Raju Srivastava | 10 Unknown Facts | राजू श्रीवास्तव की दस अनसुनी कहानियां
Raju Srivastava. भारत के दिग्गज स्टैंडअप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव अब नहीं रहे। जब भी राजू कैमरे पर आए, उन्होंने लोगों को जमकर हंसाया। भारत में स्टैंडअप कॉमेडी के शुरुआती दौर के स्टार रहे हैं राजू श्रीवास्तव।
टीवी शोज़ से लेकर लाइव शोज़ और फिल्मों तक में राजू ने अपने मसखरेपन से लोगों को गुदगुदाया। देश में जाने कितने लोग रहे होंगे जिन्होंने राजू श्रीवास्तव के कॉमेडी वीडियोज़ देखकर खुद का मनोरंजन किया होगा।
| Unknown Facts of Comedian Raju Srivastava - Photo: Social Media |
Meerut Manthan Raju Srivastava की कुछ अनसुनी कहानियां उनके फैंस और अपने दर्शकों को बताएगा। Raju Srivastava को मेरठ मंथन की तरफ से ये एक श्रद्धांजलि होगी।
पहली कहानी
राजू श्रीवास्तव का जन्म 25 दिसंबर 1963 को कानपुर में हुआ था। इनका असली नाम था सत्य प्रकाश श्रीवास्तव। इनके पिता का नाम था रमेश चंद्र श्रीवास्तव। और वो कानपुर के जाने-माने कवि हुआ करते थे।
लोग राजू के पिता को बलई काका कहकर पुकारते थे। छोटी उम्र से ही राजू को हंसने-हंसाने का बड़ा शौक था। स्कूल और कॉलेज में राजू अपने टीचर्स की जमकर नकल उतारा करते थे।
बोलने-चालने का राजू का अंदाज़ इतना अनोखा था कि अक्सर इन्हें कॉलेज में होने वाले क्रिकेट मैच की कमेंट्री करने के लिए बुलाया जाता था। आगे चलकर राजू की इसी आदत ने इन्हें एंटरटेनमेंट वर्ल्ड का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित भी किया।
दूसरी कहानी
जहां एक तरफ कानपुर शहर राजू श्रीवास्तव के टैलेंट को सर आंखों पर बैठा रहा था। तो वहीं इनकी मां इनसे बहुत ज़्यादा परेशान रहती थी। दरअसल, राजू जब अपने शहर कानपुर में मशहूर हो गए तो लोग अक्सर इन्हें घर में होने वाली छोटी-छोटी पार्टियों में बुलाने लगे थे। इन पार्टीज़ में राजू लोगों को हंसाने का काम करते थे।
और चूंकि ये पार्टियां रात में हुआ करती थी तो अक्सर ये अपने घर देर से ही पहुंचा करते थे। इससे राजू की मां सरस्वती श्रीवास्तव बहुत नाराज़ हो जाती थी और इनकी खूब क्लास भी लगाती थी। लेकिन ये हर बार मां को मनाकर कानपुर की पार्टीज़ अटैंड करने पहुंच ही जाया करते थे।
तीसरी कहानी
राजू श्रीवास्तव ने अपने जीवन में पहली फिल्म शोले देखी थी। जिस वक्त राजू ने शोले फिल्म देखी थी उस वक्त उनकी उम्र महज़ 12 साल ही थी। शोले फिल्म के बाद से ही राजू अमिताभ बच्चन के फैन हो गए थे।
शोले खत्म होने के बाद जब राजू थिएटर से बाहर निकले तो इन्होंने अपने घर के लिए अमिताभ का एक पोस्टर खरीदा। राजू ने अपना हेयरस्टाइल भी अमिताभ जैसा ही कर लिया।
एक दफा अमिताभ बच्चन के धोखे में राजू पुरानी हिरोइन अमिता की एक फिल्म देखने सिनेमा हॉल में चले गए। पूरी फिल्म में राजू अमिताभ बच्चन का इंतज़ार करते रहे। और फिर जब उस फिल्म में अमिताभ बच्चन राजू को नहीं नज़र आए तो इन्हें बहुत दुख हुआ था।
