07 Lesser Known Facts About Jagdeep | Ace Comedian of Bollywood जगदीप की सात अनसुनी कहानियां

07 Lesser Known Facts About Jagdeep. एक ज़माने में हिंदुस्तानी सिनेमा का बहुत बड़ा नाम हुआ करते थे अभिनेता जगदीप। 

कॉमेडी जोनरा की फिल्मों ने इन्हें बॉलीवुड में एक आला मुकाम दिलाया था। शोले फिल्म में इनका निभाया सूरमा भोपाली का किरदार भला कौन भूल सकता है। 

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07 Lesser Known Facts About Jagdeep - Photo: Social Media

सूरमा भोपाली के किरदार को जगदीप ने कुछ इस अंदाज़ में जिया कि उनका नाम बॉलीवुड के इतिहास में अमर हो गया। आज जगदीप हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी कई कहानियां हैं जो हमेशा कही जाती रहेंगी।

Meerut Manthan अपने Readers को आज जगदीप की ज़िंदगी और उनके फिल्मी करियर से जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियां बताएगा। 

वो लोग जो जगदीप की कॉमेडी को पसंद करते हैं, उन्हें ये कहानियां ज़रूर पसंद आएंगी। 07 Lesser Known Facts About Jagdeep.

ऐसे सैयद इश्तियाक अहमद बने जगदीप

जगदीप का असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद था। चूंकि छोटी उम्र से ही जगदीप ने फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था तो साल 1953 में आई फिल्म फुटपाथ से सैयद इश्तियाक अहमद का नाम जगदीप पड़ा था। 

इत्तेफाक से इस फिल्म में इनके कैरेक्टर का नाम भी जगदीप ही था। शोले में जब जगदीप ने सूरमा भोपाली का किरदार निभाया था तो ये किरदार इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ कि जगदीप का नाम पड़ गया सूरमा भोपाली जगदीप। 

यहां आपको ये बताना ज़रूरी है कि जगदीप के करियर की पहली फिल्म थी साल 1951 में आई अफसाना। इस फिल्म में ये चाइल्ड आर्टिस्ट की हैसियत से नज़र आए थे। 

इसके बाद 1952 की धोबी डॉक्टर, 1952 की ही आसमान, 1953 की शहंशाह, पापी और लैला मजनू में भी चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर इन्होंने काम किया था। 

और इन सभी फिल्मों में इन्हें मास्टर मुन्ना के नाम से क्रेडिट दिया गया था। हालांकि पहली फिल्म अफसाना में इन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया गया था।

ऐसे हुई फिल्मी सफर की शुरुआत

जगदीप का जन्म हुआ था 29 मार्च सन 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया ज़िले में। ये जब छोटे ही थे तो इनके पिता सैयद यवर हुसैन जाफरी पिता का देहांत हो गया था। 

इत्तेफाक से उसी दौरान भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी भी मिली थी। गरीबी से तंग इनकी मां कनीज़ जाफरी अपने बच्चों को लेकर उस ज़माने के बॉम्बे यानि मुंबई आ गई।

मां ने कोशिश की कि अपने सभी बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ा-लिखा सकें। उन्होंने सभी बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया और खुद जी तोड़ मेहनत करने लगी। 

मां को दिन रात मेहनत करते देख सैयद इश्तियाक अहमद उर्फ जगदीप ने पढ़ाई छोड़ दी और सड़कों पर साबुन बेचना शुरू कर दिया था। 

साबुन बेचने के अलावा जगदीप ने कई दूसरे काम भी किए थे। जैसे गुब्बारे बेचना, टिन फैक्ट्री में काम करना वगैरह वगैरह। 

एक दफा सड़क पर ये पतंग बेच रहे थे जब एक कास्टिंग डायरेक्टर की नज़र इन पर पड़ी और वो इन्हें अफसाना फिल्म में काम करने के लिए अपने साथ ले गया। पहली फिल्म से इन्हें छह रुपए मिले थे जो उस ज़माने में बढ़िया रकम मानी जाती थी।

