Shammi Aunty | वो Bollywood Actress जिसे आपने सालों तक और सैकड़ों फिल्मों में देखा | Biography

Shammi Aunty. हिंदी सिनेमा की वो अदाकारा, जो पचास से भी ज़्यादा सालों तक फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव रही। जिसने लीड एक्ट्रेस से लेकर मां और दादी के किरदारों को भी बखूबी जिया। 

एक ग़रीब पारसी परिवार में पैदा हुई होनहार लड़की, जिसने ज़िंदगी की मुश्किलों से लड़कर दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाया।

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Shammi Aunty Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan आज Shammi Aunty की कहानी कहेगा। Shammi Aunty की ज़िंदगी की कहानी बड़ी ही रोचक है। और आज उनकी कहानी के कई अनसुने हिस्सों से हम और आप रूबरू होंगे।

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शुरुआती जीवन

शम्मी आंटी का जन्म 24 अप्रैल सन 1929 को एक पारसी परिवार में हुआ था। मां बाप ने इनका नाम रखा था नरगिस रबाड़ी। कुछ लोग कहते हैं कि इनका जन्म गुजरात में हुआ था।

इनके जन्म के बाद ही इनके पिता गुजरात से मुंबई आकर सैटल्ड हो गए थे। जबकी कई लोगों का मानना है कि ये मुंबई में ही पैदा हुई थी। 

इनके पिता एक प्रीस्ट थे और मुंबई के एक पारसी फायर टैंपल अग्यारी से जुड़े हुए थे। शम्मी आंटी उर्फ नरगिस रबाड़ी की एक बड़ी बहन भी थी जिनका नाम था नीना रबाड़ी और जो आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री की नामी डिज़ाइनर बनी थी। 

मुश्किलों में की मां ने परवरिश

नरिगस महज़ 3 साल की ही थी जब इनके पिता का निधन हो गया था। पिता की मौत के बाद इनकी मां ने इनकी और इनकी बहन की परवरिश की। 

उस ज़माने में ये साउथ मुंबई के परेल स्थित टाटा ब्लॉक में रहा करती थी जो कि टाटा ग्रुप की तरफ से उन दिनों ग़रीब पारसी परिवारों को उपलब्ध कराया जाता था। 

चूंकि इनके पिता प्रीस्ट थे तो पारसी समुदाय में रीति है कि एक प्रीस्ट की पत्नी को बढ़िया खाना पकाना ज़रूर आना चाहिए। 

इसलिए पति की मौत के बाद इनकी मां पारसी कम्यूनिटी में होने वाले धार्मिक उत्सवों में खाना पकाने का काम करने लगी थी। नरगिस की एक मौसी भी इनके साथ ही रहा करती थी। 

जब बहन संग बनाए टाटा कंपनी के खिलौने

नरिगस जब छठी क्लास में आई तो इनकी मां ने इनका और इनकी बहन का दाखिला एक ऐसे स्कूल में करा दिया जिसकी फीस 11 रुपए थी। 

उस ज़माने में 11 रुपए चुकाना भी कोई आसान काम नहीं था। नरगिस और इनकी बहन चाहती थी कि ये कोई काम करके अपने स्कूल की फीस का इंतज़ाम खुद ही कर लें। 

इनके घर के पास ही टाटा की एक वुडन टॉय फैक्ट्री हुआ करती थी। एक दिन ये दोनों बहनें उस फैक्ट्री में काम मांगने पहुंच गई। 

इनकी कहानी सुनने के बाद फैक्ट्री एडमिन ने इनसे कहा कि हम तुम्हें फुल टाइम नौकरी तो नहीं दे सकेंगे। लेकिन तुम दोनों रोज़ दो तीन घंटे काम करने आ जाया करो। 

हम तुम्हारे स्कूल की फीस चुका दिया करेंगे। इस तरह पहली बार नरगिस और उनकी बहन नीना ने टाटा की उस टॉय फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। 

जॉनसन एंड जॉनसन में भी किया था काम

पढ़ाई पूरी करने के बाद नरगिस की बहन नीना ने जॉनसन एंड जॉनसन में एज़ ए सेक्रेटरी नौकरी करना शुरू कर दिया। 

मैट्रिक पास करने के बाद नरगिस भी वहीं नौकरी करने लगी। नर्गिस एक टैबलेट के पैकिंग डिपार्टमेंट में काम करती थी। 

वो टैबलेट्स जो बिना पैक हुए मशीन से नीचे गिर जाती थी, ये उन्हें एक बोतल में इकट्ठा करती थी। और फिर वही टैबलेट्स मुंबई के अस्पतालों में मरीज़ों को मुफ्त में बांट दी जाती थी। नरगिस की तनख्वाह थी सौ रुपए महीना। 