चौथी कहानी
राजू श्रीवास्तव को जब फिल्में देखने का शौक लगा तो ऐसा लगा कि ये स्कूल ना जाकर फिल्में देखने चले जाते थे। किसी दिन इनकी मां को भनक लग गई कि राजू स्कूल गोल करके फिल्में देखने चले जाते हैं।
उन्होंने राजू पर नज़र रखनी शुरू कर दी। इत्तेफाक से इसी दौरान रामलीला शुरू हो गई और इनकी माता ने इन्हें दोस्तों संग रामलीला देखने जाने की परमिशन दे दी।
एक दिन रामलीला ना जाकर रात का शो देखने ये एक सिनेमा हॉल पहुंच गए। लेकिन इनके किसी दोस्त ने ये बात इनकी मां तक पहुंचा दी। अगले दिन राजू की मां ने इनसे पूछा कि कल रामलीला में क्या हुआ था।
राजू ने डरते-डरते कहा कि कल राम-सीता विवाह हुआ था। इनकी मां ने इनके गाल पर एक चपत लगाई और कहा कि कल बारिश हुई थी। रामलीला तो कैंसल हो गई थी। राजू की ये चोरी पकड़े जाने के बाद इनकी बहुत क्लास लगी थी।
पांचवी कहानी
राजू श्रीवास्तव ने अपने जीवन का सबसे पहला स्टेज शो कानपुर के पास के एक इलाके में किया था। उस ज़माने में राजू अमिताभ बच्चन की मिमिक्री के लिए कानपुर और उसके आस-पास के इलाकों में मशहूर हो चुके थे।
राजू ने उस प्रोग्राम में खूब रंग जमाया। प्रोग्राम खत्म होने के बाद ऑर्गेनाइज़र ने राजू की मिमिक्री से खुश होकर इन्हें पचास रुपए दिए। लेकिन भोले-भाले राजू को लगा कि उन्हें ये पैसे रखने के लिए दिए गए हैं। अगले दिन राजू वो पचास रुपए उस ऑर्गेनाइज़र को लौटाने पहुंचे। पहले तो वो ऑर्गेनाइज़र हैरान रह गया।
लेकिन जब उसे सारा माज़रा समझ में आया तो वो हंसते हुए बोला कि ये पैसे तुम्हारे ही हैं। तुम्हारे काम का मेहनताना हैं ये पैसे। इस तरह राजू श्रीवास्तव की पहली कमाई वो पचास रुपए थी।
छठी कहानी
राजू श्रीवास्तव जब फिल्मों में अपनी किस्मत आज़माने कानपुर से मुंबई जा रहे थे तो इनकी मां को इनके किसी दोस्त ने बता दिया कि आज राजू स्टेशन पर है और मुंबई की ट्रेन में बैठने वाला है। इनकी मां तुरंत इन्हें ढूंढने स्टेशन पहुंच गई।
वहां खड़ी सभी ट्रेनों में राजू की मां इन्हें ढूंढने लगी। इत्तेफाक से एक ट्रेन में मां को राजू बैठे दिखाई दे गए। उन्होंने तभी इनका कान पकड़ा और इन्हें घर ले आई। और इस तरह एक दफा फिर राजू की घर पर जमकर डांट लगी। और राजू श्रीवास्तव की मुंबई जाने की पहली कोशिश भी नाकाम हो गई।
सातवीं कहानी
राजू जब मुंबई आए तो यहां इन्हें बेहद कड़े संघर्ष से गुज़रना पड़ा था। कुछ दिनों तक तो इन्होंने मुंबई में रहने वाले अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के घर शरण ली।
लेकिन जब वो दोस्त और रिश्तेदार किसी ना किसी बहाने से इन्हें अपने घर से निकाल देते तो राजू ने फैसला किया कि अब वो किसी के घर में नहीं रहेंगे। अपने दम पर मुंबई में अपनी लड़ाई लड़ेंगे।
इस वक्त तक राजू की दोस्ती जॉनी लीवर से हो चुकी थी। जॉनी लीवर को जब पता चला कि राजू के पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है तो उन्होंने राजू को अपने घर में रहने का ऑफर दिया था।
