमद का रोल निभाया था। इस रोल के लिए सचिन को खुद रमेश सिप्पी ने सिलेक्ट किया था। 

दरअसल, साल 1968 में अपने पिता जीपी सिप्पी की प्रोड्यूस की फिल्म ब्रह्मचारी में रमेश सिप्पी ने सचिन को एक इमोशनल सीन करते देखा था।उस फिल्म में सचिन ने चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से काम किया था। 

उसी वक्त से रमेश सिप्पी सचिन पिलगांवकर की एक्टिंग को पसंद करते थे। फिर जब शोले की कास्टिंग शुरु हुई तो रमेश सिप्पी के मन में सबसे पहला नाम सचिन पिलगांवकर का ही आया। 

सेंसर बोर्ड ने कटवाया था सचिन का एक सीन

सचिन ने भी शोले के अहमद का वो रोल तुरंत लपक लिया था। अहमद को गब्बर सिंह मार डालता है। अगर आप अपनी मेमोरी को फिर से बैक स्क्रॉल करेंगे तो आपको याद आएगा कि सचिन की मौत का सीन फिल्म में नहीं दिखाया गया था। दरअसल, सेंसर बोर्ड की आपत्ति के चलते उस सीन को फिल्म से हटा दिया गया था। 

लेकिन 90 के दशक में सचिन के पैरोडी शो एक दो तीन के छोले नाम के एपिसोड में अहमद की मौत का सीन दिखाने के लिए रमेश सिप्पी से स्पेशल परमिशन ली गई थी। इस तरह शोले के अहमद की मौत का वो सीन पहली दफा पब्लिक को दिखाया गया था।

सचिन और शोले का एक दिलचस्प किस्सा कुछ यूं है कि सचिन ने शोले में काम करने के बदले कोई फीस नहीं ली थी। लेकिन तब प्रोड्यूसर रमेश सिप्पी ने सचिन को तोहफे में एक एसी गिफ्ट किया था। जो कि सचिन की ज़िंदगी का पहला एसी था।

37वीं कहानी

शोले फिल्म में धर्मेंद्र का बोला गया डायलॉग बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना आज भी लोग बोलते हुए सुने जाते हैं। इस डायलॉग की भी अपनी एक कहानी है। दरअसल, ओरिजनली ये डायलॉग इस तरह बोलना ही नहीं था। 

असली डायलॉग था,"बसंती तुम नहीं नाचना।" लेकिन जब धर्मेंद्र ने अमज़द खान का वो डायलॉग सुना जिसमें वो सांभा से कहते हैं कि उठा बंदूक और लगा निशाना इस कुत्ते पर तो धर्मेंद्र को लगा कि उनके फैंस को ये पसंद नहीं आएगा।

धर्मेंद्र ने रमेश सिप्पी से बात की और कहा कि वो अपने डायलॉग में भी कुत्ते शब्द का इस्तेमाल करेंगे। रमेश सिप्पी ने इसकी मंज़ूरी दे दी और इस तरह ये डायलॉग हमेशा के लिए यादगार बन गया।

38वीं कहानी

सोल्जर फिल्म वाला जोजो तो आपको याद ही होगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि जोजो का कनेक्शन भी शोले फिल्म से जुड़ा है। दरअसल, जोजो का पूरा नाम जीतू वर्मा है। 

उनके पिता जयदेव वर्मा मूलरूप से राजस्थान के रहने वाले थे और फिल्मों की शूटिंग के लिए घोड़े प्रोवाइड कराया करते थे। शोले फिल्म में जितने भी घोड़े आपने देखे होंगे वो सब जीतू वर्मा के पिता जयदेव वर्मा ने ही प्रोवाइड कराए थे।

जयदेव वर्मा तो अब इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनके बेटे जीतू वर्मा आज भी एक्टिंग के साथ साथ घोड़ों के अपने फैमिली बिजनेस से जुड़े हैं।

39वीं कहानी

शोले फिल्म की शूटिंग के दौरान ही संजीव कुमार गुलज़ार साहब की फिल्म आंधी में भी काम कर रहे थे। संजीव कुमार साहब के शोले में काम करने से गुलज़ार परेशान हो गए थे। 

उन्हें लग रहा था कि शोले की वजह से संजीव कुमार उनकी फिल्म आंधी के लिए समय नहीं निकाल पाएंगे। एक दिन गुलज़ार संजीव कुमार से बोले,"आप ऐसी फिल्म में क्यों काम कर रहे हैं जिसमें इतने सारे हीरो हों और एक भी गाना आपके ऊपर ना हो। साथ ही आपके अपोज़िट कोई हिरोइन भी ना हो।" 

