Daisy Irani Biography | किसी ज़माने की Famous Child Artist डेज़ी ईरानी की फिल्मी कहानी
Daisy Irani. भारतीय सिनेमा का वो नाम जिसे भुला पाना नामुमकिन है। ब्लैंड एंड व्हाइट ईरा की वो चाइल्ड एक्ट्रेस जिसे सालों तक सिने प्रेमी लड़का समझते रहे।
लेकिन हकीकत में वो एक लड़की थी। डेज़ी ईरानी के चमचमाते बचपन के पीछे एक स्याह काला सच भी था।
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Daisy Irani Biography Famous Child Artist - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज 50s और 60s के ज़माने की पॉप्युलर चाइल्ड एक्ट्रेस Daisy Irani की कहानी कहेगा। Daisy Irani फिल्मों में कैसे आई और इनका निजी जीवन कैसा रहा? ये सारी बातें आज हम और आप जानेंगे।
शुरुआती जीवन
17 जून 1950 को डेज़ी का जन्म मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था। डेज़ी की मां पेरिन ईरानी एक हाउस वाइफ थी।
इनके पिता नोशिर ईरानी बॉम्बे यानि मुंबई में एक ईरानी रेस्टोरेंट चलाते थे जिसका नाम था बी मेरवान। ये पांच भाई बहन थे। दो भाई सरोश और बमन व बहनें मेनका ईरानी, डेज़ी ईरानी और हनी ईरानी।
ऐसे शुरू हुआ था Daisy Irani का फिल्मी सफर
एक दिन डेज़ी अपने भाई की शर्ट पहने अपने घर के बाहर खेल रही थी। वहीं पर उस ज़माने के बड़े डायरेक्टर बिपिन गुप्ता की नज़र इन पर पड़ी।
बिपिन उन दिनों किसी ऐसे छोटे लड़के की तलाश में थे जो उनकी फिल्म में एक्टिंग कर सके। उन्होंने डेज़ी को देखा। उन्हें लगा कि घुंघराले बालों वाला ये छोटा बच्चा कोई लड़का ही है।
बिपिन डेज़ी के माता पिता से बात करने पहुंच गए। वहां उन्हें पता चला कि जिसे ये लड़का समझ रहे थे वो तो एक लड़की है।
उन्होंने सोचा कि क्या फर्क पड़ता है कि ये लड़की है। अगर इसके माता-पिता मान गए तो वो इससे लड़के की एक्टिंग ही करा लेंगे।
डेज़ी के पिता ने तो इन्कार कर दिया। लेकिन इनकी मां ने हामी भर दी और आखिरकार इनके पिता को भी मना ही लिया।
नामी कलाकारों संग की थी शुरुआती फिल्में
इस तरह ढाई साल की छोटी सी उम्र में डेज़ी ईरानी का एक्टिंग का सफर शुरू हो गया। वो फिल्म थी टकसाल जिसकी शूटिंग 1953 में शुरू हुई थी और 1956 में फिल्म रिलीज़ हो गई।
हालांकि इनकी साइन की दूसरी फिल्म बंदिश इनकी पहली फिल्म टकसाल से एक साल पहले यानि 1955 में ही रिलीज़ हो गई थी।
उस फिल्म में अशोक कुमार और मीना कुमारी जैसे बड़े और नामी स्टार्स थे। वहीं पहली फिल्म टकसाल में निरुपा रॉय और बलराज साहनी जैसे सितारों संग इन्होंने काम किया था।
भाई-बहन भी फिल्मों में आए थे
शुरुआती फिल्मों में डेज़ी ने छोटे लड़के का किरदार इतनी खूबसूरती से निभाया कि फिर तो हर फिल्ममेकर इन्हें लड़कों वाले रोल के लिए ही साइन करने लगा।
फिल्में ऑफर हुई तो पैसा भी आने लगा। पैसा आता देख इनकी मां ने इन्हें सख्ती से एक्टिंग के काम पर लगा दिया। इनके दूसरे भाई बहनों को भी एक्टिंग लाइन में डाला गया।
लेकिन कोई भी डेज़ी जितनी लोकप्रियता हासिल ना कर सका।
मां की सख्ती ने डाला बुरा असर
एक इंटरव्यू में डेज़ी ने बताया था कि इनकी मां पेरिन इनके साथ बेहद सख्ती से पेश आती थी। अगर ये अपने डायलॉग सही से नहीं बोलती थी तो इनकी मां इन्हें बुरी तरह डांटती थी।