दिलचस्प है फिल्मों में आने की कहानी

नरगिस रबाड़ी के फिल्मों में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। इनके एक जानकार, जिन्हें ये मामा कहकर पुकारती थी, वो दिग्गज फिल्ममेकर महबूब खान के साथ काम किया करते थे। 

इनके उस मामा की जान पहचान फिल्म इंडस्ट्री में काफी अच्छी हो गई थी। उस ज़माने के एक और दिग्गज एक्टर-प्रोड्यूसर शेख मुख्तार से भी इनके उस मामा की बढ़िया दोस्ती थी। 

मामा ने मिलाया शेख मुख्तार से

शेख मुख्तार उन दिनों अपनी एक अपकमिंग फिल्म में सेकेंड लीड के लिए एक नई एक्ट्रेस की तलाश में थे। इनके मामा ने इनसे पूछा कि क्या तुम फिल्मों में काम कर सकोगी। 

इन्होंने बिना देर किए मामा को हां कह दिया। अगले दिन इनके मामा इन्हें शेख मुख्तार के ऑफिस ले गए। शेख मुख्तार ने इनसे पूछा कि क्या इन्हें एक्टिंग आती है। 

इस पर इन्होंने शेख मुख्तार से कहा कि अभी तो मुझे एक्टिंग नहीं आती। लेकिन मैं जल्द ही एक्टिंग सीख सकती हूं। चूंकि ये पारसी थी तो शेख मुख्तार को लग रहा था कि शायद ये लड़की सही से हिंदी नहीं बोल पाएगी। 

बेबाकी ने दिला दिया काम

उन्होंने इनसे पूछा कि तुम हिंदी बोल सकोगी? इन्होंने जवाब दिया,"मैं इतनी देर से आपसे हिंदी में ही बात कर रही हूं। अब तक आपको पता चल गया होगा कि मैं हिंदी में सही से बात कर रही हूं या नहीं।" 

इनका ये जवाब सुनकर इनके मामा ने धीमे से इनसे कहा,"तुम बेवकूफ हो क्या? इतने बड़े आदमी से तुम कैसे बात कर रही हो?" 

जहां इनके मामा को लग रहा था कि अब तो इन्हें शायद ही काम मिल पाएगा। वहीं शेख मुख्तार इनकी बेबाकी से काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने नरगिस रबाड़ी को एज़ एन एक्टर काम पर रख लिया और इनकी सैलरी बनी पांच सौ रुपए महीना।

ऐसे नरगिस रबाड़ी से बनी शम्मी

नरगिस रबाड़ी की पहली फिल्म थी साल 1951 में रिलीज़ हुई उस्ताद पेड्रो। इसी फिल्म से ही इनका नाम नरगिस रबाड़ी से बदलकर शम्मी कर दिया गया था। 

फिल्म के डायरेक्टर हरीश ने इनसे कहा कि चूंकि फिल्म इंडस्ट्री में एक नरगिस पहले से ही काम कर रही है तो तुम्हारा नाम बदलना पड़ेगा। हरीश ने ही इनका नाम शम्मी रखा था। 

इस फिल्म में पहली दफा बनी थी हिरोइन

जिस वक्त इनकी पहली फिल्म रिलीज़ हुई थी उस वक्त इनकी उम्र महज़ 18 साल थी। इनके पहले डायरेक्टर इनकी खूबसूरती और इनकी एक्टिंग स्किल्स से खासे मुतास्सिर थे। 

हरीश ने ही इन्हें पहली दफा हिरोइन के तौर पर काम दिलाया था। वो फिल्म थी मल्हार जो कि साल 1951 में ही रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म को हरीश ही डायरेक्टर कर रहे थे। 

और फिल्म के प्रोड्यूसर थे महान प्लेबैक सिंगर मुकेश। यूं तो ये फिल्म कोई कमाल नहीं दिखा सकी। लेकिन फिल्म का संगीत लोगों को ज़रूर पसंद आया था। 

बतौर हिरोइन पहली फिल्म की असफलता ने शम्मी को निराशा के सागर में डुबो दिया। हालांकि एक अच्छी बात ये ज़रूर हुई थी कि उनके काम को क्रिटिक्स की तरफ से सरहाना ज़रूर मिली थी। 

दिलीप कुमार संग भी किया था रोमांस

शम्मी की तीसरी फिल्म थी संगदिल जिसमें उन्होंने दिलीप कुमार और मधुबाला के साथ काम किया था। फिल्म में दिलीप कुमार संग इनके कुछ रोमांटिक सीन्स थे। 

दिलीप साहब संग इन पर एक गाना भी फिल्माया गया था। लेकिन बदकिस्मती से संगदिल फ्लॉप हो गई। इसका नतीजा ये हुआ कि शम्मी को अगले कई महीनों तक फिल्मों में काम नहीं मिला। 