तब संजीव कुमार ने गुलज़ार साहब को जवाब दिया,"शोले में गब्बर के साथ मेरे चार सीन हैं। और ये चारों सीन बेहद पावरफुल हैं। ये सीन ही मेरे लिए काफी हैं।" 

बाद में जब गुलज़ार ने शोले देखी तो उन्होंने भी माना कि ये फिल्म वाकई में संजीव कुमार और अमज़द खान की ही फिल्म थी।

40वीं कहानी

ये तो आपने भी कहीं ना कहीं देखा, सुना या पढ़ा होगा कि शोले फिल्म में गब्बर सिंह के किरदार के लिए मुख्य विलेन के तौर पर पहली चॉइस डैनी थे। 

लेकिन चूंकि उन दिनों डैनी धर्मात्मा फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में अफगानिस्तान गए थे तो उन्होंने शोले फिल्म में काम करने से इन्कार कर दिया था।

डैनी के इन्कार करने के बाद ही गब्बर सिंह का ये रोल अमज़द खान के पास गया और अमज़द खान इस रोल को निभाकर अमर हो गए। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि डैनी से भी पहले गब्बर सिंह का ये रोल एक्टर प्रेमनाथ को ऑफर किया गया था। हालांकि प्रेमनाथ ने क्यों ये रोल नहीं निभाया, इसका पता हम नहीं लगा पाए।

41वीं कहानी

मुंबई के मिनर्वा थिएटर में शोले फिल्म पूरे पांच सालों तक दिखाई गई थी। उस वक्त ये एक रिकॉर्ड था। इससे पहले साल 1943 में कलकत्ता के एक थिएटर में बॉम्बे टॉकीज़ की किस्मत लगभग साढ़े तीन साल चली थी। 

और शोले ने इसी फिल्म का रिकॉर्ड तोड़ा था। सालों बाद डीडीएलजे ने शोले का रिकॉर्ड तोड़ा और मुंबई के ही मराठा मंदिर सिनेमा में ये फिल्म आज भी चल रही है।

42वीं कहानी

शोले फिल्म में बसंती का किरदार निभाने के बाद देशभर के लोगों ने ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी को बसंती कहना ही शुरू कर दिया। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि एक वक्त वो भी था जब हेमा मालिनी शोले फिल्म में काम करना ही नहीं चाहती थी।

वो दरअसल किसी तांगे वाली का किरदार निभाने में सकुचा रही थी। लेकिन जब रमेश सिप्पी ने हेमा मालिनी को समझाया और कहा कि ये फिल्म ज़बरदस्त कामयाब होगी तो आखिरकार हेमा मान गई।

43वीं कहानी

जैसा कि हम आपको बता ही चुके हैं कि संजीव कुमार हेमा मालिनी को पसंद करते थे और उनसे शादी भी करना चाहते थे। शोले फिल्म की शूटिंग शुरू होने से कुछ दिनों पहले ही संजीव कुमार ने हेमा मालिनी को शादी के लिए प्रपोज़ किया था।

लेकिन हेमा ने उनका प्रपोज़ल ठुकरा दिया था। संजीव कुमार को जब ये पता चला था कि हेमा का अफेयर शादीशुदा धर्मेंद्र से चल रहा है तो उन्हें बहुत बुरा लगा था। इस वजह से हेमा संग उनके रिश्ते काफी खराब हो गए थे।

और इसी कारण जब ये दोनों स्टार्स शोले की शूटिंग के लिए बैंगलौर के पास के एक इलाके में आए तो इन दोनों को अलग-अलग होटलों में ठहराया गया था।

44वीं कहानी

शोले के पॉप्युलर ट्रैक महबूबा महबूबा में हेलन का डांस बहुत पसंद किया गया था। ये वो वक्त था जब हेलन का करियर अपने ढलान की तरफ बढ़ चला था। 

वो अपने पति प्रेम नारायन अरोड़ा से अलग हो चुकी थी और उनकी माली हालत बहुत ज़्यादा खराब हो चुकी थी। उन्हीं दिनों हेलन की सलीम खान से दोस्ती हो गई थी। 

इसलिए सलीम खान ने हेलन को शोले फिल्म के इस गाने में डांस करने का मौका दिला दिया। जबकी पहले इस गाने के लिए जयश्री तलपड़े को लगभग फाइनल ही दिया गया था। हेलन के अपोज़िट इस गाने में एक्टर जलाल आग़ा नज़र आए थे।

45वीं कहानी

शोले फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र जान बूझकर गलतियां करते और कई टेक्स में अपने सीन्स पूरे करते थे। और धर्मेंद्र ये गलतियां उन सीन्स में करते थे जिनमें उन्हें हेमा मालिनी के साथ शूटिंग करनी पड़ती थी। 

