12 Lesser Known Facts of Actress Shubha Khote | शुभा खोटे की 12 अनसुनी कहानियां
12 Lesser Known Facts of Actress Shubha Khote. शुभा खोटे हिंदी सिनेमा का वो नाम हैं जो साठ साल से भी ज़्यादा वक्त से एक्टिंग की दुनिया में एक्टिव हैं। कई पीढ़ियों के साथ काम कर चुकी शुभा खोटे ने फिल्मों के अलावा टीवी पर भी खूब काम किया है।किसी फिल्म में अगर शुभा खोटे नज़र आ जाएं तो ये तय है कि फिल्म में कॉमेडी का तड़का भी लगाया गया है।
शुभा खोटे की बायोग्राफी तो हम पहले ही आपको बता चुके हैं। और आज हम आपको शुभा खोटे की वो कुछ कहानियां बताएंगे जो हम उनकी बायोग्राफी में आपको नहीं बता पाए थे। तो चलिए, ये सफर शुरू करते हैं। 12 Lesser Known Facts of Actress Shubha Khote.
पहली कहानी
यूं तो शुभा खोटे बतौर कॉमेडियन फिल्मों में काम करती थी। लेकिन साल 1959 में आई फिल्म दीदी में शुभा खोटे सुनील दत्त के अपोज़िट नज़र आई थी। कहना चाहिए कि शुभा उस फिल्म में हिरोइन बनी थी।
सुनील दत्त व शोभा खोटे से जुड़ी एक रोचक कहानी कुछ इस प्रकार से है कि शुभा खोटे सुनील दत्त को उस ज़माने से जानती थी जब वो रेडियो में काम करते थे।
शुभा के पिता नंदू खोटे के कहने पर एक दफा सुनील दत्त ने उनके एक नाटक के लिए बैकग्राउंड कॉमेंट्री की थी। ये वो दौर था जब सुनील दत्त भी एक्टिंग की दुनिया में आने का मन बना चुके थे।
उसी नाटक के दौरान पहली दफा सुनील दत्त से शुभा खोटे की मुलाकात हुई थी। दीदी के बाद 1964 में आई फिल्म बेटी-बेटे में भी सुनील दत्त और शुभा खोटे ने साथ काम किया था।
हालांकि इस फिल्म में शुभा सुनील दत्त की हिरोइन नहीं बनी थी। सुनील दत्त और नरगिस दत्त के घर जब संजय दत्त का जन्म हुआ था तो सुनील दत्त ने सबसे पहली मिठाई शुभा खोटे को ही खिलाई थी।
दूसरी कहानी
शुभा खोटे के सबसे पसंदीदा एक्टर थे दिलीप कुमार। शुभा खोटे दिलीप कुमार को इतना ज़्यादा पसंद करती थी कि एक दफा तो एक इंटरव्यू में उन्होंने दिलीप कुमार को भगवान तक कह दिया था।
लेकिन शुभा की बदकिस्मती ये रही कि उन्हें कभी भी दिलीप कुमार के साथ किसी फिल्म में काम करने का मौका नहीं मिला। एक दफा राज कपूर के जन्मदिन की पार्टी में दिलीप कुमार से शुभा की मुलाकात हुई।
दिलीप कुमार शुभा को पहले से पहचानते थे तो उन्होंने शुभा को देखते ही प्यार से कहा,”कैसी हो पोरी।” और ये कहकर दिलीप कुमार ने शुभा के सर पर हाथ रख दिया। शुभा को लगा मानो साक्षात भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया है।
शुभा ने कई दिनों तक अपना सिर नहीं धोया। फिर आखिरकार जब शुभा खोटे की मां उन्हें डांटते हुए कहा कि अपने बाल धो लो नहीं तो सिर में जुएं हो जाएंगी तो सुधा ने अपने बाल धोए।
वैसे आपको बता दें कि मराठी भाषा में लड़कियों को प्यार से पोरी कहा जाता है। उस इंटरव्यू में शुभा खोटे ने एक अनोखे इत्तेफाक पर भी रोशनी डाली थी। शुभा ने कहा था कि दिलीप कुमार को मैं अपना गुरू भाई भी कहती थी।
दिलीप कुमार की पहली फिल्म ज्वार भाटा के डायरेक्टर अमिया चक्रव्रती थे। और शुभा की पहली फिल्म सीमा के डायरेक्टर भी अमिया चक्रव्रती ही थे।
तीसरी कहानी
शुभा खोटे की नूतन से बढ़िया दोस्ती थी। पहली फिल्म सीमा में शुभा ने नूतन के साथ ही काम किया था। और पहली फिल्म के दौरान ही नूतन से शुभा की बढ़िया दोस्ती हो गई थी।
फिर आगे चलकर और भी कई फिल्मों में शुभा और नूतन ने साथ काम किया था। इंडोर शूटिंग हो या आउटडोर शूटिंग, शुभा और नूतन हमेशा शूटिंग के बाद साथ ही रहा करती थी।