जब महबूब खान से भिड़ गए जगदीप

साल 1954 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था डंका। उस ज़माने की दिग्गज अदाकारा निम्मी ये फिल्म खुद प्रोड्यूस कर रही थी। लेकिन शूटिंग शुरू होने के कुछ ही दिन बाद फाइनेंस की परेशानियों के चलते ये फिल्म बंद भी हो गई। 

बाद में महबूब खान ने ये फिल्म कंप्लीट करने की ज़िम्मेदारी ले ली। जगदीप भी इस फिल्म का हिस्सा थे और उन दिनों जगदीप की उम्र 12 साल थी। शुरु में तय हुआ था कि जगदीप को हर दिन 50 रुपए के हिसाब से भुगतान किया जाएगा। 

लेकिन शूटिंग कंप्लीट होने के बाद जगदीप को 25 रुपए रोज़ के हिसाब से पेमेंट दी गई। नन्हे जगदीप को ये बात पसंद नहीं आई। वो 50 रुपए रोज़ के हिसाब से पैसे लेने पर अड़ गए और कास्टिंग डायरेक्टर से उनकी बहस होने लगी। 

इत्तेफाक से उसी वक्त वहां महबूब खान भी आ गए। महबूब खान को जगदीप का बहस करना पसंद नहीं आया। उन्होंने जगदीप को अपने ऑफिस में बुलाया और कहा,"सुनो लड़के। इतना चिल्लाने वालों को हम अपनी फिल्म में नहीं लेते।" 

ये सुनकर जगदीप की आंखों में आंसू आ गए। वो रोते हुए बोले,"महबूब साहब। आप अगर काम नहीं देंगे तो क्या मुझे काम नहीं मिलेगा?" 

महबूब खान को जब असली बात पता चली तो उन्हें जगदीप पर बहुत तरस आया। उन्होंने जगदीप से कहा,"फिक्र मत करो। अब से तुम्हें हर रोज़ के 50 रुपए ही मिलेंगे। और मेरी हर फिल्म में भी तुम्हें काम दिया जाएगा।"

दिलीप कुमार ने की थी भविष्यवाणी

साल 1953 में आई दिलीप कुमार की फिल्म फुटपाथ में जगदीप ने एक छोटा सा रोल किया था। उस सीन में इन्हें सिर्फ रोना ही था। 

नन्हे जगदीप ने रोने का वो सीन बहुत ही खूबसूरती से निभाया। खुद दिलीप कुमार भी जगदीप के कायल हो गए। उन्होंने जगदीप को 10 रुपए ईनाम में भी दिए। 

शूटिंग खत्म होने के बाद दिलीप कुमार जगदीप से बोले,"बच्चे तुम कहां रहते हो? आओ मेरी गाड़ी में बैठो। मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा।" जगदीप दिलीप साहब के साथ गाड़ी में बैठ गए। 

फिर जब दिलीप साहब ने एक पेट्रोल पंप पर अपनी गाड़ी रोकी तो दिलीप साहब को देखने और उनका ऑटोग्राफ लेने के लिए लोगों की भीड़ लग गई। 

तब दिलीप साहब ने लोगों से कहा,"अरे भई आप लोग मेरा नहीं, वो जो गाड़ी में बच्चा बैठा है उसका ऑटोग्राफ लीजिए। ये बच्चा एक दिन बहुत बड़ा एक्टर बनेगा।" 

फिर जब दिलीप साहब गाड़ी में वापस आए तो उन्होंने जगदीप से कहा,"तुम बहुत अच्छा काम करते हो बच्चे। एक दिन खूब तरक्की करोगे।

जब बिमल रॉय भी हो गए जगदीप के फैन

दो बीघा ज़मीन वो पहली फिल्म थी जिससे जगदीप को पहचान मिलनी शुरू हुई थी। हालांकि फुटपाथ और धोबी डॉक्टर जैसी फिल्मों से फिल्म इंडस्ट्री के लोग तो उन्हें बखूबी जानने पहचानने लगे थे। 

लेकिन सिने प्रेमियों का जगदीप पर ध्यान जाना शुरू हुआ बिमल रॉय की दो बीघा ज़मीन से। दरअसल, फिल्म धोबी डॉक्टर में भी जगदीप ने रोने का एक सीन बहुत बढ़िया अंदाज़ में किया था। 