कई दफा तो मां ने इनकी पिटाई भी की। अक्सर फिल्मों में इनके रोने वाले सीन फिल्माने से पहले इनकी मां इन्हें किसी ना किसी बात पर थप्पड़ लगा देती थी।
इनसे बहुत ज़्यादा काम कराया जाता था। ये कई शिफ्टों में काम करती थी। कई दफा तो नाइट शिफ्ट में भी इनसे काम कराया गया।
अगर ये गलती से सो जाती तो इनकी मां इनकी पिटाई कर देती थी। यही वजह है कि डेज़ी का बचपन बहुत कठिन माहौल में गुज़रा।
और जब डेज़ी बड़ी हुई तो उन्हें अपनी मां से नफरत होने लगी। हालांकि बाद में डेज़ी ने अपनी मां को माफ भी कर दिया।
Daisy Irani की प्रमुख फिल्में
डेज़ी की फिल्मों की बात करें तो इन्होंने एक ही रास्ता, देवता, भाई भाई, नया दौर, हम पंछी एक डाल के, भाभी, राज तिलक, कैदी नंबर 911, दो उस्ताद, धूल का फूल जैसी फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से काम किया था। और इन सभी फिल्मों में डेज़ी ने लड़के का रोल निभाया था।
फिल्मों में इतना ज़्यादा काम करने के कारण डेज़ी की पढ़ाई लिखाई सही से ना हो सकी। अपने दूसरे भाई बहनों से डेज़ी ने जो सीखा वही इनके जीवन में पढ़ाई के सबक के तौर पर दर्ज हुआ। भाई बहनों से ही इन्होंने अंग्रेजी बोलनी सीखी थी।
जब पंडित नेहरू ने डेज़ी के लिए लिखी चिट्ठी
साल 1957 में आई डेज़ी की फिल्म "हम पंछी एक डाल के" नेशनल अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई थी। फिल्म की स्टार कास्ट को दिल्ली बुलाया गया था।
डेज़ी भी अपनी मां के साथ दिल्ली गई। वहां इनकी मुलाकात देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुई। पंडित नेहरू से मुलाकात में इन्होंने अंग्रेजी का एक शब्द गलत बोला।
इस पर पंडित नेहरू ने इनकी मां से पूछा,"क्या ये पढ़ाई नहीं करती है?" इनकी मां ने पंडित नेहरू को बताया कि चूंकि फिल्मों में काम करने की वजह से इसे समय नहीं मिल पाता तो ये स्कूल में नहीं जा पाती। पंडित नेहरू को ये बात बहुत बुरी लगी।
उन्होंने इनकी मां से कहा,"पढ़ाई बेहद ज़रूरी है। इसे पढ़ाई कराइए।" पंडित नेहरू ने मुंबई के एक नामी स्कूल में दाखिले के लिए इनकी मां को एक सिफारिशी चिट्ठी भी दी। वो स्कूल था सांताक्रुज स्थित रोज़ मैनर गार्डन स्कूल।
पंडित नेहरू की वो चिट्ठी दिखाकर डेज़ी की मां ने इनका दाखिला उस स्कूल में करा दिया। इनकी उम्र को देखते हुए स्कूल वालों ने इन्हें चौथी क्लास में दाखिला दे दिया। लेकिन पढ़ाई लिखाई में इनका मन नहीं लगा।
चौथी क्लास में ये तीन बार फेल हो गई। और आखिरकार इन्होंने स्कूल छोड़ दिया। हालांकि इनकी मां ने इनके लिए घर पर ही ट्यूशन का इंतज़ाम कर दिया था। और वो इसलिए ताकि इनका डिक्शन और इनकी डायलॉग डिलीवरी एकदम दुरुस्त रह सके।
जवानी में ढल गया करियर
वक्त के साथ डेज़ी की उम्र बढ़ने लगी और इन्हें काम मिलना बंद होने लगा। जहां एक तरफ डेज़ी अपनी मां की सख्ताई से आज़ादी पाकर खुश थी तो वहीं पैसा आना बंद होने से इनकी मां बहुत दुखी थी।
कुछ फिल्मों में डेज़ी ने यंग एक्टर की हैसियत से भी काम किया था। शराबी(1964), आरज़ू(1965), आंखें(1968), तलाश(1969), पहचान(1970), कटी पतंग(1970) और गोमती के किनारे जैसी फिल्मों में इन्होंने एक जवान लड़की के किरदार निभाए।