बेरोजगारी में उठाया ऐसा कदम

चूंकि अब तक शम्मी टाटा के उन सस्ते अपार्टमेंट्स से निकलकर बांद्रा के एक ठीक ठाक घर में आकर रहने लगी थी तो अब इनके लिए बेरोजगार होना और भी ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो चुका था। 

घर का खर्च शम्मी ही उठाती थी। 7 महीनों तक जब इन्हें कोई काम नहीं मिला तो इन्होंने अपने पास आने वाला हर तरह का किरदार स्वीकार करना शुरू कर दिया। 

इनके कई दोस्त, खासतौर पर नरगिस इनके इस फैसले से काफी नाराज़ हुई। नरगिस को लगता था कि हर रोल स्वीकार करके शम्मी अपनी वैल्यू कम कर रही हैं। 

लेकिन पैसों की ज़रुरत ने शम्मी को ये सब करने पर मजबूर कर दिया था। शम्मी के पास से हिरोइन का दर्जा चला गया और ये सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनकर ही रह गई। 

हर तरह का रोल करने के कारण शम्मी ने ढेर सारी फिल्मों में काम किया। 65 साल लंबे अपने फिल्मी करियर में शम्मी ने दो सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया था। 

इन्होंने कॉमेडी भी की और निगेटिव किरदार भी किए। इमोशनल कैरेक्टर्स में भी ये खूब नज़र आई। और गेस्ट अपीयरेंस भी इन्होंने काफी दिए।

पति से मिला गहरा दर्द

उम्र के तीसवें पड़ाव पर शम्मी ने सुल्तान अहमद से शादी की थी। इनके पति सुल्तान अहमद एक फिल्मकार थे। हालांकि शम्मी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनसे शादी करने से पहले सुल्तान अहमद कुछ नहीं थे। 

फिल्म इंडस्ट्री में उनके रुतबे का फायदा उठाकर ही सुल्तान अहमद ने अपनी थोड़ी बहुत पहचान बनाई थी। इनके पति सुल्तान अहमद ने हीरा और गंगा की सौगंध नाम से दो फिल्में बनाई थी। 

जिनमें सुनील दत्त, आशा पारेख और अमिताभ बच्चन जैसे नामी सितारे थे। शम्मी और इनके पति सुल्तान अहमद का रिश्ता बहुत लंबा नहीं चल पाया। 

और हो गई पति से अलग

चूंकि शम्मी मां नहीं बन पा रही थी तो शादी के सात साल बाद सुल्तान अहमद और शम्मी ने अलग होने का फैसला कर लिया। 

अपनी सारी जमा पूंजी अपने और अपना बंगला छोड़कर एक दिन शम्मी अपना सामान लेकर अपनी मां और बहन के पास आ गई। 

चूंकि नरगिस इनकी बहुत अच्छी दोस्त थी तो उन्होंने शम्मी को काफी समझाया कि इस तरह अपना सब कुछ मत छोड़ो। 

लेकिन सुल्तान अहमद से सारे रिश्ते खत्म करके आई शम्मी ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। सुल्तान अहमद से अपनी शादी को शम्मी अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल कहती थी।

फिर शम्मी बन गई Shammi Aunty

पति से अलग होने के बाद शम्मी ने फिर से दिल लगाकर फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। यही वो वक्त था जब ये शम्मी से बन गई शम्मी आंटी। 

फिल्मों के साथ साथ इन्होंने टीवी पर भी काफी काम किया। शम्मी ने इंडिपेंडेंटली फिल्म प्रोडक्शन में भी हाथ आज़माने की कोशिश की थी। 

साल 1985 में इन्होंने पिघलता आसमान नाम की फिल्म प्रोड्यूस की थी। फिल्म में शशि कपूर और राखी लीड रोल्स में थे। 

ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई और इससे शम्मी आंटी को बहुत ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। बाद में शम्मी आंटी ने फिर कभी फिल्म प्रोडक्शन का सोचा भी नहीं। 

यादों में हमेशा ज़िंदा रहेंगी Shammi Aunty

इन्होंने ढेर सारी फिल्मों में काम किया। हर बड़े स्टार्स और कई जेनेरशन के साथ सिल्वर स्क्रीन शेयर की। लेकिन बढ़ती उम्र के कारण शम्मी आंटी के शरीर ने उनका साथ छोड़ना शुरू कर दिया था।

आखिरी दफा शम्मी आंटी नज़र आई थी 2012 में रिलीज़ हुई फिल्म शीरीन फरहाद की तो निकल पड़ी में। इसके बाद इन्होंने खुद को फिल्मों से पूरी तरह दूर कर लिया। 6 मार्च 2018 को 88 साल की उम्र में शम्मी आंटी ने इस दुनिया को अलविदा भी कह दिया।

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