इत्तेफाक से बिमल रॉय ने वो सीन देखा और उन्हें जगदीप की एक्टिंग बहुत पसंद आई। उन्होंने तभी फैसला कर लिया था कि दो बीघा ज़मीन में वो इस लड़के को ज़रूर लेंगे। 

इस फिल्म की शूटिंग के लिए पूरी यूनिट के साथ जगदीप कलकत्ता गए थे। फिल्म में जगदीप को कलकत्ता की सड़क पर बूट पॉलिश करके गुज़ारा करने वाले लड़के का रोल करना था। 

एक सीन की शूटिंग कलकत्ता की किसी सड़क पर हो रही थी। लेकिन वो सीन बहुत डल जा रहा था। किसी को भी उस सीन में मज़ा नहीं आ रहा था। तब जगदीप ने बिमल रॉय से कहा,"क्यों ना यहां पर कोई गाना डाला जाए।" 

लेकिन बिमल दा ने कहा कि यहां कोई फिल्मी गाना तो बिल्कुल भी नहीं डाला जाएगा। तब जगदीप बोले,"मैं फिल्मी गाने की बात नहीं कर रहा हूं। अगर मैं अपने डायलॉग्स को गाकर बोलूं तो कैसा रहेगा?" 

बिमल रॉय को जगदीप का ये आइडिया पसंद आया। उन्होंने जगदीप को ऐसा करने की इजाज़त दे दी। और फिर जब जगदीप ने उस सीन में एक्टिंग की तो बिमल रॉय बहुत खुश हुए। उन्होंने जगदीप का माथा चूम लिया।

सुनील दत्त से पहली मुलाकात

दो बीघा ज़मीन का प्रीमियर मुंबई के मशहूर मेट्रो सिनेमा में हुआ था। ये वो दौर था जब बलराज दत्त उर्फ सुनील दत्त कोई एक्टर नहीं बल्कि रेडियो प्रज़ेंटर हुआ करते थे और अक्सर फिल्मी कलाकारों का इंटरव्यू लेने फिल्मों के प्रीमियर में आते रहते थे। 

दो बीघा ज़मीन के प्रीमियर के दौरान जब बलराज दत्त ने जगदीप को देखा तो कहा कि अभी तक मैंने किसी बच्चे का इंटरव्यू नहीं लिया है। जगदीप। तुम रेडियो स्टेशन आना। मैं तुम्हारा इंटरव्यू वहीं पर लूंगा। हालांकि जगदीप कभी बलराज दत्त को इंटरव्यू देने जा ही नहीं पाए और ये बात आई गई हो गई।

जगदीप की पहली हवाई यात्रा

दो बीघा ज़मीन के बाद बिमल रॉय ने नौकरी फिल्म बनाई थी। उन्होंने इस फिल्म में भी जगदीप को एक रोल ऑफर किया। हालांकि इस वो दफा जगदीप को एक गेस्ट रोल में ही लेना चाहते थे। 

उन्होंने जगदीप से पूछा कि क्या तुम मेरी अगली फिल्म में गेस्ट रोल करोगे। जगदीप ने उनसे पूछा कि ये गेस्ट रोल क्या होता है। तब बिमल दा ने बताया कि ये एक छोटा सा रोल होता है। वैसा ही जैसे मीना कुमारी जी ने दो बीघा ज़मीन में लॉरी वाला रोल किया था। 

जगदीप ने कहा कि मैं आपके बच्चे जैसा ही हूं। आपको मना कैसे कर सकता हूं। आप बता दीजिए कब मुझे आना है। मैं ट्रेन से निकल पड़ूंगा। बिमल दा ने कहा कि इस दफा तुम्हें ट्रेन से नहीं बल्कि प्लेन से कलकत्ता बुलाउंगा। 

बिमल दा ने जगदीप को फ्लाइट की टिकट भेजी और इस तरह जगदीप ने अपने जीवन की पहली हवाई यात्रा की। इस रोल के लिए जगदीप को पांच हज़ार रुपए भी बिमल दा ने दिए। साथ ही कलकत्ता से वापस मुंबई भी फ्लाइट से ही भेजा।

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