KK Shukla से Love Marriage कर सेट हो गई Daisy Irani
साल 1971 में डेज़ी ने लेखक केके शुक्ला से लव मैरिज कर ली। इस तरह ये बन गई डेज़ी ईरानी शुक्ला। इनके तीन बच्चे हुए।
दो बेटियां वर्षा शुक्ला और रितु शुक्ला और बेटा कबीर शुक्ला। इन्होंने कभी भी अपने बच्चों को फिल्मों में काम करने लिए प्रोत्साहित नहीं किया।
बच्चों की परवरिश ढंग से हो सके इसलिए शादी के बाद डेज़ी ने खुद भी फिल्मों में काम करना छोड़ दिया था। इनका बेटा कबीर ज़ी टीवी में प्रोमो एडिटर की हैसियत से नौकरी करता है।
पति की मौत के बाद शुरू की दूसरी पारी
साल 1993 में डेज़ी के पति केके शुक्ला की मौत हो गई। पति की मौत के बाद डेज़ी टूट गई थी। वक्त काटना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा था।
ऐसे में सालों बाद डेज़ी ने एक बार फिर एक्टिंग शुरू करने का फैसला किया। साल 1995 में रिलीज़ हुई फिल्म अंहकार से डेज़ी ने एक्टिंग की अपनी सेकेंड इनिंग की शुरू की।
इसके बाद डेज़ी ने हाउसफुल, दिल तो बच्चा है जी, शीरीन फराद की तो निकल पड़ी और हैप्पी न्यू ईयर जैसी फिल्मों में भी काम किया।
अपनी दूसरी पारी में डेज़ी ने टीवी शोज़ में अधिक काम किया। इन्होंने संजीवनी और शरारत जैसे लोकप्रिय टीवी शोज़ में काम किया।
और टीवी शोज़ में भी ये नज़र आई थी। हालांकि पहली दफा इन्होंने नब्बे के दशक के चर्चित टीवी शो देख भाई देख में काम किया था।
बहनों ने भी कमाया नाम
डेज़ी ईरानी की निज़ी ज़िंदगी के बारे में हम आपको काफी कुछ पहले ही बता चुके हैं। इनकी बहन हनी ईरानी भी इनकी ही तरह चाइल्ड एक्ट्रेस रह चुकी हैं।
वहीं इनके भाई सरोश ने भी कुछ फिल्मों में काम किया है। इनकी बड़ी बहन मेनेका ईरानी भी एक्टिंग कर चुकी हैं। इनकी बहन मेनेका ईरानी ने स्टंट फिल्म मेकर कामरान खान से शादी की थी।
फराह खान और साजिद खान इनकी बड़ी बहन मेनेका ईरानी के ही बेटे हैं। वहीं इनकी छोटी बहन हनी ईरानी ने लेखक जावेद अख्तर से शादी की थी।
जावेद और हनी के बच्चे फरहान और ज़ोया व मेनेका ईरानी के बच्चे साजिद और फराह डेज़ी ईरानी के भाजें-भांजियां हैं।
क्रिश्चियैनिटी से हुई प्रभावित
ज़िंदगी में एक वक्त पर हनी ईरानी सिगरेट की लत से बहुत परेशान थी। ऐसे में एक दिन इनके किसी परिचित ने इन्हें बाइबिल पढ़ने को दी।
चमत्कारिक तौर पर बाइबिल पढ़ना शुरू करने के अगले ही दिन डेज़ी ईरानी ने सिगरेट पीना छोड़ दिया और आज तक इन्होंने सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाया।
इस घटना का असर इनके जीवन पर ये हुआ कि डेज़ी अब क्रिश्चियन धर्म की फॉलोवर बन चुकी हैं।
डेज़ी ईरानी को सैल्यूट
डेज़ी ईरानी के बारे में बताने के लिए और भी बहुत कुछ है। लेकिन एक ही आर्टिकल में इतनी सारी बातें कह पाना एक मुश्किल और चुनौतीपूर्ण काम है।
इसलिए डेज़ी ईरानी की ज़िंदगी की कुछ कहानियां हम किसी दूसरे आर्टिकल में आपको बताएंगे। उस आर्टिकल में हम आपको इनके जीवन से जुड़े कुछ दूसरे अनसुने फैक्ट्स भी बताएंगे।
फिल्म इंडस्ट्री में शानदार योगदान के लिए मेरठ मंथन डेज़ी ईरानी को सैल्यूट करता है। और साथ ही उनकी अच्छी सेहत की प्रार्थना भी करता है। जय हिंद।
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