लेकिन राजू जॉनी के घर रहने कभी नहीं गए। उन्होंने मुंबई की एक झुग्गी में अपना पहला आशियाना बनाया था। घरवाले राजू को खर्च के लिए कुछ पैसे हर महीने भेजा करते थे।
लेकिन उन पैसों से राजू का गुज़ारा मुंबई में नहीं हो पा रहा था। ऐसे में राजू ने ऑटो चलाकर पैसे कमाने का फैसला किया। और फिर कई दिनों तक राजू ने मुंबई की सड़कों पर ऑटो रिक्शा चलाया था।
आठवीं कहानी
राजू श्रीवास्तव ने 80 के दशक के आखिरी सालों से ही एक्टिंग करना शुरू कर दी थी। अनिल कपूर की फिल्म तेज़ाब में इन्होंने एक बहुत छोटे से रोल से अपनी शुरुआत की थी।
तेज़ाब के बाद राजू ने मैंने प्यार किया, बाज़ीगर और कई दूसरी फिल्मों में ऐसे ही छोटे रोल्स किए। लेकिन फिल्मों से राजू को कभी भी पहचान और सफलता नहीं मिल सकी।
शक्तिमान के कुछ एपिसोड्स में भी राजू नज़र आए थे। काफी काम करने के बावजूद भी राजू को वो मुकाम हासिल नहीं हुआ था जिसकी ख्वाहिश लेकर ये कानपुर से मुंबई आए थे।
संघर्ष के दिनों में राजू लाइव शोज़ में स्टैंड अप कॉमडी करके अपना गुज़ारा करते थे। एक वक्त वो भी आया जब राजू अपने जॉक्स के ऑडियो कैसेट्स बनाकर रिलीज़ करने लगे। धीरे-धीरे राजू की ऑडियो कैसेट्स लोकप्रिय होने लगी।
फिर साल 2005 में जब "The Great Indian Laughter Challenge" नाम का भारत का पहला स्टैंड अप कॉमेडी शो शुरु हुआ तो राजू को इस शो से बहुत लोकप्रियता मिली। और आखिरकार राजू को वो सब हासिल हो गया जिसका ख्वाब कोई भी कलाकार देखता है।
नौंवी कहानी
राजू श्रीवास्तव को उनके गजोधर एक्ट के लिए काफी प्रसिद्धी मिली थी। ज़्यादातर लोग ये मानते हैं कि गजोधर कोई काल्पनिक किरदार था। लेकिन एक इंटरव्यू में राजू श्रीवास्तव ने खुद बताया था कि गजोधर कोई काल्पनिक किरदार नहीं बल्कि एक आदमी है जो उनके ननिहाल में रहा करता था।
बचपन में स्कूल की छुट्टियों में जब राजू श्रीवास्तव नानी के घर जाते थे तो वहीं पर एक नाई हुआ करता था जिससे इनके मामा इनके बाल कटाया करते थे।
उस नाई का नाम ही गजोधर था और वो नाई बातचीत के दौरान कई तरह के किस्से सुनाया करता था। बरसो बाद जब राजू श्रीवास्तव स्टैंडअप कॉमेडी में उतरे तो उन्होंने उसी गजोधर नाई के ऊपर अपना एक एक्ट लिखा और परफॉर्म किया। बस वहीं से गजोधर मशहूर हो गया।
दसवीं कहानी
राजू श्रीवास्तव राजनीति में भी अपनी जगह बनाना चाहते थे। और इसकी शुरुआत हो गई थी साल 2014 के लोकसभा इलैक्शन में। समाजवादी पार्टी ने अपने टिकट पर राजू श्रीवास्तव को कानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ाने का ऐलान किया था।
लेकिन बाद में राजू श्रीवास्तव ने ये कहकर समाजवादी पार्टी का टिकट वापस कर दिया कि स्थानीय समाजवादी नेताओं का सहयोग उन्हें नहीं मिल रहा है।
फिर राजू श्रीवास्तव ने बीजेपी जॉइन कर ली। बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने राजू श्रीवास्तव को स्वच्छ भारत अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया था।
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