लेकिन जब नूतन की शादी हुई तो शुभा की उनसे बात कम होने लगी। और वो इसलिए क्योंकि एक दफा नूतन को जन्मदिन की बधाई देने के लिए शुभा ने फोन किया।
वो फोन नूतन के पति ने उठाया और उन्होंने काफी अजीब तरीके से नूतन के सोने का बहाना बनाकर फोन रख दिया। उस दिन के बाद से शुभा ने नूतन को फोन करना बंद कर दिया। हालांकि नूतन के आखिरी दिनों में एक बार फिर शुभा उन्हें फोन करके बातें करने लगी थी।
चौथी कहानी
महमूद और धूमल के साथ शुभा खोटे की तिकड़ी खूब पसंद की जाती थी। महमूद, धूमल और शुभा की तिकड़ी ने भरोसा, ज़िद्दी, छोटी बहन, सांझ और सवेरा, लव इन टोक्यो, गृहस्थी, हमराही और बेटी बेटे में काम किया था।
महमूद से तो शुभा की इतनी बढ़िया दोस्ती थी कि शुभा अक्सर रमज़ान के महीने में महमूद साहब के साथ रोज़ा रखा करती थी। जबकी महमूद साहब भी सुधा के साथ सावन के व्रत रखा करते थे।
कई दफा धूमल भी इन दोनों के साथ रमज़ान के रोज़े और सावन के व्रत रखा करते थे।एक दफा तो फिल्मी गलियारों में ये अफवाह भी उड़ी थी कि महमूद और शुभा खोटे का अफेयर चल रहा है।
लेकिन शुभा खोटे ने हमेशा इस तरह की बातों को झूठी अफवाह करार दिया। बकौल शुभा, वो हमेशा महमूद साहब को भाई कहकर पुकारा करती थी। और चूंकि शुभा किसी टॉम बॉय की तरह रहती थी तो महमूद भी इन्हें भाई कहा करते थे।
पांचवी कहानी
1958 के दशक तक शुभा खोटे भारत में फिल्म जगत का एक मशहूर नाम बन चुकी थी। दूसरे स्टार एक्टर्स की तरह ही शुभा के भी लाखों चाहने वाले देश और दुनिया में बन चुके थे। शुभा को भी उस ज़माने में ढेरों खत उनके फैंस की तरफ से मिला करते थे।
खतों के ज़रिए मिलने वाले फैंस के उस प्यार से शुभा खोटे भी प्रफुल्लित होती थी और अक्सर फैंस को खुद ही खत लिखकर जवाब भी दिया करती थी। लेकिन कई दफा कुछ खत ऐसे भी इन्हें मिले थे जो इन्हें टेंशन दिया करते थे।
एक दफा एक फैन ने खत लिखकर इनके चेहरे पर एसिड डालने की धमकी दी थी। शुभा उस खत से काफी घबरा गई और उन्होंने इसकी शिकायत पुलिस में भी की थी। और पुलिस ने भी उस फैन के खिलाफ एक्शन लिया था।
छठी कहानी
शुभा खोटे जी ने चिमुकला पहूना नाम की एक मराठी फिल्म भी बनाई थी। इस फिल्म का डायरेक्शन उन्होंने खुद किया था। शुभा खोटे जी ने उस फिल्म में एक्टिंग भी की थी। और उनके भाई व किसी ज़माने के नामी कॉमेडियन विजू खोटे साहब भी उस फिल्म में नज़र आए थे।
और कमाल की बात तो ये है कि उस फिल्म में शुभा जी के हसबैंड डी एम बलसावर ने भी एक किरदार निभाया था। जबकी इनकी सास, इनके देवर और इनके बच्चों ने छोटी-छोटी भूमिकाएं उस फिल्म में निभाई थी।
सातवीं कहानी
शुभा खोटे के पास हिरोइन बनने के काफी ऑफर्स आए थे। लेकिन डायरेक्टर अमिया चक्रवर्ती ने इन्हें सलाह दी कि हिरोइन बनने का चक्कर छोड़ो। कॉमेडी बढ़िया करती हो। वही करो। इन्हें खुद भी ऐसा लगता था कि ये कॉमेडी बढ़िया कर सकती हैं।
हिरोइन की तरह नाचना-गाना और रोना धोना इनसे नहीं हो पाएगा। वैसे भी साल 1941 में आई फिल्म खजांची में एक्ट्रेस रमोला की लाइवली एक्टिंग से ये काफी ज़्यादा प्रभावित थी। और उसी फिल्म से इन्हें कॉमेडी से लगाव हो गया था।
आठवीं कहानी
शुभा खोटे को गाने का काफी शौक था। हालांकि उनका ये शौक कभी प्रोफेशनली नहीं रहा। लेकिन अक्सर जब फिल्मों में इनके ऊपर कोई गाना फिल्माया जाता था तो शुभा खोटे बड़ी सहजता से गाने को शूट किया करती थी।