बाद में खुलासा हुआ की धर्मेंद्र ये गलतियां इसलिए कर रहे हैं ताकि उन्हें हेमा के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक्त गुज़ारने का मौका मिले।

धर्मेंद्र की इस चाल को जब रमेश सिप्पी ने पकड़ लिया और उन्हें ऐसा करने से मना किया तो धर्मेंद्र ने दूसरा रास्ता निकाला। वो अपने और हेमा के सीन्स की शूटिंग के यूनिट मेंबर्स को गलतियां करने के लिए कहते और बदले में उन्हें पैसे दिया करते थे।

46वीं कहानी

जिस वक्त शोले फिल्म रिलीज़ हुई थी उस वक्त डाकुओं पर बनी कई फिल्में आ चुकी थी। लेकिन पहले की ज़्यादातर फिल्मों में डाकुओं को अक्सर धोती कुर्ता पहने और माथे पर तिलक लगाए ही दिखाया गया था। 

लेकिन रमेश सिप्पी अपनी फिल्म के डाकू को एकदम अलग लुक में देखना चाहते थे। अमज़द खान को जब रमेश सिप्पी की इस ख्वाहिश की जानकारी मिली तो वो मुंबई के चोर बाज़ार गए और वहां से आर्मी की एक पुरानी ड्रैस खरीद लाए। 

रमेश सिप्पी को अमज़द खान का ये आइडिया पसंद आया। उन्होंने अमज़द को गले लगा लिया और उनसे कहा कि तुम अपने सारे सीन इसी ड्रैस में शूट करना।

47वीं कहानी

शोले फिल्म के सिनेमैटोग्राफर द्वारका दिवेचा थे। उस ज़माने में द्वारका दिवेचा का फिल्म इंडस्ट्री में नाम हुआ करता था। द्वारका दिवेचा ने ही शोले फिल्म की लोकेशन को रमेश सिप्पी के साथ मिलकर फाइनल किया था। 

फिर जब शोले रिलीज़ हुई और बहुत बड़ी हिट साबित हुई तो रमेश सिप्पी ने द्वारका दिवेचा के काम से खुश होकर उन्हें एक फिएट कार तोहफे में दी थी।

48वीं कहानी

शोले जब रिलीज़ हुई थी तो उस ज़माने के कई दिग्गज फिल्म क्रिटिक्स ने इस फिल्म की बहुत आलोचना की थी। क्रिटिक्स ने इस फिल्म को हॉलीवुड फिल्मों की नकल बताया था। और कुछ हद तक ये बात सच भी थी। 

शोले के कई सीन्स कुछ बड़ी और नामी हॉलीवुड फिल्मों की नकल ही थे। लेकिन बाद में जब शोले सुपरहिट हो गई तो उन्हीं क्रिटिक्स के सुर अचानक बदल गए। अब उन क्रिटिक्स ने शोले को कल्ट क्लासिक कहना शुरू कर दिया।

49वीं कहानी

शोले फिल्म का गीत ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे आज भी दोस्ती का बहुत बड़ा गीत माना जाता है। इस गीत की शुरुआत एक सीटी से होती है जो गाने की मुख्य धुन को बजा रही है।

गाने में सीटी की ये आवाज़ निकाली थी मनोहारी सिंह ने। मनोहारी सिंह आरडी बर्मन के असिस्टेंट हुआ करते थे और कई सालों तक उन्होंने आरडी बर्मन के साथ काम किया था।

50वीं कहानी

फिल्म में वीरू के रोल में दिखे गरम धरम धर्मेंद्र की एक्टिंग का हर कोई कायल था। 80 परसेंट कॉमेडी और 20 परसेंट अग्रेशन से भरा वीरू का किरदार हर किसी को पसंद आया था। 

कई लोगों ने तो यहां तक दावा कर दिया था कि इस किरदार के लिए धर्मेंद्र का फिल्मफेयर अवॉर्ड पक्का हो गया है।

हालांकि ऐसा हो नहीं सका था। आपको जानकर हैरानी होगी कि शोले में धर्मेंद्र ने ज़रा भी मेकअप अपने चेहरे पर नहीं लगाया था। वो बिना किसी टचअप या मेकअप के ही पूरी फिल्म में नज़र आए थे।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Jaani Dushman 1979 15 Unknown Facts | जानी दुश्मन फिल्म की पन्द्रह रोचक बातें | Trivia

Gurbachchan Singh | पुरानी फिल्मों में दिखने वाला गुंडा जिसे लोग धर्मेंद्र का चेला कहते थे | Biography

Anup Jalota | Bhajan Samrat से जुड़े आठ बड़े ही रोचक और Lesser Known Facts