उनका लिप सिंकिंग का स्टाइल काफी नैचुरल था। और यही वजह है कि डायरेक्टर्स को शुभा खोटे पर गाना फिल्माने में कोई परेशानी नहीं होती थी। शायद इसिलिए शुभा खोटे पर फिल्मों में काफी गाने फिल्माए भी गए थे।
यहां आपका ये जानना भी ज़रूरी है कि शुभा खोटे ने छोटी उम्र में दो-तीन साल तक शास्त्रीय गायन का प्रशिक्षण लिया था। और इसिलिए उन्हें फिल्मों में गाने शूट करने में दिक्कत नहीं आती थी।
नौंवी कहानी
शुभा ने 1963 की हमराही और 1964 की ज़िद्दी फिल्म की शूटिंग लगभग एक साथ की थी। जहां हमराही फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट थी तो वहीं ज़िद्दी फिल्म कलर्ड थी।
इत्तेफाक से दोनों फिल्में एक साथ एक ही स्टूडियो में शूट हो रही थी। शुभा खोटे इन दोनों ही फिल्मों में एक साथ काम कर रही थी। शुभा खोटे अक्सर एक फिल्म का शॉट देने के बाद जल्दी से मेकअप चेंज करती और फिर दूसरी फिल्म के सेट पर अपना शॉट देने पहुंच जाती थी।
इस दौरान वो आपाधापी इन्हें काफी अजीब लगी। और उसके बाद इन्होंने फैसला किया कि अब कभी भी एक साथ ढेर सारी फिल्मों में ये काम नहीं करेंगी।
दसवीं कहानी
काफी कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि शुभा खोटे थिएटर की दुनिया में भी काफी एक्टिव रही हैं। इनकी खुद की एक थिएटर कंपनी है जिसका नाम है शुभांगी कला मंदिर। अपनी इस थिएटर कंपनी के अंडर में इन्होंने कई नाटक किए हैं।
अक्सर इनके छोटे भाई और अभिनेता विजू खोटे भी इनकी नाटक कंपनी में नाटक किया करते थे। विजू खोटे उम्र में इनसे साढ़े पांच साल छोटे थे और भाई से ज़्यादा किसी दोस्त की तरह इनके साथ रहते थे।
अफसोस की विजू खोटे जी अब हमारे बीच नहीं हैं। 30 सितंबर 2019 को विजू खोटे जी इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए चले गए थे।
11वीं कहानी
शुभा की पहली फिल्म सीमा में एक सीन है जिसमें ये साइकिल से एक चोर को पकड़ती हैं। चोर भी साइकिल पर भाग रहा है और पीछे शुभा खोटे साइकिल लेकर उसे पकड़ने के लिए आ रही हैं। ये सीन तो कंप्लीट हो गया।
लेकिन सीन को फिल्माते वक्त शुभा खोटे साइकिल से गिर पड़ी और उनके चेहरे और नाक पर काफी चोट लग गई। इस चोट की वजह से पूरे डेढ़ महीने तक सीमा फिल्म की शूटिंग रुक गई।
डेढ़ महीने बाद जब शुभा खोटे ठीक हुई और सेट पर वापस लौटी तो सीमा फिल्म की शूटिंग कंप्लीट हो पाई। और एक दफा एक मराठी फिल्म की शूटिंग के दौरान शुभा खोटे का एक्सीडेंट हो गया था।
दरअसल, सीन के मुताबिक शुभा खोटे को हथकड़ी पहनाकर जीप में ले जाया जा रहा था। लेकिन अचानक जीप के ब्रेक फेल हो गए और जीप एक नाले में जा गिरी।
उस हादसे में इनकी टांग में गहरी चोट लग गई। छह महीने तक ये बिस्तर पर रही। इन्हें गैंगरीन तक हो गया था।
12वीं कहानी
कहा जाता है कि अमिया चक्रवर्ती से पहले लीला चिटनिस शुभा खोटे को अपनी एक फिल्म में लेना चाह रही थी। दरअसल, लीला चिटनिस उस फिल्म से अपने बेटे को फिल्मों में लॉन्च करने की प्लानिंग कर रही थी।
लीला चिटनिस इनके साथ पांच साल का कॉन्ट्रैक्ट करना चाहती थी।लेकिन पांच साल के कॉन्ट्रैक्ट देखकर शुभा खोटे ने लीला चिटनिस को मना कर दिया।
फिर जब अमिया चक्रवर्ती का ऑफर इनके पास गया तो शुभा खोटे ने तुरंत उसे स्वीकार कर लिया। और इस तरह 1955 की सीमा शुभा खोटे के करियर की पहली फिल्म बनी।
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